वैसे तो दोस्तों जयपुर इतनी सुन्दर जगह है कि किसी भी माह में जाया जा सकता है। लेकिन बरसात के माह है कुछ ख़ास। इस गुलाबी शहर का तिलिस्म हम भारतीयों के अलावा विदेशियों पर भी ख़ूब असर दिखाता है और वह दूर दराज़ से रॉयल राजस्थान की इस गुलाबी नगरी को देखने खिंचे चले आते हैं।
यहाँ मई जून और जुलाई में भयंकर गर्मी पड़ती है और इस समय रंगों से सजे इस शहर के उल्लास में थोड़ी कमी आ जाती है। लेकिन जैसे ही सावन शुरू होता है तो पूरा शहर बारिश की फुहार से सराबोर हो जाता है और फिर आता है त्यौहार तीज का।
तीज क्यों है ख़ास?
पूरे उत्तर भारत में मनाया जाए वाला यह पर्व पौराणिक महत्त्व रखता है। इसे “श्रावणी तीज”, “हरियाली तीज” तथा “कजली तीज” भी कहते हैं। जिस दिन तीज मनाई जाती है वह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया होनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देवी पार्वती ने सौ वर्षों की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पाया था, इसीलिए विवाहित महिलाऐं इस पर्व को विशेष स्नेह से मानती हैं।
तीज सही मायनों में महिलाओं का त्यौहार है, सावन के झूलों का त्यौहार, सुन्दर सूंदर कलाइयों में मेहँदी रचाने का त्यौहार है। सावन के गीतों और कजरी का त्यौहार।
जयपुर में तीज का पर्व बड़े जोश के साथ मनाया जाता है। पूरा नगर तीज माता की अगवाई में सजाया जाता है।
जयपुर में तीज के पर्व को मानसून के स्वागत के रूप में भी मनाया जाता है। तीज के लिए महिलाऐं विशेष रूप से तैयारी करती हैं। जयपुर में महिलाऐं गुलाबी रंग की लहरिया साड़ी पहनती हैं और गोटे पट्टे से सजी परंपरागत राजस्थानी ओढनी पहनती हैं।
जयपुर के बाज़ारों में साड़ियों-चूडियों, श्रंगार की वस्तुओं, और हलवाई की दुकानें सज जाती हैं। इस पर्व पर एक विशेष प्रकार की मिठाई बनती है जिसे घेवर कहते हैं। घेवर जयपुर की खास मिठाई है। तीज और गणगौर के अवसर पर ही यह मिठाई बाजारों में देखने को मिलती है। जहाँ आम लोग मेहँदी लगाकर और सावन के गीत गाकर यह पर्व मनाते हैं वहीँ जयपुर का राजपरिवार तीज माता की भव्य सवारी निकाल कर यह पर्व परंपरागत रूप से मनाता है जिसे देखने पूरा शहर उमड़ पड़ता है।
सिटी पैलेस स्थित चंद्रमहल में तीज माता की सवारी को सजाया जाता है। इसी दिन तीज माता की चांदी से बनी मूर्ति और सवारी को राज महल से बाहर निकाला जाता है। आप अगर इस तैयारी को देखना चाहते हैं दोपहर में सिटी पैलेस पहुँच जाएं। हर साल राज पुरोहित द्वारा तीज माता की सवारी के निकलने का मुहूर्त निकाला जाता है और उसी समय पर तीज माता का जुलूस निकाला जाता है जिसकी अगुवाई राज घराने के घ्वज के निशान का हाथी करता है।
इस हाथी को विशेष रूप से सजाया जाता है। उसके पीछे सुसज्जित हाथी, बैलगाड़ियाँ व रथ इस जुलूस को अत्यन्त ही मनोहारी बना देते हैं। राजस्थान के दूर दराज़ के इलाक़ो से आए लोक नृतक अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। करतबसाज करतब दिखाते हैं, लोकनर्तक राजस्थानी की संस्कृति को नृत्य में प्रस्तुत करते हुए चलते हैं। यह जुलुस त्रिपोलिया गेट से निकल त्रिपोलिया बाजार और चौड़ारास्ता से होता हुआ स्टेडियम पहुँचता है। तीज माता की शाही सवारी देखते बनती है।
ट्रेवल टिप्स:
- तीज माता सवारी की तैयारी को देखने थोड़ा पहले सिटी पैलेस जाएं।
- त्रिपोलिया गेट के अहाते में लोक नृतक, करतबसाज और हाथियों को सजाने वाले जुलूस के लिए तैयार हो रहे होते हैं। एक चक्कर लगा कर उनकी हलचल भी देखी जा सकती है।
फोटोग्राफी टिप्स:
- त्रिपोलिया गेट के ठीक सामने सड़क के बीचों बीच ट्रैफिक पुलिस के स्टैंड पर अपनी जगह पकड़ ले। यहीं से अच्छे शॉट्स मिलते हैं।
- भीड़ के बीच जाने से बचें।
- तीज माता की सवारी बड़ी जल्दी जल्दी निकलती है इसलिए पहले से शॉट्स प्लान करें।
- त्रिपोलिया बाजार की छतों पर भी आसानी से जाया जा सकता है वहां से जुलूस का वाइड ऐंगल शॉट अच्छा मिलता है।
- और हाँ लैंस बदलने के चक्कर में न पढ़ें वरना एक्शन मिस करजाएंगे।
- 24-105 ज़ूम लेंस अच्छी रेंज दे देगा।
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने-कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से किसी और दास्तान के साथ हम फिर रूबरू होंगे। तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी