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सुप्रसिद्ध पांडवनी लोक गायिका पदमश्री तीजन बाई  से डा० कायनात क़ाज़ी की बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत हैं :

तीजन बाई आज एक नाम नहीं बल्कि पहचान हैं। देश विदेश में प्रसिद्धि हांसिल कर चुकी लोक गायिका ने पंडवानी लोक कला को विश्व में पहचान दिलाई। विश्व की प्राचीनतम चर्चित कथाओं में से एक महाभारत की कथा को पूरे वेग और सम्प्रेषणता के ज़रिये कपालिक शैली  पर मंच पर उतारने  वाली प्रथम महिला डा०तीजन बाई छत्तीसगढ़ की शान के रूप में पूरे विश्व में जानी जाती हैं। उनकी इस विलक्षण प्रतिभा को लोगों ने खूब सराहा और सम्मान दिया। भारत सरकार ने 1988 में पदमश्री सम्मान से नवाज़ा,1994  में श्रेष्ठ कला आचार्य, 1996 में संगीत नाट्य अकादमी सम्मान ,1998 में देवी अहिल्या सम्मान ,1999 में ईसुरी सम्मान ,2003 में भारत के राष्टपति द्वारा पदमभूषण सम्मान से नवाज़ा गया। तीजन बाई को दिए जाने वाले सम्मानों की लिस्ट जितनी लम्बी है  उतनी ही लम्बी है उनकी संघर्ष यात्रा।

छत्तीसगढ़ राज्य के जिला  दुर्ग के पाटन ग्राम में जन्मी तीजन बाई का पालन पोषण गनियारी ग्राम में अपने नाना के पासहुआ। लड़कों की तरह उछल कूद करने वाली बालिका तीजन छुप-छुप कर अपने नाना को पंडवानी गाते  सुनती थीं।पंडवानी छत्तीस गढ़ की लोक कला है जिसपर केवल पुरुषों का ही वर्चस्व था। इसे केवल पुरुष गायक ही गाते  थे।पंडवानी में द्वापर युग की महान गाथा महाभारत की कथा कविता और संवाद के रूप में पूरी भावनाओं के साथ सुनाई जातीहै। तीजनबाई की इस प्रतिभा  को उनके नाना श्री बृजलाल पारधी ने पहचाना और निखारने का फ़ैसला  किया

तीजन बाई को उनके नाना ने बाक़ायदा शिष्य बनाया और सिखाना  शुरू किया। नाना जो सिखाते तीजन बाई रात में उसीसे जुड़ी  कविता मन में गढ़ लेतीं और दूसरे दिन नाना को सुनातीं। उनकी लगन और मेहनत से खुश हो नाना ने अपनाएकतारा तीजन बाई को सौंप दिया।आज भी तीजन बाई उसी मोरपंखी जड़े  इकतारे के साथ अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करतीहैं। तीजन बाई ने अपने जीवन की पहली परफॉर्मेंस तेरह  वर्ष की उम्र में दी और जिसके लिए उनको दस रूपये का इनामभी मिला।

तीजन बाई ने पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र  में सफलता का परचम लहराया। वह अपने अनोखे अंदाज़ में स्टेज को ऊर्जा सेभर देती हैं। पारम्परिक आदिवासी गहने और लाल साडी में ऊर्जा का स्त्रोत बनी तीजन बाई जब महाभारत में वर्णित रणक्षेत्र और दुश्शासन वध की गाथा सुनती हैं तब श्रोताओं के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लगता है जैसे सब कुछ आँखों के सामनेहो रहा है।

तीजन बाई अपनी कला को बहुत समर्पित रही है। इस कला को ज़िंदा रखने के लिए तीजन बाई ने बहुत कठिनाइयाँ  झेलीं।बचपन में जिसके साथ उनका  विवाह हुआ वह गोना कराने  ही नहीं आए। समाज ने उन्हें बिरादरी से बाहर  कर दियाकेवल इसलिए कि वह पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलना चाहती थीं. ऐसी ही नाजाने  कितनी परेशानियाँ  आईं पर उन्होंने अपनी कला को नहीं छोड़ा।आज देश विदेश में उनके  दो सौ से अधिक शिष्य फैले हुए हैं। वह स्वम साक्षर नहींहै पर रायपुर विश्वविधालय और जबलपुर विश्वविधालय ने उन्हें  डी ० लिट की मानद उपाधि से नवाज़ा है।तीजन बाई एकप्रेरणा है उन महिलाओं के लिए जो अपने सपने पूरे  करना चाहती हैं.

डा० कायनात क़ाज़ी से हुई बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत हैं :

प्र० आज लोक कलाएँ  विलुप्त होती जा रही हैं। नई  पीढ़ी इनमे अपना भविष्य नहीं देखती, एक कलाकार होनेके नाते आप क्या सोचती है ?

नहीं ऐसा नहीं हैं कि  लोक कलाएँ  बिलकुल ही विलुप्त हो रही हैं. मेरे 212 शिष्य हैं जो कि  देश विदेश में जाकर अपनीकला का प्रदर्शन करते हैं। पर यह ज़रूर है कि  लोक कलाओं के संरक्षण के लिए सरकार और कलाकार दोनों को हीअपने-अपने स्तर पर ठोस पक़दम उठाने चाहिए। मैं समझती हूँ कि  नौजवान पीढ़ी में लोक कलाओं के प्रति इंटरेस्ट पैदाकरने के लिए कलाकारों को उनके बीच जाना चाहिए। जैसे मैं कई संस्थाओं से जुड़ी  हूँ और जिनके माध्यम से मुझे छात्रों केबीच जाने का अवसर मिलता है। आज विदेशों में हुए कई शोधों से पता चला है कि बच्चे पढ़े हुए से ज़्यादा सुना हुआ याद रखते हैं। हमारे देश में तो पौराणिक कथाओं को गा कर सुनाने की परम्परा बहुत पहले से चली आ रही है। हमारे गावों में आज भी लोक कलाओं को बहुत पसन्द  किया जाता है।

प्र० आप पंडवानी गायन में महाभारत कथा का वर्णन करती हैं। इस कला के बारे में और विस्तार से बताएँ

पंडवानी छत्तीसगढ़ की लोक कला है जिसे पहले केवल पुरुष ही गाया करते थे। पंडवानी का अर्थ है पांडववाणी – अर्थातपाण्डवों की कथा, महाभारत की कथा। ये कथा “परधान” तथा “देवार” जातियों की गायन परंपरा है। पंडवानी में महाभारतकी घटनाओं को कविता और संवाद के साथ गाया जाता है। इसमें एक मुख्य गायक होता है जो खड़े होकर पूरे  हावभाव केसाथ पंडवानी  गाता  है. उसके साथ एक सह-गायक होता है जिसे ‘रागी’ कहते हैं जो हुंकारु भरते जाता है और साथ-साथगाता है, वह  रोचक प्रश्नों के द्वारा कथा को आगे बढ़ाने में मदद करता है। वह साजिंदों के साथ बैठ कर बीच बीच में चुटीलेसंवाद भी बोलता जाता है  और कोरस में गाता है। पंडवानी गायिका या  गायक तंबूरे को हाथ में लेकर स्टेज में घूमते हुएकहानी प्रस्तुत करते हैं। तंबूरे कभी भीम की गदा तो कभी अर्जुन का धनुष बन जाता है। संगत के कलाकार पीछे अर्धचन्द्राकर में बैठते हैं। जो तबला,हारमोनियम और मंजीरों के साथ पूरे  कार्यक्रम को संगीतमय बना देते हैं.पूरा का पूरा गाँव मन्त्र मुग्ध हुए  पूरी रात कार्यक्रम का मज़ा लेता है। इस कार्यक्रम में हम लोगों का मनोरंजन तो करते ही हैं साथ ही सोशलमेसेज भी बीच बीच में देते जाते हैं। जैसे महाभारत का एक अंश है जिसमें पांडव कौरवों  से द्रोपदी को जुए में हार गए थे। इस कथा के पीछे का मर्म है कि लोग समझें की जुआ खेलने से कितना नुकसान होता है।

प्र०लोक कलाओं के संरक्षण के लिए आप मोदी जी से क्या उम्मीद करती हैं ?

मुझे मोदी जी से बहुत उम्मीद है। वह हमेशा स्वदेशी को बढ़ावा देने की बात करते हैं। मैं चाहूंगी कि  जिस प्रकार हर शहरमें संगीत विद्यालय होते हैं उसी तरह लोक कलाओं के लिए भी विध्यालय  खोले जाएं। साथ ही कुछ ऐसा बन्दोबस्त  कियाजाए कि एक लोक कलाकार अपना पेट पालने  के लिए विवश होकर मज़दूरी करने के लिए अपनी कला को न छोड़े। जिसतरह राजा महाराजाओं के समय में कलाकारों को राजाश्रय दिया जाता था। जिससे कलाकार अपना सारा ध्यान कला कोनिखारने में समर्पित कर था। मोदी जी को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे कलाकार कला से पलायन न करें साथ हीउनकी अगली पीढ़ी भी उनकी विरासत को ज़िन्दा  रखे।

प्र०आप का पूरा जीवन महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है ?  महिलाओं के जीवन में एक समय ऐसा आता  है जबउनको अपने शौक़  और परिवार की ज़िम्मेदारियों के बीच चुनना होता है ?यह प्रश्न कभी आपके सामने भी आयाहोगा, आज आप महिलाओं को क्या सलाह देंगी ?

जीवन में ज़रूरी और गैरज़रूरी के बीच चुनना आसान है  पर दो समान  रूप से ज़रूरी के बीच चुनना मुश्किल।महिलाओं को अक्सर ऐसे सवालों का सामना करना पड़ता है और ऐसी स्थिति में वह ज़्यादातर अपने शौक़ की तिलांजलि देदेती हैं। मेरे ख्याल से ऐसा नहीं करना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए की आपका करियर और परिवार दोनों साथ चलेजिसके लिए  ज़रूरी है कि आपका जीवन साथी आपकी ज़िम्मेदारियाँ बांटे और आगे बढ़ने में आपकी मदद करे। जीवन मेंअपनी उपयोगिता और सार्थकता तलाशना जितना पुरुष के लिए आवश्यक है उतना ही ज़रूरी स्त्री के लिए भी है। इसलिएअपनी कला को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

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