उत्तर पूर्व का स्विट्ज़रलैंड मणिपुर
कोलकाता से उड़ान भर कर जैसे ही हवाई जहाज़ नॉर्थ ईस्ट की ओर आगे बढ़ता है नीचे का नज़ारा बदलने लगता है। हरयाली से भरे मख़मली पहाड़ किसी स्वप्नलोक से जान पड़ते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे एलिस इन वंडरलैंड की दुनिया की ओर खिंचे चले जाते हों।
यह पहाड़ कोई और नही बल्कि हिमालय के पूर्वी सिरे पर उत्तर में फैली पूर्वांचल पर्वतमालाएं हैं। जोकि परत दर परत खुलती जाती हैं। इन पहाड़ों की करवटों मे बसे छोटे-छोटे गाँव यहाँ पाए जाने वाले आदिवासियों के घर हैं।
यह यात्रा बहुत सुखद है लगता है कि किसी जादुई देश की खोज मे बस चले जा रहे हैं। लगभग एक घंटे बाद हवाई जहाज़ पहाड़ों के बीचों बीच एक अंडाकार कटोरे के आकर की जगह पर उतरता है। जी हाँ यह खूबसूरत शहर है इंफाल। मणिपुर की राजधानी इंफाल। किसी ज़माने मे मणिपुर एक केन्द्र शासित राज्य था आप यह एक स्वतंत्र राज्य है।
इस जगह की खूबसूरती के ब्यान मे सिर्फ़ इतना ही कहा जा सकता है कि यहाँ के प्राकृतिक नज़ारे अभी तक अनछुए हैं। इसीलिए शायद इस छोटे से सीमांत राज्य को उत्तर पूर्व का स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है।
इस राज्य के पास प्राकृतिक का अमूल्य वरदान है, इसी लिए यहाँ का लगभग 76 प्रतिशत भूभाग जंगल से घिरा हुआ है। अगर आप ईको टूरिज़म मे इंट्रेस्ट रखते हैं तो यह जगह आपके लिए स्वर्ग के समान है।
लोकटक लेके
इंफाल से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोकटक लेक मणिपुर की सबसे बड़ी फ्रेश वॉटर लेक है। इस लेक की ख्याति दूर दूर तक है। यह विश्व की पहली लेक है जहां फ्लॉटिंग आयलैंड मिलते हैं। यह लेक अपने आप मे बहुत अनोखी है। इसमे तैरते हुए घाँस के टापू पाए जाते हैं। यह लेक घर है लगभग 233 जलीय वनस्पतिक प्रजातियों का, 100 से ज़्यादा पक्षियों और 425 प्रजातियों के जंगली जीवों का। इस लेक के भीतर कई मछुवारों के गाँव हैं जिनके लिए लोकटक लेक जीवानदायनी लेक हैं। यह लोग लोकटक के भीतर ही रहते हैं। पानी पर तैरते छोटे-छोटे घाँस के टापू किसी जादुई दुनिया के देश जैसे लगते हैं, जोकि आज यहाँ तो कल तैर कर कहीं और पहुँच जाते हैं।
जैव विविधता से परिपूर्ण इस जादुई माहौल मे एक और सुंदर जगह है जिसका नाम है सैंड्रा पार्क एन्ड रिज़ॉर्ट। यह एक टूरिस्ट लॉज है जहाँ पर सैलानी ठहर सकते हैं। यहां एक खूबसूरत कॅफेटीरिया भी है। जहाँ पर जलपान की व्यवस्था है।
ईमा मार्केट- 4000 मांओं द्वारा चलाया जाने वाला मार्केट
वैसे तो पूरा मणिपुर देखने लायक़ है लेकिन इंफाल एक ऐसी जगह है जिसमे कई नायाब हीरे छुपे हुए हैं। जिसमे से एक है ईमा मार्केट। यहाँ के लोगों की माने तो यह मार्केट सोलहवीं शताब्दी से अस्तित्व मे है। मणिपुरी समाज की रीढ़ की हड्डी मानी जाने वाली महिलाएँ यहाँ भी पूरी तत्पर्यता से इस मार्केट का संचालन करती हैं। यह एशिया की सबसे बड़ी मार्केट है जिसे पूरी तरह से महिलाएँ चलती हैं। यहाँ लगभग 4000 महिलाएँ व्यापार करती हैं।
मणिपुरी भाषा मे ईमा का मतलब होता है मां। और यहाँ सही मायनों मे माएँ ही हैं जो दुकाने चलती हैं। ईमा मार्केट के दो भाग हैं एक भाग मे सब्ज़ी, मछली, मसाले व घर का अन्य समान मिलता है।
भाँति भाँति की मछलियाँ, फल फूल, पूजा का समान, सूखे मसाला, मटके और ना जाने क्या क्या। आपको ज़रूरत का सभी समान एक छत के नीचे मिल जाएगा। और अगर आप शॉपिंग करते करते थक गए हैं और भूक भी लगने लगी है तो यहीं मार्केट के बीचों बीच कोई ईमा आपको ताज़ी पकी मछली और भात भी खिला देगी। यहाँ अन्य सामानों के फडों के साथ साथ छोटा-सा लाईव किचन चलाने वाली ईमा भी होती हैं जोकि मुनासिब पैसों मे भरपेट भोजन उपलब्ध करवाती हैं। क्यों है न यह माँ वाली बात। अब जब मार्केट ही माओं की होगी तो ऐसा नज़ारा तो देखने को मिलेगा ही।
और थोड़ी दूर जाने पर दूसरी मार्केट है जहाँ हाथ के बने कपड़े बिकते हैं।
पारंपरिक मणिपुरी वेशभूषा और माथे पर चंदन का लंबा तिलक लगाए यह माएँ एक लंबी मुस्कान से साथ आपका स्वागत करती हैं। यहाँ से आप मणिपुर का पारंपरिक परिधान खरीद सकते हैं और वहीं पर सिलाई मशीन के साथ बैठी महिलाओं से सिलवा भी सकते हैं।
इंफाल की सबसे अच्छी बात यह है कि यहाँ सब कुछ आस पास ही है। हरे भरे पहाड़ों से घिरा अंडाकार कटोरे जैसा शहर इंफाल एक साफ सुथरा शहर है। यहीं ईमा मार्केट से थोड़ा-सा आगे है शहीद मीनार।
शहीद मीनार
बीर टिकेंद्राजीत पार्क के बीचों बीच बनी यह शहीद मीनार अपनी मात्रभूमि के लिए अँग्रेज़ों के खिलाफ सन् 1891 मे अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर आदिवासियों योद्धाओं की याद मे बनाई गई है। मणिपुर मे पाए जाने वाले 34 प्रकार के आदिवासी जनजातियों का अपनी मात्रभूमि से विशेष लगाव रहा है। यो कहें कि इन आदिवासी जनजातियों का प्रकृति के साथ रिश्ता अटूट है जिसकी झलक हमें इनके पूरे जीवन मे देखने को मिलती है।
पोलो ग्राउंड
यहीं ईमा मार्केट के पीछे दुनिया का सबसे पुराना पोलो ग्राउंड बना हुआ है जिसका नाम है मापाल कंगजेबुंग।
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया मे शान से खेला जाने वाला पोलो गेम असल मे भारतीयों की दैन है जिसका उद्भव यहाँ मणिपुर मे हुआ है। अड्वेंचर स्पोर्ट्स के लिए दीवानगी यहाँ के लोगों के खून मे है जिसका प्रमांड यहां वर्षों से खेला जाने वाला गेम पोलो मे नज़र आता है। यहाँ के अधिकतर लोग किसी न किसी आदिवासी जनजाति से ताल्लुक़ रखते हैं इसलिए उनके हाव भाव और खेलने के तरीके थोड़े वाइल्ड हैं। इसीलिए यहाँ पर खेला जाने वाला पोलो का खेल शुरूवात मे बहुत आक्रामक होता था। जिसमे जीत के लिए सब कुछ जायज़ था। कोई नियम कोई क़ानून नही होता था। खिलाडियों को किसी भी तरीके से बस जीतना होता था। बाद मे अँग्रेज़ों ने इस खेल को खेलने के नियम बनाए और समय के साथ यह खेल परिष्कृत हुआ। आज पूरे विश्व मे यह खेल अपनी पूरी नज़ाकत और नफ़ासत के साथ कुलिन लोगों की पहली पसंद माना जाता है।
मणिपुर मे पारंपरिक पोलो के खेल को अंतरराष्ट्रिय स्तर पर खिलाने के लिए सन् 1977 मे मणिपुर हॉर्स राइडिंग एंड पोलो असोसियेशन का गठन किया गया और इस संगठन के निरंतर प्रयास के बाद आज मणिपुर मंगोलिया, थाइलैंड, फ्रॅन्स, पोलैंड, साउथ आफ्रिका, अमेरिका और इंग्लैंड आदि देशों से आई पोलो टीमों का का गर्मजोशी से हर साल मेज़बानी करता है।
मणिपुर मे इस खेल को हर वर्ष आंतररष्ट्रिय लेवल पर खिलाने के लिए संघाई फेस्टिवल के समय 10 दिनो के लिए टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है। जिसमें पूरी दुनिया से टीमें आती हैं। इस खेल की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं की यहाँ अकेले मणिपुर मे ही लगभग 35 पोलो क्लब हैं।
मणिपुर स्टेट म्यूज़ियम
यहीं पोलो ग्राउंड के साथ ही एक और महत्वपूर्ण जगह है मणिपुर स्टेट म्यूज़ियम। मणिपुर की ऐतिहासिक- सांस्कृतिक विरासत के नज़दीक से दर्शन करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण जगह है। इस संग्रहालय मे मणिपुर के राज परिवार के जीवन की झलक और यहाँ के आदिवासी जीवन की झलक एक ही छत के नीचे देखने को मिल जाती है। इस संग्रहालय का मुख्य आकर्षण है 78 फीट लंबी शाही बोट। छोटा-सा दिखने वाला यह संग्रहालय अपने मे समेटे हुए है 34 आदिवासी जनजातियों व समूहों के जीवन से जुड़ी कुछ नायाब वस्तुओं को। यह संग्रहालय पूरे वर्ष कई कार्यक्रम आयोजित करता है। यह संग्रहालय सुबा 10 बजे से शाम चार बजे तक ही खुलता है।
कांगला पैलेस
इंफाल सिटी के बीचों बीच एक नहर के दायरे के भीतर बना कांगला फ़ोर्ट बरबस ही आपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेता है। यह फ़ोर्ट सदियों से मणिपुर की राजनीति का केंद्र रहा है। इसका शाही दरवाज़ा चाइनीज़ वास्तुकला से प्रभावित है। इस फ़ोर्ट के भीतर एक म्यूज़ियम भी है जिसका नाम कांगला म्यूज़ियम है। इस पैलेस पर यहाँ के 7 राजाओं ने राज किया है। आज इस पैलेस का कुछ भाग खंडहर मे तब्दील हो चुका है। जहाँ इस पैलेस ने मणिपुर के राजशाही पाखांगबा का स्वर्णिम वैभव देखा वहीं सन् 1891 मे आंग्लो-मणिपुर वॉर का अंधकारमय समय भी देखा। जब मणिपुर को तीन दिशाओं से घेर लिया गया था। उस समय मे इंफाल की राष्ट्रिय धरोहर की बड़ी क्षति हुई। पैलेस के प्रांगण मे बने दो सफेद कांगला-शा के विशाल स्टैचू भी तोड़ दिए गए। जिन्हें बाद मे सन् 2007 मे पुनः जीर्णोधर करके स्थापित किया गया। कांगला-शा का मितिस समाज मे बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता था कि जब भी महाराजा को कोई बड़ी चिंता आ घेरती थी तब इन राष्ट्रिय प्रतीकों की उपासना की जाती थी। यह मीतीस के राष्ट्रीय प्रतीक थे।
लॉर्ड सानमही टेंपल
यहीं कांगला पैलेस के प्रांगण मे कांगला-शा के नज़दीक ही एक बहुत सुंदर मंदिर भी है जिसका नाम लॉर्ड सानमही टेंपल है। जिसका निर्माण प्रमिड वास्तुकला से मिलता जुलता है। मातेई समाज की आराधना पद्धति मे प्रकृति का बड़ा महत्व है। यह लोग प्रकृति की हर चीज़ की पूजा करते हैं। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। नदी पहाड़, सूरज, चंद्रमा, जंगल, जीव जन्तु, साँप आदि इनके लिए पूजनीय हैं।
सेंट जोसेफ कैथलिक चर्च
जहाँ इंफाल सिटी मे सभी दार्शनिक स्थल एक दूसरे से लगे हुए हैं वहीं सेंट जोसेफ कैथलिक चर्च इंफाल सिटी के बाहर पड़ता है। शहर की भीड़ भाड़ से दूर यह चर्च पहाड़ों से घिरा हुआ है। यह चर्च इंफाल सिटी से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर मन्त्रिपुखरी मे एक छोटी सी बस्ती के बीच स्थित है।
आप जैसे जैसे इस चर्च की तरफ बढ़ेंगे आपको आभास ही नही होगा कि जल्दी ही आपको बहुत खूबसूरत चर्च के दर्शन होने वाले हैं। चर्च के प्रांगण मे प्रभु ईसा मसीह की सफेद स्टैचू आसमान की ओर बाहें फैलाए इस धरती के लोगों के लिए दुआ करने की मुद्रा मे खड़ी है। नीली ढलानदार टीन की छतों के साथ गुलाबी रंग की यह इमारत देखने मे बहुत सुंदर लगती है। आप इसे मणिपुरी स्थापत्य कला के नमूने के रूप मे हमेशा याद रखेंगे।
मणिपुर ज़ूलॉजिकल गार्डेन
यूँ तो प्रकृति मां ने मणिपुर को क़ुदरत के अनमोल तोहफ़ों से हाथ भर भर कर नवाज़ा है। लेकिन एक यात्रा मे इन सब को देख पाना समय की कमी के कारण कभी कभी अधूरा रह जाता है। आप चाह कर भी ज़्यादा समय नही निकाल पाते ऐसे मे मणिपुर मे पाए जाने वाले दुर्लभ जीवों को देखने आप मणिपुर ज़ूलॉजिकल गार्डेन जा सकते हैं। मणिपुर ज़ूलॉजिकल गार्डेन इंफाल सिटी से मात्र 7 किलोमीटर दूर इंफाल-कांचुप रोड पर पड़ता है। सन् 1976 मे इस ज़ूलॉजिकल गार्डेन की स्थापना हुई थी। यह ज़ूलॉजिकल गार्डेन 8 हेक्टेयर भूमि मे फैला हुआ है। इस मे 55 प्रकार की पक्षियों और जंतुओं की प्रजातिया पाई जाती हैं। इस ज़ूलॉजिकल गार्डेन मे 14 प्रकार के लुप्तप्राय जीवों का संरक्षण भी किया जाता है। इस ज़ू का एक हिस्सा यहाँ के राष्ट्रिय पशु संघाई हिरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित है। ज्ञात हो कि संघाई हिरण पूरे विश्व मे सिर्फ़ मणिपुर मे ही पाया जाता है। मणिपुर ज़ूलॉजिकल गार्डेन सोमवार को छोड़ कर पूरे साप्ताह खुला रहता है। मणिपुर ज़ूलॉजिकल गार्डेन की देखभाल की ज़िम्मेदारी मणिपुर वन विभाग के ज़िम्मे है।
फ्लॉरा और फॉना
मणिपुर को देश की ऑर्किड बास्केट भी कहा जाता है। यहाँ ऑर्किड पुष्प की 500 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
अनोखा पुष्प सिरूई लिली
समुद्र ताल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित सिरूई हिल्स मे एक खास प्रकार का पुष्प सिरूई लिली पाया जाता है। कहते हैं लिली का यह फूल पूरी दुनिया मे सिर्फ़ मणिपुर मे ही पैदा होता है। इस अनोखे और दुर्लभ पुष्प की खोज एक अँग्रेज़ जिसका नाम फ्रैंक किंग्डम वॉर्ड ने सन् 1946 मे की थी।
यह खास लिली केवल मानसून के महीने मे पैदा होता है। इस अनोखे लिली की ख़ासियत यह है कि इसे माइक्रोस्कोप से देखने पर इसमे सात रंग दिखाई देते हैं।
फ्रैंक किंग्डम वॉर्ड द्वारा खोजे गए इस अनोखे लिली को सन् 1948 मे लन्दन स्थित रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी ने मेरिट प्राइज़ से भी नवाज़ा था।
आज हर वर्ष उखरूल जिले मे सिरोही लिली फेस्टिवल का आयोजन बड़ी ही धूम धाम से होता है जिसे देखने दूर दूरदराज़ से लोग मणिपुर आते हैं।
अनेक फेस्टिवल
अगर कहा जाए कि मणिपुर मे लगभग हर महीने एक उत्सव मनाया जाता है तो यह अतिशयोक्ति नही होगा। मणिपुर 34 आदिवासी जनजातियों का घर है और उनके जीवन का अभिन्न अंग है यहाँ पर मनाए जाने वाले उत्सव। फिर वो फागुन के महीने मे मनाया जाने वाला याओशंग होली फेस्टिवल हो या फिर कुकी-चीन-मीज़ो
आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला कूट-फेस्टिवल।
यहाँ दिसंबर-जनवरी मे क़ूबाई नागा आदिवासी समाज द्वारा गांग-नगाई-फेस्टिवल मनाया जाता है जिसमे नागा समाज के जीवन से रूबरू होने का मौक़ा मिलता है।
चैराओबा- मणिपुर न्यू एअर
मणिपुरी लोग बड़े ही अनोखे ढंग से अपने नए वर्ष की शुरूवात करते हैं। यह लोग सात्विक भोजन बना कर अपने आराध्या देव को अर्पित करते हैं साथ ही नज़दीकी पहाड़ की चोटी पर चढ़ते हैं। ऐसी मान्यता है कि जितनी ऊंचाई तक यह युवा पहाड़ पर चढ़ पाएँगे उतनी ही ऊंचाई यह अपने संसारिक जीवन मे हाँसिल कर पाएँगे।
निंगोल चक-कोबा
मैतेई संप्रदाय द्वारा मनाया जाने वाला निंगोल चक-कोबा फेस्टिवल मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित होता है। इस अवसर पर विवाहित बेटियाँ और बहने अपने बच्चों के साथ परिवार मे आती हैं जिनका पूरा परिवार खूब आदर सत्कार करता है। एक बड़ा भोज का आयोजन किया जाता है। बदले मे यह बेटियाँ अपने पिता के परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। यह फेस्टिवल मणिपुरी कलैंडर के अनुसार नवंबर माह मे मनाया जाता है।
संघाई फेस्टिवल
संघाई फेस्टिवल इंफाल मे मनाया जाता है। यह फेस्टिवल मणिपुर के राष्ट्रीय पशु -संघाई हिरन को समर्पित है। जिसमे मणिपुर के सभी 34 आदिवासी जनजातियों के जीवन की झलक देखने को मिलती है। फेस्टिवल ग्राउंड मे एक ओर मणिपुर के आदिवासी जीवन को दर्शाती आदिवासी लोगों के घरों की प्रतिकृति बनाई जाती है जहाँ मणिपुरी महिलाएँ हथकरघे पर कपड़ा बुनती हुई दिखाई देती हैं। वहीं एक मंच पर हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिसके यहां के सभी आदिवासी समूह अपने लोक नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
बोट रेस
संघाई फेस्टिवल का मुख्य आकर्षण का केंद्र है यहाँ पर होने वाली बोट रेस। कांगला पैलेस के आउटर भाग मे बनी नहर मे इस रेस का आयोजन किया जाता है। मणिपुरी महिलाएँ अपनी पारंपरिक वेशभूषा मे सजी अपने राजा के लिए उपहारों को एक टोकरी मे रख कर एक जुलूस के साथ कांगला पैलेस के मुख्य दरवाज़े के पास इकहट्टा होती हैं। राजा को भेंट देकर पुरुष और महिलाओं के बीच रेस का आयोजन किया जाता है। यह नज़ारा देखने लायक़ होता है।
मणिपुरी संगीत और नृत्य कला
जब बात निकली है मणिपुर के उत्सावों की तो यहाँ के संगीत और नृत्य की बात ना हो ऐसा तो हो ही नही सकता। मणिपुर प्रसिद्ध है अपने खास मणिपुरी नृत्य के लिए जिसमे कई प्रकार पाए जाते हैं। रास लीला भारतीय शास्त्रीय नृत्यों कलाओं मे से एक नृत्य है जिसे हम डान्स ड्रामा भी कह सकते हैं। यह भगवान कृष्णा और राधा के प्रेम पर आधारित नृत्य नाटिका होती है। इस नृत्य नाटिका मे लाईव गायन की व्यवस्था होती है। इनके कॉस्ट्यूम देखने वाले होते हैं।
खानपान
मणिपुर मे खाने पीने की बहुत सारी वैरायटी देखने को मिलती है। यहाँ के लोग मछली बहुत शौक़ से खाते हैं। और क्यूंकि यहाँ पर बहुत सारे आदिवासी समुदाय रहते हैं इसलिए यहाँ के भोजन मे तरह तरह की जंगली वनस्पतियों का समावेश देखने को मिलता है।
यहाँ के हिंदु संप्रदाय जोकि मुख्य रूप से शाकाहारी भोजन करते हैं, में एक खास क़िस्म की वेजिटेरियन थाली बड़ी मशहूर है। कहते हैं इस थाली मे 101 प्रकार के भोजन परोसे जाते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, परिवार मे होने वाले मांगलिक अवसरों पर इस थाली को तैयार किया जाता है। इस थाली का नाम है-उषॉप। मुख्य रूप से यह मंदिरों मे विशेष अवसरों पर भगवान को भोग लगाने के लिए तैयार की जाती है।
यहाँ के निवासी राजेंद्र सिंह जी कहते हैं कि-इसकी ख़ासियत यह है कि इसे बनाना मे पूर्ण सात्विकता का विशेष महत्व है। इसी लिए इसे सर्व भी केले के पत्तों से बनी कटोरियों मे ही किया जाता है।
इस खास थाली की जड़ें कहीं सत्रहवीं शताब्दी मे महाराजा गंभीर सिंह जी के समय मे मिलती हैं जब मणिपुर मे वैष्णव संप्रदाय का प्रचार प्रसार शुरू ही हुआ था। उस समय एक बंगाली वैष्णव साधु शांतीदास गोसाई ने महाराजा को वैष्णव संप्रदाय के बारे मे बताया और उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर महाराजा ने वैष्णव धर्म का पालन शुरू किया और इस प्रकार मणिपुर मे मंदिरों की स्थापना हुआ और उन मंदिरों मे इस प्रकार के भोजन को तैयार किया जाने लगा। इस थाली पर शाकाहारी बंगाली खाने की छाप बखूबी नज़र आती है।
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने-कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से किसी और दास्तान के साथ हम फिर रूबरू होंगे। तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त