हर ट्रैवेलर का सपना- लेह लद्दाख तक रोड यात्रा
वैसे तो लद्दाख जाना किसी भी मौसम मे सुहावना है लेकिन मानसून की बात ही कुछ और है। रेगिस्तान होने के बावजूद लद्दाख बरसात के प्रभाव से अछूता नहीं रह पाता। चारों तरफ हरयाली नज़र आने लगती है। जिसे देख कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता की सर्दियों में यहाँ एक पत्ता भी नहीं दिखाई देता होगा। लद्दाख हर मौसम मे अलग नज़र आता है। अगर आप सर्दियों मे जाएँगे तो सफेद चादर से ढके लद्दाख मे जगह जगह बनी यह लाल और चटख रंगों वाली मोनेस्ट्रियाँ किसी तपती आग की तरह गर्माहट के साथ आपका स्वागत करेंगी। वही बरसात में लद्दाख हरी मखमली दुशाले में लिपटा नज़र आएगा।
साल का सबसे सुहावना मौसम
वहीं गर्मियाँ आते ही लद्दाख तक जाने का सड़क मार्ग भी खुल जाता है ऐसे मे लद्दाख जाना और भी सुहाना होता है। जितना खूबसूरत लद्दाख उसे भी खूबसूरत वहाँ तक पहुँचने का सफ़र। यह एक ऐसा सुहाना सफ़र है जिसे हर ट्रैवलर रोड ट्रिप के रूप में ज़िन्दगी में एक बार ज़रूर करना चाहता है। मानसून आते ही यह रास्ता बहुत दिल्फ़रेब हो जाता है। लगता है जैसे प्रकृति ने सब कुछ झाड़ पौंछ कर रख दिया हो। क़ुदरत के बेहेतरीन नज़ारे जैसे बाहें पसारे इंतिज़ार करते हों। दिल्ली से लद्दाख की रोड ट्रिप किसी के लिए भी सपने जैसी होगी। दिल्ली से कश्मीर और कश्मीर से सोनमर्ग की खूबसूरत वादियों को क्रॉस करके जोज़िला पास से गुज़रते हुए ड्रास और कारगिल को पीछे छोड़ते जब लेह पहुँचते हैं तो लगता है कि जैसे कोई कारनामा फ़तेह कर लिया हो।
लेह सिटी में बहुत कुछ है देखने के लिए।
लेह शहर को सबसे ऊंचाई वाले रेगिस्तानी शहर के रूप में जाना जाता है। आप ऐसा भी कह सकते हैं की अगर लद्दाख दुनिया की छत है तो लेह लद्दाख दिल। एक कटोरे के आकर का छोटा लेकिन अपने में परिपूर्ण शहर लेह। कटोरा इसलिए कि लेह चारों ओर से पहाड़ों की चोटियों से घिरा हुआ है। और बिच में वैली में बसा लेह किसी कटोरे सा जान पड़ता है। यहाँ देखने के लिए बहुत कुछ है। जैसे शांति स्तूप, लेह पैलेस, ओल्ड टाउन बाजार, थिकसे मोनेस्ट्री आदि।
शांति स्तूप
लेह शहर का नाम आते ही ज़हन में आता है वो सफ़ेद गुम्बद जोकि नील आकाश तले सिलेटी और भूरे रंगों के पहाड़ों से घिरा है। यही है शांति स्तूप। जिसका निर्माण 1991 में पीस पैगोडा मिशन के तहत एक जैपनीज़ बौद्ध भिक्षु गोमयो नाकामूरा द्वारा करवाया गया था। आज देश दुनिया से लोग इस खूबसूरत पैगोडा को देखने आते हैं। यह लेह सिटी से पांच किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ की चोटी पर बना है। जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से 11,841 फीट है। यहाँ से लेह शहर का नज़ारा अद्भुत है। यह स्तूप जितना खूबसूरत दिन के समय लगता है उससे कहीं ज़्यादा हसीन रात में लगता है। नीले और चमकीले साफ़ आकाश तले रंगबिरंगी रोशनियों में सजा स्तूप बहुत खूबसूरत नज़र आता है।
लेह पैलेस
तिब्बत के लहासा में बने पोटाला पैलेस की तर्ज़ पर बना यह खूबसूरत पैलेस 17 वीं शताब्दी में लद्दाख के राजघराने के राजा सेंगी नामग्याल ने बनवाया था। नौ मंज़िला ऊँचा यह पैलेस आज भी गवाह है लद्दाखी राज घराने की शान और शौकत का। यहाँ पर एक विशाल संग्रहालय है जिसमें लद्दाख डायनेस्टी की कुछ दुर्लभ वस्तुओं को संजो कर रखा गया है। 19 वीं शताब्दी से पहले नामगायल राज परिवार यहीं रहता था। 19वीं शताब्दी में डोगरा सेना के लद्दाख घुसपैंठ के चलते राज परिवार को स्टॉक विलेज में बने स्टॉक पैलेस में स्थानांतरित होना पड़ा। आज यह पैलेस लोगों के लिए खुला हुआ है। यहाँ आकर लदाख की समृद्ध संस्कृति से रूबरू होने का मौक़ा मिलता है।
थिकसे मोनेस्ट्री
लेह सिटी से 17 किलोमीटर दूर थिकसे मोनेस्ट्री एक शानदार मोनेस्ट्री है। जिसमें महात्मा बुद्ध की मैत्रेयी भाव की विशाल मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति की ऊंचाई 49 फिट है। यह अपने आप में पूरे क्षेत्र में बनी बुद्ध की सबसे ऊँची मूर्ति है। थिकसे मोनेस्ट्री अपने आप में एक बड़ा कॉम्प्लेक्स है जहाँ बौद्ध संप्रदाय से जुड़ी अनेक चीज़ें देखी जा सकती हैं। यह मोनेस्ट्री 12 मंज़िला ईमारत में फैली हुई है जोकि दूर से ही नज़र आ जाती है।
स्टॉक पैलेस
लद्दाक के राज परिवार नामग्याल डायनेस्टी का वर्तमान निवास है स्टॉक पैलेस। सन 1820 में बना यह खूबसूरत पैलेस लद्दाखी और बौद्ध वास्तुकला का एक खूबसूरत उदाहरण है। यहाँ की हर चीज़ को एक धरोहर के रूप में सहेज कर रखा गया है। स्टॉक पैलेस आम लोगों के लिए सन 1980 में श्री दलाई लामा द्वारा खोला गया। 12000 फीट की ऊंचाई पर शान से खड़ा स्टॉक पैलेस आज भी नामग्याल डायनेस्टी के गौरवपूर्ण अतीत को संभाले हुए है। इस पैलेस के एक तरफ ज़ांस्कर रेंज तो दूसरी तरफ महान नदी सिंधु (इंडस) बहती है। स्टॉक पैलेस में आज भी राज परिवार रहता है और लद्दाख की संस्कृति और राज घराने की परम्पराओं से लोगों को रूबरू करवाने के लिए यहाँ के राजा श्री जिग्मेद वांगचुक नामग्याल ने पैलेस के एक छोटे भाग को होटल में कन्वर्ट कर दिया है। आप यहाँ आकर कुछ दिन राज परिवार के साथ बिता सकते हैं।
मोनेस्ट्री मे फेस्टिवल की धूम
मानसून का सीज़न आते ही यहाँ की मोनेस्ट्रियों मे फेस्टिवल देखने को मिलते हैं। जुलाई माह में लद्दाख में अलग अलग मोनेस्ट्री में तीन बड़े बौद्ध फेस्टिवल होते हैं। जिसमें लद्दाख की बौद्ध संस्कृति की एक झलक देखने को मिलती है। ज़ांस्कर रीजन में बनी स्टोंगदेय मोनेस्ट्री में स्टोंगदेय फेस्टिवल मनाया जाता है। वहीँ हेमिस फेस्टिवल भी इसी माह में होता है। रंग बिरंगी पोशाकों और मुखोटों से सजे बौद्ध लामा अपना पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। ज़ांस्कर रीजन में बनी स्टोंगदेय मोनेस्ट्री में स्टोंगदेय फेस्टिवल मनाया जाता है। वहीँ हेमिस फेस्टिवल भी इसी माह में होता है।
ज़ांस्कर वैली
लद्दाख मे ज़ांस्कर नही देखा तो कुछ भी नही देखा। क़ुदरत ने इस जगह को इतनी खूबसूरती बख़्शी है की आँखों मे न समय। ज़ांस्कर वैली का नाम यहाँ की एक पर्वत श्रंखला के नाम पर पड़ा है। यह पर्वत माला लद्दाख को जम्मू -कश्मीर से जोड़ती है। इसका कुछ भाग हिमाचल के किन्नौर और स्पीति को अलग करता है। यह हिमाचल की सबसे ऊँची पर्वतशृंखला भी मानी जाती है। ज़ांस्कर वैली तहसील के अंतर्गत आती है। जहाँ ज़ांस्कर सड़क मार्ग से कारगिल से जुड़ा है वहीँ ट्रैकिंग रुट से सिंगोला पास पार करके हिमाचल से भी ज़ांस्कर पहुंचा जा सकता है। यहाँ पहुंचना आसान नहीं है लेकिन रास्ते की मुश्किलों को पार करके इस अद्भुत नज़रों को देखना आपको अहसास करवा देगा कि रास्ते की मुश्किलें कुछ भी नहीं है। इस खूबसूरत नज़ारे के लिए। आप क्षण भर में सारी थकान भूल जाएंगे। प्रकृति को इतने व्यापक रूप में देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है।
कुछ बेहद रोमांचक ट्रैक
चद्दर ट्रैक दुनिया के जाने माने रोमांचक ट्रैकों मे से एक है। जहाँ सर्दियों में जमी हुई ज़ांस्कर नदी की सफेद चादर पर क़तार मे ट्रैकिंग करना एडवेंचर प्रेमियों के लिए सपने जैसा है। वहीं गर्मी के मौसम में ज़ांस्कर नदी मे रिवर रफ्टिंग करने का रोमांच भी अद्भुत है।
हिमालय से प्रेम करने वाले ट्रैकिंग के दीवानो के लिए यह वैली स्वर्ग के समान है। यहाँ कई रोमांचक ट्रैक हैं जैसे बेबी ट्रैक, तंग्यार ट्रैक, कांजी – दारचा ट्रैक, सरचू पादुम ट्रैक, कांजी जांगला ट्रैक और लामायूरू पादुम ट्रैक आदि। इनमें से कुछ ट्रैक तो एक एक महीने के होते हैं।
पैंगोंग लेक के बिना यात्रा अधूरी है
3 इडियट से मशहूर हुई पैंगोंग लेक नही देखी तो लगता है कि लद्दाख की यात्रा कुछ अधूरी सी है। 14270 फीट की हाईट पर बनी यह अध्भुत लेक अपने नीले पानी के लिए पूरी दुनिया मे मशहुर है। पांगोंग लेक का 60 प्रतिशत भाग चाइना में है और सिर्फ 40 प्रतिशत भारत में। यह लेक पांच किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है। इस लेक का पानी बहुत खारा है फिर भी सर्दियों में यह पूरी लेक जम जाती है। पांगोंग पहुँचने के लिए लेह से लगभग पांच छ घंटे का समय लगता है। यह रास्ता बहुत खूबसूरत और रोमांच से भरा है। इस रास्ते में कई लद्दाखी गांव पड़ते हैं और साथ ही पड़ता है बर्फ से ढका चांगला पास , जिसकी ऊंचाई 17,590 फीट है। यह एक खतरनाक और जोखिम भरा पास है। ऐसा कहा जाता है कि पास के पीक पर पहुँच कर 15 से 20 मिनट से ज़्यादा नहीं ठहरना चाहिए। वहां ऑक्सीजन की कमी के कारण अक्सर लागों को साँस लेने में दुश्वारी होने लगती है।
आर्यन्स विलेज
सिकंदर महान की फौज के लोगों का गाँव यहां आज भी ज़िंदा है। कहते हैं यह लोग प्योर आर्यन है। लेकिन आपको तब तक विश्वास न होगा जब तक आप इन्हे देख न लें। यह गाँव कई मयनो मे खास है। लद्दाख जाएँ तो यहाँ ज़रूर जाएँ। आर्यन विलेज भारत पाकिस्तान बॉर्डर के नज़दीक बटालिक तक फैले हुए हैं। यह कारगिल से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित हैं। आर्यन्स के गांव सिंधु नदी के आसपास पाए जाते हैं। इनको अपने आर्यन होने का प्रमाण देने की ज़रूरत नहीं है। इन गावों के आसपास बसे अन्य लद्दाखी गांवों के लोगों से भिन्न यह लोग शकल से ही आर्यन नज़र आ जाते हैं। लम्बी तगड़ी कदकाठी, ऊँची चिकबोन, नीली नीली ऑंखें और ब्लॉन्ड बाल।
आज भले ही यह नए फैशन के कपडे पहन लेते हों लेकिन इनके उत्सवों में आप इनको अपनी पारम्परिक वेशभूषा में देख सकते हैं। प्रकृति के नज़दीक रहने के कारण इनके जीवन में प्राकृतिक वस्तुओं का बहुत महत्त्व है। यह रोज़ मर्राह में शाकाहारी भोजन करते हैं। केवल एक विशेष अवसर पर जब यह अपने इष्ट देव को बकरे की बलि अर्पित करते हैं तब यह लोग मासाहार का सेवन करते हैं। इनकी महिलाऐं बहुत खूबसूरत होती हैं। सिंधु नदी के साथ बसावट होने के कारण यह लोग रेगिस्तानी इलाक़ा होने के बावजूद खेती करते हैं। और कई सभ्यताओं की जननी ऐतिहासिक सिंधु नदी के वरदान से यह वर्ष में दो फसलें ऊगा पाते हैं।
गुरुद्वारा पत्थर साहेब
वैसे तो लेह लद्दाख कई धर्मों की साझी विरासत को सहेजे हुए है जैसे बौद्ध, मुस्लिम और हिन्दू लेकिन इसके अलावा यहाँ सिख धर्म से जुड़ा एक महत्वपुर्ण स्मारक भी मौजूद है। गुरुद्वारा पत्थर साहेब लेह से 25 किलोमीटर दूर 12000 फिट की ऊंचाई पर बना सिख समुदाय का एक महत्वपुर्ण स्थल है। कहते हैं सन 1517 में गुरु नानक देव जी अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान यहाँ आए थे।
लद्दाखी खाने की महक
जहाँ एक तरफ बौद्ध फेस्टिवल मे शरीक हो आपको यहाँ की सांस्कृतिक परंपराओं से रूबरू होने का मौक़ा मिलता है वहीं लद्दाख का पारंपरिक खाना चखने का मौक़ा मिलता है। मोमो, थुप्पा और एक खास क़िस्म की शराब जिसे यह लोग खुद तैयार करते हैं। यहाँ की मक्खन वाली चाय ज़रूर चखें। थुपका लद्दाखी खाने में विशेष रूप से खाया जाता है। सर्दी से बचने के लिए नूडल्स, सब्ज़ियां और मीट के टुकड़ों को साथ में पका कर बनाया गया थुपका यहाँ की लोकल ब्रेड जिसे खमीर कहते हैं के साथ परोसा जाता है। थुपका आपको लद्दाख में छोटी से छोटी दूकान में मिल जायगा। मोकथुक यहाँ की एक और डिश है जिसे लद्दाखी लोग बड़े चाव से खाते हैं। इस डिश में मोमोस को सूप के साथ पकाया जाता है और गर्म गर्म परोसा जाता है। छांग यहाँ की देसी शराब है जिसे लद्दाखी लोग खुद तैयार करते हैं। इससे हल्का हल्का नशा होता है। जब यह लोग खेतों में काम करने जाते हैं तो छांग भर कर ले जाते हैं जिसे पीने से इनका शरीर गर्म रहता है और लद्दाख के सख़्त मौसम से दो दो हाथ करने की ऊर्जा भी मिलती है।
लद्दाख के आधुनिक घर
ज़िन्दगी जीने की कला अगर कोई सीखे तो इन लद्दाखियों से सीखे। इसका जीता जगता उदहारण हैं इनके घर। लद्दाखी परिवारो के घर का केंद्र होता है उनकी रसोई। यही वह जगह है जहाँ पर लोग सबसे ज़्यादा समय गुज़ारते हैं। वर्ष के कुछ महीने जब लद्दाख बर्फ़ की सफ़ेद चादर तले ढंक जाता है तब यही वो स्थान है जहाँ से पूरा परिवार ऊर्जा ग्रहण करता है। लद्दाखी रसोई सदियों से आधुनिक रही है। मुझे यहाँ 600 वर्ष पुरानी रसोई देखने का मौक़ा मिला। इस रसोई में ग्रेनाइट का बना एक मॉड्यूलर कुकिंग टॉप था जिसमें चार बर्नर थे और साथ ही नीचे बेकिंग करने की व्यवस्था थी। चिमनी से जुड़ा यह कुकिंग स्टोव लकड़ियों से चलता था। मेरे लिए यह बहुत आश्चर्य की बात थी कि लद्दाखी समाज में आज से 600 वर्ष पूर्व इतनी आधुनिक व्यवस्था थी। इनके घर की दीवारें भी आधुनिक इन्सुलिन पद्धति को मात देने वाली होती हैं। बाहर से मिटटी की दिखने वाली यह भुरभुरी दीवारें लगभग दो फिट चौड़ी होती हैं जिन्हें भूसे, घांस और मिटटी की परतों से इस प्रकार तैयार किया जाता है कि जब पारा माइनस 20 या 40 भी चला जाए तब भी घर के भीतर गर्माहट बनी रहे।
शॉपिंग-ओल्ड टाउन बाजार
लद्दाख में शॉपिंग करने के लिए एक छोटा मगर सारगर्भित बाजार है जिसे ओल्ड टाउन बाजार कहते हैं। यहाँ से आप बौद्ध धर्म से जुड़े सोवेनियर की खरीददारी तो कर ही सकते हैं साथ ही ट्रैकिंग में प्रयोग होने वाले उपकरण और सामान भी ले सकते हैं। चाइना का बॉर्डर नज़दीक होने के कारण यहाँ पर चाइना के सामान अच्छे मिल जाया करते हैं। महिलाओं के लिए यह शॉपिंग करने की एक अच्छी जगह है।
देश और दुनिया के बेहतरीन नज़रों से रूबरू होने के लिए आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ।
फिर मिलेंगे किसी और यात्रा पर
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी
इतनी व्यापक और नयी जानकारी देने के लिए आपका शुक्रिया।
लद्दाख के बारे मे जानकारी से परिपूर्ण पोस्ट, मजा आया पढने मे ऐसे ही लिखती रहियेगा। धन्यवाद
बहुत सुंदर.. .. अतुलनीय, अविश्वसनीय …. रोमांचकारी. .. मुझे भी देखना है
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Whoa tons of very good tips!
Sab kuch itne ache se define kiya hai aapne, Thanks!!!
shukriya Firoz