#कोचीन
केरल का नाम आते ही ज़ेहन में सबसे पहले क्या आता है? समुन्दर,नारियल के पेड़, कथकली, बेक वाटर्स, टी-गार्डन, मंदिरों के ऊँचे-ऊँचे प्रसाद, पारम्परिक गोल्डन बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी में सजी महिलाऐं, जूड़े में मोगरे का गजरा।
इस राज्य में इतना कुछ है देखने को कि जितने भी दिन हों कम हैं। यह प्रदेश अपने प्राचीन बंदरगाह की वजह से व्यापार का बड़ा केंद्र रहा है। इसने चीनी, डच, पुर्तुगाली, अँगरेज़ और मुसलमानों को खुले बाहें अपनाया है। व्यापारिक केंद्र होने के नाते जहाँ यह विदेशियों की आमद का राज्य बना वहीँ देश के अन्य नज़दीकी राज्यों के व्यापारियों के आकर्षण का केन्द्र भी रहा इसलिए यहाँ मालाबार, कोंकण, गुजरात और तमिलनाडु से लोग आए और फले फूले। जब इतनी विविध संस्कृतियों के लोग यहाँ आए तो साथ लाए अपनी परंपराएं, रीतियाँ और संस्कृतियां। और इस राज्य का दिल माना जाने वाला शहर बना कोचीन। कहते हैं कोचीन विदेशियों की पहली कॉलोनी बना।
कोच्चि का नाम मलयालम के शब्द ‘ कोचु अजहि’ के नाम पर पड़ा है जिसका अर्थ होता है ‘छोटी खाड़ी’ प्राचीन बंदरगाह वाले इस शहर के लिए इससे उपयुक्त और कौनसा नाम होता भला। पूरी दुनिया के व्यापारियों, यात्रियों को इस खूबसूरत शहर ने आकर्षित किया इसी लिए इस जगह को “पूर्व का वेनिस” भी कहा जाता है। छोटे छोटे टापुओं को मिला कर बना यह शहर कभी एर्णाकुलम, मत्तनचेरी, फ़ोर्ट कोचीन, विलिंग्डन द्वीप, आइपिन द्वीप और गुंडू द्वीपों और कस्बों में फैला हुआ था।
इतिहास
कहते हैं कभी कोचीन मछुआरों का एक छोटा सा गाँव था, कालांतर में अरब सागर की ताक़तवर जलधाराओं ने गाँव को मुख्यभूमि से अलग कर दिया, जिससे यह भूमिबद्ध बंदरगाह भारत के दक्षिण-पश्चिम तट के सर्वाधिक सुरक्षित बंदरगाहों में से एक बन गया। इस बंदरगाह को एक नया सामरिक महत्त्व मिला और यहाँ वाणिज्यिक समृद्धि आई, जब 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तग़ालियों ने हिन्द महासागर में प्रवेश किया और भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर पहुँचकर 1500 ई. में पुर्तग़ाली नाविक पेड्रो अल्वारेस कैब्रल ने भारतीय भूमि पर पहली यूरोपीय बस्ती की स्थापना कोचीन में की.
आम तौर पर लोग वास्कोडिगामा का सम्बन्ध गोवा से लगाते हैं लेकिन कोच्चि से वास्कोडिगामा का बेहद खास रिश्ता रहा है। वास्कोडिगामा ने 1502 ई. में यहाँ पहली पुर्तग़ाली फैक्ट्री की स्थापना की। वास्कोडिगामा से इस जगह की प्रशंसा सुनकर पुर्तग़ाल के वाइसरॉय अलफ़ांसो-द-अल्बुकर्क ने सन् 1503 ई. में यहाँ पहला पुर्तग़ाली क़िला बनवाया। शहर में अब भी बहुत सा पुर्तग़ाली स्थापत्य देखने को मिलता है। कोच्चि का बंदरगाह 17वीं शताब्दी में डच के अधीन हो गया था। आगे चलकर सन् 1795 ई. में कोच्चि पर अंग्रेज़ों ने अधिकार जमा लिया था जो भारत के आज़ादी के साथ ही मुक्त हुआ।
सेंट फ्रांसिस चर्च
फोर्ट कोचीन में पुर्तग़ालियों द्वारा 1510 में बनाया गया सेंट फ्रांसिस चर्च है, जो भारतीय भूमि पर पहला यूरोपीय गिरजाघर होने के कारण विख्यात है. इस चर्च के साथ एक बहुत महत्वपूर्ण रोचक तथ्य यह जुड़ा हुआ है कि यह महान पुर्तगाली नाविक वास्को दा गामा से जुड़ा हुआ है। वास्को दा गामा जिनका निधन 16 वीं शताब्दी में हुआ था, कहते हैं जब वास्कोडिगामा तीसरी बार अपनी भारत यात्रा पर आया तो उसकी मृत्यु कोचीन में ही हुई थी। उन्हें यहीं सेंट फ्रांसिस चर्च में दफनाया गया। चौदह वषों के बाद उनके शव को लिस्बन ले जाया गया। चर्च का निर्माण पहले लकड़ी द्वारा किया गया था। इस चर्च ने अनेक दौर देखे। यह चर्च कई बार बना। सन् 1506 में फ्रांसीसी भिक्षुओं ने गारे और ईंटों का उपयोग करके इस चर्च नया जीवन दिया।
आज जिस रूप में यह चर्च नज़र आता है यह निर्माण 1516 में पूर्ण हुआ। जब प्रोटेस्टेंट डच लोगों ने शहर पर आक्रमण किया तो उन्होंने रोमन कैथोलिक चर्च को ध्वस्त नहीं किया। बाद में 1804 में डच लोगों ने चर्च को अंग्रेजी चर्च के लोगों के नियंत्रण में दे दिया और फिर यह चर्च सेंट फ्रांसिस को समर्पित कर दिया गया।
सिनेगॉग, मेटनचेरी
केरल के फोर्ट कोच्चि इलाके में स्थित सिनेगॉग देश का सबसे पुराना यहूदी प्रार्थना स्थल माना जाता है। यह सिनेगॉग अपनी अनूठी विरासत के लिए जाना जाता है। इसके निर्माण में चाइनीज टाइल्स का प्रयोग हुआ है। निर्माण में प्रयुक्त हर टाइल की अपनी अलग खासियत है। ऐसा कहा जाता है कि यहूदी लोग ढाई हजार साल पहले इजरायल से आए थे। चार हजार साल पुराना यहूदी धर्म इजरायल का राज्य धर्म है। 1524 से पहले केरल के मालाबार इलाके में बड़ी संख्या में यहूदी को मानने वाले लोग शांतिपूर्वक व्यापार करते थे। लेकिन बाद में उन्हें पुर्तगालियों से संघर्ष करना पड़ा। कोचीन के फोर्ट कोच्चि इलाके में मेटनचेरी में यहूदी धर्म का पुराना सिनेगॉग आज भी मौजूद है। यहां का परदेशी सिनेगॉग पूरे राष्ट्रमंडल देशों में सबसे प्राचीन पूजा स्थलों में से एक है। इस सिनेगॉग को सन् 1568 में कोचीन की यहूदी समाज ने बनवाया था। कोचीन का यह इलाका कभी जूविश टाउन के नाम से ही जाना जाता था।
इस जगह की वास्तुकला देखने लायक है। परदेसी सिनेगॉग की साजसज्जा पर विशेष ध्यान दिया गया है। छत से बहुत सारे झाड़ फानूस लटक रहे हैं जिन्हे बेल्जियम से मँगवाया गया था। फर्श पर चीन से लाए गये नीले सिरामिक टाइल्स बिछे हैं। उनपर हाथ से चित्रकारी की गयी है। यहाँ एक क्लॉक टॉवर भी है जिसका निर्माण सन् 1760 में किया गया था। अब यह सिनागॉग संरक्षित कर दिया गया है। यहाँ फोटो खींचना मना है।
मेटनचेरी का यह ऐतिहासिक सिनेगॉग फोर्ट कोच्चि आने वाले सैलानियों के लिए प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक बना रहेगा। यह देश की बहुलतावादी संस्कृति की अनमोल विरासत है।
महात्मा गाँधी बीच
फोर्ट कोच्चि में ही महात्मा गाँधी बीच पड़ता है। वैसे तो पूरा का पूरा फोर्ट कोच्चि देखने लायक है लेकिन शाम के समय महात्मां गाँधी बीच पर टहलना आनंदायक है। यहाँ बीच के नज़दीक ही खुले में सड़क किनारे शाम होते ही फ़ूड काउंटर खुल जाते हैं। जहाँ बैठ कर आप सी फ़ूड का आनंद ले सकते हैं। आप नज़दीक ही चाइनीज़ नेट के पास बनी फिश मार्किट से ताज़ा फिश खरीद कर इन स्टाल्स को दे सकते हैं यह लोग आपके लिए लाइव कुकिंग करके ताज़ा ताज़ा भोजन परोसते हैं। समुद्र के किनारे खुले आकाश तले बैठना बड़ा आनंद देता है।
चाइनीज़ नेट
जो लोग फोर्ट कोच्चि आते हैं उनके लिए सबसे ज़्यादा आकर्षण का केंद्र चाइनीज़ नेट देखना होता है। चाइनीज़ नेट महात्मा गांधी बीच के नज़दीक ही लगी हुई हैं। इनसे आज भी मछली पकड़ी जाती हैं। ये चीनी फिशिंग नेट भारत में कोच्चि में पहली बार चीनी यात्री ज़्हेंग हे द्वारा प्रयुक्त किये गए। पहली बार ये जाल चौदहवीं शताब्दी में कोच्चि बंदरगाह में स्थापित किये गए और तब से इनका उपयोग किया जा रहा है। आप बीच पर टहलते हुए इन्हें आराम से देख सकते हैं। यहाँ का सबसे मनोरम द्रश्य सनसेट के समय देखने को मिलता है।
सांता क्रूज़ कैथेड्रल बेसिलिका
फोर्ट कोच्चि की खासियत यह है कि एक छोटा सा टापू होते हुए भी यह जगह विश्व की कई महान सभय्ताओं के महत्वपूर्ण स्थलों का घर है। सांता क्रूज़ कैथेड्रल बेसिलिका को भी इस गिनती में शुमार किया जा सकता है।
यह कैथेड्रल फोर्ट कोच्चि में स्थित है और भारत के प्रथम चर्च में से एक है। इसका स्थान देश के मौजूदा आठ बेसीलिकाओं में है। बेशक यह एक विरासती इमारत है और इसकी मौलिकता की रक्षा करने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसकी बहुत अच्छे से देखभाल की गई है। यह गिरिजाघर शैली, स्थापत्य कला और भव्यता का शानदार नमूना है। यह शहर की उन चुनिन्दा इमारतों में से एक है जो गॉथिक स्थापत्यकला को प्रदर्शित करती है। इस इमारत में भित्ति चित्र और कैनवास पेंटिंग हैं जो ईसा मसीह के जन्म और मृत्यु की कहानी बताते हैं। इस चर्च में अंतिम सपर की प्रतिकृति है जो चर्च का प्रमुख आकर्षण है। यह इमारत चाइनीज़ नेट के नज़दीक ही है।
मरीन ड्राइव कोच्चि
मरीन ड्राइव में घूमते हुए आप कोच्चि के बैकवॉटर का आनंद ले सकते है। यह जगह मुंबई के मरीन ड्राइव से मिलती जुलती है।
हर शाम को सूर्यास्त का शानदार दृश्य देखने के लिए लोगों की भीड़ यहाँ एकत्रित होती है। यह एक लम्बी सड़क है जिसके एक किनारे समुद्र की लहरें हैं और दूसरे किनारे पर कई फास्ट फ़ूड जॉइंट है जो विभिन्न प्रकार के खान पान का प्रबंध करते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह जगह एक पसंदीदा पिकनिक स्पॉट है।
फोकलोर म्यूज़ियम देखना न भूलें….
अगर आपको केरल व दक्षिण भारत की लोक संस्कृति एक ही छत के नीचे देखनी है तो आप फोकलोर म्यूज़ियम ज़रूर जाएं। यह म्यूज़ियम बाहर से किसी राजा के महल-सा दिखाई देता है। पारंपरिक दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का जीता जागता नमूना। केरल, मालाबार, कोंकण, त्रावणकोर और तमिलनाडु के कोने-कोने से इकहट्टा की गई बेशक़ीमती कला यहाँ लाकर संजोई गई है।
अगर यह कहें कि यह ईमारत लगभग 25 पारंपरिक दक्षिण भारतीय भवनों से लिए गए नायाब हिस्सों को जोड़ कर बनाई गई है तो यह अतिशयोक्ति न होगा। इस ईमारत में हुआ लकड़ी का काम लकड़ी पर नक्कारशी करने वाले 62 पारंपरिक कारीगरों ने पूरे साढ़े सात साल लगा कर पूरा किया। मुख्य दरवाजे के बाद सत्रहवीं शताब्दी का पत्थर का दीपदान स्थापित है। फ़र्श से लेकर छत तक हर चीज़ वास्तुकला का नमूना थी। यह तीन तलों में बनी ईमारत है जिसके हर तल पर अलग अलग जगहों से लाई गई एंटीक वस्तुओं का संग्रह है। पत्थर की मूर्तियां, वाद्य यंत्र, गहने, कपड़े, फर्नीचर, आभूषण, पेंटिंग, बर्तन, मुखोटे, धातु की मूर्तियां, सिक्के, ताम्रपत्र, मंदिरों के अलंकार की वस्तुएं, बड़े बड़े दीपदान आदि
केरल का पारंपरिक नृत्य
केरल जाएं और कथकली नृत्य की प्रस्तुति न देखें ऐसा तो नहीं सकता। फोर्ट कोच्चि इलाके में ही कई ऐसे संस्थान है जो इस नृत्य कला को प्रमोट करने के लिए कार्यक्रम चलाते हैं और हर शाम इसकी प्रस्तुति की जाती अगर आप पारंपरिक नृत्य शैलियों को पसंद करते हैं तो इन डांस परफॉरमेंस के शुरू होने से 1 घंटा पहले जाएं। आपको इन कलाकारों का मेक अप होते हुए देखने को मिल जाएगा। जोकि मुख्य मुख्य नाट्य प्रस्तुति से भी ज़्यादा रोचक है। यह लोग बड़ी तन्मयता से अलग अलग पात्रों के अनुसार श्रृंगार करते हैं। कथकली में मेक-अप का अहम रोल है। कथकली नृत्य को एन्जॉय करने के लिए ज़रूरी है कि इस नृत्य शैली को जाना जाए। कथकली का एक समृध्द इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि कथकली नृत्य कला 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जन्मी। राजा कोट्टाराक्करा तंपुरान ने रामनाट्टम नृत्य कला का अविष्कार किया और कालांतर में यह नृत्य कला कथकली के रूप में विकसित हुई। तब से आज तक इस नृत्य कला में कई बदलाव हुए। कालांतर में इस नृत्य शैली को कई बड़े राजाओं का सहयोग मिला जैसे तिरूवितांकूर के महाराजा कार्तिक तिरूनाल, रामवर्मा, नाट्यकला विशारद कप्लिंगाट्ट नारायणन नंपूतिरि आदि।
इन सभी ने इस कला को निखारने में अपना योगदान दिया। यह नृत्य कला दक्षिण में कोचीन, मालाबार और ट्रावनकोर क्षेत्र के आस पास प्रचलित नृत्य शैली है। इस नृत्य कला केरल की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय रंगकला का दर्ज प्राप्त है। इस नृत्य कला का सबसे आकर्षक पहलु है इसकी वेशभूषा। बड़े और विशाल वस्त्र और मुखोटे। पूरी वेश भूषा में चटख रंगों का प्रयोग। यह कलाकार बड़ी मेहनत और लगन से अपना श्रृंगार करते हैं।
रंगों से भरी वेशभूषा धारण किये कलाकार अपने साथी कलाकार गायकों द्वारा गाये जाने वाली पौराणिक कथाओं को अपनी हस्त मुद्राओं और चेहरे के भावों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं। कार्यक्रम के शुरू होने से पहले कलाकार दीप प्रज्जवलित कर नृत्य के देवता नटराज की स्तुति करते हैं। इस दीपक को आट्टविलक्कु कहा जाता हैं। नाट्य प्रस्तुति की शुरुवात कलाकार एक एक हस्त मुद्रा को दर्शकों को समझा कर करते हैं, साथ ही विभिन्न भावों को मुख और आँखों से प्रकट करके बताते हैं।
कलरीपायट्टु – प्राचीन भारतीय युद्धकला
फोर्ट कोचीन में ऐसे कई संगठन और केंद हैं जो इस राज्य और नज़दीकी राज्यों में पाई जाने वाली कलाओं के संरक्षण में लगे हैं साथ ही वह इस कला को जीवित रखने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं इसी कड़ी में नाम आता है कोचीन सांस्कृतिक केन्द्र यह एक ऐसा स्थान हैं जहाँ एक छत के नीचे है आपको कई कलाएं देखने को मिल जाएंगी। जैसे कथकली, मोहिनीअट्टम, भरतनाट्यम और कलरीपयट्टु।
कोचीन सांस्कृतिक केन्द्र फोर्ट कोच्ची बस स्टैण्ड के बराबर, संगमम माणिकथ रोड पर स्थित है। यहाँ हर रोज़ शाम को यह नाट्य प्रस्तुतियां की जाती है।
इतिहास
ऐसा माना जाता है कि अगस्त्य मुनि ने कलारीपयट्टू युद्ध कला का अविष्कार किया। यहाँ के लोग इस बात से जुड़ी एक कहानी भी सुनाते हैं। अगस्त्य मुनि एक छोटी कद-काठी के साधारण से दुबले पतले और नाटे इंसान थे । उन्होंने कलरीपायट्टु की रचना खास तौर पर जंगली जानवरों से लड़ने के लिए की थी। अगस्त्य मुनि जंगलों में भ्रमण करते थे। उस समय इस क्षेत्र में काफी तादाद में शेर घूमा करते थे। शेरों के अलावा कई बड़े और ताकतवर जंगली जानवर इंसानों पर हमला कर देते थे इन हमलों से अपने बचाव के लिए अगस्त्य मुनि ने जंगली जानवरों से लड़ने का एक तरीका विकसित किया। जिसे नाम मिला-कलारीपयट्टू। इस क्रम में एक और ऋषि का नाम आता है जिन्हें हम परशुराम कहते हैं। मुनि परशुराम ने इस कला को सामरिक युद्ध कला से जोड़ा और इसके बल पर अकेले ही कितनी ही सैनाओं को हराया। परशुराम ने ही इस कला में शस्त्रों को जोड़ा। परशुराम की शिक्षा प्रणाली में सभी प्रकार के हथियारों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें हाथ से चलाए जाने वाले शस्त्र, फेंकने वाले शस्त्र के साथ कई तरह के शस्त्र शामिल हैं। इन हथियारों में लाठी मुख्य रूप से प्रयोग में लाई जाती है।
यह केरल राज्य की प्राचीनतम युद्ध कला है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि यह एक ऐसी प्राचीनतम युद्ध कला है जो अभी तक जीवित है, जिसका श्रेय यहाँ के लोगों को जाता है जिन्होंने इसे अभी तक जीवित रखा है। केरल की योद्धा जातियां जैसे नायर और चव्हाण ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई है। यह जातियां केरल की योद्धा जातियां थी जोकि अपने राजा और राज्य की रक्षा के लिए इस युद्ध कला का अभ्यास किया करती थीं। कलरीपायट्टु मल्लयुद्ध का परिष्कृत रूप भी माना जाता है।
स्वाद केरल के
Kappa_and_Fish_Curry_Kerala_Cuisineकेरल में जहाँ पुर्तगाली, डच अँगरेज़ और अरब व्यापार के लिए आए वहीँ वह लोग अपने देश के स्वाद भी साथ लाए। यह स्वाद केरल के मसालों संग मिल और भी खिल उठे। इसीलिए पूरे केरल में आपको भिन्न भिन्न स्वाद चखने को मिलते हैं। मूल रूप से मछवारों के गांव होने के कारण यहाँ सी फ़ूड की बहुलता देखने को मिलती है।
अगर आप सी फ़ूड के शौक़ीन हैं तो यह जगह आपके लिए मक्का के समान है। यहाँ शाम होते ही बीच के नज़दीक ही खुले में सड़क किनारे फ़ूड काउंटर खुल जाते हैं। जहाँ बैठ कर आप सी फ़ूड का आनंद ले सकते हैं। आप नज़दीक ही चाइनीज़ नेट के पास बनी फिश मार्किट से ताज़ा फिश खरीद कर इन स्टाल्स को दे सकते हैं यह लोग आपके लिए लाइव कुकिंग करके ताज़ा ताज़ा भोजन परोसते हैं। समुद्र के किनारे खुले आकाश तले बैठना बड़ा आनंद देता है।
अगर आपको बिरयानी खानी है तो मटनचेरी में कईस की बिरयानी ज़रूर ट्राई करें। यह बिरयानी हैदराबादी या अन्य भारतीय बिरयानियों से अलग है। इस बिरयानी में आपको अरब देश का स्वाद मिलेगा। मालाबार से आए लोगों के साथ यहाँ पहुंचा उनका खाना और पाक कला। इसी लिए यहाँ मालाबार प्रोन करी बहुत मशहूर है। यहाँ मछली को तेज़ मसालों के साथ मेरिनेट करके फ्राई किया जाता है। इस कड़ी में आप छुटटोली मीन ज़रूर ट्राई करें। मटनचेरी में रेहमतुल्ला का फेमस मटन करी ज़रूर ट्राई करें। अगर आप शुद्ध शाकाहारी हैं तब भी यहाँ आपके लिए बहुत कुछ है खाने के लिए।
यहाँ के नाश्ते बड़े मज़ेदार होते हैं जैसे पाज़ंपोरी, परिपूवादा, नेयपपम, कुज़लपपम, नेयपपम, उन्नियपपम, सुखियाँ और अचपपम, पुट्टू, कडाला आदि ज़रूर खाएं इसके लिए महात्मा गाँधी रोड पर पंडाल एक अच्छी जगह है।
सुजीत भक्तन जोकि एक ब्लॉगर हैं, बताते हैं कि अगर आप शाकाहारी हैं तो आपके लिए यहाँ साल में 1 बार एक बहुत बड़ा फेस्ट-आरन्मूला वल्लसाध्या 15 जुलाई से 2 ऑक्टूबर के बीच सरी पार्थसारथी टेंपल, अरन्मूला में होता है। जिसमें भक्त अपने आराध्य देव पार्थसारथी कृष्णा को महाभोज अर्पित करते हैं। इस भोज में 70 प्रकार के खाद्य सामग्री होती है।
और वह भी शुद्ध शाकाहारी। अगर आप भी ऐसी महान दावत आयोजित करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पहले से बुकिंग करनी होगी। अगर आप सिर्फ इस दावत को चखना चाहते हैं तो कूपन लेकर इस दावत का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। क्यूंकि यह धर्म से जुड़ा फेस्ट है इस लिए कुछ गाइडलाइंस हैं जिनका पालन करना अनिवार्य है। यह महाभोज बोट रेस से पहले आयोजित किया जाता है। और इसे खाने से पहले आपको संस्कृत के मन्त्रों का उच्चारण भी करना होगा साथ ही कोरस में गाना भी होगा।
है न अनोखा फेस्टिवल। यह मंदिर अरानमुला में स्थित है जोकि कोच्चि से 120 किलोमीटर की दूरी पर है।
आस पास के दार्शनिक स्थल
विलिंग्डन द्वीप
विलिंगडन द्वीप का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने व्यापारिक सम्बंधों को बढ़ाने के लिए किया था। इस समुद्री बंदरगाह को बनाने के लिए रेतीली भूमि का एक हिस्सा वेम्बानाड़ झील से बहार निकाला गया और आज यह भारत का सबसे बड़ा मानव निर्मित द्वीप है। विलिंगडन द्वीप कोच्चि में स्थित एक समुद्री बंदरगाह है। इस द्वीप का निर्माण इस तरह किया गया है कि यह सड़क मार्ग और रेल मार्ग से आसानी से जुड़ता है। इस द्वीप का नाम सर विलिंगडन के नाम पर रखा गया। उन्होंने ही इस प्रोजेक्ट की शुरुवात की थी।
झील एक आकर्षक पिकनिक स्थल भी है यह झील बेकवाटर पर्यटन के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है। यहां बोटिंग, फिशिंग और साइटसिंग के अनुभवों का आनंद लिया जा सकता है।
चेराई बीच
चेराई बीच कोच्चि के लोकप्रिय समुद्र तटों में से एक है। यह कोच्चि से लगभग 25 किमी. की दूरी पर स्थित है। अगर आप शहर की आपाधापी से दूर शांति में सूर्यास्त के दृश्य का आनंद उठाना चाहते हैं तो चेराई बीच ज़रूर जाएं। इस बीच तक आप फेरी से समुद्र के रास्ते भी पहुँच सकते हैं या सड़क मार्ग से भी आसानी से पंहुचा जा सकता है।
चराई बीच पर आप अद्भुत समुद्री भोजन का स्वाद ले सकते हैं। यहाँ आकर आप ताज़ा समुद्री भोजन का लुत्फ़ बड़े ही मुनासिब दामों पर उठा सकते हैं।
आस पास के दार्शनिक स्थल
कोट्ट्यम केरल
कोट्ट्यम केरल का एक खूबसूरत शहर है। यह कोच्चि से मात्र ५० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोट्ट्यम मलयालम भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है किला। इस छोटे से शहर में इतना कुछ है देखने को की आपका हॉलिडे बन जाएगा। यह जगह बेहद खूबसूरत है इसी लिए इस स्थान को लैंड ऑफ लैटर्स की उपाधि से नवाज़ा गया है।
जैसे पुंजार महल, थिरूंक्कारा महादेव मंदिर, पल्लीप्पराथू कावू, थिरूवेरपू मंदिर और सरस्वती मंदिर, कोट्टयम् के निकट स्थित कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं। कोट्ट्यम को वेम्बनाड झील का वरदान प्राप्त है इसलिए यहाँ के बैकवाटर्स बहुत खूबसूरत हैं। आप पानी की इन सुन्दर नहरों में बोटिंग कर सकते हैं, यहां फिशिंग और साइटसीइंग के अनुभवों का आनंद भी लिया जा सकता है। ओणम पर्व के मौके पर पर यहां नौकायन प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। जुलाई माह में यहाँ प्रसिद्ध एलिफेंट परेड आयोजित की जाती है। जिसे देखने देश विदेश से सैलानी यहाँ आते हैं। हाथियों को खूबसूरत स्वर्ण मुकुट से सजाया जाता है। गीत संगीत के साथ यह परेड निकलती है।
शॉपिंग
शॉपिंग के मामले में कोच्चि जहाँ हेरिटेज मार्किट के लिए जाना जाता है वहीँ आधुनिकता में भी किसी से पीछे नहीं है। फोर्ट कोच्चि से मटनचेरी तक के दो किलोमीटर के दायरे में फैला बाजार रोड हमेशा से सैलानियों को लुभाता है। यहाँ से आप एंटीक सामान, फर्नीचर, कपड़े और केरल के शानदार मसाले ख़रीद सकते हैं। दालचीनी, छोटी इलायची, जायफल, जावित्री और कालीमिर्च की ताज़ी ताज़ी खुशबू आपको मोह लेगी। जब मसाले खरीदें तो वॅक्यूमेड सील पैक ही खरीदें इससे मसलों का एरोमा बरक़रार रहता है।
फोर्ट कोच्चि में सोवेनियर शॉप से छोटी हाउसबोट और कथकली का मुखौटा खरीदना न भूलें। यहाँ से नारियल के तेल से बने होम मेड साबुन ज़रूर खरीदें।
अगर आप केरल की पारम्परिक गोल्डन जारी बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी खरीदना चाहते हैं तो महात्मा गाँधी रोड मार्किट सबसे अच्छी है। यहाँ से आप बच्चों के लिए केरल के पारम्परिक परिधान भी खरीद सकते हैं।
आप यहाँ से केले के चिप्स ज़रूर खरीदें। यह मीठे और नमकीन दोनों तरह के होते हैं।
अगर मैं कहूं की एशिया का सबसे बड़ा शॉपिंग माल यहीं कोच्चि में हैं तो आप मानेंगे। जी हाँ, लूलू शॉपिंग माल अपने आप में देखने से ताल्लुक़ रखता है। इसके फ़ूड कोर्ट में एक समय में 3000 लोग एक साथ भोजन कर सकते हैं।
केरली आयुर्वेद स्पा और पंचकर्मा
आप कोच्चि जाएं और यहाँ की प्राचीन आयुर्वेद की शरण में न जाएं तो आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी। लोग सात समुन्दर पार करके केरल खास रिजूवनेट होने आते हैं।यहाँ हज़ारों साल से संजो कर रखी गई केरली आयुर्वेद स्पा और पंचकर्मा की जादुई दुनिया आपको स्वस्थ और स्फूर्ति से नया जीवन देगी। यहाँ फोर्ट
कोच्चि में अनेक केरली आयुर्वेदा स्पा और पंचकर्मा सेंटर हैं जो अपनी पारम्परिक पद्धति से आपको स्पा ट्रटमेंट देते हैं। जिसमे प्रमुख हैं शिरोधारा, पंचकर्मा, मड थेरेपी आदि।
यहाँ आप प्राचीन नुस्खों से नई त्वचा पा सकते हैं वो भी बिना किसी केमिकल को प्रयोग किये। केरली आयुर्वेद में यहाँ पर उगने वाले एक खास प्रकार के चावल को दूध और जड़ीबूटियों के साथ उबाल कर पोटली बनाई जाती है जिससे बॉडी पॉलिशिंग की जाती है।
केरली आयुर्वेदा स्पा और पंचकर्मा करवाना कोच्चि यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है। इसलिए यह सुख उठाना न भूलें।
कैसे पहुंचें ?
कोचिन रेल, वायु और सड़क मार्ग से देश के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है।
शानदार likha hai aapne kaynat ji ..
Thanks a lot Ankit ji for liking my work