ग्वालियर की सरहद मे दाखिल होते ही अगर कोई चीज़ आपका ध्यान बरबस ही खींच ले तो वो है, ग्वालियर शहर का केंद्र बिंदु यहाँ का क़िला। 300 फिट की ऊंचाई पर पहाड़ी पर बना यह अभेद दुर्ग गवाह है परमार राजवंश के गौरवपूर्ण इतिहास का। यह क़िला 8 वीं शताब्दी मे बना और इसने कई राजवंशों का समय देखा। यहाँ के लोगों की माने तो इस क़िले का निर्माण एक लोकल राजपूत सूर्यासेन ने करवाया था।
इसके बाद इस क़िले पर पाल वंश ने एक लंबे समय तक राज किया,फिर प्रतिहार वंश के अधीन आया। यह क़िला शक्ति और ताक़त का ऐसा प्रतीक था कि इस पर महमूद ग़ज़नवी ने भी हमला किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। क़ुतुबुद्दीन एबक और इल्ततमिश्क़ ने भी इस किले को हांसिल करने के लिये अपनी क़िस्मत आज़माई थी। इन सब के बाद यह क़िला तोमर राजवंश के अधीन आया। इस राजवंश के सबसे प्रतापी राजा हुए राजा मानसिंह। जिन्होने ना सिर्फ़ कालांतर मे हुए आक्रमरणों से हुई क़िले में हुई क्षति को ठीक किया बल्कि इस क़िले मे कई महेत्वपूर्ण निर्माण कार्य भी करवाए। आज इस क़िले के दो प्रमुख आकर्षण हैं, मान मंदिर और गुजरी महल यह दोनो अदभुत निर्माण कार्य राजा मानसिंह द्वारा ही करवाए गए थे। इस क़िले के मुख्य आकर्षण हैं गूजरी महल, मानसिंह महल, जहांगीर महल, करण महल, शाहजहां महल आदि।
मानसिंह महल
अगर कहें कि मानसिंह महल हिंदू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है तो यह बात अतिशयोक्ति नही होगी। राजा मानसिंह कलापारखी थे,उन्होने बहुत सुंदर निर्माण कार्य करवाया। मान मंदिर महल मे शुद्ध भारतीय वास्तुकला के बेजोड़ नमूने देखने को मिलते हैं, नक़्क़ार्शी में,कमल के फूल, रुद्राक्ष, कलश का प्रयोग, मेहराब की जगह दक्षिण भारतीय मंदिरों मे बनने वाले मंडप, व तोरण का प्रयोग। छज्जों को सपोर्ट करते क़तार मे लगे पौराणिक जीव शारदुल की विशाल मूर्तियां इस बात का जीता जागता उदाहरण है। इस क़िले के निर्माण मे विज्ञान और वास्तुकला का बेजोड़ संगम दिखता है। मध्य भारत की तपती गर्मियों मे भी इस महल के भीतर का तापमान ठंडा रखने के लिए वायु के प्रवाह का विशेष प्रबंध किया गया था।
क़िले का कोर्टयार्ड बहुत सुंदर नक़्क़ार्शी वाली जलियों से सज़ा है, जहाँ संगीत की महफिलें सज़ा करती थीं और इन जलियों के पीछे बैठ कर महिलाएँ संगीत का आनंद लिया करती थीं। इसी कोर्टयार्ड के लगभग 3मंज़िल नीचे महारानी का पर्सनल हम्माम बना हुआ है। जिसका प्रयोग महाराजा और उनकी रानियाँ किया करते थे। बाद मे इस सुंदर व विलासिता की जगह को मुग़ल बादशाहों ने कारागार के रूप मे प्रयोग किया। जिस महल में विलासिता के आधुनिक साधन बने वहीँ जोहर कुण्ड जैसे ह्रदय विदारक स्मारक भी बनाया गया।
आज भी इस क़िले की पहचान ,लाल बलुआ पत्थरों की विशाल संरचना और उनकी दीवारों पर नीले रंग के टाइलों द्वारा की गई नक़्क़ार्शी के रूप मे की जाती है।
गूजरी महल
गूजरी महल का निर्माण राजा मान सिंह ने अपनी प्रिय पत्नी मृगनयनी के लिए करवाया था। जहाँ मान मंदिर गोपांचल पर्वत के ऊंचे शिखर पर बना है वहीं गूजरी महल पर्वत की तलहटी मे बनाया गया। इसके पीछे भी एक रोचक लोक कथा यहाँ के लोग सुनाया करते हैं। कहते हैं एक बार राजा मान सिंह आखेट को निकले तभी जंगल मे उन्हें तो विशाल सांड आपस मे लड़ते हुए दिखाई दिए। उनकी लड़ाई इतनी भयंकर थी कि राजा के सैनिक भी पीछे हटने लगे तभी वहाँ पर एक सुंदर और शक्तिवान गूजर कन्या आई और उसने बड़े ही सहज भाव से उन लड़ते सॅंडों को अलग कर दिया। राजा मान सिंह उस कन्या की वीरता से बड़े प्रभावित हुए और उन्होने उस गूजरी कन्या के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। गूजरी कन्या सुंदरता और शारीरिकबल की स्वामिनी होने के साथ साथ बुद्धिमान और सम्मानी थी। उसने राजा के समक्ष एक शर्त रखी। उसने कहा कि मेरी जिस शक्ति से आप प्रभावित हुए हैं उसका कारण है मेरे गाँव का पानी। मैं आपसे विवाह के लिए प्रस्तुत हूँ यदि आप यह सुनिश्चित करें कि मेरे लिए अलग से महल बनवाया जाएगा और उस महल तक मेरे गाँव से पानी की एक नहर पहुँचाई जाएगी। मैं जीवन भर वही पानी पियूंगी। महाराजा ने शर्त का पालन किया और इस तरह गूजरी महल का निर्माण हुआ। आज गूजरी महल के भीतर एक विशाल संग्रहालय है। जिसके रखरखाव की ज़िम्मेदारी पुरातत्व विभाग उठाता है। यहाँ कई बहुमूल्य पुरातात्विक महत्व की मूर्तियों का विशाल संग्रह मौजूद है।
गोपांचल पर्वत
क़िले पर जाने का एक ही रास्ता है जोकि एक पतली सड़क से गोपांचल पर्वत के बीच से जाता है। इसी पर्वत को काट कर कई जैन तीर्थंकारों की मूर्तियाँ बनाई गई है। कहते हैं इन विशाल जैन मूर्तियों का निर्माण13 वीं शताब्दी से 15 वीं शताब्दी के बीच हुआ। इन विशाल संरचनाओं का निर्माण तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूँगरसिंह व कीर्तिसिंह ने करवाया था। यहाँ लगभग 1500 मूर्तियाँ हैं। जिन्हे बहुत कलात्मक रूप से तराशा गया है। यहाँ भगवान पारसनाथ की 42 फीट ऊंची पद्मासन मुद्रा मे बनी मूर्ति दर्शनीय है।
तेली का मंदिर
यहाँ गोपांचल पर्वत पर ही एक और विशाल स्मारक है- तेली का मंदिरजिसकी ऊंचाई 100 फीट है। कहा जाता है इसका निर्माण तेली संप्रदाय के लोगों ने करवाया था। यह स्मारक भी वास्तुकला के बेजोड़ नमूनों मे से एक है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण करवाने वाले तेली संप्रदाय का संबंध तेलंगाना से था। इसलिए यहाँ के वास्तुकला मे दक्षिण भारतीय प्रभाव देखने को मिलता है।
सास बहू का मंदिर
इस मंदिर का असली नाम सहस्त्रबाहु का मंदिर है लेकिन देसी लोगों ने इसका नाम कालांतर मे सास बहू का मंदिर रख दिया। भगवान विष्णु को सहस्त्रबाहु भी कहा जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। आज इस मंदिर को इसी नाम से जाना जाता है। लाल बलुआ पत्थरों पर बारीक नक़्क़ार्शी करके इस मंदिर को बनाया गया है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है यहाँ बने नक़्क़ार्शी वाले विशाल स्तंभ। इस मंदिर के अहाते से पूरा ग्वालियर शहर नज़र आता है। यह मंदिर भी क़िले पर ही स्थित है।
लाइट एंड साउंड शो
ग्वालियर फ़ोर्ट के अन्य आकर्षणों के अलावा जो एक और मुख्य आकर्षण है वो है। इस फ़ोर्ट पर शाम को होने वाला लाइट एंड साउंड शो। मध्य प्रदेश टूरिज़्म इस लाइट एंड साउंड शो का संचालन करता है। इस फ़ोर्ट से जुड़ी एतिहासिक जानकारी और रंग बिरंगी रोशनियों मे नहाया हुआ फ़ोर्ट देखने लायक़ होता है। शाम के समय नीले आकाश तले रोशनियों मे जगमगाता ग्वालियर शहर फ़ोर्ट के शिखर से बहुत खूबसूरत नज़र आता है।
गुरुद्वारा श्री दाता बंदी छोड़ साहिब
ग्वालियर फ़ोर्ट के पास ही एक खूबसूरत गुरुद्वारा है- गुरुद्वारा श्री दाता बंदी छोड़ साहिब। इस गुरुद्वारे के पीछे भी एक कथा है। कहते हैं श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी ने एक बार शिकार के समय जहाँगीर की जान बचाई थी। उस समय जहाँगीर और श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी के मित्रतापूर्वक संबंध हुआ करते थे। फिर जहाँगीर बहुत बीमार पड़ा। तो किसी संत ने कहा कि ग्वालियर के पास तादा साहिब मे जाकर अगर कोई पवित्र आत्मा उसके लिए प्रार्थना करेगी तो वह ठीक हो जाएगा। सब ने गुरु साहिब का नाम सुझाया। गुरु साहिब ने ग्वालियर के किले मे 2 साल 3 महीने रह कर जहाँगीर के लिए प्रार्थना की। उन्हीं दिनों गुरु साहिब ग्वालियर के किले मे क़ैद 52 सरदारों से मिले जिन्हें जहाँगीर ने क़ैद कर रखा था और उनकी बड़ी ही यातना पूर्वक स्थिति थी। गुरु साहिब अक्सर उनसे मिलते और उन्हें आश्वासन देते कि जब वह यहाँ से जाएँगे तो उनकी भी रिहाई करवाएँगे। जहाँगीर इसके लिए राज़ी नही हुआ। गुरु साहिब ने अकेले वहाँ से जाने को मना कर दिया। तब जहाँगीर ने हुकुम दिया कि जो कोई भी गुरु साहिब के चोले का पल्ला पकड़ कर क़िले से बाहर आ जाएगा उसकी रिहाई हो जाएगी। तब रातों रात गुरु साहिब और 52 सरदारों ने गुरु साहिब का एक बड़ा सा चोला सिला और सुबह सभी सरदार उस चोले को पकड़ कर क़िले से बाहर आ गए। तभी से इस गुरुद्वारे का नाम श्री गुरुद्वारा श्री दाता बंदी छोड़ साहिब जी पड़ा।
सूर्य मंदिर
अगर आपसे यह कहा जाए कि ग्वालियर मे आपको कोणार्क के सूर्य मंदिर के दर्शन हो सकते हैं तो आश्चर्य नही। जी हाँ ।यहाँ ग्वालियर के मुरार शेत्र मे देश के परतिष्ठित उद्योगपति श्री बिरला ने 1988 मे सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। लाल पत्थरों का बना यह मंदिर बहुत सुंदर है। इस मंदिर की विशेषता है कि सुबह सूर्य की पहली किरण मंदिर मे स्थित भगवान की प्रतिमा पर सीधी पड़ती है।
जैन स्वर्ण मंदिर
ग्वालियर शहर के लश्कर क्षेत्र की सघन आबादी वाले इलाक़े मे एक नायाब हीरा छुपा हुआ है। जिसका नाम जैन स्वर्ण मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी मे हुआ था। इस मंदिर की ख़ासियत है कि इसके निर्माण मे उस समय 2 मन सौने का उपयोग किया गया था। यह मंदिर जैन तीर्थंकार 1008 पार्श्वनाथ जी को समर्पित है। यहाँ वर्तमान मे 163 मूर्तियाँ हैं, जिनमे चाँदी ,मूँगा, स्फटिक मनी, स्लेट,पत्थर, संगेमरमर आदि शामिल है। इस मंदिर को बनने मे 45 साल का समय लगा। बहुत बारीक मीनाकारी के द्वारा जैन तीर्थंकारों के जीवन का चित्रण यहाँ दीवारों पर उकेरा गया है। इस मंदिर की मुख्य मूर्ति भगवान पार्श्वनाथ की है जोकि एक ऊंचे आसन पर विराजमान है। जिस कक्ष मे यह स्वर्ण मूर्ति विधमान है वहाँ पूरी तरह से स्वर्ण का काम किया गया है। कहते हैं इस प्रतिमा को अलग अलग दिशाओं से देखने पर यह अलग अलग रंगों मे दिखाई देती है। यह मंदिर भारत भर मे फैले हुए दिगंबर समाज की अमूल्य धरोहर है। आज इस मंदिर को 300वर्ष हो चुके हैं लेकिन इसकी स्वर्णिम आभा आज भी उतनी ही खरी है।
तानसेन का मक़बरा
ग्वालियर हमेशा से कला और संगीत का क़द्रदान रहा है। यहाँ के राजाओं मे संगीत और संगीत के ज्ञाताओं के लिए विशेष सम्मान और स्नेह था। संगीत सम्राट मियाँ तानसेन का संबंध भी इसी शहर से है। उनकी याद मे यहाँ उनका मक़बरा भी बनाया गया है। तानसेन की क़ब्र उनके गुरु मुहम्मद ग़ौस की क़ब्र के नज़दीक ही बनाई गई है। यह स्मारक ग्वालियर के मुख्य एतिहासिक इमारतों मे से एक माना जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष नवंबर और दिसंबर में तानसेन संगीत समारोह मनाया जाता है जिसमें भारत के महान संगीतकार भाग लेते हैं। सन् 1985 से सिंधिया घराने द्वारा महान संगीतकार मियाँ तानसेन की याद मे तानसेन समारोह मानने की परंपरा की शुरुवात की गई थी जोकि आज भी बदस्तूर जारी है। आज हर साल नवंबर –दिसंबर माह मे देश और दुनिया से गीत संगीत से जुड़े कलाकार इस उत्सव मे शिरकत करने आते हैं। यह ग्वालियर रेलवे स्टेशन के काफ़ी नज़दीक पड़ता है।
जयविलास पैलेस
सिंधिया राज परिवार और अंग्रेज़ों की मित्रता जग ज़ाहिर है और इसका जीता जागता प्रमाण है जयविलास पैलेस। जहाँ ग्वालियर की अधिकतर ऐतिहासिक इमारतें भारतीय स्थापत्यकला के अनुसार बनाई गई हैं वहीँ जयविलास पैलेस की संरचना यूरोपियन स्थापत्यकला पर आधारित है। इस पैलेस का निर्माण जयाजी महाराज ने सन 1874 में इंग्लैंड के शासक एडवर्ड-VII के सम्मान में करवाया था।
1240771, वर्ग फ़ीट में फैला हुआ जयविलास पैलेस नायाब हीरों की खदान जैसा है। इस पैलेस का एक हिस्सा आम जनता के लिए संग्रहालय के रूप में खोल दिया गया है जबकि इसका बाकी भाग आज भी राज परिवार के निजी उपयोग के लिए है।
पैलेस में लगभग 400 कमरे हैं जिनमें विदेशों से लाई गई वस्तुओं से सजाया गया है। यहाँ की हर चीज़ सिंधिया राज घराने के वैभवपूर्ण अतीत की गवाह है। जिसमें सबसे ज़्यादा दर्शनीय है दरबार हॉल इस हॉल में बेल्जियम से लाए गए दो विशाल झूमर हैं जिनका भार लगभग सात टन माना जाता है। कहते हैं उन झूमरों को टांगने से पहले यूरोपियन वास्तुविद माइकल फिलोसे ने दरबार हॉल की छत पर 7 -7 हाथियों को चढ़ा कर छत की भार सहन करने की क्षमता का आंकलन किया था।
यहाँ के लोगों माने तो इस महल को बनाने में 200 मिलियन डॉलर का खर्च आया था। इस महल में विशाल डाइनिंग टेबल है। शाही भोजों के समय जिस पर एक चांदी की रेल गाड़ी द्वारा मदिरा सर्व की जाती है। जय विलास पैलेस को रात में देखना भी एक सुन्दर अनुभव है। संग्रहालय समय-समय पर ऐसे कई इवेंट आयोजित करता है यहाँ पर आप रॉयल जीवन का अनुभव भी हांसिल कर सकते हैं। जिसमे बग्गी राइड से लेकर दुनिया के विशालतम झूमर को रोशन देखना भी शामिल है। बस इसके लिए आपको पहले से म्यूज़ियम की वेबसाइट पर जाकर बुकिंग करवानी होगी।
शॉपिंग
ऐतिहासिक जीवाजी चौक जिसे महाराज बाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। किसी ज़माने में ग्वालियर का व्यवसायिक केंद्र बिंदु था। आज भी इस स्थान पर पहुँच कर यह अहसास होता है कि हम किसी टाइम मशीन में बैठ कर 100 साल पीछे चले गए हैं। चौक के बीच में बना जीवाजी राव का स्मारक और उसके चारों तरफ बनी ऐतिहासिक इमारतें। जिनमें कोई ईमारत भारतीय स्थापत्य कला का नमूना है तो कोई यूरोपियन, कोई पर्शियन आर्किटेक्चर तो कोई अरेबिक। इटेलियन शैली का पोस्ट ऑफिस, राजपूत शैली का प्रवेश द्वार, रोमन शैली में बनी स्टेट बैंक की बिल्डिंग, मिडिल ईस्ट शैली में बना टाउन हॉल और पर्शियन शैली का मुद्रणालय एक बार को विस्मित ही कर देता है। जब जीवाजी चौक पर शाम का नीला उजला प्रकाश उतरने लगता है तब यह पुरातात्विक धरोहर वाली इमारतें पीली रोशनियों की स्वर्ण आभा से जगमगा जाती हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी फिल्म के सेट पर पहुँच गए हों।
कभी यहां के विक्टोरिया मार्केट में सिंधिया राज परिवार की महिलाएं और अंग्रेज अफसर शॉपिंग करने आते थे। आज इस मार्किट को रानी लक्ष्मीबाई मार्किट के नाम से भी जाना जाता है। कभी यहाँ कैफ़े, ओपेरा हॉउस और सरकारी बिल्डिंग हुआ करती थीं। आज यह एक व्यस्ततम बाजार है। इसी चौक से जुड़ी हुई तंग गलियों में कितने ही छोटे छोटे बाजार बसे हैं जहाँ से आप सर्राफा, कपड़े व अन्य ज़रूरत के सामान खरीद सकते हैं।
अगर आपको चंदेरी साड़ियां खरीदनी हैं तो वह भी इन बाज़ारों में उचित मूल्य पर मिल जाएंगी। यहाँ से आप हाथ के बने क़ालीन, हेंडीक्राफ्ट का सामान, माहेश्वरी सिल्क साड़ी भी खरीद सकते हैं।
ग्वालियर के स्वाद
वैसे तो पूरे के पूरे मध्य प्रदेश में खाने का स्वाद ही निराला है लेकिन ग्वालियर में बहुत कुछ खास है। जैसे यहाँ के बड़े मशहूर हैं बहादुरे के लड्डू। देसी घी में बने यह मोतीचूर के लड्डू मुँह में रखते ही घुल जाते हैं। अगर आप भी इन्हें चखना चाहते हैं तो नया बाजार ज़रूर जाएं। इसके अलावा ग्वालियर में गजक बहुत मशहूर है। सर्दियाँ आते ही यहाँ के बाज़ार तरह तरह की गजक से महक जाते हैं।
ग्वालियर में एक है एस एस कचौड़ी और समोसेवाला, आप यहाँ कचौड़ियां खा कर उँगलियाँ चाटते रह जाएंगे। और अगर आप मासाहार के शौक़ीन हैं तो क्वॉलिटी रेस्टोरेन्ट ज़रूर जाएं। यहाँ का चिकन भरता वर्ड फेमस है जनाब।
कैसे पहुंचें
वायु मार्ग
ग्वालियर का राजमाता विजया राजे सिंधिया विमानतल, शहर को दिल्ली, मुंबई, इंदौर, भोपाल व जबलपुर से जोड़ता है।
रेल मार्ग
ग्वालियर का रेलवे स्टेशन देश के विविध रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। यह रेलवे स्टेशन भारतीय रेल के दिल्ली-चैन्नई मुख्य मार्ग पर पड़ता है। साथ ही यह शहर मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नै, बंगलूरू,हैदराबाद आदि शहरों से अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
ग्वालियर शहर राज्य व देश के अन्य भागों से काफ़ी अच्छे से जुड़ा हुआ है। आगरा-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग NH-3, ग्वालियर से गुजरता है। नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर भी ग्वालियर से गुज़रता है।