वैसे तो पुष्कर एक छोटी जगह है पर विश्व मानचित्र पर पहचाना जाता है। इसे तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। अजमेर से 14 किमी उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वत श्रंखलाओं के बीच बसा हुआ एक मनोरम स्थान है। पुष्कर शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है। पुष्प+कर, पुष्प यानी फूल और कर यानी हाथ। पुष्कर में गुलाब की खेती होती है। अजमेर शरीफ में ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर चढ़ाए जाने वाले फूल यहीं से जाते हैं। इस जगह के नाम के साथ कई दन्तकथाएँ जुड़ी हुई हैं। कुछ लोग मानते हैं कि समुद्रमंथन से निकले अमृत कलश को छीनकर जब एक राक्षस भाग रहा था तब उसमें से कुछ बूँदें किसी तरह सरोवर में गिर गईं तभी से यहाँ की पवित्र झील का पानी अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक हो गया और लोग इसे तीर्थ के रूप में पूजने लगे. ऐसी लोगों की आस्था है कि अमृतकलश से गिरी बूँदों ने इस सरोवर के पानी को रोगनाशक और पवित्र बना दिया है.एक और कथा अनुसार जब ब्रम्हा सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उन्होंने अपने हाथ से एक कमल उछला और वह यहाँ आकर गिरा जिससे इस झील का निर्माण हुआ। इसलिए यह पवित्र सरोवर माना गया है. यह भी माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के अंतिम पाँच दिनों में जो कोई पुष्कर तीर्थ में स्नान- पूजा करता है उसे अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है। इसीलिए चारों धामों की यात्रा करके भी यदि कोई पुष्कर झील में डुबकी नहीं लगाता है तो उसके सारे पुण्य निष्फल हो जाते है। एक कहावत है कि ‘सारे तीर्थ बार बार, पुष्कर तीर्थ एक बार’, इसीलिए इसे तीर्थों का गुरु, पाँचवाँ धाम एवं पृथ्वी का तीसरा नेत्र कहा जाता है।
इस झील के चारों ओर श्रद्धालुओं के स्नान करने के लिए विभिन्न राजाओं ने घाट बनवाए जिनका नाम राज्यों के नाम पर रखा गया। जैसे ग्वालियर घाट, अजमेर, जयपुर, सीकर, कोटा, बूंदी आदि
Rajputana architecture |
यहाँ अनेक मन्दिर स्थित हैं जिनमे ब्रम्हा जी का मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है। जिसका निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक ने 14वीं शताब्दी में अजमेर के नज़दीक करवाया था. इस सरोवर की लंबाई और चौड़ाई समान है। डेढ़ किलोमीटर लंबे और इतने ही चौड़े पुष्कर सरोवर को पास की पहाड़ी से देखें तो यह वर्गाकार स्फटिक मणि जैसा लगता है। इसके चारों तरफ बने हुए 52 घाट इसके सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं।
Wall painting |
इसके साथ भी एक पौराणिक कथा जुड़ी है हुआ यूँ कि क्रोधित सरस्वती ने एक बार ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि जिस सृष्टि की रचना उन्होंने की है, उसी सृष्टि के लोग उन्हें भुला देंगे और उनकी कहीं पूजा नहीं होगी। लेकिन बाद में देवों की विनती पर देवी सरस्वती पिघलीं और उन्होंने कहा कि पुष्कर में उनकी पूजा होती रहेगी।इसलिए सिर्फ पुष्कर में ही ब्रम्हा जी की पूजा होती है।
Rajputana architecture |
पुष्कर में हर साल दो विशाल मेलों का आयोजन किया जाता है। पहला मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक तथा दूसरा मेला वैशाख शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है। पुरोहित संघ ट्रस्ट की ओर से पुष्कर झील के बीचों–बीच बनी छतरी पर झंडारोहण व आरती के साथ कार्तिक मेले का शुभारम्भ किया जाता है और दूर दराज़ से मवेशी बेचने और खरीदने वाले यहाँ आ जुटते हैं। यह भारत वर्ष में लगने वाला सबसे बड़ा पशु मेला है। यह मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। रेगिस्तान के मुहाने की तरह यह मैदान जहाँ तक नज़र जाए ऊंटों से भरा नज़र आता है।
ऊँटों के अलावा बकरियाँ, ऊँची नस्ल के घोड़े, और टट्टू भी बेचे और ख़रीदे जाते हैं. मेले का आयोजन स्थानीय प्रशासन और राजिस्थान पर्यटन विभाग साझा रूप से करते हैं। यहाँ आए लोग जानवरों की खरीद फरोख्त के साथ साथ शादी ब्याह आदि भी यहीं तय कर लेते हैं। एक ओर जहाँ पुरुष मवेशियों की सौदेबाज़ी में व्यस्त होते हैं वहीँ पारम्परिक परिधानों में सजी रजिस्थानी महिलाऐं मेले में खरीदारी का आनन्द लेती हैं।
मेले में कई प्रकार की प्रतियोगिताएँ व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यहाँ ऊंटों व घोडों की दौड खूब पसंद की जाती है। सबसे सुंदर ऊँट व ऊँटनी को पुरस्कृत किया जाता है। शाम का समय राजस्थान के लोक नर्तकों व लोक संगीत का होता है। तेरहताली, भपंवादन, कालबेलिया नाच और चकरी नृत्य का ऐसा समां बँधता है कि लोग झूमने लगते हैं। दूर तक फैले पर्वतों के बीच विस्तृत मैदान पर आए सैकड़ों ग्रामीणों का कुनबा मेले में अस्थायी आवास बना लेता है। पशुओं की तरह तरह की नस्लें उनका चारा औजार कृषि के यंत्र और उनके तंबू डेरे विविधता का सुंदर समा बाँध देते हैं।
camel fair |
आम मेलों की ही तरह ढेर सारी दुकानें, खाने–पीने की गुमटियाँ, करतब, झूले और मेलों में देखी जाने वाली सभी वस्तुओं की जमावट यहाँ देखी जाती है। यहाँ जानवरों के साजो-सामान की दुकानें भी लगी होती हैं।
cattle accessories |
इन दुकानों पर सजी रंग बिरंगे चुटीले,लटकने, झालरें बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
यहाँ रंग बिरंगी छतरियों से सजी ऊँट गाड़ियाँ सैलानियों को पूरे मेले का भ्रमण करवाते हैं। लोक संस्कृति व लोक संगीत का सौंदर्य हर जगह देखने को मिलता है।
shop in the fair |
यहाँ से थोड़ा दूर ब्रम्हा मन्दिर के नज़दीक पूरा बाजार सजा होता है। जहाँ से पगड़ियाँ,ब्लू पॉटरी, लैदर बैग ,जूतियाँ ,बंधेज की चुनरियाँ और रजिस्थानी रजाईयां खरीदी जा सकती हैं। पुष्कर मेले का आनन्द आप हॉट एयर बैलून में बैठ कर भी ले सकते हैं।
camel cart |
पुष्कर मेला देखने सैलानी विदेशों से बड़ी संख्या में आते हैं। यह झाँकी हैं राजिस्थान के गौरवशाली अतीत की, उनकी सभ्यता और समाज की, देवताओं में बसी आस्था की। इस मेले में दाल बाटी चूरमा खिलाने के लिए ढाबे हर समय खुले रहते हैं। प्रेम से परोसते यह रजिस्थानी लोग ख़ुशी ख़ुशी सैलानियों का स्वागत करते हैं।
Sadhu |
Villager |