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एक रंग होली का ऐसा भी-होला मुहल्ला,आनंदपुर साहिब-पंजाब 
पंजाब डायरी-पहला दिन 
 
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Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab
चंडीगढ़ की आधुनिक सड़कों को पीछे छोड़ती हुई हमारी कार आनंदपुर साहिब की ओर दौड़ रही है। देश की पहली प्लांड सिटी चंडीगढ़ का वैभव कहीं पीछे छूट रहा है और मैं इंडिया से भारत की ओर खींची चली जा रही हूँ। वह भारत जो देश के छोटे बड़े गांव और क़स्बों को जोड़ कर बनता है। वह भारत जो मुट्ठी भर महानगरों की गगनचुम्बी इमारतों जितना ऊँचा तो नहीं है पर उनसे विशालता में बहुत बड़ा है।

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Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab

 

चिकनी सपाट सड़क के दोनों और फैले गेंहूं के हरयाले खेतों में हवाएं झूम-झूम कर फ़ाग गा रही हैं। सहसा मुझे अहसास हुआ की हमने अभी तक कार के शीशी चढ़ा रखे हैं। मैंने तुरंत ऐसी बंद करवाया और मिट्टी की सोंधी खुशबू को अंदर आने दिया। हम जिस दिशा में जा रहे हैं वह जगह हिमाचल के नज़दीक है और शिवालिक की छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरी है। हरी मख़मल से बिछे खेत और उनके नज़दीक उग आए गांव किसी धानी चूनर पर टंके बूटे से दिखते हैं। पास ही नीले आकाश तले धवल चांदनी से नहाया गुरुद्वारा आपको पंजाब में होने का अहसास करवा जाता।

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Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab

 

 यह पूरा द्रश्य मानो कृष्णा सोबती के साहित्य-ज़िंदगीनामा के पन्नों से निकल मेरे सामने खड़ा हो गया हो। यह वही पंजाब है जिसे मैं कृष्णा सोबती के उपन्यासों में पढ़ा करती थी। गाड़ी की धीमी होती रफ़्तार ने मुझे मेरे ख्यालों से बाहर खींच लिया। सड़क पर अचानक से बहुत-सी गाड़ियां आ पहुंची थीं। यह ट्रैकटर ट्रॉली और ट्रक थे। जिन पर बहुत सारे लोग सवार थे। यह ट्रैकटर, ट्रॉली हाईवे पर मिलने वाले ट्रकों से बिलकुल अलग थे। इन्हें बड़े जतन कर एक आरज़ी (टेम्परेरी) घर की शक्ल दी गई थी। ऐसा दो मंज़िला घर जिसमे बैठने और सोने के लिए अलग अलग पार्टीशन बनाए गए थे। मैंने मालूम किया तो ड्राइवर ने बताया कि यह लोग पंजाब के कोने-कोने से होली पर आनंदपुर साहिब होलामुहल्ला मनाने आते हैं। आनंदपुर साहिब एक छोटा क़स्बा है जिसकी जनसँख्या लगभग तीस हज़ार की है और होला मुहल्ला के समय यह छोटा क़स्बा तीस लाख लोगों की अगवानी करता है, वह भी बिना किसी बदइंतज़ामी के। अब इतने सारे लोगों के रहने का इन्तिज़ाम करना कोई आसान काम नहीं है। इसी लिए यह लोग अपनी व्यवस्था खुद करके चलते हैं।

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On the way to Anandpur Sahib-Home on the wheels Holla Muhalla, Punjab
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Home on the wheels Holla Muhalla, Punjab
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Home on the wheels Holla Muhalla, Punjab
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Home on the wheels @ Holla Muhalla, Punjab
और इतने लोग तीन-चार दिनों तक खाते कहाँ होंगे? मैंने जिज्ञासावश पूछा।
अरे मैडम जी, आनंदपुर में खाने की क्या कमी? यहाँ तो दिन रात लंगर चलते हैं। लोग बुलाबुला कर खाना खिलाते हैं। ड्राइवर की बात सुन कर मैं हैरान रह गई। आज जहाँ हमारे देश (इण्डिया में) एक घूंट पानी तक फ्री नहीं मिलता वहां तीस लाख लोगों के लिए खाने का इन्तिज़ाम करना किसी बड़े शाहकार से कम नहीं। यह है पंजाब, खालसाओं का पंजाब। मिनरल वॉटर वाला इण्डिया नहीं लंगरों वाला भारत। खैर लंगर से जुड़ी बहुत रोचक जानकारियां मैं आपको अगली पोस्ट में दूंगी, और लंगर की बड़ी रसोई भी दिखवाऊंगी पर अभी तो आनंदपुर पहुँचने की जल्दी है। लेकिन उससे पहले इस पवित्र स्थान के बारे में थोड़ा जान लें।

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Holla Muhalla, Punjab
आनंदपुर साहिब का इतिहास

आनंदपुर साहिब सिखों के पवित्र स्थानों में दूसरे नंबर पर आता है। पहला अमृतसर और दूसरा आनंदपुर साहिब। इस स्थान के साथ कई ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं। कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर सिंह को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपने जीवन के 25 साल यहीं बिताए। यहाँ रह कर उन्हें आनंद की अनुभूति हुई थी इसलिए इस जगह का नाम आनंदपुर साहिब पड़ा। हिमालय के नज़दीक होने के कारण यहाँ वर्ष भर मौसम सुहावना बना रहता है। सन् 1664  में श्री गुरू तेग बहादुर ने माक्होवाल के खंडहर हो चुके स्थान पर आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा भी बनवाया था. दूसरी महत्वपूर्ण घटना दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह से जुड़ी है। गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना सन 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में ही की थी। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पांच प्यारों को अमृतपान कराया और खालसा बनाया  फिर उन पांच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। पंज प्यारे यानी पांच प्यारे इनके चुनाव की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। वह पंज प्यारे थे-भाई साहिब सिंह जी, भाई मोहकम सिंह जी, भाई धरम सिंह जी, भाई दया सिंह जी, भाई हिम्मत सिंह जी और भाई मोहकम सिंह जी

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The Battalion of Nihangs
 
 
 उसे जानने के लिए अगली पोस्ट का इन्तिज़ार कीजिये। विरासत-ए-ख़ालसा संग्रहालय की भूल भुलैयों में छिपी है वह दास्तान।

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A turban of 15 kg

 


यहाँ होला मुहल्ल्ला मनाने की परंपरा गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1757 में शुरू की थी। जब देश में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब गैरमुस्लिमों पर अत्याचार किये जा रहा था।
 मुगल शासक औरंगजेब के हुक्म के बाद गुरू तेग बहादुर को मुगलों ने सिर कलम कर मौत के घाट उतार दिया था, क्योंकि वो हिन्दू ब्राह्मणों के दुखों को देख कर मुगलों से अपील करने गए थे। उसके बाद कुछ हिन्दू पहाड़ी राजाओं और अहलकारों ने गुरमत के बढ़ते प्रचार व अनुयायियों की भारी संख्या को अपने लिए खतरा समझना शुरू कर दिया और वो इसके खिलाफ एकजुट हो गए। इस बीच गुरू गोबिंद सिंह ने कुछ बाणियों की रचनाएँ भी की जिसमें अत्याचारी मुस्लमान शासकों के ख़िलाफ़ कड़े शब्द कहे।

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The Nihang @Holla Muhalla, Punjab
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The Kripan @ Holla Muhalla, Punjab
उपरोक्त परिस्थितियों तथा औरंगजेब और उसके नुमाइंदों के गैर-मुस्लिम जनता के प्रति अत्याचारी व्यवहार को देखते हुए धर्म की रक्षा हेतु जब गुरू गोबिंद सिंह ने सशस्त्र संघर्ष का निर्णय लिया तो उन्होंने ऐसे सिखों (शिष्यों) की तलाश की जो गुरमत विचारधारा को आगे बढाएं, दुखियों की मदद करें और जरूरत पडऩे पर अपने जीवन का बलिदान देने में भी पीछे ना हटें। खालसा पंथ की स्थापना गुरू गोबिंद सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की थी।

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A young soldier with sword @Holla Muhalla, Punjab

 

होला मुहल्ला का इतिहास
होला मुहल्ला सिक्खों का त्यौहार है जोकि फागुन के महीने में होली के अगले दिन मनाया जाता है। जिसकी शुरुवात गुरु गोबिन्द सिंह जी से 1757 में हुई थी। जब मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के अत्याचार हद से ज़्यादा बढ़ गए थे तब गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख समुदाय को संगठित किया और होली में युवाऔं के उल्लास और उन्माद को सही दिशा दी और समाज की रक्षा में लगाया। इस दिन बड़े ही ओजपूर्ण गीत गाए जाते थे और लोग अपनी शस्त्र विधा का प्रदर्शन करते थे। इसी दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा बनाई गई निहंग सेना अपने अस्त्र शस्त्रों का प्रदर्शन करती है। यह पर्व है शक्ति का, साहस का और बलिदान का। यह लोग नीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं और नीली पगड़ी भी बांधते हैं।

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The Nihangs@Holla Muhalla, Punjab

निहंग का अर्थ होता है अहंकार के बिना। इन योद्धाओं को निहंग संज्ञा इसलिए दी गई कि शस्त्र और भुजा दोनों ही बल (शक्ति) होने के बावजूद अहंकार से दूर रहें और उस शक्ति का प्रयोग लोगों की सुरक्षा के लिए करें।

आनंदपुर पुर साहिब पहुँचते पहुँचते चारों और नीले और केसरिया रंग की छठा बिखरी दिखती है।

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The colors of Holi@Holla Muhalla, Punjab

 

यहाँ होली का रंग एक अलग रूप में दिखाई देता है। हमने भीड़ से बचते हुए सोढियों की खानदानी हवेली का रुख़ किया। यह एक पुरानी हवेली थी जो कि गुरुद्वारे के नज़दीक थी। हम जल्दी जल्दी उस हर्ष और उल्ल्हास के माहौल में रमने के लिए निकल पड़े। हर तरफ सड़कों के किनारे लोग अपने ट्रैकटर व ट्रॉली लगाए मेले का आनंद ले रहे थे। भीड़ ऐसी कि कंधे से कंधा रगड़ता हुआ चले पर तहज़ीब इतनी कि गबरू जवानो की इस भीड़ में भी आप ख़ुद को बहुत महफ़ूज़ महसूस करें। मुस्कुराती लड़कियाँ और सीना चौड़ा किए इतराते गबरू जवान। ऐसी जवानियों के सदके।

जियें ऐसी सोनियाँ और जिएँ उनके वीरे…

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Nihangs @ Holla Muhalla, Punjab

 

यह प्रताप है इस पवित्र स्थान का जहाँ आकर आप इंसान बन जाते हैं। ऊंच नीच से परे, भेद भाव, औरत मर्द से परे।
एक अलग ही माहौल है यहाँ, कोई माइक पर एनाउंसमेंट करके लंगर में खाने की दावत दे रहा है तो कोई गुरु की बानी का पाठ कर रहा है। मोटर साइकिलों पर बांके नौजवान केसरिया और नीली पताकाएं लिए चले जा रहे हैं।

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KK@Holla Muhalla, Punjab (PC:Ajay Sood)

यह था ब्यौरा पहले दिन का, अभी बहुत कुछ बाक़ी है। आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ। पंजाब डायरी के पन्नों से कुछ और क़िस्से आपके साथ साझा करुँगी अगली पोस्ट में।

तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी

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