नमक सत्याग्रह आंदोलन मार्च 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक चलने वाला एक ऐसा आंदोलन था जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दीं थीं। जब 12 मार्च की सुबह महात्मा गाँधी साबरमती आश्रम से अरब सागर की ओर दांडी नामक ग्राम की तरफ चले थे तब उनके साथ आश्रम में रहने वाले मात्र 78 साथी ही थे। उस समय ब्रिटिश हुकूमत को अंदाज़ा नहीं था कि ये सविनय अवज्ञा आंदोलन आगे चल कर कितना बड़ा रूप ले लेगा। देखते ही देखते लोग इस आंदोलन से जुड़ते गए और कारवाँ बनता गया। बापू के आवाहन पर लोगों ने जहाँ थे वहीँ पर प्रतीकात्मक रूप से इस आंदोलन में भाग लिया।
मैं पिछले वर्ष जब वर्धा में सेवाग्राम आश्रम में गई थी तब सौभाग्य से मुझे वहां बापू के एक अनुयायी ब्रम्हदत्त जी मिले। जिनके साथ बात करते हुए मुझे अनेक सवालों के जवाब मिले। मैं हमेशा से नमक सत्याग्रह के बारे में पढ़ती सुनती आ रही थी। हर बार मेरे मन में एक सवाल रह जाता था। वो सवाल था। आखिर नमक सत्याग्रह ही क्यों? ब्रिटिश हुकूमत ने 1882 में नमक अधिनियम क्यों लागू किया ?
नमक जैसी साधारण चीज़ के लिए इतना बड़ा असाधारण आंदोलन। मैंने अपनी जिज्ञासा ब्रम्हदत्त जी के सामने रखी। उन्होंने मुझे एक छोटी सी कहानी सुनाई, जिसे कम ही लोग जानते होंगे। कहानी कुछ इस तरह थी।
बरतानी हुकूमत भारत से क़ीमती सामान जहाज़ भर-भर कर इंग्लैंड लेकर जाती थी और वापसी में खाली जहाज़ भारत आते थे। ये जहाज़ ख़ाली होने के कारण समुद्री तूफानों में घिर जाते और दुर्घटना का शिकार होते। इस स्थिति से निपटने के लिए बरतानी हुकूमत के आला अधिकारियों ने एक उपाय निकाला। उन्होंने इन खाली जहाज़ों को वज़नी करने के लिए इनमें नमक भर कर भारत भेजना शुरू कर दिया। जबकि भारत के पास गुजरात से लेकर बंगाल तक लगभग 6100 किलोमीटर लम्बा समुद्रतट है जहाँ कई स्थानों पर नमक बनाया जाता रहा है। गुजरात में कच्छ का क्षेत्र और ओडिशा में बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन प्राचीन काल से होता आया है। ऐसे में आयात किए नमक की ज़रूरत भारतीय लोगों को नहीं थी। यहाँ परंपरागत रूप से मलंग समुदाय नमक बना रहा था। ब्रिटिश हुकूमत ने नमक पर 1835 में विशेष कर लगा कर एकाधिकार करना शुरू किया जिसने आगे चल कर 1882 में नमक कानून का रूप लिया। नमक बनाना गैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया। नमक बनाने पर बड़े कर लगा दिए गए। ये एक काला कानून था। देश में कुछ हिस्से ऐसे थे जहाँ के खेतों में केवल नमक की खेती ही सकती थी। समुद्र के नज़दीक होने के कारण मिटटी में नमक की मात्रा अधिक होती थी। ऐसे में वो गरीब किसान पीढ़ियों से नमक की खेती कर जीवन यापन कर रहे होते थे। कैसे होती है नमक की खेती? पढ़े मेरे कच्छ के ब्लॉग में-कहानी नमक की….।
अचानक से उनका जीने का हक़ ही छीन लिया जाए तो विरोध होना लाज़मी था। इस विरोध को आवाज़ दी महात्मा गाँधी ने। जब उन्होंने पूरी तैयारी के साथ दांडी मार्च निकाला। इस छोटी सी यात्रा ने पूरे देश को एक डोर में बांधने का कार्य किया।
देश भर में नमक का कानून तोड़ा जाने लगा। देहरादून के नज़दीक पछवादून क्षेत्र में गाँव था खाराखेत। यहाँ पर आकर लोगों ने नून नदी के पास नमक बनाया और पैक कर के देहरादून के टाउन हाल, पल्टन बाजार में जाकर बेचा। अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तारियाँ कीं लेकिन आज़ादी के मतवालों ने हार नहीं मानी। देश में चारों कोनों में लोगों ने नमक का कानून तोड़ा। गुजरात के धरसाना में सरकार की नमक की फैक्ट्री थी, जिसपर सरोजनी नायडू ने धावा बोला।
कहते हैं दांडी मार्च ने महात्मा गाँधी और भारत की आज़ादी की मांग को पूरी दुनियाँ नज़रों में ला दिया। दांडी मार्च का सफल आयोजन हुआ। पूरी दुनिया की मिडिया ने इसे कवर किया। ब्रिटेन के ऊपर चौतरफा दबाव बना। जिसके परिणाम स्वरुप महात्मा गाँधी को 1931 में गोल मेज़ कॉन्फ्रेंस के लिए बुलाया गया।
उत्तराखंड का छोटा सा गाँव खाराखेत उस ऐतिहासिक घटना का साक्षी बना है। आज भी इस गाँव के लोग बड़े गर्व के साथ नमक बनाने की कहानी सुनाते हैं।
इस गाँधी जयंती के अवसर पर हमने अपने कुछ साथियों के साथ खाराखेत ग्राम में स्थित उस ऐतिहासिक नदी के दर्शन किए जहाँ नमक बनाया गया था। हमारे साथ स्कूल ऑफ़ लिबरल स्टडीज़, यूपीईएस के एसोसिएट डीन डा.अत्री नौटियाल, डा. सुधा तिवारी, डा. रोहित दत्ता राय, डा. पंकज मिश्रा, डा. रीतम दत्ता आदि उपस्थित थे। इस यात्रा के पीछे मेरा ये उद्देश्य था कि हम अपने विश्वविद्यालय के छात्रों को अपने आसपास के समाज से रूबरू करवा सकें। इस अवसर पर हमारे साथ सार्थक दहिया,जाह्नवी कुमार, तनु कोहली, शिवांश गौरी,अनमोल शर्मा, जूही उपाध्याय एवं अन्य छात्र मौजूद रहे।
इस यात्रा में हमारा साथ दिया खाराखेत के प्रधान विवेक जी ने और इस सभा को पूर्णता प्रदान की खाराखेत के स्कूली
बच्चों ने। नून नदी के पत्थरों पर बैठ कर हम लोगों ने नमक सत्याग्रह से जुड़े संस्मरणों पर चर्चा की। यहाँ नदी के पास स्थित स्मारक वर्ष 1983 में बनवाया गया था। आज ये स्थान गुमनामी का शिकार है। स्मारक भी टूट-फूट रहा है।
“स्मारक के दर्शन करने के बाद हमने खारा खेत ग्राम का अवलोकन किया और साथ ही ग्राम के बुज़ुर्ग श्री रमेश चंद्र जी को अंगवस्त्रम पहना कर एसोसिएट डीन डा.अत्री नौटियाल द्वारा सम्मानित किया गया।”
गुजरात सरकार ने इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को आम लोगों पहुँचाने के लिए राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक, की स्थापना 2019 में दांडी ग्राम, जालापोर तालुका,जिला नवसारी में की है। 15 एकड़ में फ़ैले इस इस स्मारक की यात्रा आगंतुकों को 1930 में ले जाती है। आप भी देखें।
ये कोई आम संग्रहालय नहीं है। दांडी मार्च की ऐतिहासिक घटना को जीवंत करने के लिए म्यूरल्स, स्टेचू और अन्य विशिष्ठ कलाओं का सहारा लिया गया है। जिसे तकनीकी दक्षता से संवारा है आई आई टी मुंबई के डिज़ाइन विभाग के विशेषज्ञों एवं दुनिया भर से आए 40 मूर्तिकारों ने। इस संग्रहालय को बनाने में लगभग 89 करोड़ रूपए खर्च किए गए हैं। यहाँ 2500 किलोग्राम का एक कांच का क्यूब नमक के कण को दर्शाता हुआ लगाया गया है। ये संग्रहालय पूर्ण रूप से सोलर पर चलता है। नज़दीक ही सैफी विला है जहाँ महात्मा गाँधी नमक का कानून तोड़ने की रात अपने 79 साथियों के साथ रुके थे। ये विला सैयदना ताहर सैफी की थी जिसे उन्होंने वर्ष 1961 में इसके राष्ट्रीय महत्त्व को देखते हुए सरकार को दान में दिया। इस विला में महात्मा गाँधी संग्रहालय स्थापित किया गया। यहाँ आज भी बापू से जुड़ी वस्तुएँ संजो कर रखी गई हैं।
नमक सत्याग्रह से जुड़ी और भी महत्वपूर्ण जानकारियाँ आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
https://www.mkgandhi.org/civil_dis/civil_dis.htm