दिलकश नज़ारे दार्जिलिंग के
Beautiful landscape of Darjeeling
दार्जिलिंग की वादियां जितनी हसीन और दिलकश हैं उससे भी ज़्यादा दिलफ़रेब वहां तक पहुंचने का रास्ता है। हिमालयन रेलवे की छोटी लाइन पर चलने वाली खिलौना रेल गाड़ी जिसे ‘टॉय ट्रेन’ भी कहते हैं न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग पहुंचने का बहुत पुराना और सैलानियों का पसंदीदा तरीका है। वैसे न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग सड़क मार्ग से टैक्सी से भी पहुंचा जा सकता है लेकिन अगर आप प्रकृति के खूबसूरत नज़रों का लुत्फ़ उठाने निकले हैं तो एक बार इस यात्रा का आनंद ज़रूर लें। मात्र दो फिट के नैरो गेज पर छुक-छुक करके दौड़ने वाली इस हिमालयन रेल को यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। हिमालय का गेट कहे जाने वाले शहर न्यू जलपाईगुड़ी से चलकर यह ट्रेन सड़क मार्ग के साथ आंख मिचौली खेलती हुई सड़क के बराबर-बराबर चलती है, और बीच में चुपके से जंगल में अक्सर ग़ायब भी हो जाती है। चाय के बागानों के बीच से गुज़रती हुई यह ट्रेन आपको प्रकृति के इतने नज़दीक लेजाती है कि आप सबकुछ भूल कर उस रमणीकता का हिस्सा बन जाते हैं।
कितने ही लूप और ट्रैक बदलती हुई यह ट्रेन पहाड़ी गांव और क़स्बों से मिलती मिलाती किसी पहाड़ी बुज़ुर्ग की तरह 6-7 घंटों में धीरे-धीरे सुस्ताती हुई दार्जिलिंग पहुंचती है। इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन भी अंग्रेज़ों के ज़माने की याद ताज़ा करवाते हैं। भारत में सबसे ऊंचाई लगभग 7407 फीट पर स्थित माना जाने वाला रेलवे स्टेशन- घूम यहीं स्थित है। टॉय ट्रेन की इस अविस्मरणीय यात्रा करते हुए आप किसी और दौर में ही पहुंच जाते हैं। जहां आजकल की ज़िन्दगी जैसी आपाधापी नहीं है। एक लय है हर चीज़ में, प्रकृति के साथ तारतम्य बिठाती हुई ज़िन्दगी है, जो इन पहाड़ी गांवों में बसती है, और फूलों-सी खिलती है।
टॉय ट्रेन की अविस्मरणीय यात्रा के बाद आप शाम तक दार्जिलिंग पहुंचते हैं। दार्जिलिंग में मुख्य चहल पहल का स्थान है चौरास्ता। इसे आप दार्जिलिंग का दिल भी कह सकते हैं। यह नेहरू मार्ग का वह भाग है जहां ज़मीं समतल होकर एक बड़े चौक के रूप में बनी हुई है। जहां बैठ कर लोग धूप सेंकते हैं और दूर तक फैली हिमालय की बर्फ से ढ़की चोटियों को निहारते हैं। यह स्थान सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी हैं यहां एक ऊंचा मंच भी बना हुआ है जहां हमेशा कुछ न कुछ चलता ही रहता है। यहीं आसपास ही कई कैफ़े और होटल मौजूद हैं। चौरास्ता के आसपास बनी हेरिटेज शॉप्स आपको बिर्टिश कोलोनियल इरा की याद दिला देंगी। लकड़ी की नक्कारशी से सजी यह दुकाने अभी भी वह पुराना आकर्षण समेटे हुए हैं। यहां से थोड़ा नीचे नेहरू रोड पर टहलते हुए चले जाएं तो पूरा का पूरा बाजार सजा हुआ है। वहीं कुछ प्रसिद्ध रेस्टोरेंट भी बने हुए हैं। जैसे टेरिस रेस्टोरेंट कवेंटर और अंग्रेज़ों के ज़माने की बेकरी- ग्लेनरीज़। दार्जिलिंग चाय की महक के साथ गरमा गरम सैंडविच का आनंद केवेंटर के छोटे मगर सुन्दर टेरेस पर ज़रूर लें। यहां से पहाड़ों की परतों में बिखरी दार्जिलिंग की हसीन वादियां बहुत सुन्दर दिखती हैं।
अगली सुबह टाइगर हिल पर सनराइज़ देखने जाने के लिए शाम को ही टैक्सी तय कर लें। यह टैक्सी आपको सुबह चार बजे आपके होटल में लेने के पहुंच जाएगी। टाइगर हिल से वापसी में यही टैक्सी आपको घूम मॉनेस्ट्री, बतासिया लूप, माग ढ़ोग योलमोवा मोनेस्ट्री दिखा देगी।
सूर्योदय–टाइगर हिल
टाइगर हिल दार्जिलिंग टाउन से 11 किलोमीटर दूर है। यह दार्जिलिंग की पहाड़ियों में सबसे ऊंची छोटी है। यहां से सूर्योदय देखना एक अदभुत अनुभव है। टाइगर हिल से हिमालय की पूर्वी भाग की चोटियां दिखाई देती हैं। और यदि मौसम साफ़ हो तो माउन्ट एवरेस्ट भी नज़र आता है। टाइगर हिल पर जब सूर्योदय होता है तो उससे कुछ सेकेंड पहले कंचनजंघा की बर्फ से ढ़की चोटियों पर सिंदूरी लालिमा छाने लगती है। प्रकृति का ऐसा सुन्दर नज़ारा सभी को मन्त्र मुग्ध कर देता है।
टाइगर हिल से माउन्ट एवेरेस्ट बिलकुल सीधा सामने दिखाई देता है, जिसकी दूरी लगभग 107 मील मानी जाती है। टाइगर हिल पर सैलानियों की सुविधा और सर्दी से बचाव के लिए एक कवर्ड शेल्टर बिल्डिंग भी बनाई गई है। लेकिन ज़्यादातर लोग खुले आसमान के नीचे हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में ही रह कर इस अदभुत नज़ारे के साक्षी बनना पसंद करते हैं।
घूम मोनेस्ट्री
टाइगर हिल से वापसी में घूम रेलवे स्टेशन के पास ही घूम मोनेस्ट्री पड़ती हैं। इस मोनेस्ट्री का निर्माण सन् 1875 में किया गया था। यह एक सुन्दर मोनेस्ट्री है जिसमे 15 फिट ऊंची मैत्रेयी बुद्धा की मूर्ति विराजमान है। यह मोनेस्ट्री तिब्बतियन बौद्ध धर्म के अध्धयन का केंद्र है। घूम मोनेस्ट्री में महात्मा बुद्ध के समय की कुछ अमूल्य पांडुलिपियां संरक्षित करके रखी गई हैं। सुबह-सुबह इस मोनेस्ट्री के बाहर रेलवे लाइन पर भूटिया लोग गर्म कपड़े व अन्य सामानों की मार्किट लगाते हैं। यह बाजार सुबह नौ बजे तक ही लगता है उसके बाद टॉय ट्रेन की आवाजाही शुरू हो जाती है।
बतासिया लूप
घूम मोनेस्ट्री से थोड़ा आगे ही बतासिया लूप दाहिने हाथ पर पहाड़ की चोटी पर पड़ता है। यह एक गोल चक्कर है जिसपर टॉय ट्रेन होकर गुज़रती है। इस जगह का नाम बतासिया लूप कैसे पड़ा इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है। शक्कर से बने बताशे गोल होते हैं और यह लूप भी गोल है इसी लिए इसका नाम बतासिया लूप पड़ा। इस लूप के बीचों बीच एक शहीद स्मारक बना है। 1947 की आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की याद में यहां एक जवान की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। सुबह सुबह यहां भी बड़ी चहल पहल होती है। भूटिया लोग यहां भी ऊनी कपड़ों और स्थानीय हैंडीक्राफ्ट की दुकान सजाए बैठे होते हैं और ट्रेन के आने पर जल्दी जल्दी अपना सामान समेटे हैं। क्यूंकि यह स्थान थोड़ा ऊंचाई पर बना है इसलिए यहां से दार्जिलिंग की पूरी वैली दिखाई देती है और उसके नेपथ्य में बर्फ़ से ढ़की हिमालय की पर्वतमाला, इसलिए यहां कई लोग दूरबीन से यह नज़ारा दिखाने का काम भी करते हैं। बस इसके लिए आपको मात्र 30 रूपए चुकाने होंगे।
माग ढ़ोग योलमोवा मोनेस्ट्री Mag-Dhog Yolmowa Monastery
माग ढ़ोग योलमोवा मोनेस्ट्री बतासिया लूप से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। यह मोनेस्ट्री आलूबारी मोनेस्ट्री के नाम से भी जानी जाती है। यह एक बड़ी मोनेस्ट्री है। जिसका निर्माण 1914 में हुआ था। इस मोनेस्ट्री का सम्बन्ध उत्तर पूर्वी नेपाल से आए लोगों के नेपाली समुदाय से है। इस मोनेस्ट्री को बहुत ही सुन्दर तरीके से सजाया गया है। इस मोनेस्ट्री में बुद्ध और पद्मसम्भव की विशाल मूर्तियां हैं। यहां की दीवारों पर सुन्दर भित्तीय चित्र बने हुए हैं। ऐसा मन जाता है कि इन चित्रों को रंगों से सजाने के लिए घांस और जड़ीबूटियों से निकले रंगों का प्रयोग हुआ है। इसी मोनेस्ट्री के अहाते में विशाल प्रार्थना चक्र स्थापित हैं।
अभी सुबह के सिर्फ 10 बजे हैं और आपका पूरा दिन बाक़ी है। होटल जाकर कुछ फ्रेश हों और फिर निकल चलें दार्जिलिंग के कुछ और बेहतरीन नज़ारे देखने।
शांति स्तूप-पीस पैगोडा
पीस पैगोडा हरे भरे जालापहाड़ हिल के दामन में बना एक धवल श्वेत शांति का स्मारक है जिस के निर्माण की नींव जापान के एक बौद्ध भिक्षु निचीदात्सु फूजी Nichidatsu Fujii ने रखी थी। यह श्वेत स्मारक दार्जिलिंग में शांति और सौहार्द का प्रतीक है। यह पैगोडा 94 फिट ऊंचा और इसका व्यास 23 मीटर में फैला हुआ है। इस स्मारक में बुद्ध के जीवन चक्र की चार मुख्य अवस्थाओं को सोने की पोलिश से जगमगाती सुन्दर पीतवर्ण मूर्तियों में उकेरा गया है और बुद्ध के जीवन से जड़ी अन्य मुख्य घटनाओं को लकड़ी पर सुन्दर नक्कारशी के माध्यम से दिखाया गया है। जापान के नागासाकी और हिरोशिमा में भीषण परमाणु बम विस्फोट के बाद फूजी गुरूजी ने विश्वभर में शांति स्तूपो के निर्माण का संकल्प लिया था। इसी संकल्प में इस शांति स्तूप का भी निर्माण फूजी गुरूजी के प्रधान शिष्य निप्पोजान म्योहोजी ने सन 1992 करवाया था। इसी तरह के सामान आकृति और डिजायन और भी कई स्तूप देश और विदेश में बने हुए है।
पीस पैगोडा के अहाते से लगा हुआ ही एक जापानी मंदिर भी है। मुख्य गेट से करीब 5-6 मिनिट के पैदल चलने के बाद मुख्य मंदिर परिसर में पहुंच जाते है। जापानी बौद्ध मंदिर एक दो मंजिला भवन है, जहां पर मुख्य प्राथर्ना कक्ष प्रथम मंजिल पर है । जहां से आती श्लोकों की मधुर ध्वनि- “ना मू मयो हो रेन गे क्यो” पूरे वातावरण को एक अलौकिक रंग में रंग देती है।
केबल कार
ऐसा कहा जाता है कि अगर दार्जिलिंग आकर रोपवे की सवारी नहीं की तो कुछ नहीं देखा। चौक बाजार से तीन किमी दूर रोपवे है, जो आपको दार्जिलिंग से रंगित घाटी तक ले जाती है। इसे भारत के सबसे पुराने रोपवे का दर्जा भी प्राप्त है। यह रोपवे सन 1856 में शुरू किया गया था। तब इसे उड़न खटोला भी कहते थे। इसका एक छोर 7000 फिट की ऊंचाई पर है तो दूसरे छोर सिंगला बाजार 800 फिट पर है। रोपवे की सवारी बादलों से होकर गुजरती है और यहां से आप नीचे के चाय बागान का विहंगम नजारा देख सकते हैं। यह दूरी मात्र 45 मिनट में तय की जाती है। इस 45 मिनिट के सफर में दार्जिलिंग के बेहद खूबसूरत पहाड़ो, नदियां और घाटियों के लुभावने द्रश्यो से मन विभोर हो जाता है। यहां से चाय बागान की सुंदरता देखते ही बनती है। चाय बागानों को एरियल वियू से देखना एक अनोखा अनुभव है जिसके लिए आपको सिर्फ 150 रूपए ही चुकाने होंगे।
हिमालयन माउंटेनेरिंग इंस्टिट्यूट
Himalayan Mountaineering Institute (HMI)
हिमालयन माउंटेनेरिंग इंस्टिट्यूट एक ऐसी जगह है जहां पर्वतारोहण से जुड़ी कुछ बहुमूल्य दस्तावेज़ों को सहेज कर रखा गया है। यह संस्थान पहले भारतीय पर्वतारोही तेनज़िंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी द्वारा सन् 1953 में माउन्ट एवरेस्ट की ऊंचाई को फ़तेह करने के सम्मान के रूप में स्थापित किया गया था। यहां एक संग्रहालय है और साथ ही पर्वतारोहण की ट्रेनिंग कर रहे छात्रों के लिए बोर्डिंग स्कूल भी मौजूद है। दर्शनीय स्थल तेनजिंग रॉक (Tenzing Rock HMI) भी यहीं पर है। यहां पर एक बड़ी चट्टान पर जिस पर प्राम्भिक छात्रो को प्रशिक्षण दिया जाता है और साथ ही साथ पर्यटकों को रस्सी के सहारे इस चट्टान पर चढ़ने (Rock Climbing) का रोमांचक अनुभव प्रशिक्षित लोगो द्वारा दिया जाता है। यह जगह माउंटेन ट्रैक्केर्स, बैग पैकर्स और एक्सप्लोरस के लिए स्वर्ग के समान है।
रॉक गार्डेन
रॉक गार्डेन दार्जिलिंग टाउन से 10 किलोमीटर दूर स्थित है। यह एक मनोरम रॉक गार्डन है जिसके बीच से एक वॉटरफॉल गुज़रता है। इस गार्डन तक पहुंचने का रास्ता कई घुमावदार मोड़ों को होकर गुज़रता है। यह गार्डन पहाड़ों की तलहटी में बना है। जिसका रास्ता ऑरेंज वैली टी एस्टेट से होकर गुज़रता है। इस वाटर फॉल का नाम चुन्नू समर वॉटरफॉल है। रॉक गार्डेन में पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों का बखूबी प्रयोग कर इसे एक टेर्रेस गार्डन के रूप में विकसित किया है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
कब जाएं
दार्जिलिंग को क्वीन ऑफ हिल्स कहा जाता है। यहां बारिश के केवल दो महीने छोड़ कर वर्ष में कभी भी जाया जा सकता है। हर मौसम का अपना एक अलग आनंद है।
कैसे पहुंचे?
नज़दीकी एयरपोर्ट बागडोगरा है जोकि दिल्ली मुंबई कोलकाता आदि सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। बागडोगरा से दार्जिलिंग 65 किलोमीटर दूर है।
बागडोगरा से आगे की यात्रा ट्रेन या सड़क मार्ग से की जा सकती है।
कहां ठहरें?
दार्जिलिंग में हर बजट के होटल उपलब्ध हैं, यहां वर्ष भर सैलानियों की आवाजाही लगी रहती है इसलिए पहले से बुक ज़रूर करवालें।
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत की धरोहर के किसी और अनमोल रंग के साथ
तब तक आप बने रहिये मेरे साथ
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी