दा ग्रेट हिमालय कॉलिंग… आठवां दिन मनाली
Day-08
Beas River@ Manali |
Beas River on the way to Manali |
मेरी इस पूरी यात्रा में ब्यास नदी मेरी साथी रही है। कभी मेरे दाईं ओर तो कभी मेरे बाईं ओर। दूध की सफ़ेद धार सा निर्मल जल जाने कितनों की प्यास बुझाता होगा। रिवर राफ्टिंग के शौकीनों के लिए यह जगह स्वर्ग जैसी है। मनाली के रास्ते में कई सारे पॉइंट्स हैं जहां से रिवर राफ्टिंग की जा सकती है।
River rafting in Beas river |
The Dhauladhar range |
लेकिन मनाली पहुंचते पहुंचते मेरा यह सुन्दर सपना डीज़ल की गाड़ियों से निकलते प्रदूषण और लगातार बजते हॉर्न से आते शोर से टूट गया। मेरी एक सलाह है, अगर आप हिमालय की यात्रा प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए करना चाहते हैं तो हिमालय के अंदरुनी हिस्सों में जाएं। मनाली इतना ज़्यादा टूरिस्ट एरिआ बन चुका है कि अपनी सुंदरता ही खो बैठा है। मनाली शुरू होते ही जगह जगह कुकुरमुत्ते से उग आए होटल पहाड़ों की क़ुदरती खूबसूरती को निगलते से जान पड़ते हैं। इतनी शांत जगह से होकर आते हुए मेरे लिए मनाली में रुकना बहुत मुश्किल था।
KK@Vashishth |
शुक्र है हमने अपने ठहरने की व्यवस्था मनाली से बाहर वशिष्ठ में की थी। यह मनाली से थोड़ा आगे पड़ता है और मनाली की भीड़ और आपाधापी से बचा हुआ है। वशिष्ट मनाली से मात्र तीन किलोमीटर आगे लेह मनाली हाइवे पर दाईं ओर थोड़ा ऊपर जाकर पड़ता है। जिसके बाईं ओर ब्यास नदी बहती है और उसके पीछे विशाल पीर पंजाल पर्वत श्रंखला क़तार में खड़ी है।
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on the way to Manali-wooden carving work on the gate of a temple |
यहां प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ का मंदिर है और कुदरती गर्म पानी के सोते भी है। यह जगह ट्रैवलर्स के बीच काफी पसंद की जाती है। यहां मनाली की भीड़ न होकर शांत वातावरण है। पहाड़ी पठार पर बसा वशिष्ठ गांव आज देसी विदेशी ट्रैवलर्स के ठहरने की पहली पसंद है। यहां कई अच्छे कैफे और रेस्टॉरेन्ट बने हुए हैं। हमने यहां पीरपंजाल कॉटेज में स्टे किया। यह एक कोलोनियल लुक वाली दो मंज़िला कॉटेज थी ,जोकि सेब के बागान के बीच बनी हुई थी। हमारी होस्ट दो नौजवान लड़कियां थीं। जिनमे से एक देहरादून और दूसरी पुणे की थी और आजकल टेंपरेरी तौर पर इस कॉटेज के मैनेजर कम कयर टेकर की जॉब कर रही थी।
Girls playing in the campus of the temple |
Hidimba devi temple |
KK@Hidimba devi temple |
मंदिर के भीतर माता की एक पालकी है जिसे समय-समय पर रंगीन वस्त्र एवं आभूषणों से सुसज्जित करके बाहर निकाला जाता है। हिडिम्बा को काली का अवतार कहा गया है। इसी कारण इस मंदिर के अन्दर दुर्गा की मूर्ति भी है। हिडिम्बा मनाली के ऊझी क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिए यहां के लोग खुद को हिडिम्बा देवी की प्रजा मानते हैं। ज्येष्ठ संक्रांति के दिन ढूंगरी में देवी के यहां भारी मेला लगता है। मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था। मंदिर के प्रांगण में लोग हिमाचली ड्रेस में फोटो खिंचवा रहे थे। एक ग्रामीण महिला हाथों में अंगोरा खरगोश लिए लोगों को दिखा रही थी। यह खरगोश हमारे यहां पाए जाने वाले खरगोश से आकार में बड़ा होता है और इसके बाल भी बड़े बड़े होते हैं। इस खरगोश के बालों से ऊन बनाई जाती है ,जिससे कई चीज़ें बनती हैं ,जैसे स्वेटर,शॉल आदि। यह शॉल बहुत हलकी और मुलायम होती है। अगर आप भी यह शाल खरीदना चाहते हैं तो हिमाचल हैंडलूम की शॉप से ही खरीदें। यह शॉल थोड़ी क़ीमती होती है पर गर्म बहुत होती है। आप भी दस रुपए देकर अंगोरा खरगोश को गोद में उठा सकते हैं।
A beatuful girl with a soft Angora rabbit |
फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में हिमालय के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,
धन्यवाद हमें आपने घर बेठे मनाली भ्रमण करा दिया. और हिंदी में आपने इसकी शुरवात की बहुत खुब.
अति सुंदर चित्रण किया है ।
रोचक, ज्ञानवर्धक और यथार्थ चित्रण
अनुज जी, आपको मेरी लिखी पोस्ट पसंद आई ।इसीलिए बहुत बहुत शुक्रिया …. मेरे ब्लॉग पर ऐसे ही आते रहिएगा। आपकी सराहना मुझे और अच्छा काम करने की प्रेरणा देते है ।
प्रिये गुर्मुख जी, मेरा काम पसंद करने के लिए शुक्रिया ।
प्रिये नटवर जी, मेरा काम पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । मेरे ब्लॉग पर आते रहिएगा ।