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टाइगर कंट्री-बांधवगढ़ नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश

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बचपन से ही जब भी मैं अपने परिवार के साथ साउथ इंडिया जाती थी तो ट्रेन मध्य प्रदेश के बड़े भाग को क्रॉस करती हुई जाती थी। यह हिस्सा शुरू होते ही खिड़की के बाहर का नज़ारा अपने आप बदल जाता था। यह बताने की ज़रूरत नही पड़ती थी कि हम मध्य प्रदेश में आ चुके हैं, यहाँ के घने हरयाली से भरे जंगल अपने आप इस बात की गवाही देते थे। और क्यूँ न हो इस प्रदेश को बहुमूल्य वन संपदा जो मिली हुई है। यहाँ एक नहीं दो नहीं पूरी 25 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी हैं। ऐसी अनमोल धरोहर भारत मे किसी और राज्य के पास नहीं हैं। इसी लिए तो मध्य प्रदेश को वाइल्ड लाइफ के लिए अग्रिम माना जाता है। जब 1973 मे भारत सरकार और WWF (वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड) ने भारत में लुप्तप्राय वन्य प्रजातियों को बचाने के लिए काम करना शुरू किया तब इसकी शुरुवात मध्य प्रदेश से ही हुई। यहाँ 9 वन क्षेत्रों को टाइगर संरक्षण के लिए घोषित किया गया। आज यहाँ 5 प्रॉजेक्ट टाइगर एरिया बने हुए हैं। जैसे कान्हा, पन्ना, बंधवगार्ह, पेंच और सतपुरा।

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टाइगर के संरक्षण के लिए किए जाने वाले अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज यहाँ भारत में पाए जाने वाले बाघों (टाइगर) की जनसंख्या का 19 प्रतिशत भाग रहता है और यह आँकड़ा बाघों (टाइगर) की विश्व जनसंख्या का 10 प्रतिशत है।

ऐसे ही नही मध्य प्रदेश को टाइगर कंट्री का नाम दिया गया है। मुझे भी जब मध्य प्रदेश ट्रॅवेल मार्ट अटेंड करने के लिए मध्य प्रदेश टूरिज़्म का न्योता आया तो मैं भी टाइगर कंट्री को देखने का मोह नही त्याग सकी। और इस तरहां मैं पहुँच गई बांधवगढ़। सतपुड़ा के जंगलों से आबाद बांधवगढ़। टाइगर का घर, बांधवगढ़।

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बांधवगढ़ नेशनल पार्क को 1968 मे नेशनल पार्क का दर्जा मिला था। हमने रात को भोपाल से ट्रेन पकड़ी और सुबह 5 बजे जबलपुर पहुँच गए। जबलपुर से बांधवगढ़ का रास्ता 163 किलोमीटर का है जिसे हमने लगभग 5 घंटों मे कवर किया। रास्ता बहुत लंबा नही है लेकिन खूबसूरत पहाड़ों के बीच से होकर गुज़रता है। सतपुड़ा के पहाड़ी जंगल बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। यह जंगल वर्ष भर हरे रहते हैं। यहाँ सागोन और बाँस के पेड़ बहुतायत में हैं।

हम दोपहर तक मध्य प्रदेश टूरिज़्म के रिज़ॉर्ट वाइट टाइगर मे पहुँच गए थे, यह एक खूबसूरत जगह है और बांधवगढ़ नेशनल पार्क के बहुत नज़दीक है। दोपहर का भोजन कर हमने शाम की सफ़ारी पर जाने के लिए कैंटर बुक किया हुआ था। यह एक प्रकार की खुली बस होती है जिस में बैठ कर आप जंगल सफ़ारी का आनंद ले सकते हैं। बांधवगढ़ नेशनल पार्क कान्हा नेशनल पार्क से आकर मे काफ़ी छोटा है लेकिन यहाँ टाइगर की संख्या बहुत है।

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आइये कुछ मज़ेदार फैक्ट्स बांधवगढ़ नेशनल पार्क और टाइगर (बाघ) के बारे में जान लेते हैं।

  • भारत में सबसे ज़्यादा टाइगर (बाघ) बांधवगढ़ नेशनल पार्क में ही पाए जाते हैं
  • बांधवगढ़ नेशनल पार्क विंधयांचल की पहाड़ियों मे 450 स्क्वायर किलोमीटर के दायरे मे फैला हुआ है।
  • किसी ज़माने मे बांधवगढ़ नेशनल पार्क रीवा राजघराने का निजी (पर्सनल) अभ्यारण होता था जिसका प्रयोग शाही परिवार अपने शिकार के शौक़ के लिए करता था।
  • वर्ष 1951 में रीवा के महाराजा श्री मार्तण्ड सिंह ने इसी जंगल में एक सफ़ेद टाइगर मारा था। आज उसी सफ़ेद टाइगर को महाराजा के संग्रहालय में भूसा भर कर रखा गया है।
  • वर्ष 1968 मे इसे नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया। और वर्ष 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर के आने के बाद बाघों की लगातार घटती संख्या को कड़े क़ानूनों द्वारा रोक गया और इस तरह यह पार्क भारत में सबसे ज़्यादा टाइगर पॉपुलेशन के लिए जाना जाता है।
  • इस पार्क का नाम यहा के प्राचीन दुर्ग-बांधवगढ़ के नाम पर बांधवगढ़ नेशनल पार्क पड़ा।
  • बांधवगढ़ नेशनल पार्क मे जीप और कैन्टर की सफ़ारी के अलावा हाथी पर बैठ कर सफ़ारी भी की जा सकती है।
  • यह पार्क जुलाई और अगस्त के महीने को छोड़ कर पूरे साल भर खुला रहता है।
  • बांधवगढ़ नेशनल पार्क बाघ के अलावा तेंदुआ, हिरण, ब्लैक बक, चीतल और लंगूरों का घर भी है।
  • यहाँ साल भर हरे रहने वाले साल और बाँस के घने पेड़ होते हैं जो इस जंगल को हमेशा हरा भरा रखते हैं।
  • बांधवगढ़ नेशनल पार्क सबसे बड़ी जैव विविधता के लिए भी मशहूर है।
  • जिस प्रकार इंसानों में पहचान के लिए उँगलियों के निशान माने जाते हैं उसी प्रकार टाइगर के शरीर की धारियां उसकी पहचान होती हैं। यह यूनीक होती हैं। इंसानों के फिंगर प्रिंट्स की तरह।
  • इतने शक्तिशाली जानवर टाइगर को देखना रोमांच से भर देने वाला अनुभव है। लेकिन इनके जीवन के लिए भी कई ख़तरे होते हैं। जैसे जन्म के बाद नन्हे शावकों को अन्य बाघ व तेंदुए अपना शिकार बना लेते हैं। वहीं टाइगर की खाल, दांत और हड्डियां तस्करी की जाती है। इन तस्करों से भी खतरा हमेशा बना रहता है। यह लोग जंगल के पानी के स्त्रोत में ज़हर मिला देते हैं। जंगल में आग लगा देते हैं।
  • इन सभी ख़तरों से निपटने के लिए वन विभाग के कर्मचारी मुस्तैदी से जंगल की निगरानी करते हैं। इन वन प्रहरियों के कारण ही आज लुप्तप्राय इस जीव की रक्षा हो सकी है।

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जंगल सफ़ारी अपने आप मे ऊर्जा भर देती है। जंगल से आती वनस्पति की खुश्बू किसी जंगली फूल सी महकती है। इस जंगल में टाइगर के अलावा, तेंदुआ, चीतल, हिरन, लंगूर और अन्य जंगली जानवर। हमारी सफ़ारी दोपहर तीन बजे से शुरू हुई और शाम 6 बजे तक चली। पर कोई भी टाइगर नही दिखा। हम सब थोड़े निराश हो चुके थे। शाम ढल रही थी और हमने पार्क से वापसी की राह पकड़ ली थी। सफ़ारी पर आते हुए सब में जो उत्साह था अब वो ठंडा हो चुका था। टाइगर देखना इतना आसान थोड़े ही होता है। जंगल का राजा ऐसे ही दर्शन नही दे देता। पर मेरे मन में एक आस अभी भी बाक़ी थी। क़ुदरत हमेशा फोटोग्राफर का साथ देती है। ऐसा मेरा विश्वास है। कि तभी पार्क के गेट से मुश्किल से 1000 मीटर पहले हम क्या देखते हैं कि सामने अपनी पूरी आन बान और शान के साथ एक नर बाघ कच्ची रोड के बीचों बीच लेटा हुआ है। सब तरफ सन्नाटा। जैसे सबकी साँसें रुक गई हों। टाइगर को देखना एक ऐसा ही अनुभव है जिसे शब्दों मे ब्यान नही किया जा सकता केवल महसूस ही किया जा सकता है।

हम सब में खुशी और उत्साह की लहर दौड़ गई और सबने बड़े आराम से टाइगर की फोटो क्लिक की। और इस तरह बांधव गढ़ नेशनल पार्क की हमारी यात्रा सफ़ल हुई।

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फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत की धरोहर के किसी और अनमोल रंग के साथ
तब तक आप बने रहिये मेरे साथ

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी

 

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