Kashmir_KaynatKaziPhotography_2015-175
 

Main building of Jamia Masjid

 
कश्मीर में सूफिज़्म की जड़ों की तलाश अभी बाक़ी है मेरे दोस्त। इस सफर का अगला पड़ाव है यहाँ की  जामा मस्जिद। भीड़ भाड़ से भरे पुराने शहर यानी की डाउन टाउन में यह जगह सुकून देने वाली है। मैं डाउन टाउन की ऊंची नीची सड़कों को लांघती हुई जामा मस्जिद पहुंचती हूं। जामा  मस्जिद के दरवाज़े पर बने भारतीय सेना का बंकर मेरा बेदिली से स्वागत करता है। पूरे भारत में बेधड़क घूमने वाली मुझ यायावर के लिए यह एक अच्छा संकेत नहीं है। लोगों से खचाखच भरे मुहल्ले के बीच  बंकर होना आंखों को थोड़ा चुभता है।
 

Beautiful Indo-Saracenic architecture @Jamia Masjid

 
 हमारे देश में स्मारकों के बाहर सुरक्षा तो होती है पर बंकर बना कर फ़ौज को चौबीसों घण्टे पहरा देना पड़े ऐसे बुरे हालात तो कहीं नहीं हैं। बंकर के बाहर फौजी अपनी शिफ़्ट बदल रहे थे। मेरे दिमाग़ में एक सवाल था जिसकी जिज्ञासा में शांत करना चाहती थी। मैंने अपने ऑटो वाले से पूछा,- ख़ुदा के घर के बाहर यह बंकर क्यों ?क्या ज़रूरत है इसकी ?
मेरा ऑटो वाला एक 19 -20 बरस का कश्मीरी नौजवान था। वह बड़े ही जोश से बोला,-” जुम्मे के रोज़ यहां बहुत लोग नमाज़ अदा करने आते हैं और हमारे नेता मीर वाइज़ उमर फ़ारूख़ तक़रीर करते  हैं।”
मुझे उसकी बात समझ नहीं आई। क्यूंकि जुम्मे की नमाज़ से पहले धार्मिक गुरु लोगों को सम्बोधित करते हैं और जीवन से जुड़ी अच्छी बातों को बताते हैं, ऐसा सभी जगह होता है। मैंने वज़ाहत करनी चाही,-” इसके लिए बंकर की क्या ज़रूरत है ?” 
उसने बताया,-“तक़रीर के बाद पथराव होता है, इसलिए।”
पथराव ? मुझे हैरानी हुई। 
पथराव क्यों ? मैंने पूछा। 
इस्लाम को बचाने के लिए ? वह बोला 
मगर किससे ? इस्लाम में कहां लिखा है कि पथराव करो ? मैंने पूछा 
बहन, आप समझी नहीं ,वह पुरअमन तरीक़े से पथराव होता है, उसने मुझे समझाया। 
मैं वाक़ई नहीं समझी , यह पुरअमन तरीक़े से पथराव क्या  होता है ? 
पथराव पुरअमन कैसे हो सकता है? मेरी समझ से परे था। यह था कश्मीर का एक और रूप … 
इस बातचीत से यह ज़रूर साफ हो गया कि यहां भारतीय सेना के बंकर की ज़रूरत क्यों है। मैंने ख़ुदा के घर में दाख़िल होते हुए इस हसीन वादी के लिए अमन और चैन की दिल से दुआ की। ख़ुदा यहां के भोले भाले लोगों को सद्बुद्धि दे। 
 

Lady praying in the courtyard@Jamia Masjid 

आएं अंदर चलकर इस खूबसूरत ईमारत को देखते हैं। इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान सिकंदर ने करवाया था। इस मस्जिद का ताल्लुक़ सूफ़ीज़्म से ऐसे है कि इसे बनवाने की हिदायत सुल्तान सिकंदर को शाह ए हमदान के बेटे मीर मुहम्मद हमदानी ने दी थी। बाद में उनके पुत्र ज़ैनुल अबिदीन ने  इसे और बड़ा बनवाया। यह एक विशाल मस्जिद है जिसमे एक वक़्त में लगभग तैतीस हज़ार लोग नमाज़ अदा कर सकते हैं। यह मस्जिद भारतीय और अरेबिक वास्तुकला का उत्कृष्ठ नमूना है। हम सदर दरवाज़े से दाख़िल होते ही इसके बड़े कोर्टयार्ड में पहुंचे। यह दालान बड़े बड़े लकड़ी के खम्बों से घिरा हुए हैं। इस मस्जिद में लगभग 377 लकड़ी के खम्बे हैं। जिनके बीच कश्मीरी क़ालीन बिछे हुए हैं जिनपर लोग नमाज़ पढ़ते हैं। इन दालानों के पार एक खूबसूरत गार्डन है जिसके बीचों बीच एक फुव्वारा है जिसके चारों तरफ बैठ कर लोग वुज़ू किया करते हैं। यहां बहुत शांति है। इस मस्जिद में महिलाऐं भी जा सकती हैं, लेकिन उनको सिर ढक कर जाना होता है। इस मस्जिद के दरवाज़े सभी के लिए खुले हैं। यहां कोई भी निसंकोच जा सकता है। मीर वाइज़ उमर फ़ारूख़ इस मस्जिद के मुख्य इमाम हैं। 
 

Local Kids @Jamia Masjid

 
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.
 
हिमालय के अनेक रूपों में से एक के साथ…
 
कल हम चलेंगे सुबह-सुबह डल लेक के अंदर लगने वाली वेजिटेबल मार्केट देखने।
 

KK@Jamia Masjid

 
तब तक के लिए खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपकी हमसफर आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी
 

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