एक फोटोग्राफर की डायरी से….
मैं एक महिलाफोटोग्राफर और साहित्यकार हूँ, घूमने–फिरने का शौक़ बचपन से है। हमने अपने बचपन में बहुत सारे शहर देखे और आज भी मैं अपने देश की विविधता पर मोहित हूँ। आप किसी भी दिशा में निकल जाएँ, आपको हमेशा कुछ नया, कुछ अनोखा देखने को मिलेगा।आज मेरे मन में आया कि आप के साथ अपनी यात्रा के अनुभव साझा करूँ। मैं काफी घूमती हूँ और नए लोगों से मिलना और उनसे बात करना मुझे पसंद है। उनके जीवन को देखना और हो सके तो उनके जीवन का हिस्सा बनना मुझे खूब सुहाता है। महिलाओं और बच्चों की निर्मल हंसी मुझे आकर्षित करती है । मैं बहुत सारे स्थानों पर जाती हूँ। कभी पहाड़ों पर,कभी बीचों के शहर गोवा, तो कभी राजिस्थान के रंग और संस्कृति को समेटने जोधपुर, जयपुर और पुष्कर।मुझे अलग अलग प्रदेशों के संस्कृतिक उत्सवों की तस्वीरें खींचना पसंद है ।
बचपन में जब स्कूल खुलने वाले होते थे तो बहुत ख़ुशी होती थी, ख़ुशी नई कक्षा में जाने की, ख़ुशी नई–नई किताबें पाने की । नई किताबें पाने की जितनी बेताबी होती थी उतनी ही उजलत होती थी उन्हें बांचने की। मेरा सबसे प्रिये विषय -“हिन्दी साहित्य “
एक साँस में हिन्दी की किताब पढ़ डाली जाती। किताब पर कवर चढ़ाने का सब्र भी कहाँ होता था। उन दिनों जब हिंदी की किताब में किसी का लिखा यात्रा वृतान्त पढ़ती तो खुद ही चमत्कृत हो जाती कि ये शायद किसी और ही दुनिया के लोग होते होंगे जो बस निकल पड़ते होंगे यात्रा करने। इतिहास की किताब में फाह्यान और हीनयान की तस्वीरें देखती तो उनके बारे में सोचती रहती। कितना अच्छा होता होगा इनका जीवन। घूमते होंगे,लोगों से मिलते होंगे। उनको अपने देश के बारेमें बताते होंगे….
नए लोगों से मिलना और उनके बारे में जानना मुझमे रोमांच भर देता। हिंदी साहित्य के यात्रा वृतांत पढ़ती तो लगता मैं लेखक के साथ ही घूम रही हूँ| जो स्वाद लेखक ने चखे होंगे उनको मैं भी महसूस करती…
फिर अपने अब्बू से पूछती कि ऐसा कैसे हुआ?
वो समझाते-” ऐसा लेखन एक खास कला है, लेखक इस तरह से अक्कासी करता है कि पढ़ने वाले को लगता है जैसे वो चीज़ों को अपनी आँखों से होते देख रहा हो। इसके लिए ज़रूरी है ऑब्जरवेशन पावर का होना। आपका मन शांत हो और जिस जगह पर आप हों वहां सौ फीसदी हों। तभी आप चीज़ों को ओब्सेर्व कर पाएँगे ।
अब्बू की नसीहत कब दिमाग़ में कब बैठ गई पता नहीं चला। शायद अक्कासी का फन मुझे उन्ही से विरासत में मिला है। वो कहीं भी जाते लौट कर आके तो टू दा पॉइंट वहां का आँखों देखा हाल सुनते । मेरी भाषा में कहें तो फ्रेम दर फ्रेम।
इसी क्रम में मैंने हिन्दी साहित्य की नई विधा-यात्रा वृतान्त लिखना शुरू किया है। अपनी यात्रा केअनुभवों को शब्दों में बांधने की कोशिश की है। आशा करती हूँ आपको पसंद आएंगी।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी