दोस्तों कश्मीर की वादियों में दिन गुज़ारना शायद सब को पसंद आता होगा और इस यात्रा का एक और बड़ा आकर्षण है वह है हाउस बोट में ठहरना। अगर हिंदी सिनेमा की सत्तर के दशक की फिल्मों की बात करें तो उन फिल्मो में अक्सर कश्मीर की वादियों की शूटिंग देखने को मिलती थी और जिसमे हाउस बोट मुख्य आकर्षण होती थी। फिर अस्सी का दशक आया और कश्मीर की वादियों में खूबसूरत नज़रों की जगह हिंसा ने ले ली और सैलानियों ने इस हसीं धरती की और आने का सपना कहीं बिसरा दिया। फिर भी एक कसक दिल के किसी कोने में हमेशा रहती थी की एक बार कश्मीर जाया जाए। चलो अच्छी ख़बर यह है कि इन अलगाववादी नेताओं की समझ में भी आ गया है कि आए दिन होने वाले बंद और हिंसा से यहाँ के लोगों का रोज़गार ठप्प हो रहा है.इसलिए इन लोगों ने भी अब यह पहल की है कि वादी में टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाए। सो मैंने सोचा की मौक़ा अच्छा है क्यों न इसी बहाने कश्मीर की वादियों में कुछ वक़्त गुज़ारा जाए। कश्मीर के मेरे प्रवास का सफरनामा आप यहाँ अलग से पढ़ सकते हैं।
चश्मे, चिनार, गार्डेन्स और डल लेक आठ घंटों मे…
फ़िलहाल मैं आपको लिए चलती हूँ 1 दिन हाउस बोट में आराम करने को। मैंने अपने एक सप्ताह के प्रवास में हाउस बोट के लिए आखरी के दिन रखे हैं। क्योंकि हाउस बोट में रह कर मैं सिर्फ आराम करना चाहती हूँ। तो पहले कश्मीर की वादियों में घूम कर थोड़ा थक जॉन फिर आराम किया जाए।
श्रीनगर में हाउस बोट दो जगह देखी जाती हैं एक डल लेक पर और एक नागिन लेक पर। बुलावार्ड रोड डल झील के सहारे सहारे चलता है। डल झील का विस्तार 18 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस झील के तीन तरफ पहाड़ हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर कश्मीर एक ताज है तो डल झील उस ताज में जड़ा नगीना है। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि कोई कश्मीर देखने आए और डल झील देखे बिना वापस चला जाए। डल झील शुरू होती है डल गेट से। यहां पर झील थोड़ी पतली है और उसके किनारों पर कई सारे होटल बने हुए हैं। बुलावार्ड रोड पर क़तार से होटल बने हुए हैं और साथ ही एक भरा-पूरा मार्केट भी है। कश्मीरी हेन्डीक्राफ्ट से सजी हुई दुकानें बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं। डल गेट से शुरू होकर डल झील आगे जाकर एक विशाल जलराशि मे बदल जाती है। डल गेट से ही एक तरफ बुलावार्ड रोड और दूसरी तरफ क़तार मे फेली हाउस बोट पर्यटकों का स्वागत करती हैं। कश्मीर जाने से पहले ज़रूरी नहीं की आप हाउस बोट पहले से बुक करें।
आप जैसे ही बुलावार्ड रोड पर बने घाटो पर पहुंचेंगे कितने ही सारे हाउस बोट के मालिक आप को घेर लेंगे। अब आपके पास यह चॉइस है की आप पहले जा कर एक नज़र हाउस बोट देख लें फिर बात करें। मेरे राय है की आप सौदा करने में जल्दबाज़ी न करें और दो चार हाउस बोट देखने के बाद मोल भाव करने के बाद ही फैसला करें। यह हाउस बोट वाले अपनी शिकारा में बिठा कर आपको हाउस बोट दिखाने ले जाएंगे। अगर आप चहलपहल पसंद करते हैं तो डल लेक की हाउस बोट में ठहरें और अगर ख़ामोशी और सुकून की तलाश में हैं तो नागिन लेक जाएं। हमने दो चार हाउस बोट देखने के बाद एक हाउस बोट पसंद की और अगला एक दिन एक रात वहां गुज़ारा।
आप इसे पानी पर तैरता घर मान लीजिये। यह हाउस बोट लकड़ी की बनी होती हैं जिन पर बारीक़ नक्कारशी का काम किया जाता है। इनमें बैडरूम, ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम की व्यवस्था होती है। अंदर से यह बहुत कोज़ी होती हैं। कश्मीरी क़ालीन से सजी हुई। इन हाउस बोट के पीछे ही इनके मालिकों का घर होता है इसलिए आप अगर सोलो भी ट्रेवल कर रही हैं तो सुरक्षा की कोई चिंता नहीं।
कहीं कहीं दो हॉउस बोट मिला कर बीच के हिस्से को ओपन में बैठने के लिए छोटे से रेस्टोरेंट का रूप दे दिया जाता है। जहाँ बैठ कर आप शाम की चाय का आनंद ले सकें।
यह हाउसबोट केरल के बैक वाटर्स में पाई जाने वाली हाउस बोट से अलग है। वो हाउस बोट आकर में इनसे काफी बड़ी और मज़बूत होती हैं। शाम को जब झील पर रात उतरने लगती है तो सारी हाउस बोट पीली रोशनियों में नहा जाती हैं। इन रोशनियों की परछाईं डल लेक के पानी को और भी खूबसूरत बना देती है।
सुबह सुबह फूल बेचने वाला हर हाउस बोट पर आकर फूल देकर जाता है। फूलों से सजी उसकी शिकारा डल लेक पर तैरती बहुत सुदंर लगती है।
यह आकर्षण एक रात के लिए काफी है, क्योंकि इसके कुछ ड्रा बैक भी हैं। यह हाउस बोट डल लेक में एक जगह खड़ी रहती हैं और इनसे निकलने वाली सीवेज का कोई पुख़्ता बंदोबस्त नहीं है इसलिए डल के पानी से बदबू आती है। तो दोस्तों कैसा लगा यह अनुभव।ज़रूर बताइयेगा।
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी