गंगटोक
भारत के सबसे छोटे प्रदेश सिक्किम की राजधानी है गंगटोक। हिमालय के उत्तरी दामन में बसा है यह खूबसूरत शहर गैंगटॉक। इसलिए वर्ष भर यहाँ प्रकृति की बहार देखने को मिलती है। चाहे वो गर्मी हो या सर्दी हर मौसम अपने साथ कुछ अनोखा लेकर आता है। वैसे तो सिक्किम पूरा का पूरा देखने लायक़ है। लेकिन आज हम आपको गंगटोक और उसके आसपास के दार्शनिक स्थलों की सैर करवाएँगे।
गंगटोक शहर का सबसे जीवंत स्थान है महात्मा गाँधी रोड। दिन हो या रात महात्मा गाँधी रोड हमेशा सैलानियों से घिरा रहता है। यहाँ क़तार से बनी दुकानें एक पूरा का पूरा बाज़ार हैं। और इन्ही दुकानों की ऊपरी मंज़िल पर बने है कुछ खास कॅफे और रेस्टोरेन्ट। इन कॅफे की ख़ासियत है कि आप यहाँ बैठ कर घंटो महात्मा गाँधी रोड की चहल पहल को काफ़ी की चुस्कियों के साथ निहार सकते हैं। महात्मा गाँधी रोड के रखरखाव पर भी खास ध्यान दिया गया है इसलिए यहाँ पर कारों की आवाजाही मना है। यहाँ आपको पैदल ही चहलक़दमी करनी होगी।
नंग्याल इन्स्टिट्यूट ऑफ तिब्बातोलोजी
गंगटोक मे कई खूबसूरत मोनेस्ट्रियाँ हैं। बौद्ध संस्कृति की झलक देखने के लिए इन मोनेस्ट्रियों का रुख़ किया जा सकता है। यहाँ बौद्ध संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक बहुत ही प्रतिष्ठित संस्थान 1958 से काम कर रहा है जिसका नाम है नंग्याल इन्स्टिट्यूट ऑफ तिब्बातोलोजी। यह संस्थान तिब्बत की संस्कृति,कला, धर्म आदि पर अनुसंधान करने वाले लोगों के लिए मक्का के समान है। यहाँ एक विशाल पुस्तकालय, संग्रहालय और प्रार्थना स्थल, सभागार मौजूद है। यहाँ तिब्बातोलोजी से संबंधित अनेक दुर्लभ ग्रंथ रखे हुए है। यहां छोटे बच्चों से लेकर बड़े शोधार्थी विधयार्जन के लिए रहते हैं।
फ्लावर एग्ज़िबिशन:
सिक्किम भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसने जैविक खेती के महत्व को सबसे पहले पहचाना। इसलिए सिक्किम मे फ्लोरीकल्चर का कारोबार फला और फूला। हिमालय के दामन मे होने के कारण गंगटोक का मौसम सदा सुहावना बना रहता है इसलिए यहाँ कुछ बेहद दुर्लभ प्रजाति के फूल भी पाए जाते है। गंगटोक मे हर वर्ष बहुत बड़े स्तर पर फ्लावर शो आयोजित किया जाता है। इसके अलावा पूरे साल यहाँ सैलानियों के दर्शन के लिए फ्लावर एग्ज़िबिशन लगी रहती है। यहाँ खास हिमालय मे पाया जाने वाला पुष्प रोडोडेंडरोन भी आप देख सकते हैं। गंगटोक मे इंटरनेशनल फ्लवर शो हर साल मई माह मे पूरे 1 माह के लिए लगाया जाता है जिसे देखने पूरी दुनिया से लोग आते हैं।
बंजाखरी वॉटरफॉल्स
गंगटोक शहर से मात्र 10-12 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है। इस वॉटरफॉल के नज़दीक पहुँचने का रास्ता भी बहुत सुंदर है। पहाड़ी घुमावदार रास्तों से होते हुए इस वॉटरफॉल तक पहुँचा जाता है। यह वॉटरफॉल रंका मोनेस्ट्री के रास्ते मे पड़ता है। आज कल पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय है। बंजाखरी वॉटरफॉल के पीछे नेपाली समुदाय के बीच प्रचलित एक कहानी है। यह कहानी इसके नाम से जुड़ी हुई है। बन का अर्थ है जंगल और नेपाली भाषा मे जाखरी माने साधु। यहाँ के स्थानीय लोग मानते हैं कि यहाँ जंगल मे एक साधु तपस्या करते थे उनके नाम पर ही इस वॉटरफॉल का नाम बंजाखरी पड़ा है। इस जगह को आप एक अम्यूज़मेंट पार्क के रूप में भी देख सकते हैं। यहाँ पर खाने पीने के कई स्टॉल्स भी बने हुए हैं।
पैराग्लाइडिंग
पंछी की तरह खुले आकाश में पंख फैलाए उड़ान भरने की चाह किसके मन को नहीं लुभाती। और अगर यह चाह अपने साहस को तोलने की हो तो पैराग्लाइडिंग का अनुभव ज़रूर लेना चाहिए। भारत के पास हिमालय जैसा एक अनुपम और विशाल शाहकार है जिसके दामन में प्रकृति की शांत वादियां हैं तो उन्हीं वादियों में उत्साह से भरदेने वाले कई ऐसे अनुभव भी छुपे हैं जिनसे रूबरू होकर आप ख़ुद को और बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। शायद इसी लिए दुनिया भर के रोमांचप्रेमी हिमालय की ओर खींचे चले आते हैं। गंगटोक में महात्मा गांधी मार्ग से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर पैराग्लाइडिंग करवाई जाती है। यह स्थान बंझाकरी वाटरफॉल के नज़दीक है। वैसे तो पैराग्लाइडिंग करने के लिए आपको ट्रेनिंग लेना अनिवार्य होता है। लेकिन यहां आप ट्रैंड पायलट के साथ इस शार्ट ट्रिप का आनन्द ले सकते हैं। यह सर्टिफाइड पायलट हैं और इनकी साथ फ्लाइट लेने में आप पूरी तरह सुरक्षित हैं। बस आपका वज़न 90 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। यहाँ दो प्रकार की फ्लाइट करवाई जाती हैं। एक मीडियम और दूसरा हाई फ्लाई, जैसा कि नाम से ज़ाहिर है। मीडियम फ्लाई लगभग 1300 से 1400 एलटीटियूड की ऊंचाई से करवाई जाती है। जिसमे आप गंगटोक शहर को अरियल वियू से देख पाते हैं और हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों को देख सकते हैं। इस फ्लाइट का टेक ऑफ पॉइंट बलिमन दारा है। यह पहाड़ की एक चोटी है जहां पहुँच कर गिलाइडर के साथ आपको और पायलट की मज़बूती से हार्नेस के साथ बांध दिया जाता है। और फिर चोटी से तेज़ी के साथ खाई की ओर दौड़ने का निर्देश दिया जाता है। दौड़ते-दौड़ते आप पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में छलांग लगा देते है। विश्वास की छलांग। और कुछ ही देर में आप हवा से बातें करने लगते हैं।यह अनुभव आपको रोमांच से भर देगा। यह फ्लाइट 15 से 20 मिनट की होती है। और पूरी वादी का चक्कर लगा कर खेलगांव के स्टेडियम में लेंड करती है। हवा में तैरते रंग बिरंगे ग्लाइडर्स किसी पक्षी से मालूम पड़ते हैं।
टसुक ला खांग मोनॅस्ट्री
यह मोनेस्ट्री गंगटोक सिटी से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गंगटोक के शाही परिवार का निजी गोंपा था। आज यहाँ बौद्ध शिक्षा ग्रहण करने दूर दराज़ से छात्र आते हैं। यह मोनेस्ट्री बौद्ध धर्म के मानने वालों के लिए विशेष महत्व रखती है। यहाँ पर कई बौद्ध फेस्टिवल बड़े धूम धाम से मनाए जाते है हैं जिसमे मास्क पहन कर बौद्ध भिक्षु छाम नृत्य करते हैं। यह मोनेस्ट्री बौद्ध वास्तुकला का एक बेहेतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है। इस मोनेस्ट्री के भीतर महात्मां बुद्ध की कई विशाल प्रतिमाएँ हैं।
एंचे मोनॅस्ट्री
यह मोनेस्ट्री गंगटोक से उत्तर पूर्वी दिशा मे 3 किलोमीटर पर स्थित है।यह मोनेस्ट्री लगभग 200 साल पुरानी है। आज यहाँ लगभग 90 मॉंक रहते हैं। यहाँ हर साल जनवरी मे एक बहुत बड़ा फेस्टिवल होता है। इस मोनेस्ट्री के स्थान के चुनाव के पीछे एक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि लामा ड्रपतोब कार्पो एक महान बौद्ध भिक्षु थे उनको कुछ विशेष शक्तियाँ प्राप्त थीं उन्होने ही इस मोनेस्ट्री के बनाने के स्थान का चुनाव किया था। वह अपने स्थान से उड़ कर इस जगह पहुंचे थे जहाँ पर आज यह मोनेस्ट्री बनी हुई है। बौद्ध संप्रदाय मे इस मोनेस्ट्री का विशेष स्थान है।
रंका मोनेस्ट्री
रंका मोनेस्ट्री को लोग लिंगदूम मोनेस्ट्री के नाम से भी जानते हैं। यह एक खूबसूरत और विशाल मोनेस्ट्री है जिसके बाहर भूटिया लोगों द्वारा गर्म कपड़ों और सोवेनियर का बाज़ार भी बसा हुआ है। यह मोनेस्ट्री गंगटोक से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हरे भरे पहाड़ी जंगलों के रास्तों से होकर यहाँ तक पहुँचा जा सकता है। मोनेस्ट्री के भीतर महात्मा बुद्ध की विशाल मूर्ति कमल के ऊपर विराजमान है। अगर आप शाम के समय जाएँगे तो आपको मॉंक लोगों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना मे शामिल होने का मौक़ा मिल सकता है। यहाँ मोनेस्ट्री के पीछे एक बड़ा छात्रावास है जहाँ छोटे छोटे मॉंक रहा करते हैं। इस मोनेस्ट्री मे तिब्बतीयन नव वर्ष के दौरान लोसर फेस्टिवल मनाया जाता है जिसमे फेमस मास्क डांस किया जाता है। जिसे देखने देश विदेश से सैलानी आते हैं।
रोप-वे
गंगटोक एक खूबसुरात शहर है और इस शहर की खूबसूरती अरियल व्यू से देखने पर और भी बढ़ जाती है। इसी लिए शायद यहाँ पर रोपेवे का इंतज़ाम किया गया है। शहर के बीचों बीच रोपेवे स्टेशन बनाया गया है जहाँ से सैलानी केबल कार मे बैठ कर ऊपर से गंगटोक की सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। इसका टिकट भी बहुत महंगा नही है और बड़े ही मुनासिब पैसों मे इस शानदार टूरिस्ट एक्टिविटी का आनंद उठाया जा सकता है। यहाँ 3 टर्मिनल पॉइंट बनाए गए हैं- ताशीलिंग, नमनांग ओर देवरली। जहाँ से आप अपनी राइड सुविधनुसार ले सकते हैं।
अद्भुत नज़ारा फ्रोज़न वॉटरफॉल
अगर आप नवम्बर दिसम्बर मे गंगटोक जाएँगे तो आपको नज़दीक ही कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिसकी अपने कल्पना भी नही की होगी। जी हाँ मैं बात कर रही हूँ फ्रोज़न वॉटरफॉल की। यह नज़ारा गंगटोक से थोड़ा ऊपर नाथुला पास की ओर जाने पर बीच मे देखने को मिलता है। आम तौर पर प्रकृति के ऐसे नज़ारे उन खुशनसीब लोगों को देखने को मिलते हैं जो की हिमालय की ऊंचे ऊंचे शिखरों पर ट्रेकिंग करने जाते हैं। लेकिन सिक्किम मे यह नज़ारे एक आम टूरिस्ट को भी देखने को नसीब हो जाते हैं। और वो भी बिना मुश्किल ट्रेकिंग किए। छंगू लेक से ऊपर जाने पर बाबा हरभजन सिंह की समाधि से लगा हुआ ही एक वॉटरफॉल इन दिनों जम कर बर्फ मे तब्दील हो जाता है। आप बड़ी आसानी से सड़क मार्ग से अपनी गाड़ी दौड़ाते हुए यहाँ तक पहुँच सकते हैं। यह वॉटरफॉल सफेद शीशे की तरह चमक रहा होता है। इस से निकालने वाली पानी की धाराएँ भी जम जाती हैं। भारत में आम टूरिस्ट को यह अद्भुत नज़ारा केवल यहीं देखने को मिलता है। यह प्रकृति का इतना सुन्दर नज़ारा है जिसे आप कभी भुला नहीं पाएंगे।
बाबा हरभजन टेंपल
कुछ कहानियां इतनी अविश्वसनीय होती हैं कि जब तक उन्हें अपनी आँखों से ना देख लिया जाए विश्वास नही आता। लेकिन भारत देश की धरती ऐसी ही हज़ारों कहानियों की धरती है जोकि देश के कोने कोने मे बसी हुई हैं। बाबा हरभजन की समधि भी ऐसी ही एक कहानी का जीता जागता उदाहरण है। गंगटोक से 25 किलोमीटर दूर छांगू लेक और नाथुला बॉर्डर के बीच मे पड़ने वाली यह समधि गवाह है उस विश्वास की जिसे आज भी यहाँ तैनात सैनिक सच मानते हैं। बात 1968 की है, हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट के एक सिपाही थे उनकी नियुक्ति यहाँ इंडो चायना बॉर्डर पर हुई। एक दिन हरभजन सिंह पेट्रोलिंग करते हुए पानी की एक तेज़ धारा मे बह गए और उनकी वहीँ मृत्यु हो गई। कुछ दिन बाद वह अपने एक साथी के सपने मे आए और समधि बनाए की बात कही। सैना के जवानों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए मिल कर यहाँ उनकी समधि बनाई। कहते हैं कि बाबा हरभजन की आत्मा आज भी बॉर्डर पर पेट्रोलिंग करती है और उनकी उपस्थिति का अनुभव हिन्दुस्तानी ही नही चीनी सैनिकों को भी होता है। आज इस घटना को कितने साल बीत चुके हैं लिकिन आज भी यहाँ के लोग मानते हैं की बाबा जीवित हैं और यहाँ उनका कमरा बना हुआ है जिसमे उनकी यूनिफॉर्म रोज़ प्रेस करके लटकाई जाती है जोकि अगले दिन पहनी हुई हालत मे मिलती है। यहाँ के निवासी सिद्दार्थ प्रसाद का कहना है कि अगर कोई जवान ड्यूटी पर सोता मिल जाता है तो बाबा की आत्मा उसको थप्पड़ तक रसीद कर देती है। आज भी बाबा का संदूक तैयार किया जाता है और बाबा छुट्टी पर अपने गाँव रेल से जाते हैं। अब इस कहानी मे कितनी सच्चाई है यह तो यहाँ के लोग ही जाने लेकिन यहाँ समुद्रतल से 13000 फीट की ऊंचाई पर बाबा हरभजन की समधि के दर्शन किए जा सकते हैं। चारों ओर से पहाड़ों से घिरी यह समधि एक रमणीक स्थल है यहाँ सैलानियों के लिए एक कैफे और सोवेनियर शॉप भी मौजूद है। सबसे अच्छी बात यह है कि यहाँ पहुँचना बिल्कुल भी दुश्वार नही है। समधि के नज़दीक ही पार्किंग है जहाँ तक आप अपनी कार ले जा सकते हैं।
छांगू लेक
जिसका एक नाम तसोमगो लेक भी है एक ग्लेशियर लेक है। गंगटोक से लगभग 35 किलोमीटर दूर नाथुला बॉर्डर की ओर जाने वाली सड़क जवाहर लाल नेहरू रोड पर समुद्रतल से 12000 फीट की ऊंचाई पर बनी एक खूबसूरत लेक है। इस लेक का आकर अंडाकार है और इसकी गहराई लगभग 50 फीट है। नीला चमचमाता पानी इसे और भी सुंदर बनाता है। इस लेक के चारों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ बने हुए हैं। इन्ही पहाड़ों से पिघल कर आई बर्फ से यह लेक बनी है। सर्दियों के मौसम मे यह ले जम भी जाती है।यहाँ जाने के लिए एक दिन पहले डिस्ट्रिक्ट आड्मिनिस्ट्रेशन से पर्मिशन लेनी होती है। आप जब गंगटोक जाएँ तो अपने होटल वाले को पहले ही दिन सूचित कर दें। गंगटोक के सभी होटल आने वाले सैलानियों के लिए पर्मिशन का इंतज़ाम कर देते हैं। अपने साथ 2 फोटो और पहचानपत्र लेजना ना भूलें। यहाँ जाने के लिए सुबह जल्दी निकलें क्योंकि इतनी ऊंचाई पर होने पर दोपहर के बाद यहाँ मौसम अचानक बदल जाता है। छांगू लेक का मुख्य आकर्षण है याक की सवारी। आप जब यहाँ जाएँ तो याक की सवारी का आनंद ज़रूर उठाएँ
नाथुला बॉर्डर
नाथुल्ला पास समुद्रतल से 14,140 फीट की ऊंचाई पर पड़ता है। चाइना के साथ भारत के यह एक व्यापारिक बॉर्डर है। इस पास के दूसरी ओर तिब्बत पड़ता है। यह रास्ता प्राचीन सिल्क रूट के नाम से भी जाना जाता है। भारत चाइना के बीच यह एक मात्र बॉर्डर है जिस तक टूरिस्ट लोग पहुँच सकते हैं। दोनो ओर सैना तैनात रहती है। आप इस बॉर्डर पर जाकर चीनी सैनिकों के साथ हाथ मिला सकते हैं फोटो भी खिंचवा सकते हैं।
यहाँ पास ही सड़क किनारे भूटिया लोगों ने चीनी सामानों की दूकाने भी सज़ा रखी हैं। यह एक गर्म कपड़ों का मार्केट है। आप यहाँ से उचित मूल्यों पर सामान खरीद सकते हैं। बस शर्त इतनी है कि आप अपने साथ कैश लेकर जाएँ क्योंकि यहाँ सारा लेनदेन नक़द मे ही होता है। सिक्किम मे शॉपिंग करने के लिए यह एह बढ़िया विकल्प है।
हनुमान टोक
गंगटोक में कई दार्शनिक स्थल हैं लेकिन उन सब के बीच हनुमान टोक का स्थान सबसे अलग है। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं है बल्कि एक ऐसा पॉइंट है जहाँ से कंचनजंघा चोटियों के दर्शन सबसे साफ और सुन्दर होते हैं। इसी लिए गंगटोक आने वाला हर सैलानी यहाँ आना नहीं भूलता। शहर से 25 किलोमीटर पूर्व में स्थित यह स्थान समुद्रतल से लगभग 11000 फ़ीट की ऊंचाई पर बना है। यहाँ हनुमानजी का एक सुन्दर मंदिर है।
शॉपिंग
गंगटोक मे शॉपिंग करने के कई विकल्प मौजूद हैं। महात्मा गाँधी रोड पर पूरा का पूरा मार्केट सज़ा हुआ है। अगर आप थोड़ी बचत करना चाहते हैं तो महात्मा गाँधी रोड के आखरी सिरे तक चहलक़दमी करते हुए चले जाएँ वहीं पर लाल बाज़ार है जोकि यहाँ के लोगों का लोकल बाज़ार है। इस बाज़ार से लिड वाला टी मग ज़रूर खरीदें यह सिक्कीमी मग यहाँ की पहचान है।
गंगटोक से आप तिब्बतियन कार्पेट खरीद सकते हैं। यहाँ भूटिया लोग हाथ से बने ऊनी कपड़े बेचते हैं। गंगटोक से तिब्बतियन बुद्धिस्ट पेंटिंग्स जिन्हें तांगकस कहते हैं खरीद सकते हैं यहाँ के लोग मानते हैं कि यह पेंटिंग्स घर मे गुड लक लेकर आती हैं। गंगटोक मे बनी लगभग सभी मोनेस्ट्री के बाहर एक छोटा सा बाज़ार सज़ा होता है जहाँ से आप हैंडीक्राफ्ट खरीद सकते हैं।
गंगटोक से सिक्किम के इकलौते चाय बागान टेमी टी गार्डेन की ऑर्गेनिक चाय भी खरीदी जा सकती है यहां की चाय पूरे विश्व मे मशहूर है।
सिक्किम के सतरंगे स्वाद
सिक्किम घर है कई जातियों का जीनमें प्रमुख हैं नेपाली, भूटिया, तिब्बतियन और लेपचा जनजाति। इसी लिए सिक्किम मे इन सभी संप्रदायों के खाने चखने को मिलते हैं। यहाँ के निवासी रवि प्रधान का कहना है कि-“ सिक्किम हिमालय का हिस्सा है और भारत का पहला ऑर्गॅनिक फार्मिंग राज्य है। इसलिए यहाँ खाने पीने मे शाक सब्ज़ियों का प्रयोग प्रचुर मात्रा मे होता है। यहाँ पर रहने वाले लोग नेपाल भूटान और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों से आकर बसे हैं इसलिए इनके खाने भी उनकी खुश्बू लिए हुए हैं। सिक्किम मे मुख्य रूप से खाया जाता है, मोमो (स्टीम्ड डंपलिंग), टमाटर का आचार, थूपका (नूडल सूप), किन्मा करी (फर्मेंटेड साय्बीन), गुंड्रूक आंड सींकी सूप (फर्मेंटेड वेजिटेबल सूप), गुंड्रूक को आचार, ट्रडीशनल कॉटेज चीज़, च्छुरपई का आचार, च्छुरपई-निंग्रो करी, सेल रोटी (फर्मेंटेड राइस प्रॉडक्ट), शिमी का आचार, पक्कु (मटन करी) आंड मेसू पिकल (फर्मेंटेड बॅमबू शूट) आदि। इनके खानो में भांति भांति के मीट, मछली, चीज़ और साग शामिल हैं।
कैसे पहुँचे
गंगटोक पहुँचने के लिए रेल न्यू जलपाईगुड़ी तक जाती है उसे आगे का रासता रोड से तय किया जाता है। लेकिन आज कल बागड़ोगरा एयरपोर्ट से हेलिकोप्टर द्वारा बड़ी आसानी से 4 से 5 घंटे के यह सफ़र मात्र 35 मिनट मे तय किया जा सकता है। सिक्किम के मुख्य आकर्षणों मे यह आकर्षण भी बहुत सुंदर अनुभव है। लेकिन इसके लिए पहले से बुकिंग करनी होती है। बागड़ोगरा से गंगटोक तक के लिए मात्र 3500 रुपये देकर आप इस अनोखे अनुभव का आनंद ले सकते हैं।
गंगटोक की खूबसूरत वादियो और नजारो का मनमोहक चित्रण और सजीव लेखन ने मेरा मन मोह लिया है। आज तो मेरा मन कर रहा है कि मै भी उन हसीन नजारो के प्रत्यक्ष दर्शन कर अपने नयनो को सूकून दू।
कल प्राप्त पुरस्कार के लिए भी आपको बधाई । ईश्वर आपको अपने लक्ष्य प्राप्ति मे राह दिखाए ।पुनः आभार ।
जयहिन्द
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shukriya dost