राजा राजवाड़े और सुनहरा अतीत -खीरासारा  पैलेस, राजकोट गुजरात

मेरी कार गुजरात के हाइवे नंबर 23 पर दौड़ी जा रही थी। मैंने राजकोट शहर भी पार कर लिया था। यहाँ मैं बताना चाहूँगी कि जिस तरह राजस्थान में सड़को का बढ़िया नेटवर्क है उसी तरह गुजरात मे भी सड़कें काफ़ी अच्छी हैं। आप कितनी भी दूरी तय कर लें लेकिन थकान नही होगी। वैसे भी गुजरात राजस्थान का पड़ोसी राज्य है इसलिए इनमे कई समताएँ हैं। खाने से लेकर पहनावे तक सब कुछ मिलता जुलता-सा है। मैं इस बार निकली हूँ गुजरात के भीतर छुपे उन अनमोल ख़ज़ानों को तलाशने जो कालांतर मे बिसरा दिए गए हैं। हम जब भी राजसी वैभव और आन बान शान की बात करते हैं तो हमारे दिमाग़ मे केवल राजस्थान का ही नाम उभर कर आता है और याद आते हैं रापूताना के पैलेस, महल और विशाल किले। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि जब देश आज़ाद हुआ था तब लगभग 565 छोटे बड़े राजा रजवाड़े थे जोकि पूरे देश मे फैले हुए थे। ऐसी ही कई शानदार प्रिंसली स्टेट्स यहाँ गुजरात मे काठियावाड़ और सौराष्ट्र मे भी पाई जाती हैं जिनका एक वैभवशाली इतिहास रहा है। सौराष्ट्र का तो नाम ही सौराष्ट्र इसलिए पड़ा कि यहाँ इस क्षेत्र मे अकेले ही 100 राजा थे। आज मैं आपको ऐसी ही एक रियासत के दर्शन करवाने लिए चलती हूँ। यह रियासत है धरोल स्टेटे। और आज से चारसौ साल पहले यहाँ धरोल राजवंश का एक दुर्ग होता था। जिस दुर्ग ने कालांतेर मे कितने ही वैभावपूर्ण दिन देखे और साथ ही कई आक्रमण भी झेले। फिर भी यह दुर्ग अजय रहा। इन सब को देखते हुए पिछले कुछ साल पहले तक यह एक खंडहर बन कर रह गया।

खीरासारा  पैलेस की स्थापना यहाँ के राजा भीमाजी ने की। आज जहां यह पैलेस स्थित है करीब 450 वर्ष पूर्व यहाँ धरोल राजवंश का दुर्ग हुआ करता था। पर समय के साथ यह पैलेस भी अपना वैभव खो चुका था और एक खंडहर मे तब्दील हो गया था। लेकिन इसी राज घराने के श्री दलीप सिंग राणा ने आज से 15 साल पहले इस पैलेस को रीस्टोर करने का निश्चय किया और उनके अथक प्रयासों और 15 साल तक की गई मेहनत के बाद यह दुर्ग वापस अपने गौरव को प्राप्त हुआ। आज यहाँ आकर कोई कह नही सकता कि आज से 15 साल पहले यहाँ टूटी फूटी दीवारें हुआ करती थीं।

पहाड़ की चोटी पर बना यह पैलेस आठ एकड़ मे फैला हुआ है, जोकि दूर से ही नज़र आता है। मेरी गाड़ी ने हाइवे से दाईं ओर टर्न लेकर लगभग हज़ार मीटर का फासला तय कर पहाड़ की चढ़ाई तय कर पैलेस के मुख्य द्धार – विक्रम द्धार पर रुकती है। जहाँ रॉयल तोपें लगी हुई थीं। इस विशाल द्धार पर नगाड़े और गाजे बाजों के साथ मेरा स्वागत किया गया। विक्रम द्धार के ऊपर से हम पर फूलों की वर्षा की गई और राजसी परंपरा के अनुसार राज पुरोहित ने चंदन का टीका लगा कर हमारा स्वागत किया।

स्वागत के बाद मैं कुंज मंडप मे पहुँचती हूँ जहाँ सामने ही विघ्नविनाशक भगवान गणेश की ताम्र मूर्ति शंख पर विराजमान है, मेरे बाईं ओर बड़ा सा लॉन है और उस को पार कर रॉयल सूट बने हुए हैं। मैं पैलेस मे जैसे जैसे आगे बढ़ रही हूँ लग रहा है जैसे 450 साल पहले के समय मे आ गई हूँ। यहाँ इंद्रपरस्थ परिसर है, वैशाली बाग़ और उर्वशी बाग़ हैं और इनको पार करके खोडियार  मां का मंदिर है।

खोडियार  मां धरोल राजवंश की कुलदेवी हैं और ऐसी मान्यता है कि खोडियार  मां की असीम कृपा रही है इस पैलेस पर। वहीं पास मे भोलेनाथ का मंदिर भी है। यहाँ से आगे जाकर ऊपर शीश महल है जोकि फाइन डाइन रेस्टोरेंट है। क्यूंकि इस पैलेस के संचालन की बागडोर स्वंम राज घराने ने ले रखी है इसलिए यहाँ काठियावाड़ी भोजन के नायाब स्वाद आज भी बरक़रार हैं। जैसे कि कभी 450 वर्ष पूर्व रहे होंगे।

इसी शीश महल के ऊपर एक बाराहदरी जैसी जगह है जोकि एक कॉफी शॉप है जिसका नाम विंडस एन्ड वेवस है। यहाँ से ढ़लते सूरज को देखते हुए एक शाम गुज़ारना मेरे लिए ज़िंदगीभर की याद बन गया है।

अर्रे मैं पैलेस देखने मे ऐसी डूबी कि अपना रॉयल सूट तो देखना ही भूल गई। मैंने सूर निवास मे जाकर अपना कमरा देखा। यह किसी महारानी के कमरे जैसा था। झालारदार बेड देख कर मेरी थकान लौट आई और मैं लेटता ही सो गई। कब मेरी आँख लगी पता ही नही चला। ज़्यादा स्वाद भोजन ख़ाने के बाद ऐसा ही होता है शायद। और फिर अगर वो शाही दावत हो तो कहने ही क्या।

रात घिर आई थी मैंने अपने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो खिरसेरा फ़ोर्ट पीली रोशनियों मे नहा चुका था उसपर आसमान का नीला दुशाला बड़ा ही आर्टिस्टिक लुक दे रहा था।

मैं यह सब सोच ही रही थी कि परवाना आ गया। रात का डिन्नर मेरा इंतिज़ार कर रहा है। मुझे जल्दी जल्दी तैयार होकर भागना होगा। मैं तैयार होकर दीप महल का रुख़ करती हूँ। वाक़ई इस जगह का नाम दीप महल के अलावा और कुछ हो भी नही सकता था अनगिनत जगमगाती रोशनियों के बीच हमारे लिए ख़ास कैंडल लाइट डिनर का अहतमाम किया गया था। इतनी खूबसूरत शाम कि शब्दों मे ब्यान नही की जा सकती शायद राजा महाराजाओं का टाइम वापस आ गया था।

मैं हमेशा से सोचती थी कि काश हम राजा रजवाड़ों के समय मे पैदा हुए होते तो उनके राजसी जीवन की झलक तो देख पाते और देखिये यहाँ आकर मेरी यह तमन्ना भी पूरी हो गई। मेरे दो दिन के प्रवास मे मैंने सही मायनों मे राजसी आन बान और शान को जिया है।

वैसे तो खीरासारा  पैलेस की आसपास बहुत कुछ देखने को है लेकिन मेरा दावा है कि एक बार यहाँ आजाने पर आपका कहीं और जाने का मन नही करेगा।

आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने-कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से किसी और दास्तान के साथ हम फिर रूबरू होंगे।

तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा ० कायनात क़ाज़ी

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