रणथम्बोर टाइगर रिज़र्व
हम सभी ने अपने बचपन में टाइगर को चिड़िया घर में देखा होगा। जंगल के राजा शेर को सर्कस के पिंजरे में दहाड़ते हुए भी देखा होगा पर जंगली जानवरों को खुले जंगल में देखना बहुत अलग अनुभव है। जंगल की प्राकृतिक छठा में टाइगर को राजा की तरह शान से विचरण करते हुए देखना एक अदभुत अनुभव है। इसी अनुभव के लिए सैलानी देश भर में बने राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य यानी नेशनल पार्कों में जाते हैं।पार्कों में जंगली जानवरों की प्रजातियों का प्राकृतिक वातावरण में संरक्षण किया जाता है.आइये हम आपको लिए चलते हैं -रणथम्बोर राष्ट्रीय उद्यान/टाइगर प्रोजेक्ट: रणथम्बोर राष्ट्रीय उद्यान – सवाई माधोपुर के निकट रणथम्बोर पहाड़ियों के चारो ओर के क्षेत्र में फेला यह राष्ट्रीय उद्यान बाघ संरक्षण स्थल है। यहाँ बाघ के अतरिक्त बघेरे, रीछ, सांभर, चीतल, नीलगाय आदि अनेक वन्य जीव निवास करते हैं।रणथंभोर दिल्ली मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से 13 कि.मी. दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच फैला हुआ है। यह राष्ट्रीय उद्यान 275 वर्ग किमी कोर और 392 वर्ग किमी बफ़र ज़ोन में बंटा हुआ है।इस पार्क को जंगल सफारी की द्रष्टि से 8 ज़ोन में बांटा गया है. इस राष्ट्रीय उद्यान से लगे हुए दो अन्य राष्ट्रीय उधान हैं-मानसिंह सेंचुरी व कैलादेवी सेंचुरी। यह उद्यान विन्ध्यवास पर्वतमाला और अरावली पर्वतमाला के जंग्शन के रूप में भी जाना जाता है। इसके दक्षिण में चम्बल नदी अपनी पूरी भव्यता के साथ बहती है। इसीलिए यह क्षेत्र वर्ष भर हरा भरा रहता है। रणथम्बोर टाइगर रिज़र्व में 55 टाइगर पाए जाते हैं, पशुओं की अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं।
जैसे :पशु: बाघ, तेंदुए, धारीदार हाइना, सांभर हिरण, चीतल, नीलगाय, आम या हनुमान लंगूर, मकाक, सियार, जंगली बिल्ली, स्लॉथ भालू, भारतीय जंगली भालू, चिंकारा, आम पाम सिवेट या ताड़ी बिल्ली, पीला चमगादड़, डेजर्ट बिल्ली, लोमड़ी और नेवला.
क्योंकि यहाँ पानी की उपलब्धता बहुतायत में है इसीलिए यह स्थान पक्षियों के लिए स्वर्ग समान है। यहाँ पक्षियों की 272 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। अगर आप बर्ड वाचिंग का शौक़ रखते हैं तो रणथम्बोर दुर्ग,मालिक तालाब,राज बाग़ तालाब,पदम तालाब ज़रूर जाएं। यहाँ आपको कई दुर्लभ प्रजातियों के पक्षी मिल जाएंगे। जैसे: कठफोड़वा, भारतीय ग्रे हर्नबिल्स,किंगफिशर, मधुमक्खी भक्षण, कोयल, तोता, एशियाई पाम स्विफ्ट, उल्लू, , कबूतर, गुल, टर्न, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रेब, ईगल्स, डार्टर, जलकाग, बिटर्न, राजहंस, आइबिस, पेलिकन, स्टॉर्क, कौवे, ड्रोंगो, गौरैयों, फिन्चेस, बुलबुल, मैना आदि
इस जंगल में 300 से ज़्यादा वनस्पतियां पाई जाती हैं जिसमे आम,इमली बबूल,बरगद,ढाक ,जामुन ,कदम्ब, खजूर व नीम शामिल हैं यहाँ बड़ी-बड़ी जंगली घांस सवाना देखने को मिलती है। जब सूखी झाड़ियों में से बाघ पानी पीने बाहर निकलता है तो द्रश्य देखने लायक होता है। जंगल का राजा ग्रेट टाइगर अपने पुरे वैभव के साथ आपके सामने से निकल जाता है और लोग दम साधे बाघ के वैभव और प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारते हैं.
इस नेशनल पार्क में जाने के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी होती है। जंगल सफारी के लिए खुली जीप या कैंटरों में जाना होता है। पर्क के खुलने का समय वन विभाग द्वारा सीजन के हिसाब से तय होता है। पार्क बारिश के मौसम में बंद रहता है।
जंगल सफारी का अनुभव:
जंगल सफारी के लिए सुबह सुबह का समय सबसे अच्छा होता है। ठण्डी-ठण्डी हवाओं के बीच खुली जीप में पार्क में प्रवेश करते हुए बहुत सुख मिलता है। जब ताज़ी ठण्डी हवा अपने साथ जंगली फूलों की खुशबु बहा लाती है। अनेकों पक्षियों का कलरव एक संगीतमय माहौल बना देता है। कुशल चालक पथरीले रास्तों, टेढ़ी मेड़ी पगडण्डियों से होते हुए पहाड़ी के शीर्ष तक पहुँच जाते हैं। दूर दूर तक फ़ैला वनाच्छादित पहाड़ कहीं हरे तो कहीं पीले रंगों की छठा बिखेरते हुए। आपके चारों और प्रकृति अपने अनुपम रूप में फैली दिखेगी। जब झाड़ियों के बीच से जीप तेज़ी से निकलती है तो लगता है जैसे हज़ारों तितलियाँ किसी ने आपके स्वागत में छोड़ दी हों। मानो कोई पिली-पिली तितलियों से भरी बरनी का ढ़क्कन लगाना भूल गया हो। ऐसा मनोरम स्वागत की आप जीवन भर भूल नहीं पाएंगे। सघन पेड़ों के बीच से आती सूर्य की रोशनी हवा के साथ अटखेलियाँ करती हो और हवा भी इतनी मदमस्त की जैसे ज़िद पर अड़ी हो कि आँचल सर पर ठहरने न देगी। जीप चालकों के पास बाघों से जुड़ी अनेक कहानियाँ हैं। कौनसा बाघ किस ज़ोन में पाया जाता है इन्हें बखूबी पता है। ये चालक लगातार अन्य चालकों के संपर्क में रहते हैं। टाइगर का मूवमेंट हो रहा है यह जानने के लिए यह लोग फ़ोन पर अन्य जीप चालकों से सम्पर्क में बने रखते हैं। यह चालक बाघों को उनके नामों से पहचानते हैं| हमारे गाइड-हिम्मत सिंह ने बताया की बाघ अपनी टेरेटरी में ही रहते हैं। अगर एक टाइगर दूसरे टाइगर की टेरेटरी में आ गया तो घमासान लड़ाई होती है और उनमें से कोई एक ही जीवित बचता है। दिलचस्प बात यह है कि टाइगर अपनी टेरेटरी के लिए अपनी जान भी दे देता है। आम तौर पर यह लड़ाइयां टेरेटरी या किसी मादा बाघ के लिए होती हैं। बाघ पेड़ पर या चट्टानों पर अपने पंजों से निशान बना कर अपनी टेरेटरी मार्क करते हैं। इस पार्क में कई मादा बाघिन भी हैं जिनमे सबसे ज़्यादा मछली टाइगर प्रसिद्ध है। यह एक बहुत शक्तिशाली बाघिन है। इस बाघिन ने 12 फिट लम्बे घड़ियाल को हराया था।
रिटायर फारेस्ट ऑफिसर महावीर प्रसाद शर्मा ने बताया कि मादा T-19 ने चार शावकों को जनम दिया है और यह बाघिन अपने साथ ज़ोन-6 में देखी जा रही है। यूं तो पार्क देखने आने वाले सैलानी वर्ष भर आते हैं पर जब शावकों का जन्म होता है तो छोटे छोटे शावकों को देखने सैलानी उमड़ पड़ते हैं।
हमने सुबह 6:00 बजे पार्क में प्रवेश किया था और 9:00 बजे हमे पार्क से वापस लौट आना था। हमारी सुबह की सफारी पूरी होने आई थी पर टाइगर के दर्शन नहीं हुए थे। जंगल में हिरन, बारहसिंघा, खरगोश, नीलगाय आदि बहुतायत में हैं। पंख फैलाए मोर नाचते दिख जाते हैं।
पार्क से वापसी में हमें बहुत सारे लंगूर पेड़ों पर दिखाई दिए। यहाँ जगह जगह पानी के तालाब हैं जिनमे मगरमच्छ देखे जा सकते हैं।
यह पार्क 392 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसे पूरा देखने के लिए कमसे कम 3-4 दिनों का समय लगेगा। हमें सुबह की सफारी में टाइगर के दर्शन नहीं हुए थे। हमने शाम की सफारी में जाने का फैसला किया। शाम को हम ज़ोन 3 में गए यह क्षेत्र रण और थम्बोर पहाड़ियों के बीच घाटी में पड़ता है। कुछ किलोमीटर चलने के बाद ही हमें पता चला की टाइगर पहाड़ की तलहटी में आराम कर रहा है। हम बिना आवाज़ किये धीरे धीरे आगे बढ़े। हमारे गाइड ने इशारे से झाड़ियों के पीछे देखने को कहा। टाइगर आराम से सो रहा था हम कई देर तक पालक झपकाए बिना टकटकी लगे टाइगर के विशाल शरीर को देखते रहे। पीले शरीर पर काली और सफ़ेद धारियाँ। टाइगर बहुत चौकन्ने होते हैं उन्हें नींद में भी अपने अस पास की हलचलों का अन्दाज़ा होता है। तभी टाइगर ने आँख कॉल कर हमारी तरफ देखा और बड़ा-सा मुँह खोल कर जम्हाई ली। यह एक महान द्रश्य था। इस द्रश्य को देखने के बाद समझ आता है कि लोग इतनी दुर्गम जंगल सफारी करने क्यों जाते हैं। टाइगर को मात्र 5 फिट की दूरी से देखना अदभुत, अनुपम व अविस्मरणीय अनुभव है।
हमने लौटे में तालाब में एक बाघिन को आराम करते देखा। पानी में लेती बाघिन बहुत सुन्दर दिखाई देती थी। तभी वहां एक हिरन आया और तालाब के किनारे पानी पीने लगा। बाघिन ने एक सरसरी निगाह उसपर डाली और मुँह फेर लिया। हमारे गाइड ने बताया की बाघिन का पेट भरा है इसीलिए शिकार नहीं कर रही है।
पार्क शाम को 6:00 बजे बंद हो जाता है और सभी सैलानियों को 6:00 बजे से पहले बाहर आना होता है।
रणथम्बोर का किला
इस उद्यान के बराबर में रणथम्बोर का दुर्ग भी स्थित है। यह किला चौहान वंश के हम्मीर देव की वैभव और वीरता के लिए जाना जाता है। दुर्ग के तीनो और पहाडों में कुदरती खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है | किले तक पहुँचने के लिए कई उतार-चढाव, संकरे व फिसलन वाले रास्ते तय करने के साथ नौलखा, हाथीपोल, गणेशपोल और त्रिपोलिया द्वार पार करना पड़ता है इस किले में हम्मीर महल, सुपारी महल, हम्मीर कचहरी, बादल महल, जबरा-भंवरा, 32 खम्बों की छतरी, महादेव की छतरी, गणेश मंदिर, चामुंडा मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, शिव मंदिर, जैन मंदिर, पीर की दरगाह, सामंतो की हवेलियाँ तत्कालीन स्थापत्य कला के अनूठे प्रतीक है| राणा सांगा की रानी कर्मवती द्वारा शुरू की गई अधूरी छतरी भी दर्शनीय है| दुर्ग का मुख्य आकर्षण हम्मीर महल है जो देश के सबसे प्राचीन राजप्रसादों में से एक है स्थापत्य के नाम पर यह दुर्ग भी भग्न-समृधि की भग्न-स्थली है |
कब जाएं : नवम्बर से मार्च के बीच
कहाँ ठहरें : रणथम्बोर में पांच सितारा होटल और रिसॉर्ट से लेकर बजट होटलों तक के अनेक विकल्प उपलब्ध हैं। यहाँ कई रिसॉर्ट लग्ज़री कैम्पों की भी व्यवस्था उपलब्ध करवाते हैं।
निकटतम एयरपोर्ट : जयपुर व कोटा