एक रंग होली का ऐसा भी-होला मुहल्ला,आनंदपुर साहिब-पंजाब
पंजाब डायरी-पहला दिन
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Gurudwara @ Holla Muhalla, Punjab |
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On the way to Anandpur Sahib-Home on the wheels @ Holla Muhalla, Punjab |
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Home on the wheels @ Holla Muhalla, Punjab |
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Home on the wheels @ Holla Muhalla, Punjab |
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Home on the wheels @ Holla Muhalla, Punjab |
और इतने लोग तीन-चार दिनों तक खाते कहाँ होंगे? मैंने जिज्ञासावश पूछा।
अरे मैडम जी, आनंदपुर में खाने की क्या कमी? यहाँ तो दिन रात लंगर चलते हैं। लोग बुला–बुला कर खाना खिलाते हैं। ड्राइवर की बात सुन कर मैं हैरान रह गई। आज जहाँ हमारे देश (इण्डिया में) एक घूंट पानी तक फ्री नहीं मिलता वहां तीस लाख लोगों के लिए खाने का इन्तिज़ाम करना किसी बड़े शाहकार से कम नहीं। यह है पंजाब, खालसाओं का पंजाब। मिनरल वॉटर वाला इण्डिया नहीं लंगरों वाला भारत। खैर लंगर से जुड़ी बहुत रोचक जानकारियां मैं आपको अगली पोस्ट में दूंगी, और लंगर की बड़ी रसोई भी दिखवाऊंगी पर अभी तो आनंदपुर पहुँचने की जल्दी है। लेकिन उससे पहले इस पवित्र स्थान के बारे में थोड़ा जान लें।
आनंदपुर साहिब का इतिहास
आनंदपुर साहिब सिखों के पवित्र स्थानों में दूसरे नंबर पर आता है। पहला अमृतसर और दूसरा आनंदपुर साहिब। इस स्थान के साथ कई ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हैं। कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर सिंह को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपने जीवन के 25 साल यहीं बिताए। यहाँ रह कर उन्हें आनंद की अनुभूति हुई थी इसलिए इस जगह का नाम आनंदपुर साहिब पड़ा। हिमालय के नज़दीक होने के कारण यहाँ वर्ष भर मौसम सुहावना बना रहता है। सन् 1664 में श्री गुरू तेग बहादुर ने माक्होवाल के खंडहर हो चुके स्थान पर आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा भी बनवाया था. दूसरी महत्वपूर्ण घटना दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह से जुड़ी है। गुरू गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना सन 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में ही की थी। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पांच प्यारों को अमृतपान कराया और खालसा बनाया फिर उन पांच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। पंज प्यारे यानी पांच प्यारे इनके चुनाव की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। वह पंज प्यारे थे-भाई साहिब सिंह जी, भाई मोहकम सिंह जी, भाई धरम सिंह जी, भाई दया सिंह जी, भाई हिम्मत सिंह जी और भाई मोहकम सिंह जी
उसे जानने के लिए अगली पोस्ट का इन्तिज़ार कीजिये। विरासत-ए-ख़ालसा संग्रहालय की भूल भुलैयों में छिपी है वह दास्तान।
यहाँ होला मुहल्ल्ला मनाने की परंपरा गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1757 में शुरू की थी। जब देश में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब गैरमुस्लिमों पर अत्याचार किये जा रहा था।
मुगल शासक औरंगजेब के हुक्म के बाद गुरू तेग बहादुर को मुगलों ने सिर कलम कर मौत के घाट उतार दिया था, क्योंकि वो हिन्दू ब्राह्मणों के दुखों को देख कर मुगलों से अपील करने गए थे। उसके बाद कुछ हिन्दू पहाड़ी राजाओं और अहलकारों ने गुरमत के बढ़ते प्रचार व अनुयायियों की भारी संख्या को अपने लिए खतरा समझना शुरू कर दिया और वो इसके खिलाफ एकजुट हो गए। इस बीच गुरू गोबिंद सिंह ने कुछ बाणियों की रचनाएँ भी की जिसमें अत्याचारी मुस्लमान शासकों के ख़िलाफ़ कड़े शब्द कहे।
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The Nihang @Holla Muhalla, Punjab |
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The Kripan @ Holla Muhalla, Punjab |
होला मुहल्ला का इतिहास
यह प्रताप है इस पवित्र स्थान का जहाँ आकर आप इंसान बन जाते हैं। ऊंच नीच से परे, भेद भाव, औरत मर्द से परे।
तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी
It's lovely photographs,
I really like these,
Travel Photography
Thanks Edward for liking my work!!!