उत्तर प्रदेश कीधार्मिक तथा सांस्कृतिकनगरी वाराणसी से12 किलोमीटर दूरअति प्राचीन नगरऔर बौद्धों कातीर्थ सारनाथ स्थितहै। इसकानिर्माण 500 ईस्वी मेंसम्राट अशोक द्वारा249 ईसा पूर्व बनाएगए एक स्तूपव अन्य कई स्मारक केस्थान पर किया गया था।ज्ञान प्राप्त करनेके बाद यहींपर भगवान बुद्धने अपने पांचशिष्यों को पहला उपदेश दियाथा। यहाँ से ही उन्होंने“धर्म चक्र प्रवर्तन” प्रारम्भ किया। यहजैन धर्म अनुयायोंका भी धार्मिकस्थल माना जाताहै।
सारनाथ में अशोकका चतुर्मुख सिंहस्तम्भ, भगवान बुद्ध कामन्दिर, धमेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीयसंग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, थाईमंदिर, जापानी मंदिर, कम्बोडिया मंदिर, कोरियामंदिर, म्यामार मंदिर, मूलंगधकुटीविहार और अन्य कई नवीनविहार इत्यादि दर्शनीयहैं। सम्राट अशोक केसमय में यहाँबहुत से निर्माण–कार्य हुए।शेरों की मूर्तिवाला भारत का राजचिह्न सारनाथ केअशोक के स्तंभके शीर्ष सेही लिया गयाहै। यहाँ का‘धमेक स्तूप‘ सारनाथकी प्राचीनता काआज भी बोध कराता है।
सारनाथकाशी से सटा हुआएक प्राचीन नगरहै पर यहाँ शहर काकोलाहल और शोर नहीं है।यहाँ पर चौखुड़ीस्तूप है जोकि गुप्त वंशकाल में बनाया गयाथा। यहाँ स्तूपा हैजिसका नामहै –धर्म अराजिक स्तूपाऐसा कहा जाताहै कि इस स्तूप मेंभगवान बुद्ध कीअस्थियां राखी गईथीं।
इसी के नज़दीक खुदाईमें एक विशालबोध विहार (
मोनेस्ट्री)
के अवशेष मिलेहैं। यहाँ लगभग2000
बोध भिक्षु रहाकरते थे। आज केवल इसके भग्नावशेषही रह गए हैं। इसकाशीर्ष पुरातत्व विभागके संग्रहालय मेंसुरक्षित रखा गयाहै.
यह संग्रहालयस्तूपा के नज़दीकही है। और यहाँ खुदाईमें निकली वस्तुओंका एक बड़ा संग्रह मौजूदहै। इसमेंईसा पूर्व तीसरीशताब्दी से 12वींशताब्दी के बीच के बुद्धकला के बेहतरीननमूने शामिल हैं।भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षणने यहां 1930 सेखुदाई का काम शुरू कियाऔर कई स्मारक, ढांचा और प्रचीनकला कृतियों कोनिकाला। इसे पुरातात्विकव खुदाई क्षेत्रके रूप में जाना जाताहै। यहां पाईगई कला कृतियोंको म्यूजियम मेंप्रदर्शनी के लिएरखा गया है। सारनाथ केक्षेत्र की ख़ुदाईसे गुप्तकालीन अनेककलाकृतियां तथा बुद्धप्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं जो वर्तमानसंग्रहालय में सुरक्षितहैं।
संग्रहालय (म्यूजियम) में कुल पांचगैलरी और दो बरामदे हैं।गुप्तकाल में सारनाथकी मूर्तिकला कीएक अलग ही शैली प्रचलितथी, जो बुद्धकी मूर्तियों केआत्मिक सौंदर्य तथाशारीरिक सौष्ठव कीसम्मिश्रित भावयोजना के लिए भारतीय मूर्तिकलाके इतिहास मेंप्रसिद्ध है। सारनाथसे कई महत्त्वपूर्णअभिलेख भी मिले हैं जिनमेंकाशी के राजा श्री प्रकटादित्य का शिलालेख प्रमुखहै। चीनी यात्रीह्वेनसांग ने भीसारनाथ की यात्राकी थी, और उसने यहाँके मंदिर कीभव्यता के विषय में लिखाहै। इसमें बालादित्यनरेश का उल्लेखहै जो फ्लीटके मत में वही बालादित्यहै जो मिहिरकुलहूण के साथ वीरतापूर्वक लड़ा था।यह अभिलेख शायद7वीं शती के पूर्व काहै। दूसरे अभिलेखमें हरिगुप्त नामकएक साधु द्वारामूर्तिदान का उल्लेखहै। यह अभिलेख8वीं शती ई॰ का जानपड़ता है।
धम्मेक स्तूप :
भगवान बुद्धने अपने धम्मका प्रथम ऐतिहासिकउपदेश पंचवर्गीय भिक्षुओंको जिस स्थानसे दिया था वह धम्मेकया धमेक आदिनामों से जाना जाता है।यहीं से बुद्धने “बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय औरलोकानुकम्पाय” का आदेशपंचवर्गीय भिक्षुओं को दिया था। सम्राटअशोक ने इसे अति विशेषईंटों एवं पत्थरोंद्वारा 30 मीटर घेरेमें गोलाकार और46 मीटर ऊंचे एक स्तूप केरूप में बनवायाथा। अशोक यहांअपने राज्यारोहण के20 वर्ष बाद अपनेगुरू मोंगलिपुत्र तिस्यके साथ आये थे। स्थिरपाल–वसन्तपाल केशिलालेख के अनुसारधम्मेक का पुरानानाम धर्मचक्र स्तूपथा। प्रथम उपदेशदेने के वजह से बौद्धअनुयायीइसे साक्षात बुद्धमान कर इसकी पूजा वन्दनाऔर परिक्रमा आदिकरते हैं।
आधुनिक मूलगंध कुटीविहार:
यहीं थोड़ा आगेमूलगंध कुटी विहारमंदिर है जिसे 1931 में श्रीलंकन महाबोधिसोसाइटी ने बनायाहै। मंदिर कीभीतरी दीवारों पर आकर्षकभित्तिचित्र भी देखेंजा सकते हैं।इसे जापान केएक प्रसिद्ध पेंटरकोसेत्सु नोसु नेबनाया था। विहारके प्रवेश द्वारपर तांबे कीएक बड़ी सी घंटी लगीहुई है, जिसेजापान के एक साही परिवारने उपहार मेंदिया था। यहांगौतम बुद्ध कीसोने की एक प्रतिमाभी रखी हुई है।
इसमंदिर के अहातेमें दाईं ओर बौद्ध वृक्षलगाया गया है। इसी वृक्षके नीचे बैठकर भगवान बुद्धने अपने पांचशिष्यों को दीक्षादी थी। इस स्थान कोपवित्र स्थान कादर्ज प्राप्त है।लोग देश विदेशसे आकर यहाँपूजा अर्चना करतेहैं।
यहां रखीबुद्ध की अस्थियोंको हर वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा वाले दिनश्रद्धालुओं के पूजनके लिए बाहररखा जाता है और सम्पूर्णसारनाथ में जुलूसके साथ परिक्रमाकरके उसको दुबाराउसी स्थान पररखा जाता है।
अशोक सिंह शीर्ष(राजचिन्ह):
अशोक स्तंभ उत्तरभारत में मिलनेवाले श्रृंखलाबद्ध स्तंभहैं। इन स्तंभोंको सम्राट अशोकने अपने शासनकालमें तीसरी शताब्दीमें बनवाया था।हर स्तंभ कीऊंचाई 40 से 50 फीटहै और वजन कम सेकम 50 टन है। इन स्तंभोंको वाराणसी केपास स्थित एककस्बे चुनार मेंबनाया गया था और फिरइसे खींचकर उसजगह लाया गया, जहां उसे खड़ाकिया गया था। वैसे तोकई अशोक स्तंभका निर्माण कियागया था, पर आज शिलालेखके साथ सिर्फ19 ही शेष बचे हैं। इनमेंसे सारनाथ काअशोक स्तंभ सबसेप्रसिद्ध है।
अशोकस्तम्भ के ऊपरी सिरे परपीठ से सटाकरउकडूं मुद्रा मेंबैठे हुए चार सिंह चारोंदिशाओं की तरफ मुँह किएस्थापित हैं। इस चारों सिंहोंके उपर भगवानबुद्ध का 32 तीलियोंवाला धम्म चक्रविद्यमान था। जोआज उसके ऊपरस्थापित नहीं है।वह सारनाथ संग्रहालयमें प्रवेश करनेके स्थान परही एक हॉल में सुरक्षितरखा गया है। इसकी उत्कृष्टकलाकारी इसे अद्वितीयप्रतिमाओं में शामिलकरती है शायद इसी लिएभारत सरकार नेइसे अपना राजचिन्हघोषित किया है।यह सिंह शीर्षचार भागों मेंबंटा है।
1. पलटी हुई कमलकी पंखुडियों सेढका हुआ कुम्भिकाभाग
2. गोलाकार भाग जिसमेंचार धर्मचक्र वचार पशु क्रमशःहाथी, वृषभ (सांड), अश्व व सिंह बने हुएहैं।
3. चारों सिंह एकदूसरे के विपरीतपीठ सटाकर चारोंदिशाओं की ओर मुंह करउकइं मुद्रा मेंबैठे हैं।
4. इन चारों केऊपर धर्मचक्र स्थापितथा जो अब नहीं है।यह प्रतिमा भूरेरंग की बलुआ की बनीहै। यह चार शेर शक्ति, शौर्य, गर्व और आत्वविश्वास के सूचक हैं। स्तंभके ही निचलेभाग में बना अशोक चक्रआज राष्ट्रीय ध्वजकी शान बढ़ारहा है।
आप सारनाथ जाएंतो सोविनियर केतौर पर मिनिएचरअशोक स्तम्भ लानान भूलें। यहस्तम्भ हमारे राष्ट्रीयगौरव का प्रतीकहै। आपकी डेस्कपर खूब जंचेगा।
यहीं सारनाथमें एक थाई बौद्धविहार परिसर है।जहाँ पर भगवानबुद्ध की सबसे ऊंची प्रतिमास्थापित की गई है ।भगवान बुद्ध कीप्रतिमा की उंचाई80 फुट है तथा यह देशकी सबसे ऊंचीप्रतिमा मानी जाती है। बुद्धप्रतिमा गंधार शैलीमें बनी है।
बौद्धविहार के संस्थापकभंते रश्मि केअनुसार इस प्रतिमाको बनाने मेंचुनार के पत्थरोंका इस्तेमाल कियागया है। पत्थरके 847 टुकडों कोतराशकर प्रतिमा कानिर्माण किया गया हैप्रतिमा पूरी तरहठोस है। इसकाकोई हिस्सा खोखलानहीं है । इसे स्थापितकरने के लिए 20 फुट ऊंचा फाउन्डेशनबनाया गया है।
काग्यु तिब्बती मठ:
यहां तिब्बत, चीन, जापानऔर थाईलैंड जैसेदेशों से ढेरोंतीर्थ यात्री औरबौद्ध विद्वान आतेहैं। इन देश के लोगोंने यहां अपनेमंदिर बना लिए हैं औरगांव में सीखनेके लिए कई केन्द्रों की स्थापनाभी की है। इन्हीं मेंसे एक है काग्यु तिब्बतीमठ। इसे वज्रविद्या संस्थान केनाम से भी जाना जाताहै और इसकी स्थापना थरांगू रिनपोचेने की थी। काग्यु तिब्बतीमठ सारनाथ मेंसबसे बड़ा मठ है औरइसे बोध गया के पासस्थित नालंदा मनैस्टिकइंस्टीट्यूट की शैलीमें बनाया गयाहै।
इन मॉनेस्ट्रीमें थोड़ी देरबैठ कर आप सुकून सेमेडिटेशन भी करसकते हैं। यहाँके लोग आत्मीयऔर मित्रता पूर्वकहैं। मोनेस्ट्री मेंखेलते छोटे–छोटेबौद्ध लामा आपकोबरबस ही अपनी ओर आकर्षितकर लेंगे।
सारनाथ देखने केलिए पूरा एक दिन निकालिये,
और कोशिश कीजियेकि दिन की शुरुआत सुबहजल्दी करें। सोवेनियरके तौर पर महात्मा बुद्ध कीध्यानमग्न मूर्ति औरअन्य सामान लेजानान भूलें।
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारतदर्शन में किसीनए शहर की यात्रा पर,
तब तक खुशरहिये, और घूमतेरहिये,
आपकी हमसफ़र आपकीदोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी