एक सांझ मेहरानगढ़ फ़ोर्ट वाली कठपुतली वाली के साथ…..
जोधपुर के मेहरानगढ़ फ़ोर्ट की आन बान और शान के बारे में आप मेरी पिछली पोस्ट में पढ़ ही चुके हैं। इस वैभव पूर्ण किले में आपको राजपूती कला और संस्कृति की झलक कई रूपों में देखने को मिलती है। जहां क़िले में एक छोटा सा बाजार है जहां से आप लहरिया दुपट्टे,पगड़ियाँ, राजस्थानी जूतियां और आभूषण खरीद सकते हैं वहीँ क़िले के बाहर की बॉन्ड्री से सटे खुले अहाते में एक पेड़ की छांव तले एक राजस्थानी आदिवासी महिला अपनी रंग बिरंगी कठपुतलियों से राजस्थान की गौरव गाथा सुनाती दिख जाएगी।
जनाब यह रंगों से सजी बेजान कठपुतलियां भर नहीं है। आप दम भरने को ठहरें तो जान पाएंगे कि वह आदिवासी महिला इन रंगबिरंगी कठपुतलियों को नचा नचा कर राजस्थान के राजपूतों की गौरव गाथा अपने बंजारे गीत के बोलों से सुना रही है।
इन गीतों में राजा है, प्रजा है और है उनके शौर्य की गाथा। एक ऐसी गाथा जिसमे ऊंटों का एक विशेष स्थान है। इन गीतों में प्रेम है तो वियोग भी है। साहस है तो त्याग भी है।
राजपूताने की सरज़मीन की इन कहानियों में शौर्य अपने चरम पर देखने को मिलता है। इसमें महिलाऐं भी पुरुष के साथ बराबरी से हिस्सा लेती हैं।
और संगीत तो यहाँ के कण कण में बसा हो जैसे।
इन कठपुतियों का नाच देख कर आने जाने वाले बरबस ही ठहर जाते हैं। अपने हाथों से कपड़े और गोटे से कठपुतली बनाने की हज़ारों वर्ष पुरानी इस कला को आप भी सराहे बिना नहीं रह पाएंगे। मैंने अपने घर के लिए और अपने मित्रों के लिए राजस्थान की निशानी बतौर कई कठपुतलियां खरीदीं।
आप जहां भी जाएं वहां के लोकल कलाकारों द्वारा बनाई हुई चीज़ें ज़रूर खरीदें। ऐसा करके आप उस स्थान से जुड़ी कलाओं को तो सपोर्ट करेंगे ही साथ ही उन कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। और इन सबके बदले में जो आपको मिलेगा उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।
मैं देश के जिस भी हिस्से में जाती हूँ वहां से जुड़ी कला का एक नमूना ज़रूर साथ लाती हूँ और आज हालत यह है कि मेरे घर के हर एक कोने में पूरा भारत बसता है।
मेरे घर आने वाले मेहमान आश्चर्य से पूछते है कि मैं वह सब चीज़ें लाती कहाँ से हूं ? तो मैं बड़ी शान से बताती हूं हर उस जगह का नाम जहाँ से मैंने उसे चुना था।
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी