#AHILYA BAI HOLKAR
आज अहिल्या बाई होलकर के स्मृति दिवस पर मुझे अपनी इंदौर यात्रा याद आ गई। इंदौर शहर के वासियों के दिलों पर आज भी राज करने वाली अहिल्याबाई होल्कर के हाथों में जब सत्ता आई तो वह मालवा का कठिन समय था। कहते हैं मध्य प्रदेश में स्थित प्रसिद्ध शहर इन्दौर को अठारहवीं सदी के मध्य में मराठा वीर राजा मल्हारराव होल्कर ने स्थापित किया गया था। आज जहाँ इंदौर शहर बसता है वह जगह बाजीराव पेशवा ने मल्हारराव होल्कर को पुरस्कार के रूप में दी थी। मल्हारराव होल्कर ने बड़े चाव से इस शहर को बसाया। उनके देहांत के बाद इंदौर ने बुरा समय देखा।
अहिल्या बाई विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। मल्हारराव पुत्र-वधू अहिल्याबाई को भी वह राजकाज की शिक्षा देते रहते थे। उनकी बुद्धि और चतुराई से वह बहुत प्रसन्न होते थे। जल्द ही मल्हार राव का भी देहांत हो गया।
तब उन की पुत्रवधु अहिल्या बाई ने इंदौर की राज गद्दी संभाली और अपनी कुशलता से इस रियासत में प्राण फूके। लोग उन्हें राजमाता अहिल्यादेवी होल्कर नाम से भी जानते हैं। अहिल्याबाई ने कई युद्धों का नेतृत्व किया। वे एक साहसी योद्धा थी और बेहतरीन तीरंदाज। हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी। हमेशा आक्रमण करने को तत्पर भील और गोंड्स से उन्होंने कई बरसों तक अपने राज्य को सुरक्षित रखा। अहिल्याबाई ने इंदौर को एक छोटी जगह से खूबसूरत शहर बनाया।
मालवा में कई किले और सड़कें बनवाईं। अहिल्याबाई बहुत ही धार्मिक महिला थीं। उन्होंने पूरे देश में धर्म कर्म किया। उन्होंने कई घाट, मंदिर, तालाब, कुएं और विश्राम गृह बनवाए। न केवल दक्षिण भारत में बल्कि हिमालय पर भी। सोमनाथ, काशी, गया, अयोध्या, द्वारका, हरिद्वार, कांची, अवंती, बद्रीनारायण, रामेश्वर, मथुरा और जगन्नाथपुरी आदि। आज भी इंदौरवासी अपनी प्रिये रानी को बड़े ही सम्मान से याद करते हैं।
अहिल्या बाई होलकर से ही कठिन परिश्रम किया। उस समय जब स्त्रियां विद्यालय नहीं जाती थीं अहिल्या बाई ने विद्या अर्जित की और 12 वर्ष की आयु में अपने श्वसुर मल्हार राव होलकर के देहांत के बाद मात्र तेरह वर्ष की आयु में मालवा की महारानी बनीं। वह बड़ी ही धार्मिक महिला थीं और शिव की परम उपासक। वह माँ नर्मदा में रोज़ तड़के स्नान करने जातीं तो उन्हें हर बार माँ नर्मदा से एक शिव लिंग प्राप्त होता। आज भी यह पत्थर के शिव लिंग राजवाड़ा के अंदर अहिल्या बाई के मंदिर में स्थापित हैं। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन उन्हों ने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
अहिल्या बाई एक कुशल शासक थीं उन्होंने स्त्रियों के उद्धार के लिए महेश्वर में हथकरघा उद्योग को विकसित किया। आज देश भर में माहेश्वरी साड़ी प्रसिद्ध है। महेश्वर शहर को अहिल्या बाई ने बड़े ही प्रेम से बसाया। यहाँ नर्मदा के तट पर घाट, अहिल्या बाई का किला और अखिलेश्वर मंदिर बनवाए।
आज भी इंदौर के राजवाड़ा पैलेस में एक छोटा सा संग्रहालय मौजूद है जिसमे हाथ से बनी गुड़ियों के माध्यम से अहिल्या बाई होल्कर की जीवनगाथा बड़े ही रुचिपूर्ण ढंग से दर्शाई गई है।
आप जब इंदौर जाएं तो राजवाड़ा पैलेस में यह संग्रहालय देखना न भूलें। साथ ही शाम के समय राजवाड़ा में होने वाला लाइट एन्ड साउंड शो ज़रूर देखें। इस शो के माध्यम से आपको होल्कर साम्राज्य के गौरवशाली अतीत से रूबरू होने का मौक़ा मिलेगा।
अहिल्या बाई होलकर के स्मृति दिवस पर एक बार फिर उन जैसी साहस की प्रतिमूर्ति महिला को शत शत नमन।