The great Himalayas calling….Naggar Castle
Day-05
पांचवां दिन – नग्गर
Naggar castle |
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नग्गर कैसल
विश्व धरोहर नग्गर कैसल में हर साल देशी और विदेशी पर्यटक ठहरना पसंद करते ही हैं साथ ही यह जगह हमारी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी खूब लुभाती है। यहाँ कई मशहूर फिल्मों की शूटिंग हुई है। जैसे जब वी मेट, माचिस, तेरे नाल लव हो गया आदि। काष्ठकुणी शैली की बनी इस इमारत की अपनी ही खासियत है। यहां पर प्राचीन संग्रहालय भी है जो पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र बना रहता है। संग्रहालय में यहां की प्राचीन संस्कृति के दर्शन होते हैं। इन सभी के कारण यहां पर पर्यटक ठहरना पसंद करते हैं.इस कैसल में एक मंदिर भी है। इसके रेस्टोरेन्ट का कुछ हिस्सा झरोखे स्टाइल में बनाया गया है। जहाँ बैठ कर डिनर एन्जॉय किया जा सकता है। इस जगह से पूरी कुल्लू वैली दिखाई देती है.
Tample inside Naggar castle |
कुल्लू की प्राचीन राजधानी रहे ऐतिहासिक गांव नग्गर की प्राचीन इमारत नग्गर कैसल आज हिमाचल के विश्व धरोहर में से एक है। इसकी खासियत के चर्चे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। इसी कारण विदेशी पर्यटक नग्गर कैसल को देखने के लिए लालायित रहते हैं। नग्गर कैसल प्राचीन काष्ठकुणी शैली में बनी इमारत अपने आप में अद्भुत है।यहाँ के लोग इस ईमारत से जुडी एक कहानी सुनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इतना बड़ा कैसल कभी सिर्फ एक बन्दूक के लिए बिका था। हुआ यूं कि एक बार इस कैसल को देखने एक अँगरेज़ आया और उस अंग्रेज को यह इमारत इतनी भा गई कि यहां के राजा को एक बंदूक का लालच देकर उसने इसे खरीद लिया था। जानकारी के अनुसार नग्गर राजा जगत सिंह के अधीन था। 1846 में राजा ज्ञान सिंह ने एक पुरानी बंदूक के लिए नग्गर कैसल को यहां रहे एक अंग्रेज सहायक उपायुक्त मेजर को बेच दिया था।
आज पर्यटन निगम इसे होटल के रूप में प्रयोग कर रहा है और सही माइनो में देखा जाए तो यह जगह सरकारी तौर तरीके के चलते अपनी चमक खो राखी है. ।मैंने यहाँ पहले कहीं पढ़ा था कि होटल के रूप में नग्गर कैसल की अलग ही खासियत है जो अन्य होटलों में नहीं है। इसलिए यहाँ आने से पहले मेरे मन में भी इस जगह को लेकर बहुत उम्मीदें थीं पर इस जगह को जितना अच्छा होना चाहिए था यह उस उम्मीद पर खरी नहीं उतर पाई।
एनके बाली, एजीएम, पर्यटन विकास निगम कुल्लू के अनुसार नग्गर कैसल का निर्माण कुछ इस तरह हुआ था.नग्गर गांव 1460 सालों तक कुल्लू रियासत का केन्द्र रहा है। 16वीं शताब्दी में राजा सिद्दी सिंह ने नग्गर कैसल का निर्माण कुल्लू की प्राचीन काष्ठकुणी शैली में किले के रूप में शुरू किया। इसके निर्माण के लिए पत्थरों को ब्यास नदी के दाएं तट पर स्थित बड़ागढ़ क्षेत्र से राजा भोसल के दुर्गनुमा महल के खंडहरों से लाया गया था। एक अनुमान के आधार पर इसके निर्माण में 2000 से अधिक देवदार के पेड़ों का प्रयोग हुआ है। इसके निर्माण में लोहे की एक भी कील का प्रयोग नहीं हुआ है। यह किला इतनी मजबूती से बना है कि आज तक जितने भी भूकंप हुए हैं, उससे इमारत को कोई नुक्सान नहीं हुआ है। 1905 का भूकंप भी इस इमारत का बाल बांका नहीं कर पाया था।
नग्गर कैसल में कुल 17कमरे हैं। इनके नाम नम्बरों के आधार पर नहीं बल्कि नाम के आधार पर रखे गए हैं। जानकारी के अनुसार 4 बिस्तरों वाले कमरे का नाम शाही सुईट, ओक हिज हाईनैस सुईट, हर हाईनैस सुईट, ट्रगोफन सुईट, ग्रीन फील्ड सुईट, रिवर ब्यू सुईट, कोर्ट यार्ड सुईट, फोजल पिक सुईट, बड़ागढ़ सुईट, फोरैस्ट ब्यू, त्रिपुरा सुईट, चंद्रखणी सुईट, कैसल ब्यू सुईट तथा देविका सुईट आदि नाम कमरों के रखे गए हैं। एक रात के ठहरने का किराया थोड़ा महंगा है।
ऐसे पहुंचें नग्गर कैसल
कुल्लू मुख्यालय से दाएं और बाएं तट की ओर से नग्गर 20 किलोमीटर दूर है। पतलीकूहल से दाएं तरफ बाईपास से नग्गर पहुंचा जा सकता है। नग्गर बस स्टैंड से 2 किलोमीटर दूरी पर रोरिक आर्ट गैलरी से पहले नग्गर कैसल आता है।
फिर मिलेंगे दोस्तों, ब्यास सैक्टर के अगले पड़ाव के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ,
तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी