Manav-Sangrahalay_tribal-_-bhopal1
एक मुलाक़ात सांस्‍कृतिक विरासत से Part-1
Gate No.1

Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya

 
मैं जब छोटी थी और अपनी सामाजिक विज्ञान और भूगोल की किताबें पढ़ा करती थी तब उन किताबों मे बने अलग अलग प्रदेशों के लोगों, उनके घर, उनका जीवन, उनके रहन सहन की वस्तुएँ देख कर हमेशा चमत्कृत हुआ करती थी. मैं अपने ख़यालों की छोटी-सी दुनिया मे उन जगहों की कल्पना करती थी और उन जगहों को देखना चाहती थी, उन्हें महसूस करना चाहती थी. मैं सोचती कि काश ऐसा हो कि मेरी किताब के पन्नो मे बंद यह दुनिया मेरे सामने सजीव हो जाए. जिसे मे क़रीब से देखूं, स्पर्श करूँ, जानूं और समझूं..
किताबों मे बने सपाट चित्र मेरी जिग्यासा को शांत ना कर पाते. मैं जब अपनी किताब में आदिवासियों के बारे मे पढ़ती तो सोचती कि सहरिया, भील, गोंड, भरिया, कोरकू, प्रधान, मवासी, बैगा, पनिगा, खैरवार कोल, पाव भिलाला, बारेला, पटेलिया, डामोर आदि जनजातियाँ कैसा जीवन जीती होंगी? मैं उन्हें 3D मे देखना चाहती थी. मैने अपनी यह अनोखी ख्वाहिश शायद किसी से नही कही थी..जानती थी कि वास्तविकता की दुनिया मे ऐसा शायद नही हो सकता कि हमारे देश मे पाई जाने वाली सभी जनजातियों के जीवन की झलक एक ही जगह पर देखी जा सकती है.
 
 
Map of

Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya

 
 
पर यह मेरे बाल मान की ग़लतफहमी ही थी. वास्तव मे ऐसी जगह है जिसे देख कर आपको लगेगा कि मानो बचपन की किताबें जो एक बच्चे को देश के लोगों से रूबरू करवाने का काम करती हैं किसी ने यहाँ खोल कर रख दी हैं.
मैं बात कर रही हूँ इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल की. यह एक अद्भुत जगह है और विडंबना यह है की इसके बारे मे लोग ज़्यादा नही जानते हैं..लोगों से मेरा मतलब बच्चों से है..दर असल पाँचवीं से लेकर दसवीं कक्षा तक जो बातें सामाजिक विज्ञान और भूगोल की किताबों मे बंद कक्षाओं मे साल दर साल पढ़ाई जाती हैं. उन बातों को एक छात्र यहाँ पर एक पूरा दिन बिता कर सीख सकता है, महसूस कर सकता है.पता नही हमारे सरकारी स्कूल इस तरफ इतने उदासीन क्यों होते हैं ऐसी जगाहें सरकारी लाल फीताशाही की नज़र ज़्यादा हो जाती हैं..जोकि बच्चों की पहुंच से दूर बहुत दूर है.

Gate of Tribal Habitat
 
 
पिछले दिनों जब मेरा भोपाल जाना हुआ, और इत्तिफ़ाक़ से यह दिन मानव संग्रहालय का 39वाँ स्थापना दिवस (21 मार्च) था. तो मैने इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय देखने के लिए खास तौर पर एक पूरा दिन निकाला. मानव संग्रहालय देखने के लिए पूरा एक दिन भी कम पड़ने वाला था यह मुझे बाद मे पता चला. मैं भोपाल एक्सप्रेस से सुबह-सुबह भोपाल पहुँची. भोपाल एक शांत और पहाड़ों की घाटी मे बसा सांस्कृतिक शहर है. मैने होटल मे चेक इन किया और तैयार होकर मानव संग्रहालय देखने के लिए ऑटो किया. ऑटो वाला मुझे श्यामला हिल्स की पहाड़ियों पर वन विहार के नज़दीक मानव संग्रहालय के गेट नंबर 1 पर ले गया. इस संग्रहालय के तीन गेट हैं.
 
House from Southern  estates
 
यह अद्भुत संग्रहालय शामला हिल्स पर 200 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जहाँ 32 पारंपरिक एवं प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रय भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह यह भारत ही नहीं अपितु एशिया में मानव जीवन को लेकर बनाया गया विशालतम संग्रहालय है। इसमें भारतीय प्ररिप्रेक्ष्य में मानव जीवन के कालक्रम को दिखाया गया है। इस संग्रहालय में भारत के विभिन्‍न राज्यों की जनजातीय संस्‍कृति की झलक देखी जा सकती है। यह संग्रहालय जिस स्‍थान पर बना है, उसे प्रागैतिहासिक काल से संबंधित माना जाता है। संग्रहालय खुलने का समय सुबह के 10 बजे से शाम पाँच बजे तक का होता है. मैं क्योकि सुबह जल्दी फोटो क्लिक करती हूँ इसलिए वहाँ जल्दी पहुँच गई थी. किसी तरह गेट पर दस बजने का इंतिज़ार किया और दस बजने के बाद ही सिक्यूरिटी गार्ड ने मुझे अंदर जाने दिया. गेट नंबर एक पारंपरिक हिमालयन वास्तुकला के डिज़ाइन मे बनाया गया है. इस गेट से एंट्री लेने के बाद कम से कम एक किलोमीटर चलने पर मैं पार्किंग तक पहुँची. अगर आप अपनी गाड़ी से आ रहे हैं तो यहाँ तक कार लाई जा सकती है. यहाँ से सामने मुझे ट्राइबल हेबिटाट दिखाई दे रहा था. 

House from North east estates
House from North east estates
 
 
House from North east estates
 
 
मैने इन्फर्मेशन सेंटर मे जाकर कुछ पैंफलेट लिए जिससे मुझे यहाँ की कुछ जानकारी मिल जाए. इस पैंफलेट के पीछे यहाँ का मैप भी बना हुआ था,जिससे बड़ी सुविधा हुई. मैने पहले ट्रइबल हेबिटाट देखने का फ़ैसला किया. यह जगह दूर से ही दिल को आकर्षित कर रही थी. ट्राइबल हेबिटाट देश मे पाए जाने वाले सभी  आदिवासी लोगों के जीवन की एक झलक प्रस्तुत करने के लिए विकसित किया गया है. यह स्थान थोड़ा उँचाई पर पहाड़ी पर बना है. यह 15 एकड़ के एरिया मे फेला हुआ है. यह पूरा संग्रहालय 200 एकड़ के भू भाग पर फेला हुआ है.जिसे दो भागों में बांटा गया है. एक एक भाग खुले आसमान के नीचे है और दूसरा एक भव्य भवन में। ट्राइबल हेबिटाट खुले भाग में बना है. इस पूरे क्षेत्र में मध्य-भारत की जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान मिला है जिनके अनूठे रहन-सहन को यहाँ पर देखा जा सकता है। आदिवासियों के आवासों को उनके बरतन, रसोई, कामकाज के उपकरण अन्न भंडार तथा परिवेश को हस्तशिल्प, देवी देवताओं की मूर्तियों और स्मृति चिन्हों से सजाया गया है। बस्तर दशहरे का रथ भी यहाँ प्रदर्शित है जो आदिवासियों और उनके राजपरिवार की परंपरा का एक भाग है। मैं जैसे-जैसे इस पहाड़ी के शिखर पर पहुँच रही थी मैंने देखा कि  यहाँ पर अनेक आदिवासियों के घर बने हुए थे. उनकी लोक कलाओं से सजे हुए घर और उनकी दीवारों पर उकेरी हुई चत्रकारी.
 
Tribal wall art@ Tribal Habitat
 
 
 इस श्रेत्र को और ज़्यादा गहराई से समझने के लिए, ट्राइबल हेबिटाट के गेट पर ही एक चित्रों से सजी वीथिका है. जिसमे हर चित्र के साथ जानकारी भी दी हुई है. उन चित्रों को देश भर मे घूम-घूम कर आदिवासियों के बीच जाकर खींचा गया है और उन्ही आदिवासियों को लाकर यहाँ नए घरों को तैयार करवाया गया है. यह एक लंबी साधना का नतीजा है. सन् 1977 में संस्कृति मंत्रालय के इस उपक्रम की नींव रखी. जिसका उद्देश्य देश की विलुप्तप्राय परन्तु बहुमूल्य सांस्कृतिक परम्पराओं के संरक्षण और पुनर्जीवीकरण को संरक्षण देना था.
मैं घूमते-घूमते श्यामला हिल्स की चोटी पर पहुँच गई हूँ. यहां से बड़े तालाब का मनोरम दृश्‍य दिखाई दे रहा है। नीचे वन विहार से किसी चीते या तेंदुए के दहाड़ने की आवाज़ आ रही है.

Wall art@Tribal Habitat
Tribal Habitat@

Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya

 
 
यहाँ नज़दीक ही एक कैफे भी है जो आगंतुकों को जलपान की सुविधा उपलब्ध करवाता है. मुझे इस पंद्रह एकड़ के ट्राइबल हेबिटाट को देखने मे आधा दिन लग गया. मैने कैफे मे आकर कुछ जलपान ग्राहण किया और अब वीथी संकुल का रुख़ किया पर शाम के चार बजने को आए थे। वीथी संकुल देखने के लिए मुझे कल आना होगा। अगले दिन मैंने क्या क्या देखा पढ़े इसके दूसरे भाग में.
 
कैसे जाएं
 
वायु मार्ग-भोपाल एयरपोर्ट सिटी से 12 किमी. की दूरी पर है। दिल्‍ली, मुंबई और इंदौर से यहां के लिए इंडियन एयरलाइन्‍स की नियमित फ्लाइटें हैं। ग्‍वालियर से यहां के लिए सप्‍ताह में चार दिन फ्लाइट्स हैं।
रेल मार्ग- 
भोपाल का रेलवे स्‍टेशन देश के विविध रेलवे स्‍टेशनों से जुडा हुआ है। यह रेलवे स्‍टेशन दिल्‍ली-चैन्‍नई रूट पर पड़ता है। शताब्‍दी एक्‍सप्रेस भोपाल को दिल्‍ली से सीधा जोडती है। भोपाल एक्सप्रेस भी दिल्ली से भोपाल जाने के लिए रात भर का समय लेती है. साथ ही यह शहर मुम्‍बई, आगरा, ग्‍वालियर, झांसी, उज्‍जैन आदि शहरों से अनेक रेलगाडियों के माध्‍यम से जुड़ा हुआ है।
सडक मार्ग- 
सांची, इंदौर, उज्‍जैन, खजुराहो, पंचमढी, जबलपुर आदि शहरों से आसानी से सड़क मार्ग से भोपाल पहुंचा जा सकता है। मध्‍य प्रदेश और पड़ोसी राज्‍यों के अनेक शहरों से भोपाल के लिए नियमित बसें चलती हैं।
 
कब जाएं-
नवंबर से फरवरी। वैसे भोपाल घूमने के लिए गर्मियों के दो महीने छोड़ कर कभी भी जाया जा सकता है। मानसून के आते ही भोपाल हरयाली से भर जाता है।
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर,
तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी


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