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पुष्कर सिर्फ़ एक कैमल फेयर नही यहाँ और भी बहुत कुछ है ख़ास

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दोस्तों इस बार आपको लिए चलती हूँ तीर्थों के तीर्थ पुष्कर नगरी में जहाँ पर विश्व प्रसिद्ध कैमल फेयर लगता है। इस यात्रा में हम जानेंगे यहाँ से जुड़ी कुछ रोचक बातें। जब राजस्थान टूरिज्म से मुझे न्यौता आया तो मैं ख़ुशी से भर गई। पुष्कर नगरी जाना हर फ़ोटोग्राफ़र का सपना होता है। फिर चाहे पहले कितनी बार क्यों न जा चुकी होऊं। कैमल फेयर में जाना जैसे लाज़मी सी बात है।

Ladies preparing for Puja at Bramha Sarover ,Holy city Pushkar

और फिर राजस्थान तो अतिथि सत्कार में सबसे आगे है। इसलिए जाना तो बनता ही है। राजस्थान की सौंधी मिटटी से आती आवाज़-पधारो माहरे देस केवल एक गीत के शब्द नहीं हैं यह एक भावना है जो यहाँ के कण कण में बसती है।  मैं इस पावन नगरी के विषय में यहाँ के किसी मूल निवासी से जानना चाहती थी।मैं यहां श्री गोविन्द पराशर जी से मिली जोकि पीढ़ियों से यहाँ पूजा पाठ का काम करते हैं। गोविन्द जी से मुझे बड़ी ही रोचक जानकारियां मिली जिन्हें मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगी। गोविन्द जी ने मुझे यहाँ के इतिहास के विषय में कई मान्यताओं के विषय में बताया। यहाँ कई कहानियां प्रचलित हैं।

Camel Safari at Pushkar

पुष्कर में कार्तिक माह मे बड़ा विशाल मेला लगता है। जहाँ आस पास के किसान और मवेशियों को पालने वाले लोग पवित्र महीने मे ब्रम्‍ह सरोवर में स्नान करने आते हैं और ऊंट, गाय, घोड़े आदि पशुओं की खरीद फ़रोख़्त करते हैं। पुष्कर हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए एक बड़ा तीर्थ है। यहाँ ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर है। पुष्कर को आदि अनादि तीर्थ माना गया है। ब्रह्मा जी का निवास भी पुष्कर को ही माना जाता है। कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने स्वर्ग से एक कमाल का फूल गिराया था जोकि इस भू भाग मे आकर गिरा। जिस स्थान पर कमाल पुष्प गिरा वहीं से जल की धारा फूटी और यह सरोवर बना। तभी से इस सरोवर का नाम ब्रह्मा सरोवर पड़ा।

एक अन्य कहानी के अनुसार ब्रह्मा जी जोकि सृष्टि के रचेता हैं उन्होंने जब पुष्कर बनाया तो हिंदू संस्कृति के अनुसार उन्हें भी इस शुभ कार्य के लिए हवन करना था। तब ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र नारद मुनि से कहा कि आप जाइए और देव लोक से सावित्री मां को लेकर आइए। लेकिन सावित्री मां को आने मे समय लग रहा था। तब यहां हवन का मुहूर्त निकला जा रहा था इसलिए ब्रह्मा जी ने गांधर्व विवाह करते हुए वेद माता गायत्री के साथ यहाँ हवन की प्रक्रिया आरंभ की। इसी बीच मां सावित्री भी पहुँच गईं उन्होने अपने पति के साथ किसी और स्त्री को हवन मे बैठे देख क्रोधित हो ब्रह्मा जी को श्राप दिया, कि आपने जो धर्म का उल्लंघन किया है इसलिए मैं आपको श्राप देती हूँ कि इस धरती लोक पर यहाँ के अलावा कहीं भी आपका मंदिर नही होगा। इसी लिए पुष्कर के अलावा ब्रम्हा जी का कहीं भी मंदिर नहीं है। पुष्कर किसी मंदिर या मूर्ति का नाम नही है पुष्कर इस जल सरोवर का नाम है। इसलिए ब्रह्मा जी की पूजा करने यहाँ आना होता है।

Evening Arti at Bramha Sarover,Holy city Pushkar

Evening Arti at Bramha Sarover,Holy city Pushkar

कहते हैं इस सरोवर में पिंड दान करने से मोक्ष मिलता है। इस जल सरोवर मे जवाहर लाल नेहरू, मोरारजी देसाई, राजेश पायलट, आदि का अस्थि विसर्जन हुआ। कहते हैं ब्रह्मा जी ने जो हवन किया था वह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्ण मासी तक चला था। उसी उपलक्ष्य मे हज़ारों लाखों वर्षों से यहां मेला लगता है। इसी समय हर वर्ष  देश विदेश से श्रद्धालु यहाँ आते हैं जोकि सरोवर मे डुबकी लगा कर अपने पूर्वजों को तर्पण देते हैं।

वैसे तो पुष्कर मे सेकड़ों मंदिर हैं। लेकिन यहाँ पाँच मुख्य मंदिर हैं, पहला ब्रह्मा जी का मंदिर, दूसरा मंदिर बहविष्णु, तीसरा नया रंग जी का मंदिर, चौथा मंदिर-पुराना मंदिर और पाँचवाँ मंदिर अटबटेश्वर महादेव मंदिर। कहते हैं कि ऐसा कोई भी देवता नही है जिसने पुष्कर की यात्रा नही की हो। पुष्कर मे चारों युगों के प्रमाण मिलते हैं। आठ दिन के इस मेले मे शहर दूर-दूर से आने वाले सैलानियों से भर जाता है। यहाँ राजस्थान टूरिज़्म और स्थानीय प्रशासन द्वारा मेले की व्यवस्था संभाली जाती है। आठ दिन तक चलने वेल मेले मे कई प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

Rangji Temple, Holy city Pushkar

मेले मे दूर-दूर से आए कलाकार अपनी कला का परदर्शन करते हैं, जैसे कैमल डान्स, घोड़ों का डान्स, कबड्डी, रूरल गेम्स,  ऊंट गाड़ी पर सवारी, सेंड ड्यून्स की सफ़ारी और हॉट एयर बेलून्स से पुष्कर का विहंगम नज़ारा। यहाँ एक खुला मंच है जिस पर हर रोज़ शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोक कलाकारों से लेकर राष्ट्रीय व अंतर राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। इस मंच पर यहाँ के लोकल कलाकारों को भी अपनी कला के प्रदर्शन का अवसर दिया जाता है।

A young boy singing at the Pushkar fair

वैसे तो पुष्कर एक छोटी जगह है पर विश्व मानचित्र पर पहचाना जाता है। इसे तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। अजमेर से 14 किमी उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वत श्रंखलाओं के बीच बसा हुआ एक मनोरम स्थान है। पुष्कर शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है। पुष्प+कर, पुष्प यानी फूल और कर यानी हाथ। पुष्कर में गुलाब की खेती होती है। अजमेर शरीफ में ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर चढ़ाए जाने वाले फूल यहीं से जाते हैं। इस जगह के नाम के साथ कई दन्तकथाएँ जुड़ी हुई हैं। कुछ लोग मानते हैं कि समुद्रमंथन से निकले अमृत कलश को छीनकर जब एक राक्षस भाग रहा था तब उसमें से कुछ बूँदें किसी तरह सरोवर में गिर गईं तभी से यहाँ की पवित्र झील का पानी अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक हो गया और लोग इसे तीर्थ के रूप में पूजने लगे. ऐसी लोगों की आस्था है कि अमृतकलश से गिरी बूँदों ने इस सरोवर के पानी को रोगनाशक और पवित्र बना दिया है.एक और कथा अनुसार जब ब्रम्हा सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उन्होंने अपने हाथ से एक कमल उछला और वह यहाँ आकर गिरा जिससे इस झील का निर्माण हुआ। इसलिए यह  पवित्र सरोवर माना गया है. यह भी माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के अंतिम पाँच दिनों में जो कोई पुष्कर तीर्थ में स्नान- पूजा करता है उसे अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है। इसीलिए चारों धामों की यात्रा करके भी यदि कोई पुष्कर झील में डुबकी नहीं लगाता है तो उसके सारे पुण्य निष्फल हो जाते है। एक कहावत है कि ‘सारे तीर्थ बार बार, पुष्कर तीर्थ एक बार’, इसीलिए इसे तीर्थों का गुरु, पाँचवाँ धाम एवं पृथ्वी का तीसरा नेत्र कहा जाता है।

इस झील के चारों ओर श्रद्धालुओं के स्नान करने के लिए विभिन्न राजाओं ने घाट बनवाए जिनका नाम राज्यों के नाम पर रखा गया। जैसे ग्वालियर घाट, अजमेर, जयपुर, सीकर, कोटा, बूंदी आदि

Sadhus at Savitri Temple

यहाँ अनेक मन्दिर स्थित हैं जिनमे ब्रम्हा जी का मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है। जिसका निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक ने 14वीं शताब्दी में अजमेर के नज़दीक करवाया था. इस सरोवर की लंबाई और चौड़ाई समान है। डेढ़ किलोमीटर लंबे और इतने ही चौड़े पुष्कर सरोवर को पास की पहाड़ी से देखें तो यह वर्गाकार स्फटिक मणि जैसा लगता है। इसके चारों तरफ बने हुए 52 घाट इसके सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं।

 इसके साथ भी एक पौराणिक कथा जुड़ी है हुआ यूँ कि क्रोधित सरस्वती ने एक बार ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि जिस सृष्टि की रचना उन्होंने की है, उसी सृष्टि के लोग उन्हें भुला देंगे और उनकी कहीं पूजा नहीं होगी। लेकिन बाद में देवों की विनती पर देवी सरस्वती पिघलीं और उन्होंने कहा कि पुष्कर में उनकी पूजा होती रहेगी।इसलिए सिर्फ पुष्कर में ही ब्रम्हा जी की पूजा होती है।

Cattle accessories market at the Pushkar fair

पुष्कर में हर साल  दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है। पहला मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक तथा दूसरा मेला वैशाख शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। पुरोहित संघ ट्रस्ट की ओर से पुष्कर झील के बीचों-बीच बनी छतरी पर झंडारोहण व आरती के साथ कार्तिक मेले  का शुभारम्भ किया जाता है और दूर दराज़ से मवेशी बेचने और खरीदने वाले यहाँ आ जुटते हैं। यह भारत वर्ष में लगने वाला सबसे बड़ा पशु मेला है।  यह मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। रेगिस्तान के मुहाने की तरह यह मैदान जहाँ तक नज़र जाए ऊंटों से भरा नज़र आता है।

ऊँटों के अलावा बकरियाँ, ऊँची नस्ल के घोड़े, और टट्टू भी बेचे और ख़रीदे जाते हैं. मेले का आयोजन स्थानीय प्रशासन और राजिस्थान पर्यटन विभाग साझा रूप से करते हैं। यहाँ आए लोग जानवरों की खरीद फरोख्त के साथ साथ शादी ब्याह आदि भी यहीं तय कर लेते हैं। एक ओर  जहाँ पुरुष मवेशियों की सौदेबाज़ी में व्यस्त होते हैं वहीँ पारम्परिक परिधानों में सजी रजिस्थानी महिलाऐं मेले में खरीदारी का आनन्द लेती हैं।

Camel Dance competition at the fair

मेले में कई प्रकार की प्रतियोगिताएँ व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।  यहाँ  ऊंटों व घोडों की दौड खूब पसंद की जाती है। सबसे सुंदर ऊँट व ऊँटनी को पुरस्कृत किया जाता है। शाम का समय राजस्थान के लोक नर्तकों व लोक संगीत का होता है। तेरहताली, भपंवादन, कालबेलिया नाच और चकरी नृत्य का ऐसा समां बँधता है कि लोग झूमने लगते हैं। दूर तक फैले पर्वतों के बीच विस्तृत मैदान पर आए सैकड़ों ग्रामीणों का कुनबा मेले में अस्थायी आवास बना लेता है। पशुओं की तरह तरह की नस्लें उनका चारा औजार कृषि के यंत्र और उनके तंबू डेरे विविधता का सुंदर समा बाँध देते हैं।

मेला ग्राउंड के पास ही राजस्थान टूरिज़्म ने शिल्पग्राम बनाया हुआ है। यहाँ प्रदेश के लोक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। आप यहाँ से आप खरीदारी भी कर सकते हैं। इस मेले मे भारत भर से सैलानी तो आते ही हैं बल्कि पूरी दुनिया से सैलानी इस अदभुत मेले को देखने पुष्कर पहुँचते हैं।

Camel Dance competition at the fair

मेला ग्राउंड के पास ही राजस्थान टूरिज़्म ने शिल्पग्राम बनाया हुआ है। यहाँ प्रदेश के लोक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। आप यहाँ से आप खरीदारी भी कर सकते हैं। इस मेले मे भारत भर से सैलानी तो आते ही हैं बल्कि पूरी दुनिया से सैलानी इस अदभुत मेले को देखने पुष्कर पहुँचते हैं।

Folk music at Shilpgram

आम मेलों की ही तरह ढेर सारी  दुकानें, खाने-पीने की गुमटियाँ, करतब, झूले और मेलों में देखी जाने वाली सभी वस्तुओं की जमावट यहाँ देखी जाती है। यहाँ  जानवरों के साजो-सामान की दुकानें भी लगी होती हैं। इन दुकानों पर सजी रंग बिरंगे चुटीले,लटकने, झालरें बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

यहाँ रंग बिरंगी छतरियों से सजी ऊँट गाड़ियाँ सैलानियों को पूरे मेले का भ्रमण करवाते हैं। लोक संस्कृति व लोक संगीत का सौंदर्य हर जगह देखने को मिलता है।

Kachchighori at Shilpgram Pushkar

यहाँ से थोड़ा दूर ब्रम्हा मन्दिर के नज़दीक पूरा बाजार सजा होता है। जहाँ से पगड़ियाँ,ब्लू पॉटरी, लैदर बैग ,जूतियाँ ,बंधेज की चुनरियाँ और रजिस्थानी रजाईयां खरीदी जा सकती हैं। पुष्कर मेले का आनन्द आप हॉट एयर बैलून में बैठ कर भी ले सकते हैं।

Highlight of the camel fair-Hot Air Balloon Safari

इस बार पुष्कर मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा हॉट एयर बैलून सफ़ारी। यहाँ कई आकर के बैलून मौजूद थे। जो आठ से सोलह लोगों तक को बिठा कर आकाश में उड़ सकते थे। हॉट एयर बैलून सफ़ारी के लिए पहले से बुकिंग करवानी होती है। इस सफारी का आनंद ही कुछ और है। मैं अगली पोस्ट में हॉट एयर बैलून सफ़ारी के विषय में विस्तार से बताउंगी।

Dal Bati Churma

पुष्कर मेला देखने सैलानी विदेशों से बड़ी संख्या में आते हैं। यह झाँकी हैं राजिस्थान के गौरवशाली अतीत की, उनकी सभ्यता और समाज की, देवताओं में बसी आस्था की। इस मेले में दाल बाटी चूरमा खिलाने के लिए ढाबे हर समय खुले रहते हैं। प्रेम से परोसते यह रजिस्थानी लोग ख़ुशी ख़ुशी सैलानियों का स्वागत करते हैं।  इस वर्ष यह मेला नवम्बर माह में 8-14 के बीच अजमेर जिले के पुष्कर में आयोजित किया गया है।

फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

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