महात्मा गाँधी के आश्रम और संग्रहालय

 

एक यायावर होने का सबसे बड़ा लाभ है कि यात्राएँ बहुत कुछ ऐसा दे जाती हैं जिसकी अपने तमन्ना भी नहीं की होती है. आज से एक दशक  पूर्व तक महात्मा गाँधी के विषय में मेरी जानकारियों का स्तर भी वैसा ही था जैसा की किसी भी आम भारतीय का होता होगा। लेकिन फिर मेरी यात्राओं ने मेरे समक्ष एक ऐसा गवाक्ष खोल दिया जिसने मेरे अंदर जिज्ञासा भर दी. इसका श्रेय गुजरात टूरिज्म को जाता है. मेरी शुरवाती यात्रा में मैंने महात्मा गाँधी का साबरमती आश्रम देखा।

सच कहूं तो बड़ी ऊर्जा के साथ मैं वो संग्रहालय देखने गई थी. साबरमती नदी के किनारे बना एक संग्रहालय। वहां पहुँचने से पहले मेरे दिमाग में एक आश्रम का तसव्वुर था. लेकिन वहां  मैंने कॉन्क्रीट का एक संग्रहालय देखा। जिसकी बड़ी दीर्घाओं की चमक में आश्रम की मौलिकता कहीं गुम होकर रह गई थी. मुझे थोड़ी निराशा हुई थी. हालाँकि बापू की कुटिया वैसी ही थी. उस संग्रहालय में एक चीज़ ने मुझे रोक लिया था. उस विशाल संग्रहालय  दीर्घा में बापू को लिखे कुछ पत्र थे जिनमें से एक पत्र ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था. वो पत्र यूरोप के किसी देश से हवाई मेल द्वारा आया था और उस पर बापू  का पता लिखा था कुछ इस तरह।

मोहनदास करमचंद गाँधी

जहाँ हों वहाँ मिले

ये कितनी अद्भुत बात थी. शायद इतिहास में ऐसा किसी और व्यक्ति के लिए नहीं  कहा जा सकता था. बापू जब 1915 में दक्षिण अफ्रीका भारत वापस आए तो कांग्रेस के उच्च पदाधिकारियों ने बापू से कांग्रेस की कमान सँभालने की बात रखी और देश के नेता के रूप में खड़े होने की बात कही. बापू ने इंकार किया। बापू लम्बे अंतराल के बाद देश वापस लौटे थे. उन्होंने ख़ुद को इस भारी ज़िम्मेदारी के लिए अभी तैयार नहीं पाया और इस निमंत्रण को अस्वीकार किया। साथ ही अपने देश और लोगों की स्थिति को समझने के लिए पूरे भारत की यात्राएँ कीं. इन लम्बी यात्राओं ने भारतीय जनमानस की वास्तविक स्थिति से बापू को रूबरू करवाया। ये चिट्ठी बापू के उसी दौर की चिट्ठी थी. बापू उस दौर में कहाँ पर हैं इसकी ख़बर पूरी दुनियाँ को होती थी. वॉइस ऑफ़ अमेरिका, रेडिओ सिलोन और बीबीसी बापू की हर खबर पर नज़र रखते थे. ऐसी शख्सियत थे महात्मा गाँधी।

Sabarmati Ashram

उस एक चिट्ठी ने मुझे बापू के जीवन के प्रति आकर्षित किया। इसके बाद मुझे अवसर मिला महाराष्ट्र के नागपुर के पास वर्धा स्थित सेवा ग्राम आश्रम में जाने का.  मेरी मानें तो आश्रम अभी तक अपनी नैसर्गिक सुंदरता और मौलिकता को बरक़रार रखे हुए है.

ये आश्रम महात्मा गाँधी के सभी आश्रमों में सबसे खास है. इसकी कई वजह हैं. ये भारत में महात्मा गाँधी का तीसरा आश्रम है. ये आश्रम सस्टेनेबिलिटी का जीता जगता उदहारण है और ये आश्रम महात्मा गाँधी की अंतिम श्वांस तक उनका स्थाई निवास रहा है. दकन प्लाटू के बोर वन्य अभयारण को पार करते हुए हम वर्धा स्थित सेवाग्राम आश्रम में पहुँचते हैं. इस आश्रम का निर्माण 1936 में किया गया था. इस आश्रम के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. हुआ यूँ कि सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय महात्मा गाँधी सौराष्ट्र की यात्रा पर थे. तब एक ग्राम में उन्होंने एक बूढ़ी माई का  के लिए पैर छुए. बूढ़ी माँ ने आशीर्वाद दिया – स्वराज लेके आऊं जो. यानि स्वराज लेकर आना.

लेकिन बापू की गिरफ़्तारी हुई और वह पहले अहमदाबाद जेल फिर यरवडा जेल में रहे. यरवडा में रहते हुए बापू ने घोषणा की कि जेल से बाहर आने पर वह साबरमती आश्रम नहीं जाएंगे। बापू की ये घोषणा पूरे देश में फ़ैल गई. लोग पत्र लिख लिख कर बापू को अपने वहाँ आकर रहने का निमंत्रण देने लगे. तब बापू ने एक और घोषणा की और बताया कि वह भारत के केंद्र में रहेंगे। बापू ने नागपुर के आसपास के क्षेत्र का चुनाव किया।

Dr. Kaynat Kazi at Sevashram, Vardha

उस समय बापू की सहयोगी मीरा बेन घुड़सवारी करते हुए नागपुर से वर्धा की ओर निकल आईं. उन्हें ये स्थान बहुत सुहाया। इत्तेफ़ाक़ से जिस स्थान को मीरा बेन ने पसंद किया था वहाँ महाराष्ट्र के कॉटन किंग जमुनालाल बजाज की भूमि थी. उन्होंने बापू को सेवा ग्राम में आश्रम बना  का न्यौता दिया लेकिन बापू ने उनके समक्ष 3 शर्तें रखीं। वो शर्तें कुछ इस प्रकार थीं.

Sevashram, Vardha

१. इस  निर्माण में कोई भी वास्तु 6 मील के दायरे के बाहर से नहीं आएगी।

२. इसे बनाने के लिए कोई भी आर्किटेक्ट बाहर से नहीं लाया जाएगा। इसे यहाँ से स्थानीय लोग बनाएँगे।

३. इस आश्रम को बनाने में १०० रूपए से अधिक का खर्च नहीं किया जाएगा।

जमुना लाल बजाज ने बापू की तीनों शर्तों का पालन किया। और 1936 में ये आश्रम बन कर तैयार हुआ. तब से लेकर बापू की अंतिम श्वांस तक यही आश्रम बापू का स्थाई निवास रहा और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र के रूप में सक्रीय रहा.

Yatri Niwas, Sevashram, Vardha

महात्मा गाँधी के सभी आश्रमों में ये आश्रम विशेष महत्त्व इसलिए रखता है कि समय के साथ इसके मूल स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं आया है. आश्रम के लोग मिटटी की दीवारों का रखरखाव बड़े सहजता के साथ करते हैं. सेवाश्रम में आने वाले लोगों के ठहरने के लिए सड़क के उसपर एक यात्री निवास बनाया गया है. जहाँ पर आश्रम में आने वाले लोग आराम से रहें और आश्रम में सुबह से शाम का समय बिता सकें।वैसे तो देश के हर कोने में महात्मा गाँधी से जुड़े स्मारक फैले हुए हैं. लेकिन कुछ स्मारक ऐसे हैं जो बापू के जीवन को नज़दीक से देखने का अवसर प्रदान करते हैं. ये दोनों स्थान ऐसे ही हैं. अगर संग्रहालयों की बात करें तो महात्मा गाँधी के पूरे जीवन को आधुनिक तकनीक के साथ दिखने वाला देश का सबसे खूबसूरत संग्रहालय दांडी कुटीर है. ये संग्रहालय नमक की ढेरी के आकर संरचना है.

Dandi Kutir, Gandhi Nagar, Gujarat

अहमदाबाद से मात्र २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुजरात की राजधानी गाँधी  संग्रहालय मौजूद है. तीन तलों में बंटा ये संग्रहालय बापू के जीवन को तीन भागों में बाँट कर दिखाता है. बापू की बाल्यावस्था, उनकी विलायत, दक्षिण अफ्रीका का जीवन, भारत वापसी और मोहनदास  महात्मा बनने की यात्रा का इतना रोचक और सजीव चित्रण कि ऐसा लगता है जैसे आप बापू के साथ हाथ थामे यात्रा कर रहे हों. नीचे दिए वीडियो में आप खुद लें.

आम लोगों को महात्मा गाँधी के पूरे जीवन से रूबरू करवाने में इस संग्रहालय जैसा रोचक संग्रहालय पूरे देश में दूसरा नहीं है. आधुनिक तकनीक के कारण ये युवाओं को बहुत लुभाता है.

 

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