बर्फ की चादर में लिपटा – लद्दाख
क्या आप मानेंगे कि लद्दाख सबसे खूबसूरत सर्दियों में
लगता है जब बाहर माइनस 14 डिग्री तापमान में जब
हर चीज ठंड से जम रही होती है वही लद्दाखी घरों की
रसोईया गर्माहट से गुलजार होती हैं।
ऐसे में प्रकृति के दुर्लभ दृश्य आपको देखने को मिलते हैं।
सर्दी के मौसम में लेह में ठंडा तो होती हैं लेकिन धूप
भी जगमगाती हुई निकलती है इसलिए आप बड़े आराम से
दिन में घूम सकते हैं बस आपको थोड़ा सा शरीर के ऊपर
एक लेयर ज्यादा पहननी पड़ती है।
लेह शहर से थोड़ा ही दूर जाने पर जास्कार नदी जमी
दिखाई देती है। यह अपने आप में बड़ा ही अनोखा अनुभव
है आप नदी के ऊपर चल सकते हैं बल्कि उस जमी नदी के
ऊपर बैठकर पिकनिक भी कर सकते हैं। यहां का लोग
सर्दियों में इस नदी के ऊपर स्लेज पर सामान रखकर
आवाजाही करते हैं।
इसी क्षेत्र में अड्वेंचर के शौक़ीन लोग पूरी दुनिया से चादर
ट्रेक के लिए खिंचे चले आते हैं। जमी हुई नदी पर ट्रेक
करना सुनने में जितना आसन है करने में उतना ही
रोमांच से भरा हुआ है। जमी नदी पर चलते हुए हर अगला
क़दम जोखिम भरा होता है। इतना रोमांच कि सर्दी का
अहसास ही नहीं होता। लेकिन इस साहसी ट्रेक को करने
वाले पाते हैं कुछ अनोखे द्रश्य जैसे जमे हुए वॉटरफॉल।
यहीं रास्ते में लेह- कारगिल हाई वे पर ज़न्स्कार और
सिन्धु नदी का संगम आपको रोक लेगा। ऐसा अनोखा द्रश्य
जो कि आँखों में न समाए हरा और नीला पानी भूरी
पहाड़ियों और नीले आकाश तले ऐसे एकाकार हो रहे होते
हैं जैसे दो बिछड़े प्रेमी।
ऐसे ही नहीं रुसी चित्रकार रोयरिक को हिमालय से प्रेम
हो गया था।
लद्दाखी लोगों ने प्रक्रति से मिली हर चीज़ को सर माथे
लगाया है। इसलिए जब बाहर का तापमान माइनस में
होता है तो ये घर के भीतर दुपक कर नहीं बैठ जाते बल्कि
अपने स्केटिंग के जूते पहन जहाँ भी पानी जमा मिलता है
आइस स्केटिंग करने लगते हैं।
इन्हें मुश्किल से मुश्किल हालातों में जीने की कला बखूबी आती है। इन्हें देखकर यूरोप के फेस्टिवल्स की याद आ जाती है।
लेह से मात्र 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है दुनिया की
सबसे ऊंचा वह दर्रा जिसको खारदुंग ला कहते हैं। यह भी
इस समय देखने लायक़ होता है। यहां तक पहुंचने के लिए
जो रोड है वह बड़ी जबरदस्त है आप बिना किसी दुश्वरी
के प्रकृति की अनुपम सौंदर्य का आनंद लेते हुए अपनी
गाड़ी में बैठकर बर्फ के पहाड़ों के बीच से इस दर्रे की चोटी
पर K टॉप पर पहुंच जाते हैं जहां पर बेस कैंप है
सियाचिन वॉरियर्स का, हमारे देश की सेना का।
समुद्र तल से 17982 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह दर्रा
विश्व का सबसे ऊंचा पास है। इन दुर्गम रास्तों की
हिफाज़त रंग बिरंगे प्रेयर फ्लैग करते हैं, जिन्हें यहाँ के
लोकल लद्दाखी लोग बड़ी आस्था से बांध जाते हैं। यहाँ तक
पहुंचना दिलफरेब नजारों से भरा हुआ है। एक तरफ
लद्दाख पर्वत श्रंखला तो दूसरी ओर काराकोरम। हिमालय
के सौन्दर्य में खोए हम कब लेह शहर से 6 हज़ार फिट की
ऊंचाई का सफ़र तय कर लेते हैं पता नहीं चलता।
लद्दाख का नाम ऊँचे दर्रों वाली ज़मीन ऐसे ही नहीं पड़ा
है।यह दर्रे एवरेस्ट बेस केम्प की ऊंचाई से भी ऊँचे हैं।
शहर से 5 किलोमीटर दूर चंग्स्पा ग्राम में एक पहाड़ की
चोटी पर शांति स्तूप आ एक सुंदर आकर्षण है जिसका
निर्माण सन् 1983 में हुआ था। सिलेटी भूरी रंग की
पहाड़ियों के मध्य में एक चोटी पर बना यह स्तूप विश्व में
शांति स्थापित करने के लिए जापानी बौद्ध भिक्शु
गोमयो नाकामुरा द्वारा बनवाया गया था।
लेह में दो बाजार हैं, एक मुख्य बाजार जहां पर बड़े-बड़े
स्टोर हैं जिसके सेंटर में एक बहुत बड़ी मस्जिद है जो कि
अपने में अनोखी मस्जिद है क्योंकि इस मस्जिद की
स्थापत्य कला बौद्ध स्थापत्य कला से प्रभावित है। इस
बाजार में सैलानियों की जरूरत का हर सामान उपलब्ध है
यही मुख्य बाजार के नजदीक एक बाजार है जिसका नाम
मोती मार्केट है। मोती मार्केट लोकल लोगों का
बाजार। अगर आप थोड़ी बचत में शॉपिंग करना चाहते हैं
तो मोती मार्केट का चक्कर लगाना ना भूलें।
लेह के आकर्षणों में सबसे बड़ा आकर्षण लेह पैलेस है।
इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में राजा सेंगगे नामग्याल ने
करवाया था। इस पैलेस का फ्रंट हिस्सा लहासा के पोटाला
पैलेस से मिलता जुलता है। यह पैलेस 9 मंजिल का है।
इस पैलेस में एक बहुत शानदार संग्रहालय मौजूद है
जिसमे लद्दाख डायनेस्टी की महत्वपूर्ण कृतियों का
संग्रह मौजूद है। पैलेस की ऊंचाई से पूरा लेह शहर
और नेपथ्य में स्टोक कांगड़ी पर्वत श्रंखला दिखाई
देती है।
मुख्य बाजार के पीछे एक बहुत ही शानदार और अनोखा
संग्रहाल है जिसका नाम सेंट्रल एशियन म्यूजियम है। यह
संग्रहालय एक प्रमाण है कि शताब्दियों से लेह शहर सिल्क
रूट पर पड़ने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
इस रूट पर तिब्बत चाइना और मध्य एशिया से व्यापारी
आया जाया करते थे। यह संग्रहालय उन्हीं बीते दिनों की
याद ताजा करने के लिए एक अलग पहचान रखता है। इस
संग्रहालय की 3 तल है जिसमें हर तल एक एक अलग
सभ्यता को समर्पित है इसके प्रथम तल पर लद्दाखी
संस्कृति द्वितीय तल पर तिब्बत की संस्कृति और तीसरे पर
चाइना की संस्कृति से जुड़े मूल्यवान एंटीक आइटम्स रखे
गए हैं।
लेह से मात्र 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ठिकसे
गोम्पा। यह केवल एक गोम्पा नहीं बल्कि बौद्ध संस्कृति
का विशाल केंद्र है। कहते हैं यह गोम्पा लहासा स्थित महल
के डिजाईन पर बना से आए बौद्ध भिक्षुओं ने बनवाया था।
12 मंजिला यह गोम्पा बौद्ध धर्म की शिक्षा का महत्वपूर्ण
केंद्र है। इसके दामन में में एक बड़ा पुस्तकालय है जहाँ
प्राचीन बौद्ध ग्रंथों का मूल्यवान संग्रह मौजूद है। इस
गोम्पा की दीवारों पर भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी
कहानियां दर्शाई गई हैं। यहाँ थांका चित्रकला के कुछ
शानदार कलाकृतियाँ संजोई गई हैं जिनका बौद्ध संस्कृति
में विशेष स्थान है।
लेह शहर से बाहर एअरपोर्ट के नजदीक हॉल ऑफ फेम संग्रहालय स्थित है यह संग्रहालय भारतीय सेना की वीरताऔर उपलब्धियों की कहानियां संजोय हुए है। इस संग्रहालय का शुमार एशिया के 25 शानदार संग्रहालयों में किया जाता है।
बने रहिये मेरे साथ ऐसे ही कुछ दिलफ़रेब नज़ारों से रूबरू होने.