आज से पहले तक मनाली का नाम आते ही मेरे दिमाग़ मे जो पिक्चर बनती थी वो थी बहुत सारी भीड़, नए-नए शादी वाले हनीमून कपल्स, बहुत सारा ट्रफ़िक, और डीज़ल गाड़ियों से निकलता धुआँ।
हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य की तलाश मे आए लोगों को मनाली कुछ ऐसा ही स्वागत करता है। मैं सोचती थी कहाँ है वो लकड़ी के बने घर जिनके झरोखों से खूबसूरत पहाड़ी बच्चे झाँका करते थे, कहाँ हैं वो देवदार के घने जंगल जिनके बीच से पहाड़ी नदियाँ कल-कल करके बहती थीं? कहाँ है वो पाईंन के कच्चे फलों से आती महक जो दीवाना बनाती थी? पर मेरी पिछली सभी यात्राओं मे मुझे नाउम्मीदी ही हाथ लगी। ऐसा कुछ भी नज़र नही आया। लेकिन इस बार जब शिवाद्या रिज़ॉर्ट & स्पा ने बुलावा भेजा तो उसकी लोकेशन देख कर मन मे थोड़ी- सी आस जागी। यह शोर शराबे वाला मनाली तो नही, जिस को मैं देखना नही चाहती। यह तो वही अनछुआ अनदेखा मनाली है जहाँ पहुंचने की तलाश मुझे हमेशा ऊर्जा से भर देती है। एक बार हिमाचल की खूबसूरत वास्तुकला को निहारने नग्गर कैसल भी बड़ी उम्मीद के साथ गई थी लेकिन वो खूबसूरत दुर्ग हिमाचल टूरिज़्म के तले होने के कारण बदइंतिज़ामी और घटिया रखरखाव की मार झेल रहा है। उसकी खूबसूरती की ऐसी बेक़द्री देखी की जी भर आया।
इस बीच मैने बहुत कोशिश की कि मुझे हिमाचल की कला और संस्कृति से रूबरू होने का मौक़ा मिले वो भी क़रीब से, पर यह हो ना सका। लेकिन जब शिवादया से आइटिनरी आई तो लगा कुछ खास है इस जगह मे। यहाँ तो जाना बनता ही है।
रात भर का सफ़र कर हम दिल्ली से मनाली पहुँच गए थे शिवादया जाने के लिए हमें मनाली से 12 किलोमीटर पहले पतलिकुल नाम की जगह पर उतरना था जहाँ से हमे शिवादया के स्टाफ ने पिक किया। और हम पतली पहाड़ी रोड पर चढ़ने लगे। हम नग्गर मे थे और क़रीब 15-20 मिनट की ड्राइव के बाद हम कर्जन नाम के गांव मे पहुँचे। यहाँ शिवादया रिज़ॉर्ट की दुर्गनुमा बिल्डिंग अपनी पूरी आन बान और शान के साथ खड़ी हुई थी। चारों तरफ सेब का बगीचा, एक तरफ धौलाधार पर्वत श्रृंखला और दूसरी तरफ पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला और बीच मे वैली मे बसा शिवादया। किसी परियों की कहानी मे बना हिमाचली महल।
हमारा हिमाचल के पारंपरिक अंदाज़ मे आरती टीके के साथ स्वागत करने हिमाचली परिधान मे सजी महिलाएँ इंतिज़ार कर रही थीं। स्वागत के बाद हमे लाउंज मे ले जाया गया। यहाँ कई कॉटेज हैं और इन के अलावा एक लाउंज है जहाँ बैठ कर हाथ तापते हुए हमने गरमा गरम चाय का आनंद लिया। और फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला।
कहते हैं कि बात निकलेगी तो फिर दूर तक जाएगी, और निकल पड़ेगा सिलसिला इस देव भूमि हिमाचल को जानने का। कुछ ऐसे ही ख़्याल के साथ शिवादया को बनाया गया है। अगर आप ऐसे ट्रेवलर हैं जोकि होटल मे जाकर रूम मे लॉक होना पसंद करते हैं तो यक़ीनन शिवादया रिज़ॉर्ट्स आपके लिए नही बना है। यह सिर्फ़ एक ठहरने की जगह भर नही है। ये एक मुलाक़ात है हिमाचल और हिमालय की परंपराओं से। शिवादया को बनाना वाले श्री रितेश सूद का ताल्लुक़ टूरिज़्म बॅकग्राउंड से है, लेकिन शिवादया बनाने का सपना उन्होने किसी राजा की तरह पूरा किया। रितेश जी बताते हैं कि हिमाचल आने वाले टूरिस्ट जितने देसी होते हैं उसे कहीं ज़्यादा विदेश से आते हैं लेकिन पूरे हिमाचल मे ऐसी एक भी प्रॉपर्टी नही है जो की सही मायनों मे इस प्रदेश की संस्कृति से रूबरू करवाती हो। रंग बिरंगी झंडियां और बुद्ध की फोटो तो हर जगह मिल जाएगी लेकिन ऐसी कोई भी जगह नही है जो यहाँ के भूगोल और इतिहास को ब्यान करे। बस इसी सोच के साथ शिवादया बनाना के सपने का आगाज़ हुआ।
यहाँ हर चीज़ के पीछे एक दास्तान छुपी हुई है। अब यहाँ बने कमरों को ही ले लीजिए। आम तौर पर होटल या रिज़ॉर्ट मे कमरों के नंबर होते हैं लेकिन यहाँ नंबर न होकर इनके नाम हैं जैसे, फोज़ल, सजला, कल्पा, कुंज़ुम, ज़ांस्कर और काज़ा जो भी इन नामों को सुनेगा एक बार तो पूछेगा ही कि इन नामों के पीछे क्या कहानी है। तो फिर सुनिए रितेश जी की ही ज़ुबानी। हिमाचल परदेश जाना जाता है माउंटेन पास और माउंटेन रेंज के लिए।
यहाँ मुख्य रूप से पाँच माउंटेन पास हैं कल्पा, कुंज़ुम, ज़ॅन्स्कर और काज़ा उन्ही माउंटेन पास के नामों पर इन कमरों के नाम रखे गए हैं, वहीं ग्राउंड फ्लोर पर बने कमरों के नाम हैं किन्नर, कैलाश, श्रीखंड, ज़ांस्कर, धौलाधार और पीर पंजाल यह हिमाचल की मुख्य पर्वत श्रंखलाएँ हैं। क्यूँ है ना रोचक। कमरों के नाम से ही हिमाचल के भूगोल की जानकारी मिल जाएगी। जब आप यहाँ से जाएँगे तो बिना अलग से एफर्ट लगाए हिमाचल के पास और पर्वत मालाओं को जान जाएँगे।
मुख्य बिल्डिंग के पीछे जो कमरे हैं उनमे किचन भी दिया गया है, किचन का होना कमरे मे पानी की उपस्थिति दर्शाता है इसी लिए इनके नाम सिलचर और चंद्रताल हैं। सिलचर हिमाचल की एक लेक है जोकि शिमला और मनाली के बीच जलोड़ी पास के पास पड़ती है और चंद्रताल भी हिमाचल की एक जानी मानी लेक है। तो इस बहाने आप हिमाचल की लेक के बारे मे भी जान जाएँगे।
जहाँ रिज़ॉर्ट का रिसेप्शन है वह एक ऊंची तीन मंज़िला बिल्डिंग है जिसकी वास्तुकला हिमाचल के भीमा काली मंदिर से प्रभावित है वहीं इसकी छत को देख कर मनाली का हिडंबा मंदिर याद आता है। कहीं कहीं से यह इमारत नग्गर कैसल जैसी भी नज़र आती है। इस इमारत को बनाए के पीछे एक विचार था जिसे रितेश जी बड़े मज़ेदार ढंग से बताते हैं। आप भी सुनिए।
हिमाचल के गाँव देहातों मे पत्थर और लकड़ी से घर बनाए जाते हैं। जिनको काठ कोनी के घर कहा जाता है। यह एक प्रकार की धरोहर है। और धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। अब लोग नए प्रकार के सीमेंट के घर बनाते हैं। इसलिए रितेश ने हिमाचली काठ कोनी घरों की संरचना को यहाँ दर्शाया है।
तो कैसे होते हैं काठ कोनी घर? मैने जिज्ञासावश पूछा।
काठ कोनी घर 3 मंज़िला मकान होते हैं जिनमे सबसे नीचे का भाग घर के पशुओं के लिए रखा जाता है जिसे कुड कहते हैं उसके ऊपर वाला भाग लिविंग रूम और अतिथि सत्कार के लिए इस्तेमाल होता है जिसे बौडी कहते हैं जहाँ हमने एक वर्ल्ड क्लास स्पा बनाया हुआ है। उसके ऊपर वाला भाग भगवान और रसोई के लिए होता था जिसे हिमाचली मे टाला कहते हैं। यह घर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिए इसे सबसे ऊपर वाले भाग मे रखा जाता है। जिससे किसी भी प्रकार की अशुद्धि से बचा जा सके। हमने उस परंपरा को ज़िंदा रखा है और हमारा रेस्टोरेंट भी वहीं बनाया है और उस मल्टी कुज़ीन रेस्टोरेंट का नाम भी टाला ही है। जहाँ अंदर बैठने की जगह जितनी खूबसूरत है वहीं चारों ओर बना झरोखेवाला बरामदा और भी हसीन है। यहाँ से बर्फ से ढ़के पहाड़ों को देखना बहुत अच्छा अनुभव है।
वाक़ई रितेश जी की बात सही थी। जब मैने यह बिल्डिंग देखी तो लगा कि किसी हिमाचली घर मे हूँ। बस फ़र्क़ इतना है कि यहाँ एक एक चीज़ को बड़ी नफ़ासत से बनाया गया है।
यह पूरी इमारत ढ़ाई साल मे बन कर तैयार हुई। यहाँ रात दिन एक करके लगभग 100 मज़दूरों और कलाकारों ने इस इमारत को बनाया।
पत्थर की चुनाई से लेकर लकड़ी की नक़ारशी तक हर चीज़ मे परफेक्शन। जहाँ ये इमारत बाहर से किसी हिमाचली दुर्ग जैसी दिखती है। वहीं अंदर से किसी 5 स्टार होटल की लग्ज़री भी देती है। ऊंची छत वाले कमरे, जिनमे देवदार की लकड़ी से वुडनवर्क किया गया है। दीवारें जिन पर मिट्टी की लिपाई की गई है, फर्श जिसे लकड़ी का एक एक टुकड़ा जोड़ कर बनाया गया है। दीवारों पर लगे आर्टवर्क सब कुछ बहुत खास। हिमाचल के कोने कोने से चुन चुन कर लाई गई चीज़ें जैसे पट्टू पैटर्न, कांगड़ा रुमाल सिगड़ी और न जाने क्या क्या। रितेश जी रिज़ॉर्ट मे आने वाले हर गेस्ट को अपना मेहमान समझते हैं और खुद कैंपस विज़िट करवाते हैं। यह रिज़ॉर्ट स्टेप फार्म्स के बीच मे बना है। एक तरफ धौलाधार और दूसरी तरफ पीर पंजाल पर्वतमालाएँ इस हसीन दुर्ग की रक्षा कर रही हैं। सेब के बाग़ के बीच मे आराम कुर्सी पर धूप सेंकना मेरे लिए किसी दोपहर को सुकून से जीने जैसा था। यहाँ रिज़ॉर्ट एक कोने मे बोन फायर के लिए इंतज़ाम किया गया है। ढ़लती शाम के साथ लाइव बारबेक्यू का मज़ा ही निराला है।कभी कभी आपने सोचा है एप्पल ऑर्चिड के बीच में देवदार से ढंके पहाड़ों को निहारते हुए सर्दियों की धूप का मज़ा लेना और लांच करना। यह अनुभव बहुत मज़ेदार है। मैंने ख़ुद किया है इसलिए बता रही हूँ। कभी आप भी ट्राय कीजियेगा।
फूड:
मेरी हमेशा से यह शिकायत रही है कि हिमाचल मे खाने मे स्वाद नही मिलता। पर यहाँ आकर यह शिकायत भी दूर हो गई। मुगलई से लेकर चायनीज़ और कॉंटिनेंटल सभी तरह के खाने लाजवाब हैं।
सबसे अच्छी बात तो यह कि हमे हिमाचली परंपरागत भोजन से रूबरू होने का मौक़ा भी मिला। रितेश जी की पत्नी नीलम जी ने हिमाचली भोजन सिखाने के लिए खास सेशन भी दिया।
पहला दिन मे ही हमने इतना कुछ जाना और देखा कि ब्यान करना मुश्किल है। अगली सुबह पास के गाँव देखने का प्लान था। हिमाचली गाँव बहुत खूबसूरत होते हैं यह सिर्फ़ सुना भर था लेकिन इतने ज़्यादा खूबसूरत होते हैं यह मालूम ना था। यह भी हो सकता है कि पाईन के जंगल को पार करने के बाद गाँव देखना ज़्यादा सुहाना लग रहा था। यहाँ लोग इसे वॉक कहते हैं लेकिन हमारे लिए यह ट्रैकिंग थी।
Village near Shivadya resort & spa
पहाड़ों पर फैला देवदार का खूबसूरत जंगल जहाँ जगह जगह पानी के चश्मे फुट रहे थे। पहाड़ की पगडंडी पर लाइन डोरी से आगे बढ़ते हुए हमने कितनी ही पहाड़ी महिलाओं को देखा जोकि अपनी पीठ पर टोकरी लाधे तेज़ तेज़ क़दमों से जा रही थीं। यहाँ के लोग बड़े मेहनती होते हैं, खेतों मे काम करने से लेकर जंगल से लकड़ियां लाने तक सब काम खुद करते हैं। क़रीब 20 मिनट की ट्रेकिंग के बाद हम एक ऐसी जगह पहुँचे जो कि देवदार के जंगल के बीचों बीच थी। यहाँ पहाड़ी नदी पूरी रफ़्तार से बह रही थी।
यह जगह किसी ड्रीम लैड जैसी है। चारों तरफ ऊंचे ऊंचे देवदार के पेड़ और बीच मे बना लकड़ी का पुल जिसके नीचे एक नदी बह रही है। मन किया यहीं बैठ जाऊं और घंटों इस दूध जैसे सफेद पानी को बहते हुए देखूं। यहाँ इतनी शांति है। सिर्फ़ पानी की आवाज़ आ रही है। दोपहर का समय है लेकिन देवदार के घने पेड़ों के कारण धूप छन-छन कर आ रही है। पास ही एक पत्थर पर 100 मीटर की दूरी पर किसी कैफे के होने का विज्ञापन पेन्ट किया है। चलो जंगल मे भी कॉफी का इंतज़ाम भी है। इस जगह मे इतना आकर्षण है कि अगर मुझे ज़बरदस्ती उठा कर लेकर न जाया जाता तो शायद मैं घंटों वहीं बैठी रहती। पर जाना तो होगा। सामने एक ऊंचा पहाड़ खड़ा है जिसको हमे पार करना है।
ओह
एक पहाड़ और, अब तो टाँगें भी साथ छोड़ रही हैं। मैने सोचा
पर कोई चारा नही है, मैं जंगल के बीचों बीच हूँ और पहाड़ को पार करके ही गाँव मैं पहुंचा जा सकता है और उस गाँव से होकर सड़क तक जाया जा सकता है।
खैर मैने धीरे धीरे जंगल का पूरा आनंद लेते हुए इस 1 घंटे की वॉक को 3 घंटों मे पूरा किया। हमने रास्ते में यहाँ वहां बिखरे पाइन के फलों को भी चुना।
जल्दी किस बात की है। इस जंगल को जब तक अपनी स्मृतियों मे न उतार लूँ तब तक यहाँ आने का फायदा ही क्या है। मैं यहाँ आने भर के सरोकार से थोड़े ही आई हूँ। इस जंगल का एक टुकड़ा अपने भीतर सॅंजो कर अपने साथ ले जाऊंगी। जो देवदार के कच्चे फलों-सा महकेगा मेरी स्मृतियों मे। यह सोचते सोचते मैं पहाड़ भी पार कर गई और सामने एक खूबसूरत गाँव मेरा इंतिज़ार कर रहा था। लकड़ी के बने काठ कोनी वाले घर और उनमें बसे लोग। किसी पेंटर के कैनवास जैसे।
उन घरों के झरोखों से महिलाएँ और बच्चे झाँक रहे थे। मैने हाथ हिला कर अभिवादन किया। यहीं गाँव के पास ही एक ग्यारहवीं शताब्दी का शिव मंदिर है। कहते हैं इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। मैने मंदिर की कुछ तस्वीरें खींची। ये वाक़ई एक प्राचीन मंदिर है।
हमे होटल पहुँचते पहुचते दोपहर हो चली थी। भूख भी ज़ोरों की लग रही थी। हमने खाना पीना खाया और आराम करने चले गए। जंगल की सैर के बाद पैर दुखने लगे थे। मुझे स्पा की याद आई। फिर क्या था पहुँच गई स्पा। ट्रॅकिंग के बाद स्पा विज़िट की बात ही कुछ और है। जिस तरह शिवादया रिज़ॉर्ट को पेरफक्शन के साथ बनाए मे कोई कसर बाक़ी नही रखी गई उसी तरह इस स्पा को भी बड़े क़रीने से बनाया गया है।
नेशनल और इंटरनेश्नल मसाज के साथ जकुज़ी, स्टीम बाथ सभी कुछ तो है यहाँ। एक बात मुझे यहाँ की बहुत अच्छी लगी। चाहे वो कुक हो या स्पा मे थैरेपिस्ट सभी प्रोफेशनल्स ट्रेंड हैं और एक्सपीरियेन्स वाले हैं। कोई ताज होटेल्स से आया है तो कोई रेडीसन से। शायद इसी लिए इनकी प्रेज़ेंटेशन इतनी परफैक्ट है।
हमारी आइटिनरी के हिसाब से शाम को कुछ खास होने वाला था। मुझे उसका बेसब्री से इन्तिज़ार था।
जी हाँ शाम को खास हमारे लिए पट्टू सेशन का आयोजन किया गया था जोकि यहाँ के पारंपरिक पोशाक है। नज़दीक के गाँव से दो हिमाचली महिलाएँ अपने साथ पट्टू लेकर आईं थी और एक एक कर हम सबने इस पोशाक को पहना। पट्टू एक हाथ से बना ऊनी वस्त्र होता है। आप इसे 10 मीटर की ऊनी साड़ी भी मान सकते हैं। हिमाचल की महिलाएँ इस वस्त्र को पहनती हैं। इसे पहनने का तरीका साड़ी से थोड़ा भिन्न है। पट्टू एक प्रकार का क़ीमती वस्त्र है और इस पर बने बेल बूटों के आधार पर इस की क़ीमत बढ़ती जाती है। एक पट्टू की क़ीमत तीन हज़ार से लेकर 10-15 हज़ार तक होती है।
हम सब ने पट्टू सेशन को खूब एंजाय
लेकिन फिर भी आप सैर सपाटा करना चाहते हैं तो मनाली मात्र 12, रोहतांग पास 63, सोलांग वैली 26 किलोमीटर दूर है। नग्गर बहुत नज़दीक है, मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर।
फिर मिलेंगे दोस्तों किसी और मोड़ पर
किसी और दिलकश नज़ारे के साथ। तब तक आप बने रहिये मेरे साथ
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा ० कायनात क़ाज़ी