विशाखापट्नम भारत का एक मात्र ऐसा शहर है जिससे समुद्र तट के साथ लगी खूबसूरत पर्वतमालाएं भी मिली हैं। नीला शीशे-सा चमक मरता पानी और नज़दीक ही बनी हरी भरी पहाड़ियां बहुत ही खूबसूरत लेण्डस्केप बनाती हैं। जैसे किसी चित्रकार ने अपनी कूंची से कैनवास पर रंग भर दिए हों।
विशाखापट्नम जिसे वाईज़ैग भी कहा जाता है कोरामंडल तट पर बसा एक शांत और बेहद साफ सुथरा शहर है। कोरामंडल तट को लेकर यहाँ कई कहानियां प्रचलित हैं। कहते हैं कि सही शब्द कोरामंडल नहीं चोल-मंडलम था। इस क्षेत्र में चोल राजाओं का शासन था। और इस क्षेत्र या मंडल को तमिल भाषा में चोल-मंडलम कहते थे। लेकिन यह शब्द फ़्रांस और पुर्तगाल से आए उपनिवेशी सौदागर के लिए बोलना कठिन था इसलिए उन्होंने चोल-मंडलम को कोरामंडल कह कर पुकारा। तभी से इस तट का नाम कोरामंडल तट पड़ा।
इस शहर का इतिहास भले ही ईसा मसीह से भी पहले का हो लेकिन यह शहर हर मामले में आधुनिक है। कहते हैं कि यह शहर कभी मछुवारों का गांव हुआ करता था। आज यह भारतीय नौसेना के पूर्वी कमांड का केन्द्र है। मछवारों के आदिवासी जीवन की सादगी और भारतीय सेना की रुतबा इस शहर को बहुत ही अनोखा बनाता है। इसीलिए शायद इस शहर को देश के सबसे स्वच्छ शहर के तमगे से नवाज़ा गया है।
विशाखापट्नम का सम्बन्ध महात्माबुद्ध से भी देखने को मिलता है। यहाँ शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर तोट्लकोंडा नामक स्थान पर 2500 साल पुराने एक बौद्ध मठ के अवशेष मिलते हैं। इस बौद्ध मठ का सम्बन्ध बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय से माना जाता है।
विशाखापट्नम बंदरगाह
विशाखापट्नम एक छोटी खाड़ी पर बसा है, इसलिए इसे हार्बर सिटी भी कहते हैं। और क्यों न कहें विशाखापट्नम बंदरगाह देश का सबसे गहरा बंदरगाह जो है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है।
सामरिक द्रष्टि से इस शहर का बहुत ही महत्वपूर्ण रोल रहा है। कौशिक मुखर्जी जोकि इस शहर की रग रग से वाक़िफ़ हैं बताते हैं कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय में इस पोर्ट का महत्व इतना था कि बिर्टिश आर्मी ने इस पोर्ट की रक्षा के लिए यहाँ पिलबॉक्स बनाए थे। पीलबॉक्स एक प्रकार की कंक्रीट की संरचना होती है जिसके अंदर मशीनगन रखी जाती हैं। 1933 में यह बंदरगाह व्यापार के लिए खोला गया था। विशाखापट्नम बंदरगाह में 170 मीटर लम्बे ज़हाज ठहर सकते हैं। यह व्यापार में देश का चौथा सबसे बड़ा बंदरगाह है। किसी ज़माने में व्यापारियों के लिए हार्बर सिटी विशाखापट्टनम कलकत्ता के पोर्ट से भी ज़्यादा आकर्षक थी क्यूंकि यहाँ तक पहुँचने में कम समय लगता था। यहाँ एक पानी का जहाज़ बनाने का कारख़ाना भी है।
रामकृष्ण समुद्र तट:
विशाखापट्नम में अनेक बीच मौजूद हैं लेकिन यहाँ का सबसे आकर्षक बीच रामकृष्ण बीच है। शहर के दिल में होने के कारण यह बीच लोगों में ख़ासा प्रिये है। इस तट से लगा हुआ ही बीच रोड है। जिसके एक पूरब में बीच है और पश्चिम में खूबसूरत इमारतों की सजीली पंक्तियाँ। इन्हीं इमारतों के बीच रामकृष्ण मिशन भवन है, इसी भवन के नाम पर इस बीच का नाम रामकृष्ण बीच पड़ा। बीच रोड को सजाने में यहाँ के नगर निगम ने कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रखी है। रोड के किनारे बने छोटे छोटे पार्क और जगह-जगह लगी मूर्तियां इस जगह को जीवंतता देती हैं।
यहाँ सुबह सात बजे से पहले यातायात की आवाजाही पर रोक सिर्फ इसलिए लगी हुई है क्यूंकि यहाँ बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मॉर्निंग वॉक के लिए आते हैं। भोर की पहली किरण से ही यहाँ चहल पहल देखी जा सकती है। क्यूंकि यह देश का पूर्वी तट है इसलिए यहाँ से सूर्योदय देखना बड़ा ही सुखद अनुभव है। बंगाल की खाड़ी के साफ़ नील पानी से रक्ताम्भित सूर्य का उदय नयनाभिराम वाला होता है। सुनहरी रेत पर पड़ती सूर्य आभा बहुत सुन्दर लगती है।
बीच रोड एक तरह से इस शहर के सूत्रधार की भूमिका निभाता है और कई मुख्य आकर्षणों को अपने साथ बांधे रखता है। इसी के सहारे सहारे चलते जाइये और आप देख सकेंगे यहाँ के मुख्य आकर्षण जैसे, आई एन एस कुरसुरा पनडुब्बी, एयरफोर्स संग्रहालय, मत्स्यदर्शिनी, फिशिंग डॉक, ज़ू फ्रंट गेट, वुदा पार्क, चिल्ड्रन पार्क, ऋषिकोंडा बीच, आंध्र प्रदेश टूरिज्म बोर्ड द्वारा संचालित बोटिंग पॉइंट और भीमली बीच आदि सभी इसी के साथ एक डोर में बंधे जान पड़ते हैं।
वैसे तो पूरा दिन बीच के किनारे काफी रौनक रहती है। लेकिन शाम होते ही यह रौनक और बढ़ने लगती है। अगर वीकेंड है तो यहां स्थानीय लोगों का जमघट भी लग जाता है। तट के आसपास कुछ छोटे रेस्तरां भी हैं। जहां अन्य भोजन के साथ सी फूड का स्वाद भी लिया जा सकता है। तट पर भी खानपान के कुछ स्टाल सजने लगते हैं। यहीं कुछ दुकानों पर शंख और सीपियों से बने हस्तशिल्प के सामान भी खूब मिलते हैं।
ऋषिकोंडा बीच
अगर आप समुद्र की दमदार लहरों के साथ दो दो हाथ करना चाहते हैं तो ऋषिकोंडा बीच आप जैसे एडवेंचर प्रेमियों के लिए बहुत कुछ ऑफर करता है। आप यहाँ वाटर स्पोर्ट्स जैसे कायकिंग, स्कूबा डाइविंग आदि का मज़ा ले सकते हैं ।यहाँ प्रोफेशनल स्कूबा डाइविंग ट्रेनर्स की निगरानी में यह सारी एक्टिविटीज करवाई जाती हैं। यहाँ अनेक रेस्टोरेंट मौजूद हैं जहाँ बैठ कर आप अपनी थकान मिटा सकते हैं। ऋषिकोंडा बीच आंध्र प्रदेश के सबसे सुंदर समुद्र तटों में से एक है, यहाँ का पानी जैसे आपको बांध लेता है अभी अधिक पर्यटक न होने के कारण यह अभी साफ सुथरा है। ऋषिकोंडा बीच शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर है।
इंदिरा गांधी जूलोजिकल पार्क
लगभग 450 एकड़ में फैले इस प्राणी उद्यान में विभिन्न पशु-पक्षियों को उनका प्राकृतिक परिवेश प्रदान करने का प्रयास किया गया है। इसलिए इसे देखना सुखद लगता है। यह सुन्दर वन्य जीव उद्यान सोमवार के दिन बंद रहता है। शहर के इतना नज़दीक होने के बावजूद यहाँ पर वन्य जीवों की कोई कमी नहीं है। यह अभ्यारण वन्य जीवों की 400 अलग-अलग प्रजातियों का घर है।
डॉल्फिन नोज़(नाक):
अगर आप रामकृष्ण बीच पर खड़े हैं तो आपके दाईं ओर छितिज पर एक अनोखी संरचना दिखाई देगी। यह गोलाकार लिए हुई एक पहाड़ी है जिसे डॉल्फिन नोज़ कहा जाता है। इसकी ऊंचाई 350 मीटर है, आज़ादी से पहले ब्रिटिश आर्मी इस ऊँचे स्थान का उपयोग पूरे बंदरगाह और शहर पर निगरानी करने के लिए करती थी। यहाँ एक लाइटहाउस भी है। यहाँ एक चर्च, एक मज़ार और एक मंदिर मौजूद है।
कुरसुरा सबमरीन म्यूजियम
आप विशाखापट्नम जाएं और कुरसुरा सबमरीन म्यूज़ियम न देखें ऐसा तो हो ही नहीं सकता। बीच रोड पर अपनी पूरी शान के साथ खड़ी कुरसुरा सबमरीन विशाखापट्नम की पहचान है। इस सबमरीन को सोवियत संघ से मंगवाया गया था। फणिराज जी जोकि पंद्रह साल इस सबमरीन पर तैनात रहे हैं और आजकल इस सबमरीन के क्यूरेटर की ज़िम्मेदारी संभल रहे हैं बताते हैं “कि यह भारतीय नौसेना पनडुब्बी शाखा की नींव का पत्थर थी। अपनी सेवा के 31 गौरवशाली वर्षों के दौरान पनडुब्बी ने 73,500 समुद्री मील की दूरी तय करते हुए लगभग सभी प्रकार नौसेना संचालन में भाग लिया। आईएनएस कुरसुरा ने 1971 के भारत – पाक युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस पनडुब्बी ने अपनी अग्रणी यात्राओं और दूसरे देशों में ध्वज दर्शन के मिशन के माध्यम से सद्भावना और सौहार्द का विस्तार किया था। अपने विशाल जीवन काल में, आईएनएस कुरसुरा ने 13 बार नियंत्रण बदले, इसके अंतिम कमांडिंग अधिकारी कमांडर के.एम. श्रीधरन रहे हैं। आईएनएस कुरसुरा को 27 फरवरी 2001 को डिकमीशन किया गया था। इसकी डिकमीशन के बाद कुरसुरा पनडुब्बी को आर.के. समुद्रतट विशाखापटनम में स्थित एक पनडुब्बी संग्रहालय में बदला गया। इस संग्रहालय का उद्घाटन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा 09 अगस्त 2002 को किया गया और 24 अगस्त 2002 को इसे जनता के लिए खोला गया”
इस पनडुब्बी पर 75 लोगों की ड्यूटी रहती थी। समुद्र से इसे यहाँ तक लाने में डेढ़ साल का समय लगा। सबमरीन में दर्शकों को समझने के लिए मॉडल द्वारा समुद्र की गहराईयों के नीचे वास्तविक जीवन का पुनः चित्रण किया गया है। हर वर्ष हज़ारों की तादाद में पर्यटक कुरसुरा सबमरीन म्यूज़ियम देखने आते हैं। आज भले ही भारत खुद सबमरीन निर्माण में स्वालम्बी हो चुका है लेकिन सबमरीन के इतिहास में कुरसुरा सबमरीन का नाम अभी भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
टी यू 142 एयरक्राफ्ट म्यूज़ियम
कुरसुरा सबमरीन म्यूजियम के सामने ही एयरक्राफ्ट म्यूज़ियम है। विशाखापत्तनम अर्बन डेवेवलॅपमेंट अथॉरिटी ने 14 करोड़ की लागत लगा कर इस अनोखे संग्रहालय का निर्माण किया है। इस म्यूजियम का उद्घाटन माननीय राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद जी के हाथों से 2017 में किया गया था। इस संग्रहालय में आप टी यू 142 एयरक्राफ्ट के भीतर जाकर भी देख सकेंगे। इस संग्रहालय में कई दीर्घाएं है जिनमे मॉडल द्वारा भारतीय वायुसेना की गतिविधियों को प्रदर्शित किया गया है। बच्चों को यह म्यूज़ियम बहुत लुभाता है। इसके बाहर वाइजैग के अल्फाबेट लगाए गए हैं जिसके साथ युवाओं में सेल्फी लेने का बड़ा ही क्रेज़ है।
कैलाशगिरि
अगर आपको विशाखापट्नम का सबसे खूबसूरत व्यू देखना है तो कैलाशगिरि ज़रूर जाएं। कोशिश करें कि या तो सुबह के समय जाएं या फिर शाम के समय जाएं। कैलाशगिरि एक छोटी सी पहाड़ी का नाम है जिस पर एक खूबसूरत पार्क बना है। इस पार्क की चोटी पर शिव पार्वती की धवल प्रतिमा आपका स्वागत करती है। चारों और हरयाली और ऊपर साफ नीला आकाश देखने लायक दृश्य बनता है। कैलाशगिरि तक पहुंचने के लिए नीचे से केबिल कार द्वारा भी जाया जा सकता है। 90 रुपए खर्च कर इस रोप वे का आनंद उठा सकते हैं। पहाड़ी पर ही चिल्ड्रन पार्क, टाइटेनिक व्यूप्वाइंट, फूलघड़ी, टेलीस्कोपिक प्वाइंट भी है। यहाँ बच्चों के लिए एक टॉय ट्रैन भी मौजूद है।
पहाड़ी से एक दिशा में विशाखापट्नम का विहंगम दृश्य नजर आता है। कैलाशगिरि पहुँचने का रास्ता बहुत सुन्दर है। आपके साथ साथ समुद्र तट भी चलता रहता है। जब आप बोटिंग करने समुद्र में जाएंगे तो वहां से कैलाश गिरी नज़र आती है। दूर से ही पहाड़ी पर सफ़ेद अक्षरों में लिखा कैलाशगिरि सुन्दर लगता है। यहाँ से बंगाल की खाड़ी का द्रश्य बहुत सुन्दर नज़र आता है। यह पार्क सुबह आठ से शाम आठ बजे तक खुला रहता है।
सिंहाचलम मंदिर
सिंहाचलम मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित एक भव्य मंदिर है. इस मंदिर का यहाँ के स्थानीय लोगों में बड़ा महत्व है। हर साल यहाँ हज़ारों की तादाद में लोग परिक्रमा करने आते हैं। हर वर्ष जून जुलाई माह में श्रद्धालु सिंहाचलम पर्वत की 34 किलोमीटर लम्बी परिक्रमा करते हैं।
इस मंदिर की वास्तुकला देखने लायक है। यहाँ हिरण्यकश्यप और भक्त प्रलाद की पौराणिक कहानी मूर्ति स्वरुप में दर्शाई गई है।
इस मंदिर का मुख पश्चिम की ओर है। मंदिर की केंद्रीय भाग को कलिंग वास्तुकला शैली के अनुसार बनाया गया है। यह मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जिसके कारण इस मंदिर का नाम सिंहाचलम पड़ा है। “सिंह” का संस्कृत में अर्थ होता है “शेर” और “अद्रि” व् “अचल” का अर्थ है पहाड़ी। यह मंदिर भगवान् नरसिंह के भारत में स्थित 18 “नरसिंह क्षेत्रों” में से एक है।
मंदिर की सजावट देखने लायक होती है। यह मंदिर विशाखापट्नम से 20 किलोमीटर दूर हरे भरे सिंहाचलम पर्वत की चोटी पर बना है। यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत सुहावना है।
रोस हिल चर्च
कहते हैं विशाखापट्नम की आत्मा उसकी तीन पहाड़ियों में निहित है। इन तीन पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी को रोस हिल कहा जाता है जहाँ एक सुन्दर सफ़ेद चर्च है। इस चर्च का नाम मदर मेरी चर्च है। यह चर्च सन 1864 में बना था। बाक़ी की दो चोटियों में एक चोटी पर बाबा इश्क़ मदीना की दरगाह है और दूसरी पर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर। यह तीनों हिल्स विशाखापट्नम के लोगों के बीच के सम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक हैं।
इंटरनेशनल यॉट फेस्टिवल
भारत में यॉट टूरिज्म बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। अभी तक यॉट जैसी लग्ज़री के लिए लोगों को थाईलैंड जाना होता था या फिर गोवा में भी कुछ लोग अपना यह शौक़ पूरा कर लेते थे। लेकिन पूर्वी तट पर ऐसा कुछ नहीं था। अगर आप एडवेंचर टूरिज्म, वॉटर स्पोर्ट्स की बात करें तो देश का पूर्वी तट इस विषय पर सूखा ही पड़ा था। जबकि यहाँ का पानी बहुत साफ़ है। ऐसे में यॉट टूरिज्म की शुरुवात करने का बीड़ा उठाया आंध्र प्रदेश टूरिज्म ने। महीनों की मेहनत और नेवी के कड़े क़ानूनों के बीच विशाखापट्नम के खूबसूरत समुद्री तट पर देश का पहला इंटरनेशनल यॉट फेस्टिवल मनाया गया। और इसी के साथ आगाज़ हुआ वॉटर स्पोर्ट्स की एक नई शुरुवात का। अब से विशाखापट्नम यॉट टूरिज्म के लिए भी जाना जाएगा।
सफ़ेद आलीशान यॉट जब समुद्र के विशाल विस्तार पर हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ती है तो सैलानियों का जोश देखने लायक होता है। यहाँ कई साइज़ की यॉट उपलब्ध हैं। आप बड़े यॉट में लोगों के साथ इस लग्ज़री का आनंद ले सकते हैं या फिर नितांत निजी अनुभव लेने छोटे यॉट पर भी जा सकते हैं। छोटे यॉट पर एक केबिन होता है और आपकी हर सुविधा का ध्यान रखा जाता है। आप इस यॉट पर मज़े से फिशिंग भी कर हैं।
यॉट पर सवार हो आप पलक झपकते ही तट से दूर बहुत दूर समुन्द्र की गहराईयों पर बढ़ते जाते हैं और पीछे छूट जाता है विशाखापट्नम शहर का सिटीस्केप। क़तार में सजी इमारतें और उनके पीछे की पहाड़ियां हाथ हिला हिला कर आपका अभिवादन करती हुई। एक बार यॉट पर बिताया हॉलिडे आपको ढ़ेर सारी ऊर्जा से भर देगा।
विशाखापट्नम का जायका
विशाखापट्नम का खाना जाना जाता है अपने तेज़ और तीखे मसालों के लिए। पूरे आंध्र प्रदेश के खानों में मिर्ची का एक अहम् रोल होता है। पसिरेड्डू यहाँ की मशहूर डिश है जिसे लोग नाश्ते में खाना पसंद करते हैं। मुंग की दाल से बना यह व्यंजन नारियल और टमाटर की चटनी के साथ खाया जाता है। ऋषिकोंडा पहाड़ी के पास एक छोटा सा रेस्टोरेंट है जिसे राजू और उनकी पत्नी चलाते हैं। इनका यह रेस्टोरेंट सी फ़ूड के लिए बहुत मशहूर है। यहाँ का मटन करी, फ्राई फिश और प्रॉन्स मसाला ज़रूर चखें। विशाखापट्नम का खाना मसालों से भरपूर होता है।
रामकृष्ण बीच पर शाम के स्नेक्स का मज़ा ज़रूर लें। यहाँ पर भुट्टे, चाट, पानीपुरी, मुरी, कच्चा आम मसालेदार आदि ज़रूर ट्राई करें। यहाँ मिर्ची के पकोड़े और केले के पकोड़े भी बहुत स्वाद मिलते हैं।
डिनर में मटन गोंगुरा ज़रूर ट्राई करें। यहाँ की दम बिरयानी भी बहुत मशहूर है। वैसे तो विशाखापट्नम नॉन वेज खाने वालों के लिए स्वर्ग के समान है लेकिन अगर आप वेजिटेरिअन हैं तो आपके लिए भी यहाँ कई अनोखे स्वाद मिलते हैं जैसे, कर्ड राईस, गुट्टी वानकाया कुरा (भरवां बैगन की करी) पुलिहोरा, उपमा, मेदूवड़ा आदि।
शॉपिंग
विशाखापट्नम में शॉपिंग के लिए दो बाजार हैं श्रीपुरम और वॉटर रोड मार्किट। आप यहाँ से पोचमपल्ली, कलमकारी साड़ी और फेब्रिक खरीद सकते हैं। नज़दीक ही विजयवाड़ा है जहाँ बेहतरीन खद्दर यानि लेनिन फेब्रिक बनता है, आप वो भी इन बाजारों से खरीद सकते हैं। विशाखापट्नम से आप ट्रेडिशनल वुडन टॉय खरीद सकते हैं। बीच रोड पर सीप से बने हेंडीक्राफ्ट भी ख़रीदे जा सकते हैं।
अराकू वैली
अराकू वैली विशाखापट्टनम से 114 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राकृतिक सौंदर्य का बेहतरीन नमूना है। यह आंध्र प्रदेश का एक मात्र हिल स्टेशन है। शहर पूर्वी घाट के खूबसूरत स्थलों के बीच स्थित है और इसका एक समृद्ध सांस्कृतिक के साथ ही पारंपरिक अतीत है। यह जगह शायद दक्षिण में सबसे खूबसूरत हिल स्टेशन है। भौगोलिक रूप से अराकू वैली को अनंतगिरी और संकरीमेट्टा आरक्षित वन की नैसर्गिक सुंदरता का वरदान मिला है। यह वैली गलीकोंडा, रक्तकोंडा, चितामोगोंडी, और संकरीमेट्टा के पहाड़ों से घिरी हुई है। गलीकोंडा पहाड़ी को आंध्र प्रदेश के राज्य में सबसे ऊंची पहाड़ी होने का गौरव प्राप्त है।
अराकू वैली प्रसिद्द है कॉफी प्लांटेशन के लिए, जनजातीय संग्रहालय, टाइडा, बोर्रा गुफाएं, सांगडा झरने और पदमपुरम बॉटनिकल गार्डन आदि के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की ऑर्गनिक कॉफी ‘अरकू इमेराल्ड’ विदेशों तक में धूम मचा चुकी है।
इस खूबसूरत वैली के सौंदर्य को बेहतर ढंग से निहारने के लिए भारतीय रेल ने एक स्पेशल टूरिस्ट ट्रैन चलाई है। इसे ग्लास ट्रैन भी कहते हैं। जिस में बैठ कर आप वैली का 300 डिग्री अवलोकन कर सकते हैं। विशाखापट्टनम से अराकू वैली तक के रास्ते में 10-12 सुरंगे पड़ती हैं, जंगल से होकर गुज़रती ट्रैन से अराकू वैली का नज़ारा देखने लायक होता है। यह ट्रैन सुबह 6 बजे चलती है। अगर आप सही अर्थों में इस वैली का आनंद लेना चाहते हैं तो इस ट्रैन से एक बार ज़रूर यात्रा करें। अगर आप सही अर्थों में इस वैली का आनंद लेना चाहते हैं ट्रैन से एक बार ज़रूर जाएं।
बम्बू चिकिन
आंध्र प्रदेश 119 प्रकार की जनजातियों का घर है। लोक जीवन के इस रूप को आप यहाँ के प्रसिद्ध बम्बू चिकिन के रूप में चख सकते हैं जब आप अराकू वैली जाएं तो रास्ते में बम्बू चिकिन ज़रूर ट्राई करें। बांस के अंदर तेज़ मसलों से मेरिनेट करके देसी मुर्गी के गोश्त को भर कर कोयले की आंच पर पकाया जाता है जिसे पत्ते पर सर्व किया जाता है। आपकी अराकू की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाएगी जब तक आप इस लज़ीज़ चिकिन को न ट्राई कर लें। आदिवासी स्टाइल का यह चिकिन यहाँ बहुत फेमस है।
बोरा गुफाएं
बोरा गुफाएं विशाखापट्टनम से 90 किलोमीटर की दूरी अराकू वैली के रास्ते में पर स्थित हैं। यह गुफाएं लगभग 10 लाख साल पुरानी मानी जाती हैं। इन की संरचनाओं पर भू वैज्ञानिक निरन्तर शोध कर रहे हैं। यह गुफाएं गोस्थनी नदी से निकले स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट के रिसाव से बनी हैं।
इन गुफाओं में जाने का रास्ता बहुत छोटा है जबकि गुफाएं अंदर से काफी विराट हैं। अंदर घुसकर वहां एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानो किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खड़े होते हैं। आंध्र प्रदेश टूरिज्म ने पर्यटकों के लिए इन गुफाओं में अलग से रंग बिरंगी रोशनियों का प्रबंध किया है जिससे लोग आसानी से इनका अवलोकन कर पाएं।
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मुझे अपनी 2009 में की गई वाईजेग यात्रा याद आ गयी । आपने पूरे विस्तार से न केवल विशाखापत्तनम बल्कि आसपास के खूबसूरत स्थानों का बखूबी वर्णन किया है । फ़ोटो भी बहुत सुंदर आयी हैं ।
Shukriya Mukesh ji