मंदिरों को जोड़ने वाला मुहम्मद….

 

डा. कायनात क़ाज़ी

आपने मंदिरों को तोड़ने वाले कई मुहम्मदों के नाम सुने होंगे लेकिन हमारे देश में एक ऐसा भी मुहम्मद है जिसने पत्थरों के हज़ारों टुकड़ों को जोड़कर सौ से ऊपर मंदिरों को पुनः स्थापित किया है. मैं बात कर रही हूँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर), पुरातत्त्ववेत्ता पद्मश्री के के मुहम्मद की. केरल के कालीकट शहर

से आने वाले के के मुहम्मद यानि करिंगमन्नू कुझियिल मुहम्मद की शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्विविद्यालय से हुई. उन्होंने इतिहास विषय में एम ऐ किया और एएसआई से पुरातत्व सर्वेक्षण में डिप्लोमा किया। उन्होंने अपने जीवन में अनेक अद्भुत कार्य किए हैं लेकिन एक ऐसा कार्य किया जिसके लिए उन्हें वर्ष 2019 में पद्मश्री से नवाज़ा गया.

उनकी पूरी जीवनयात्रा वैसे तो अनेक अद्भुत कार्यों से सजी हुई है लेकिन हम आज ऐसे अनोखे मंदिरों के समूह को देखेंगे जिनका अस्तित्व १४वीं शताब्दी में आए भीषण भूकंप से ज़मींदोज़ हो गया था. वहां केवल दो सौ मंदिरों के निशान भी पूरे नहीं बचे थे. बड़ी दिलचस्प कहानी है इस स्थान की. चलिए ये कहानी हम जापानियों की एक प्राचीन कला से शुरू करते हैं.वैसे देखा जाए तो जापानी लोग बहुत सारी बातों में हमसे बहुत आगे हैं। परंपराओं को सहेजने की

कला उन्हें बखूबी आती है। जापानी घर इस बात का जीता जागता प्रमाण हैं। घर में जब उनके घर में मिट्टी का कोई बर्तन टूट जाता है तो वह उन टुकड़ों को सोने से बनाए एक विशेष मिश्रण से इस प्रकार वापस जोड़ देते हैं कि वो और सुंदर दिखने लगता है। इस कला को किंसुगी कहते हैं।

लेकिन इस बार हमने बाज़ी मारी है। टूटे टुकड़ों को जोड़ने की यह कला हमारे देश में इतना विस्तार पाएगी ये जापानियों को भी पता नहीं होगा। उन्होंने तो सिर्फ टूटे हुए कटोरे और केतलिया जोड़ी है हमारे देश में एक ऐसा पुरातत्ववेत्ता है जिसने हजारों मंदिरों के टुकड़ों को जोड़कर वापस से 200 मंदिरों को खड़ा किया है।

यह बात है सन 2004 की जब केके मोहम्मद साहब को उत्तर भारत के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सर्वेक्षण के सुपरिटेंडेंट के रूप में नियुक्त करके भेजा गया. उस समय में जब ग्वालियर आए तो अपने काम को एक अपने जुनून की हद तक जीने वाले केके मोहम्मद ने अपने स्टाफ से सबसे पहले जो सवाल पूछा- वह यह था कि क्षेत्र में सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य कहां पर है?

 

उनके साथियों ने उन्हें बटेश्वर के बारे में जानकारी दी. यह स्थान बीहड़ का वह स्थान था जहां पर डाकुओं का बड़ा आतंक था. मोहम्मद ने अपने सहयोगियों के साथ उस जगह का दौरा किया। जब वो बटेश्वर पहुंचे तो उन्हें वहां हजारों की तादाद में मंदिरों के टूटे पत्थरों के ढेर नजर आए। उस ढेर को देखकर शायद ही कोई व्यक्ति उस समय अंदाजा लगा सकता होगा कि यहां पर मंदिरों का एक विशाल समूह होता था. और उसको मेहनत करने पर दोबारा से वापस खड़ा किया जा सकता है। यह तब की बात है जब आर्किटेक्चर से जुड़े हुए आधुनिक सॉफ्टवेयर

भी मौजूद नहीं थे जब कोई व्यक्ति कंप्यूटर बैठकर मैप और नक्शे ऑटोकैड में ड्रॉ करके अनुमान नही लगा सकता है।

यहां पर किसी जमाने में गुर्जर और प्रतिहार राजाओं के समय मैं 200 मंदिर हुआ करते थे, ऐसा लोगों का कहना था. यह स्थान जंगलों के बीचो बीच था। चंबल के आसपास के बीहड़ इलाके डाकू के आतंक से भरे हुए थे. उस समय यहां गराडिया और परिहार जैसे बड़े डाकुओं के गैंग सक्रिय होते थे. इस क्षेत्र पर उनका कब्जा था. यहां काम करने के लिए सरकार से नहीं डाकुओं से परमिशन लेनी पड़ती थी।

लेकिन डाकुओं से परमिशन लेना तो दूर उनसे मध्यस्थता करने में जान के लाले थे. लेकिन केके मोहम्मद ने उसका भी रास्ता निकाला और डाकुओं से संपर्क साधा। ये मंदिर उनके इष्ट देवताओ के थे। केके मोहम्मद ने बड़ी समझदारी के साथ डाकुओं से संपर्क स्थापित किया और वह निर्भय सिंह गुर्जर डांकू को समझाने में सफल हुए के मंदिर और डाकुओं के पूर्वजों के द्वारा बनवाए गए थे. ऐसे में इन मंदिरों को वापस से खड़ा करने के लिए अगर वह लोग इजाजत दें तो केके मोहम्मद इन सब को वापस से उसी रूप में ला सकते हैं। किसी तरह डाकुओं को केके मोहम्मद की बात समझ में आ गई और उन्होंने एक मुसलमान पर भरोसा करते हुए 3 मंदिरों के जीर्णोद्धार की इजाजत मुहम्मद को दे दी।

केके मोहम्मद के लिए यह काम कोई आसान ना था. ना कोई नक्शा था. ना कोई रूपरेखा थी. मंदिर के छोटे-छोटे टुकड़ों के पत्थरों के ढेर थे। यहां पर आकर के के मोहम्मद साहब की मदद की वास्तुशास्त्र से संबंधित पौराणिक ग्रंथों ने. ऐसे ग्रंथ जिसमें मंदिर के स्थापथ्य से संबंधित सारी जानकारियां दी गई है। वास्तुशास्त्र प्राचीन ग्रंथों की रौशनी में साहब ने मंदिरों पहचान और उन्हें पुनः स्थापित करने पड़ती मुहिम छेड़ दी.

मोहम्मद ने उन तीन मंदिरों को खड़ा किया. एक-एक टुकड़ा जोड़-जोड़ कर खड़ा किया. जब डाकुओं ने मंदिरों को वापस अपने वास्तविक आकार में खड़ा देखा तो जज्बाती हो गए और उन्होंने इस कार्य को पूरा करने की न सिर्फ इजाजत दी बल्कि बिना किसी विघन बाधा के के के मोहम्मद और उनकी टीम यहां काम कर सके यह भी सुनिश्चित भी किया. इस तरह मंदिरों के संरक्षण में डाकुओं ने भी अपना योगदान दिया।

के के मोहम्मद का काम दिन दुगनी रात चौगुनी गति से आगे बढ़ रहा था कि उसी दौरान इन डाकुओं के आत्मसमर्पण और कुछ डाकुओं के एनकाउंटर के कारण यह क्षेत्र डाकुओं की पहुंच से आजाद हो गया. आम जनता के लिए तो यह खुशखबरी थी लेकिन एक दूसरी मुसीबत पीछे से आ रही थी. जैसे ही यह क्षेत्र डाकुओं से आजाद हुआ वैसे यह क्षेत्र खनन माफियाओं के चंगुल में फंस गया. यह पूरी घाटी खनन करने वाले माफियाओं से भर गई। केके मोहम्मद और उनकी टीम के सालों की मेहनत के ऊपर खतरा मंडराने लगा. उनका काम बिलकुल कच्ची स्थिति में था. उधर खनन माफिया लगातार ब्लास्ट कर रहे थे. टुकड़ा-टुकड़ा जोड़कर मंदिरों को वापस से खड़ा करने की मेहनत बर्बाद होने वाली थी. मोहम्मद ने प्रशासन से सहयोग मांगा, चिट्ठियां लिखी. भागदौड़ की. लेकिन राज्य सरकार ने एक ना सुनी. किसी को परवाह ही नहीं थी की सालों की मेहनत का क्या होगा. अंत में लेकिन मोहम्मद ने स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी को चिट्ठी लिखी और उन्हें हवाला दिया मंदिरों के संरक्षण की बात कर रहे हैं तो आज बटेश्वर के मंदिरों के संरक्षण को लेकर ऐसी उदासीनता क्यों दिखाई जा रही है. सरकार खनन माइनिंग करने वाले माफियाओं का साथ क्यों दिया जा रहा है।

केके मोहम्मद के चिट्ठी ने हड़कंप मचा दिया। उस समय अंबिका सोनी केंद्र में  मंत्री हुआ करती थी. उन्होंने  तुरंत प्रदेश के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी। दूसरी तरफ मीडिया जो इस विषय को लगातार उठा रही थी और उस पर नजर रखे हुए थे. उसने भी जमकर लिखा और केके मोहम्मद की चिंताओं का साथ दिया। इसका असर ये हुआ कि मुख्यमंत्री ने तुरंत प्रभाव से माफियाओं का काम बंद करवाया।  लेकिन केके मोहम्मद सरकारी नौकरी में रहते हुए किसी गैर सरकारी संगठन के व्यक्ति से मदद मांगी है. यह बड़ी बात थी. जिसके चलते उनको सस्पेंड भी किया जा सकता था. लेकिन कहते हैं ना सच का साथ खुदा भी देता है. ये सब जानते थे कि मोहम्मद ने जो किया उनका उनके पास एक अंतिम विकल्प था और उन्होंने वह अपने लिए नहीं किया था बटेश्वर के मंदिरों को बचाने के लिए किया था. इसका अंदाजा सबको था. इसीलिए उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया और अंत में सन 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों मोहम्मद को बटेश्वर के 200 मंदिरों के समूह के अभूतपूर्व कार्य के लिए पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।

अभी के लिए इतना ही,
फिर मिलेंगे किसी और बेहतरीन शख़्सियत के साथ।

आपकी हमनवां
डा कायनात क़ाज़ी

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