Victoria Memorial-Kolkata-KaynatKaziPhotography

#Kolkata

कोलकाता

कुमारटुली

Idol making-Kumartuli-Kolkata-KaynatKaziPhotography

जैसे ही मौसम थोड़ी सी करवट लेता है। और बारिश अपने बादलों को समेत कर चुपके से निकल जाती है वैसे ही फ़िज़ा मे हरश्रृंगार के फूलों की महक आने वाले त्योहारों का पैगाम ले आती है। हरश्रृंगार के फूल वाहक है उस संदेस के जो कहता है कि देश में त्यौहारों का मौसम वापस आया।शरद ऋतु के आगमन का स्वागत करते त्यौहार सब के जीवन में उमंग भर देते हैं। पारिजात के पेड़ों पर सफ़ेद फूलों का आना, हवा में सुगंध का घुलना इशारा है दुर्गा पूजा की शुरुवात का। और दुर्गापूजा देखने के लिए कोलकाता से बेहतर जगह पूरे देश मे नही है। चलिए इस अवसर पर हम आपको लिए चलते हैं, मां दुर्गा के शहर कोलकाता।

इस बार हम अपनी यात्रा की शुरुवात करेंगे एक ऐसे स्थान से जहाँ पर मां दुर्गा की मूर्तियाँ आकर ले रही होती हैं। मैं बात कर रही हूँ, कुमारटुली की। पुराने शहर का वो हिस्सा जहाँ पूरे बंगाल से आकर कुम्हारों ने एक बस्ती बसा ली है। पूरे वर्ष भर यहाँ पर मूर्तिकारों को माटी से मूर्ति मे जान डालते हुए देखा जा सकता है लेकिन दुर्गा पूजा से कुछ महीनों पहले से यह जगह एकदम सजीव हो जाती है। यहाँ की गलियों मे कोई छोटी तो कोई बड़ी मूर्तियाँ बना रहा होता है। एक पूरी गली मां के श्रांगार की वस्तुओं की दुकानों से सज जाती है। यहीं से सारे लोग अपने अपने पंडालों के लिए दुर्गा मां की एक से एक खूबसूरत मूर्तियाँ लेकर जाते हैं। आप पूरा एक दिन इस इलाक़े मे गुज़ार सकते हैं। कुम्हारों के इस मुहल्ले मे लोग रात दिन एक कर मां दुर्गा की खूबसूरत प्रतिमाएं तैयार करते हैं।दुर्गा की सुंदर प्रतिमाएँ गढ़ने के लिए जहाँ मिट्टी से मूर्तियाँ बनाईं जाती हैं.प्रतिमा का आधार लकड़ी के ढांचे पर जूट और भूसा बाँध कर तैयार होता है, जिस पर मिट्टी के साथ धान के छिलके को मिला कर लेप लगा कर मूर्ति तैयार की जाती है। प्रतिमा की साज-सज्जा बड़ी मेहनत के साथ की जाती है जिसमें नाना प्रकार के वस्त्राभूषण उपयोग में लाए जाते हैं।

दुर्गापूजा पंडाल

पूरे कोलकाता में दुर्गापूजा पंडालों की जैसे धूम मची रहती है। पूजा के पूरे नौ दिन शहर किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता है। आजकल थीम पंडालों का बड़ा क्रेज़ चला हुआ है। जिसमें लोग अपनी अपनी कलाओं का प्रदर्शन पूरे जोश से करते हैं। कोलकाता में कुछ पंडाल बहुत प्रसिद्द हैं जिनमें प्रमुख हैं। संतोष मित्रा स्क्वेर, जोकि पिछले 80 वर्षों से पंडाल बना रहे हैं. कॉलेज स्क्वेर,उत्तरी कोलकाता का बागबाज़ार, हिन्दुस्तान पार्क, दक्षिणी कोलकाता का समाज सेबी संघ, बल्लयगुनगे कल्चरल असोसियेशन, देसपरिया पार्क,कुमारतूली पार्क, दम दम पार्क, तरुण संघा, सिकंदर बागान साधारण दुर्गा पूजा,मोहम्मद अली पार्क दुर्गा पूजा, सिंघई पार्क सरबोजानीन दुर्गौतसव आदि। इन पंडालों को देख कर आपको यक़ीन आजाएगा कि कोलकाता को देश की सांस्कृतिक राजधानी ऐसे ही नहीं माना गया है। पंडालों की सजावट अपने आप में बंगाल की साझी संस्कृति का जीता जागता प्रमाण है। सारे पंडाल ऐसे लगते हैं जैसे हम किसी और ही नगरी में पहुँच गए हों। फिर देर किस बात की है। इस लोक उत्सव का अंग बनने आप भी एक पंडाल से दूसरे पंडाल घूमते रहिए।

  कोलकाता के दो चेहरे हैं। एक कोलकाता बंगाल की प्राचीन परंपराओं का वाहक है तो दूसरा कोलकाता अँग्रेज़ों की छाप वाला कोलकाता है। जिसमे कॉलोनियल ज़माने की यादें  देखने को मिलती है। एक ओर जहाँ प्राचीन मंदिर हैं मठ हैं तो दूसरी ओर विक्टोरिया मेमोरियल, हावड़ा ब्रिज जैसी संरचनाएं हैं। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि इतने सारे विरोधाभासों के बीच भी यह शहर सच मे सिटी ऑफ जॉय है। क्यूंकि यहाँ पर खुशियों बहुत सारे पैसों की मोहताज नही हैं। आप चंद सिक्कों मे भी कोलकाता का आनंद ले सकते हैं।

कालीघाट काली मंदिर

 कालीघाट काली मंदिर देश के 51 शक्ति पीठों मे से एक है। यह मंदिर मां काली को समर्पित है। पूरे बंगाल मे यह मंदिर सुप्रसिद्ध है। हुगली नदी के तट पर बना यह मंदिर पूरी दुनिया मे मशहूर है। इस मंदिर से लगा घाट काली घाट के नाम से जाना जाता है। किसी ज़माने मे गंगा घाट बिल्कुल मंदिर से लगा हुआ था लेकिन अब थोड़ा दूर हो गया है। वैसे तो इस मंदिर को सत्रहवीं शताब्दी का माना जाता है लेकिन वर्तमान मंदिर साबर्ना रॉय चौधरी परिवार के संरक्षण मे पिछले 200 वर्षों से चल रहा है।

दक्षिनेश्वर काली मंदिर

Dakshineshwer Temple-Kolkata-KaynatKaziPhotography

दक्षिनेश्वर काली मंदिर गंगा के पूर्वी तट पर बना काली मां का भव्य मंदिर है। इस मंदिर को देखने के लिए आपको पूरा का पूरा कोलकाता पार करके जाना होगा। अगर आपके पास समय है तो इस यात्रा को वैसे ही कीजिए जैसे लोकल कोलकाता वाले किया करते हैं। कुछ दूर तक बस से जाइए फिर हुगली नदी पर चलने वाले बड़े बड़े स्टीमर से आगे बढ़िए और अंत मे ट्राम से कुछ दूरी तय कीजिए। इस यात्रा मे आपको पूरा कोलकाता का मज़ा आजाएगा। सन् 1855 मे रानी राश्मोनी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यहाँ मंदिर से सटा हुआ एक घाट भी है जहाँ लोग पवित्र स्नान के लिए आते हैं। पूरे बंगाल मे इस मंदिर की बड़ी मान्यता है।

यहाँ मंदिर के प्रांगण मे 12 शिवालय भी हैं। मंदिर से सटा एक बड़ा सरोवर भी बना है। यहाँ एक राधा कृष्णा मंदिर भी है।

वैल्लुर मठ

Vellur Math-Kolkata-KaynatKaziPhotography

यहीं दक्षिनेश्वर काली मंदिर के नज़दीक ही वैल्लुर मठ भी मौजूद है। इस मठ तक पहुँचने का सबसे अच्छा मध्यम है आप यहाँ दक्षिनेश्वर काली मंदिर के घाट से नाव मे बैठ कर वैल्लुर मठ पहुँचे। हुगली नदी के चौड़े बहाव पर मात्र 10 रुपये देकर आप नौका विहार का आनंद उठा सकते हैं। वैल्लुर मठ को रामकृष्णा मठ के नाम से भी जाना जाता है। जिसका संबंध विश्वव्यापी रामकृष्णा मिशन से है। वैल्लुर मठ हुगली नदी के पश्चिमी घाट पर 40 एकड़ की भूमि पर बना हुआ है।  इस मठ की स्थापना सन् 1899 मे हुई।  इस मठ के अब दो भाग है, एक प्राचीन और एक नया भवन। प्राचीन मठ मे स्वामी विवेकानंद का कमरा मौजूद है। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद ने 4जुलाई 1902 को महासमाधी ली थी। स्वामी विवेकानंद की समधी भी इसी मठ मे बनाई गई है। यह मठ सुबह के कुछ घंटे और शाम के कुछ घंटों के लिए खुलता है। दोपहर मे मत बंद रहता है। इस मठ की स्थापना रामकृष्णा परमहंस ने की थी। यह मठ रामकृष्णा मिशन का मुख्यालय भी है।

विक्टोरिया मेमोरियल

Victoria Memorial-Kolkata-KaynatKaziPhotography

कोलकाता का नाम लेते सफेद संगेमरमर की जो इमारत ज़हन मे उभरती है उसका नाम ही विक्टोरिया मेमोरियल है। इंडो-सेरेसेनिक रिवाइवल आर्किटेक्चर स्टायल मे बनी इस इमारत का निर्माण सन्‌ 1910 शुरू हुआ।

ब्रिटिश-भारत के वाइसराय लार्ड कर्जन ने दिवंगत महारानी विक्टोरिया की स्मृति में क्वीन्स वे पर स्थित इस स्मारक के निर्माण की परिकल्पना की थी। इस महान स्मारक के निर्माण पर उस समय एक करोड़, पांच लाख रुपये का खर्च आया था। राष्ट्रिय महत्व की इस इमारत मे 28,394 कला वस्तुएं और 3,900 रंग चित्र का संग्रह किया गया है।

इस महान संरचना को बनाना वाले वास्तुकार थे विलियम एमर्सन। स्थापत्यकार विलियम ने देश मे कई महान संरचनाए बनाई थीं। जिसमे बम्बई में क्रॉफोर्ड मार्केट तथा इलाहाबाद में ऑल सेंट्स कैथेड्रल जैसे सुपरसिद्ध इमारत शामिल हैं। इस संरचना को ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया को समर्पित पिया गया था। आज यह कोलकाता का मुख्य दार्शनिक स्थल है और यहाँ एक संग्रहालय भी है।  इस इमारत का रखरखाव संस्कृति मंत्रालय करता है।  यहाँ आने से पूर्व आप ऑनलाइन भी टिकट बुक करवा सकते हैं। सोमवार और राष्ट्रिय अवकाश को छोड़ कर यह जगह हर रोज़ सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुली रहती है। इस संरचना मे चार चाँद लगाने के लिए इसके चारों ओर 57 एकड मे फैले खूबसूरत गार्डेन बनाए गए हैं।

विक्टोरिया मेमोरियल में मुख्य भवन के नज़दीक ही महारानी विक्टोरिया की एक कांस्य प्रतिमा है। यहां महारानी को स्टार ऑफ इंडिया की पोशाक में सिंहासन पर बैठे हुए दिखाया गया है। इस प्रांगड़ में कई अन्य महान विभूतियों के स्मारक भी बने हुए हैं जैसे सम्राट एडवार्ड-सप्तम के स्मारक,लार्ड कर्जन की संगमरमर की मूर्ति,  भारत के गर्वनर-जनरल लार्ड बेन्टिक, लार्ड रिपन तथा बंगाल के अग्रणी उद्योगपति सर राजेन्द्रनाथ मुखर्जी की मूर्ति आदि। एक अनुमान के अनुसार इस जगह को देखने लगभग 20 लाख दर्शक हर वर्ष आते हैं।

यहाँ कई दीर्घाएँ मौजूद हैं जिसमे वेस्टर्न पिक्चर की दीर्घा मे कई महान चित्रकारों द्वारा बनाई गई पश्चिमी शैली की पेंटिंग्स का अनूठा संग्रह है। औपनिवेशिक समय के प्रमुख शासकों से लेकर भारत के राजाओं व शासकों के चित्रों के साथ ही यहां पर मौजूद पश्चिमी शैली के रंगचित्रों में विविध विषयों एवं रंग माध्यमों का इस्तेमाल हुआ है। विक्टोरिया मेमोरियल हाल के अमूल्य रंग चित्र संग्रह में टिली केटल, जोहॉन जोफानी के रंग चित्र तथा विलियम होजेस और डैनियल्स के भू-दृश्य रंगचित्र विशेष रूप से महत्व रखते हैं।

यहाँ एक दीर्घा पूरी तरह से भारतीय चित्रकारों की बनाई गई दुर्लभ तेल चित्रों को समर्पित की गई है। राजपूत और मुगल शैली के लघु चित्रों से लेकर आधुनिक भारतीय चित्रकारों जैसे-नन्दलाल बोस, अवनीन्द्रनाथ टैगोर,गगनेन्द्रनाथ टैगोर के रंग चित्रों का मेमोरियल में काफी अच्छा संग्रह है।

दुर्लभ तस्वीरें

विक्टोरिया मेमोरियल हाल के संग्रह में बोर्न एंड शेफर्ड के अनेक दुर्लभ फोटोग्राफ हैं। इन तस्वीरों के मध्यम से आप उस ज़माने को बखूबी महसूस कर सकते हैं।  इस संग्रहालय मे में विविध बौद्ध पाठ्‌यों से लेकर संस्कृत पाठ्यों की पाण्डुलिपियों के कई खण्ड मौजूद हैं।

हावड़ा ब्रिज

HawraBridge-StreetPhotography-Kolkata-KaynatKaziPhotography

कोलकाता की पहचान हावड़ा ब्रिज दो शहरों कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने के लिए आज से 75 साल पहले हुगली नदी पर बनाया गया था।  सन् 1965मे इस का नाम बदल कर प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर के नाम पर रबींद्र सेतु रखा गया लेकिन आज भी लोग इसे हावड़ा ब्रिज कहना ही पसंद करते हैं। आपको जानकार हैरानी होगी की यह एक ऐसा ब्रिज है जिसमे कहीं भी नट बोल्ट नही लगाए गए हैं। यह ब्रिज दुनिया के सबसे लंबे 6 सस्पेंशन ब्रिजों मे से एक है।  इस ब्रिज का निर्माण 1942 मे पूरा हुआ और फरवरी1943 मे पब्लिक के लिए खोला गया। यह ब्रिज 705 मीटर लंबा और 30 मीटर चौड़ा है। एक अनुमान के अनुसार इस विशाल ब्रिज पर हर रोज़ 80 हज़ार वाहन और 10 लाख पैदल यात्री गुज़रते हैं।

मलिक घाट फ्लवर मार्केट

हावड़ा ब्रिज के नीचे ही एक और दार्शनिक स्थल है मलिक घाट फ्लवर मार्केट। अगर आप सुबह के समय जाएँगे तो इस मार्केट की चहल पहल देखने को मिलेगी। यहाँ भांति भांति के फूल बिकते हैं। हावड़ा ब्रिज से इसका व्यू बहुत ही सुंदर नज़र आता है।

ठाकुर बाड़ी

House Of Tagore

कोलकाता की बात हो और रविंद्रनाथ टैगोर की बात ना हो यह कैसे हो सकता है। तो जनाब रविंद्रनाथ टैगोर के पुरखों का घर देखने जोरसंको ठाकुर बाड़ी ज़रूर जाइए। इस लाल रंग के भवन का निर्माण 1784 मे हुआ था। आज यह एक संग्रहालय है जिसे रबींद्र भारती म्यूज़ीयम के नाम से भी जाना जाता है। इसमे 3 संग्रहालय मौजूद हैं। रविंद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन की अंतिम साँस यहीं ली थी। यह एक खूबसूरत हवेली है। यहाँ आकर आपको बंगाल के धनाड्य ज़मींदारों के गुज़रे ज़माने की याद अजाएगी। यहाँ आने के लिए 10 रुपये का टिकट लगता है। अंदर फोटो खींचना माना है।

मार्बल पॅलेस

ठाकुर बाड़ी के नज़दीक मुक्तराम बाबू स्ट्रीट पर ही एक और दार्शनिक स्थल है जिसका नाम मार्बल पॅलेस है।  उत्तरी कोलकाता मे 19वीं शताब्दी का बना यह भव्य मेंशन कोलकाता के बीते युग की याद दिलाते है। यहाँ शाम 4 बजे से पहले जाएँ। इस पॅलेस मे वेस्टर्न स्कल्प्चर्स, विक्टोरियन फर्निचर, भारतीय और यूरोपियन चित्रकारों द्वारा बनाई गई सुंदर चित्रकलाओं का संग्रेह मौजूद है।

 

कोशिश करें की ठाकुर बाड़ी से मार्बल पॅलेस तक हाथ रिक्शा मे जाएँ। यह एक छोटी दूरी है और इस बहाने आपको कोलकाता की एक और हेरिटेज से रूबरू होने का मौक़ा मिलेगा।

सेंट पॉलस कैथैड्रल

St.Cathedral Church

सेंट पॉल’स कैथैड्रल अपनी भव्य सफेद गॉथिक आर्किटेक्चर मे बनी संरचना के लिए प्रसिद्ध है। यह चर्च नॉर्थ इंडियन चर्च के अधीन आता है। सेंट पॉल’स कैथैड्रल, कैथैड्रल रोड, पर बिरला प्लॅनेटेरियम के नज़दीक ही पड़ता है। यह चर्च 1847 मे बन कर तैयार हुआ। ऐसा कहा जाता है कि यह चर्च एशिया का सबसे बड़ा एपिस्कपल चर्च है। यहाँ पहुँचने के लिए नज़दीकी मेट्रो स्टेशन मैदान मेट्रो स्टेशन है।

बिरला प्लॅनेटेरियम

नक्षत्रों की जादुई दुनिया को देखने के लिए बच्चे बिरला प्लॅनेटेरियम ज़रूर आना पसंद करते हैं। इसकी इमारत सांची के शांति स्तूपा से प्रेरित है। ब्रह्माण्ड के कुछ अनछुए पहलुओं से रूबरू होने यहाँ ज़रूर आइए। यहाँ हिन्दी और अँग्रेज़ी दोनो भाषाओं मे शो दिखाए जाते हैं। इस शो को देखते हुए आपको अंतरिक्ष मे होने का अनुभव होगा। मात्र 60 रुपये मे आप इस अनुभव का आनंद ले सकते हैं। आप टिकट ऑनलाइन भी बुक कर सकते हैं। अगर आप खगोल विद्या जाननेवाला बनना चाहते हैं तो आपके लिए यहाँ कई वर्कशॉप भी आयोजित की जाती हैं।

प्रिंसेप घाट

विक्टोरिया मेमोरियल से थोड़ी दूरी पर है सफेद खंबों से सजी एक और खूबसूरत संरचना प्रिंसेप घाट। इसका निर्माण आंग्लो-इंडियन स्कॉलर जेम्ज़ प्रिंसेप की याद मे सन् 1843 मे हुगली नदी के किनारे करवाया गया था। आज यहाँ एक खूबसूरत गार्डेन है और घाट मौजूद है। अगर आपको ट्रडीशनल नौका विहार करना है तो शाम के समय यहाँ ज़रूर आएँ। यहाँ से रात मे जगमगाता हुआ विवेकानंदन सेतु बहुत सुंदर नज़र आता है।

इंडियन म्यूज़ीयम

National Museum

राष्ट्रिए संग्रहालय की स्थापना सन् 1814 मे एषिटिक सोसाइटी ऑफ बेंगल द्वारा पार्क स्ट्रीट पर की गई थी।  यह देश का सबसे बड़ा संग्रहालय है। इस संग्रहालय को तसल्ली से देखने के लिए कम से कम आधा दिन लगता है। इस संग्रहालय मे कई दीर्घाएँ हैं जैसे गंधारा गैलरी, ब्रॉन्ज़ गैलरी, सिक्कों की गैलरी, टेक्सटाइल, पैंटिंग, मास्क, बर्ड, डेकोरेटिव आर्ट,ईजिप्ट, फॉसिल्स,स्केलिटन्स, ममीस, पेंटिंग्स आदि। यहाँ की ईजिप्ट गेलरी का मुख्य आकर्षण है 4,000 साल पुरानी ईजिप्षियन मम्मी। जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं।

मिलेनीयम पार्क

हुगली रिवर के किनारे पर बना मिलेनीयम पार्क बच्चों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है। यहाँ से शाम के समय जगमगाता हावड़ा ब्रिज बहुत सुंदर दिखाई देता है। इस पार्क की एंट्री मात्र पाँच रूपये है। यहाँ से फेरी राइड का आनंद लिया जा सकता है।

कोलकाता ट्रांम

कोलकाता ट्राम को एशिया के प्राचीनतम ट्रांसपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शुरुवात मार्च 27, 1902 मे हुई।   पहली ट्राम स्यालदा और आर्मीनियन घाट स्ट्रीट के बीच चली थी। यह वो ज़माना था जब ट्राम को घोड़े खींचा करते थे।  घोड़ों द्वारा खींचने वाली ट्राम को खास तौर पर लंदन से आयात किया गया था। इसका उद्घाटन लॉर्ड रिप्पन ने किया था। वक़्त के साथ साथ कोलकाता ट्राम को लोको मोटिव इंजन मिला और तब से यह लगातार सड़कों पर चल आज भी दौड़ रही है। आज भले ही शहर ने टैक्सी और मेट्रो के साथ गति पकड़ ली हो लेकिन कोलकाता का ओल्ड वर्ल्ड चर्म आज भी इन ट्रांम के मध्यम से बरक़रार है। अपनी कोलकाता की यात्रा मे भले ही छोटे राइड पर जाएँ लेकिन एक बार ट्राम मे सवारी ज़रूर करें। ट्राम की हिस्टरी जानने के लिए आप ट्राम म्यूज़ीयम भी जा सकते हैं।

पार्क स्ट्रीट

पार्क स्ट्रीट कोलकाता की शान है। बड़े बड़े होटेल, रेस्टोरेंट, मार्केट आदि पार्क स्ट्रीट की पहचान माने जाते हैं। यह जगह मशहूर है शॉपिंग के लिए।  यहाँ लोग शाम को आना पसंद करते हैं। यह जगह नाइट लाइफ के लिए भी जानी जाती है। फेमस मोलिन रूश यहीं स्थित है।

शॉपिंग

न्यू मार्केट

न्यू मार्केट कोलकाता मे मिर्ज़ा गालिब स्ट्रीट पर स्थित है।  यह एक शॉपिंग कॉंप्लेक्स है जहाँ पर आप भाँति भाँति के कपड़े जूते व अन्य समान खरीद सकते हैं। न्यू मार्केट मे हमेशा बहुत चहल पहल रहती है। यहाँ का स्ट्रीट फूड भी बहुत मशहूर है।

हैंडी क्राफ्ट आइटम्स खरीदने के लिए दक्षिणापन शॉपिंग कॉंप्लेक्स बहुत अच्छा है।  इस कॉंप्लेक्स के बाहर भी लोग फुटपाथ पर मार्केट लगाते हैं। बड़ा बाज़ार कोलकाता मे एक प्राचीन बाज़ार है। जिसकी तुलना आप दिल्ली के चाँदनी चौक से कर सकते हैं। गरियाहाट मार्केट दक्षिण कोलकाता मे पड़ता है। इस मार्केट मे आप बंगाल का हैंडी क्राफ्ट, टेक्सटाइल व अन्य सामान वाजिब दामों पर खरीद सकते हैं।

फूड

बात कोलकाता की हो और यहाँ के खानो का ज़िक्र ना किया जाए ऐसा तो हो ही नही सकता। कोलकाता का स्ट्रीट फूड भारत का सबसे अच्छा स्ट्रीट फूड माना जाता है।  कोलकाता जाएँ तो इन स्ट्रीट फुड्स को ट्राई किए बिना आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी। पुचका जिसे हम पानीपूरी या गोलगप्पा कहते हैं यहाँ का निराला ही होता है।

न्यू मार्केट मे काठी रोल्स की एक पूरी की पूरी श्रंखला मिलेगी। इन्हें ज़रूर ट्राई करें। यहाँ पर तले हुए स्नेक्स का बड़ा रिवाज है जिसे तालेभाजा कहा जाता है। अगर आप फिश फ्राई का आनंद लेना चाहते हैं तो गोलपार्क 5-पॉइंट क्रॉसिंग, के नज़दीक एक शॉप है जो मज़ेदार फ्राई फिश बेचती है।

और अगर आप पूरबी बंगाल यानी बांग्लादेशी कुज़ीन चखना चाहते हैं तो न्यू मार्केट एरिया मे मुस्ताक़ अहमद स्ट्रीट, पर कस्तूरी रेस्टोरेंट मे ज़रूर जाएँ। यहाँ आपको ऑथेंटिक बंगाली फूड मिलेगा जैसे भेटकी बेक्ड फिश, कोछु पत्ता चिन्गरी भाप्पा, प्रॉन्स करी, प्रॉन मलाई करी, भेटकी पातूरी(केले के पत्ते मे लपेट कर स्टीम की हुई मछली) आदि। जब प्रिंसेप घाट या मिलेन्नीयम पार्क पर जाएँ तो वहाँ झालमूरी ज़रूर खाएँ।

कोलकाता का फेमस रसगुल्ला वैसे तो पूरे शहर मे कहीं भी खाया जा सकता है लेकिन भवानीपुर के बलराम मालिक और राधाराम मालिक की बात ही कुछ और है। यहाँ की रसमलाई, राजभोग, संदेश खाकर आप की आत्मा तक तर हो जाएगी। इस मौसम में आपको गुड़ की चाशनी वाले रसगुल्ले चखने को मिलेंगे। जो मुँह में जाकर घुल जाते हैं। इसका कैरेमल का स्वाद बड़ा ही निराला होता है।

आसपास के दार्शनिक स्थल

मंदारमनी बीच

मंदारमनी कोलकाता के नज़दीक बंगाल की खाड़ी मे स्थित एक बीच है। इसकी कोलकाता से दूरी 171 किलोमीटर है।  यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत खूबसूरत है। बंगाल के हरे भरे ग्रामीण इलाक़ों से होते हुए आप 4-5घंटों मे मंदारमनी पहुँच जाते हैं। यह बीच बहुत साफ सुथरा है। यहाँ आप वॉटर स्पोर्ट्स का भी मज़ा ले सकते हैं। इस बीच पर लाल रंग के केंकड़े देखने को मिलते हैं। यहाँ कई बीच रिज़ॉर्ट हैं जहाँ पर ठहरा जा सकता है। मंदारमनी बीच पर आप अपनी कार से ड्राइव भी कर सकते हैं।

दीघा बीच

मंदारमनी से 30 किलामीटर की दूरी पर स्थित है दीघा बीच।  यह बीच भी अपने साफ सुथरे पानी के लिए जाना जाता है। यहाँ लोग वीकेंड पर पिकनिक मनाने आते हैं। इस बीच पर आप फ्रेश सी फुड का मज़ा ले सकते हैं। यहाँ के मछवारे सी फुड की स्टाल्स भी लगते हैं। यहाँ अड्वेंचर स्पोर्ट्स का मज़ा लिया जा सकता है। यहाँ से सनराइज़ बहुत सुंदर नज़र आता है। आप दीघा ट्रेन से भी पहुँच सकते हैं।

सुंदरबन

रॉयल बेंगल टाइगर्स का घर है सुंदरबन। इसका नाम सुंदरबन यहाँ बहुतायत मे पाए जाने वाले पेड़ सुंदरी के नाम पर पड़ा। कोलकाता से 109  किलोमीटर की दूरी पर स्थित सुंदरबन 1987 मे युनेसको वर्ल्ड हेरिटेज साइट मे शुमार किया जा चुका है। ऐसा कहा जाता है कि सुंदरबन मे लगभग 400 रॉयल बंगाल टाइगर्स और 30, 000 स्पॉटेड डियर रहते हैं। सुंदरबन इतना बड़ा है की भारत से लेकर बांग्लादेश तक फैला हुआ है। सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा मैनग्रोव फोरेस्ट माना जाता है। जोकि 4000 स्कवायर किलोमीटर मे फैला हुआ है। इसके अंदर 102 आइलेंड बसे हुए हैं। जिनमे से 54 आइलेंड पर लोग रहते हैं बाक़ी पर घने जंगल हैं।  सुंदरबन देखने का सबसे उत्तम साधन है बोटिंग। मात्र 10 रुपय खर्च कर आप 2 घंटे की बोट राइड का आनंद ले सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सुंदरबन मे दुनिया के सबसे ज़्यादा बंगाल टाइगर निवास करते हैं। सुंदरबन मे आप प्रकृति के कुछ बेहद अनोखे कारनामे देख सकते हैं। यहाँ दिन मे दो बार लो और हाइ टाइड आता है। यहाँ कुछ ऐसे पादप प्लवक पाए जाते हैं जोकि अंधेरी रात मे भी पानी के रिफ्लेक्शन से चमकते हैं। इसलिए आप यहाँ नाइट सफ़ारी का आनंद भी ले सकते हैं।

इस पूरे लेख को राष्ट्रीय संस्करण, 11 अक्टूबर 2018 में भी पढ़ सकते हैं।

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