दिल्ली में रहने वाले वैसे तो अपनी दिल्ली को इतना प्यार करते हैं कि अकसर यही कहते सुने जाते हैं कि
कौन जाय ज़ौक़ दिल्ली की गलियाँ छोड़कर
दिल्ली है ही ऐसे दिल फ़रेब जगह। यहाँ जो एक बार आ जाता है बस यहीं का होकर रह जाता है उसके लिए इन गलियों को छोड़कर जाना हमेशा के लिए नामुमकिन हो जाता है लेकिन फिर भी इस शहर की आपा धापी हर गुज़रते दिन के साथ महँगाई की तरह बढ़ रही है। ऐसे में भीड़ भाड़ से भरे इस शहर से दूर जब मेरा मन कुछ लम्हें सुकून के गुज़ारने का करता है तो मैं यहाँ से बाहर जाने की सोचती हूँ ।
ये शहर नामुराद किसी ऐसी बाराहदरी जैसा है जिसका हर झरोखा एक अलग दुनिया की तरफ़ खुलता है । जब पश्चिम का झरोखा खोलती हूँ तो राजस्थान का वैभव पुकारने लगता है, जब पलट कर पूरब की ओर देखती हूँ तो उत्तर प्रदेश की संस्कृति पुकारने लगती है। जब दक्षिण के गवाक्ष खोलती हूँ तो लगता पूरा मध्य और दक्षिण भारत बाहें पसारे मेरा इंतज़ार कर रहा है। और जब उत्तर की खिड़कियों को खोलती हूँ तो पूरा हिमालय अपने जादुई तिलिस्म से अपनी ओर खींचता है।
इस बार मैंने सोचा गर्मी का स्वागत पहाड़ों की ठंडी हवाओं के साथ किया जाए तो मेरा दिल हिमाचल की ठंडी वादियों की ओर खिंचा चला जा रहा था । मैं क्योंकि सोलो यायावर हूँ इसलिए मुझे अकेले ही घूमने में मज़ा आता है ।
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर इन वादियों से बातें करने निकल पड़ते हैं। अपनी इस यात्रा लिए मेरे लिए मेरे साथ होना चाहिए ।
मेरा कैमरा और एक ऐसी सवारी है जो कि इन पथरीली राहों पर मेरा साथ निभाए हैं ऐसे में मैंने चुना सवारी कार (https://www.savaari.com/) को ।
सवारी कार सर्विस एक ऐसी कार सर्विस है जिसमें आपको सवारी करते हुए अपनी खुद की सवारी जैसा महसूस होगा। प्रोफेशनल ड्राइवर और लग्ज़री का अनोखा मेल। जब मुझे अपने सुकून तलाश में ट्रेवल करना होता है तो मैं खुद ड्राइव करने के बजाए हमेशा एक ऐसी व्यवस्था तलाशती थी जिसमें गाड़ी चलाने और रास्तों की दुश्वारियों को कोई और उठा ले। मेरी यह तलाश ttps://www.savaari.com/outstation-taxi/car-rentals/पर आकर ख़त्म हो गई।
दिल्ली से निकलते ही है कब मेरा मन हवा से बातें करने लगा मुझे याद नहीं savaari car में आराम से बैठकर मैं रास्ते में आने वाले दिन फ़रेब नज़ारों के सपने देखने लगी है इस बार मैं जा रही हूँ हिमाचल के कुल्लू में कुछ अनछुए पहलुओं को नज़दीक से देखने।
मुझे पाइन की महक बहुत पसंद है इसलिए मेरा जब दिल करता है मैं पहाड़ों की ओर निकल जाती हूँ। हिमाचल की वादियों में पहाड़ों को ढंके ऊँचे-ऊँचे देवदार के पेड़ इन दिनों बड़े इतराते हैं। सर्दियों का लम्बा बर्फीला, ठंडा दौर ख़त्म कर नया हरा भरा जीवन पाएँ होते हैं।इन दिनों यह एक जादुई महक से शादाब होते हैं।
मैंने अपना सफर इस तरह रात के दूसरे पहर में शुरू किया है ताकि मैं भोर का उजाला पंजाब के आनंदपुर साहेब में देखूं। मेरे प्लान के मुताबिक़ जब मेरी आँख खुली तो हम आनंदपुर साहेब के नज़दीक पहुँच चुके थे। मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। सब कुछ प्लान के तहत ही हो रहा था पहाड़ों की आगे की यात्रा करने से पहले मैंने भव्य गुरुद्वारे में मत्था टेका और आगे बढ़ चली।
पहाड़ों की पतली पतली सड़कों पर एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ को लागते हुए कब नग्गर पहुँची मुझे याद नहीं। याद है तो पहाड़ी घर, हँसते मुस्कराते चेहरे, नज़दीक से बहती नदी का कलकल पानी, और हिमाचली लोगों का आदर सत्कार।
पहाड़ों के दामन में बसा यह छोटा सा क़स्बा नग्गर कभी कुल्लू के राजा का गढ़ हुआ करता था इसका गवाह है यहाँ पर बना नग्गर कैसल।
इस कैसल में ठहरना एक राजसी अनुभव है। आप राजस्थान में कई राजा रजवाड़ों के महलों में गए होंगे लेकिन हिमाचल के राजा का यह दुर्ग सब से अलग है। ऐसा लगता है जैसे वक़्त कहीं ठहर गया है, और मैं सदियों पहले राजा रजवाड़ों के वक़्त में पहुँच गई हूँ। हिमाचली स्थापत्य कला का एक शानदार नमूना है ये क़िला टॉवर के आकार की यह संरचना अद्भुत है।
यहाँ आकर आपका दिल नहीं करेगा फिर कहीं और जाएं इसलिए पूरा एक दिन मैंने इस क़िले में बिताया यहाँ एक बहुत ही अच्छा रेस्टोरेंट भी मौजूद हैं जहाँ बैठकर आप हिमाचली खाने चख सकते हैं इस जगह की सबसे ख़ास बात है इसकी झरोखों वाली बालकनियां। जहाँ बैठकर आप पूरी कुल्लू वैली का नज़ारा देख सकते हैं।
नग्गर की शान अगर यह कैसल है तो इस जगह एक और दार्शनिक स्थल है जिसकी पहचान विश्व मानचित्र पर हमेशा के लिए अमर हो चुकी है। इस वैली की सुंदरता पर मोहित होकर रशियन चित्रकार निकोलस रॉयरिक ने यहां एक एस्टेट ही खरीद ली थी। निकोलस एक चित्रकार होने के साथ साथ एक यायावर भी थे। उन्हें हिमालय से अथाह स्नेह था। हिमालय से प्रेम के चलते ही निकोलस ने हिमालय से जुड़े हर देश की यात्राएं की। उनकी इन्हीं यात्राओं का फल हैं हिमालय की पेंटिंग्स। नैचुरल कलर से बनी यह पेंटिंग्स सम्मोहित करने वाली हैं। पूरी दुनिया में यह पेंटिंग्स हिमालय पर बनी पेंटिंग्स में अदुतीय मानी जाती हैं। यहाँ आने से पहले मैंने इन पेंटिंग्स के बारे में काफी कुछ पढ़ा और सुना था। मैं इन्हें नज़दीक से देखना चाहती थी। इसलिए यहाँ खींची चली आई।
आज भले ही यह महान चित्रकार हमारे बीच मौजूद नहीं है लेकिन उनका काम आज भी उनकी एस्टेट में संजो कर रखा गया है। नग्गर कैसल से थोड़ी ही दूरी पर यह स्थान मौजूद है। मैं अगले दिन सुबह निकोलस रॉयरिक का संग्रहालय देखने निकल पड़ी। यह एक विंटेज हॉउस था। जो कभी निकोलस और उनके परिवार का निजी आवास था। इस घर में बड़ी बड़ी हस्तियां आ चुकी हैं जैसे जवाहर लाल नेहरू, रबीन्द्रनाथ टैगोर आदि।
आज यह निवास एक संग्रहालय में बदल चुका है। जिसमें एक हिस्सा खुला है जहाँ निकोलस की महान पेंटिंग्स लगाई गई हैं। इनकी तस्वीरें लेना मना है। बाक़ी का हिस्सा बंद है। आप सिर्फ कांच की खिड़कियों से घर के हर कमरे का अवलोकन कर सकते हैं।
आज इस जगह को एक ट्रस्ट The International Roerich Memorial Trust (IRMT) के अधीन रख कर कला के संरक्षण का केंद्र बना दिया गया है।
कांच की इन खिड़कियों के पार जैसे इतिहास ठहर गया हो। कमरे की हर चीज़ सजीव जान पड़ती है। मेज़ पर रखे लेम्प से लेकर क़लम तक और पेपर वेट के नीचे दबे फड़फड़ाते पन्नों तक सब उस महान चित्रकार का इन्तिज़ार करते हुए कि वो बस अभी आते ही होंगे। अधूरी चाय की प्याली और गुलदान में ताज़े गुलाब खामोश सांसे लेते हुए।
मैं ख़ामोशी से दम साधे लकड़ी की सीढ़ियों पर चढ़ कर ऊपरी तल पर पहुँचती हूँ। मन में अनजाना भय है। किसी के घर में झांके का अपराधबोध। मेरी नज़र एक कमरे पर टिक जाती है। जहाँ हिंदी सिनेमा की सबसे पहली डीवा देविका रानी का सुन्दर चित्र लगा है।
देविका रानी और यहाँ ?
कनेक्शन क्या है ?
इतनी बड़ी शख्सियत इस ख़ामोशी में एक कमरे में क्या कर रही है।
मालूम किया तो पता चला कि मशहूर सिने तारिका देविका रानी को अपने करियर के चरम पर निकोलस रॉयरिक के छोटे बेटे से प्यार हो गया था। नीली आँखों वाले उस सजीले नौजवान के प्रेम में बंधी देविका रानी अपना सब कुछ छोड़ यहाँ कुल्लू में आन बसी थीं। उन्होंने यहाँ विवाह किया और बाक़ी ज़िन्दगी यहीं कुल्लू की हसीं वादियों में गुज़ार दी।
प्रेम होता ही ऐसा है। मैं अतीत की उन दिलचस्प कहानियों के साथ बंधी बहुत दूर निकल गई। इसी में मेरा आधा दिन चला गया। अपनी सवारी कार में बैठ वापस नग्गर कैसल पहुंची। यहाँ कई हसीं कैफ़े हैं। जहाँ बैठ कर गरमा गरम कॉफी की चुस्कियां लेना बड़ा सुहावना लगता है। अगले दिन मुझे ओल्ड मनाली के जंगलों में ट्रैकिंग के लिए जाना है। पहाड़ों के बीच फैले इन जंगलों में कई पुराने गांव हैं जिनमे काठ कोनी के घर देखने को मिलते हैं। हिमाचली लोग सर्दी से बचाव के लिए लकड़ी के एक खास तरह के घर बनाते हैं। जिन्हें काठ कोनी कहा जाता है।
अगली सुबह किसी पहाड़ी पक्षी की कूक ने मुझे जगाया। यहाँ अभी काफी ठण्ड है। आँख खुलते ही गरमा गरम चाय की याद आ गई। अपनी चाय का प्याला ख़त्म कर जल्दी से निकल पड़ी यहां के जंगलों में ट्रैकिंग करने। इन जंगलों में एक खुश्बू है जो पूरी फ़िज़ा में फैली हुई है। मैंने पाइन के कई फूल चुन अपने बैग में भर लिए। जगह-जगह फूटे पानी के चश्में मधुर संगीत पैदा करते हैं। लगता है जैसे कोई जल तरंग बजा रहा हो।
दिन भर जंगल में गुज़ारने के बाद मैंने वापसी की राह ली। इतना ट्रैकिंग करने के बाद और चलने की ताक़त नहीं रही थी। अपनी कार बुलाई और लौटने लगी भागती दौड़ती अपनी इस महानगरी ज़िन्दगी में। पीछे छूटते पहाड़, नदियां, नाले झरनों और देवदार से फिर वापस आने का वादा करते हुए।