दोस्तों मुझसे अक्सर यह सवाल पूछा जाता है, कि आप देश और दुनिया मे इतना घूमती हैं, आपको सबसे ज़्यादा कौनसी जगह पसंद आई? वैसे इस सवाल का जवाब देना बड़ा ही मुश्किल है। क्योंकि हमारे देश का हर शहर हर राज्य अपने आप मे कुछ विशेषताएँ समेटे हुए है। जिनकी आपस मे तुलना नही की जा सकती। यही तो ख़ासियत है हमारे देश की। फिर भी मेरी एक लाख किलो मीटर की यात्रा के बाद कुछ नाम हैं जोकि मेरी स्मृति मे हमेशा के लिए बस गए हैं। आज मैं आपको ऐसे ही एक शहर से रूबरू करवाऊंगी और आपका परिचय करवाऊंगी उन अनछुए पहलुओं से जोकि इस शहर को औरों से अलग बनाते हैं। जी हां, मैं बात कर रही हूँ राजस्थान के सबसे रोमांटिक शहर उदयपुर की। तो चलिए मेरे साथ इस यात्रा पर।
उदयपुर रेल, सड़क और हवाई मार्गों से देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। आप बड़ी आसानी से देश के किसी भी कोने से उदयपुर पहुँच सकते हैं। मैंने उदयपुर पहुँचने के लिए अपनी प्रिय सवारी भारतीय रेल को चुना। दिल्ली से रात भर का सफ़र तय करने के बाद मैं सुबह-सुबह उदयपुर के साफ सुथरे रेलवे स्टेशन पर उतरी। थोड़ी नज़र घुमाने पर सामने ही मुझे टूरिस्ट इन्फार्मेशन सेंटर नज़र आ गया। हैरानी की बात यह थी कि अभी सुबह के सात भी नही बजे हैं और यह टूरिस्ट इन्फार्मेशन सेंटर ना सिर्फ़ खुला था बल्कि राजस्थान टूरिज़्म डिपार्टमेंट का एक अफसर लंबी सी मुस्कान के साथ आने वाले पर्याटकों को यथा संभव जानकारियाँ उपलब्ध करवा रहा था। तो यह हुई ना बात। इसे कहते है सफ़र की शुभ शुरुवात ।
मैं अपने इस दो दिन के उदयपुर के प्रवास मे यह पता लगाने की कोशिश करूँगी कि इस शहर मे ऐसा क्या ख़ास है जो इसे औरों से अलग करता है?
तो सबसे पहले जानते हैं इस शहर के इतिहास के बारे मे।
इतिहास:
सन 1553 मे महाराजा उदय सिंह ने निश्चय किया कि उदयपुर को नई राजधानी बनाया जाएगा। इसे से पहले तक चित्तौड़गढ़ मेवाड की राजधानी हुआ करता था। सन 1553 मे उदयपुर को राजधानी बनाना का काम शुरू हुआ और साथ ही सिटी पैलेस का निर्माण शुरू हुआ। सन 1959 मे उदयपुर को मेवाड की राजधानी घोषित किया गया।
उदयपुर को महाराजा उदयसिंह ने सन् 1559 AD मे बसाया। उन्हें लेक पिछौला बहुत पसंद थी इसलिए अपने रहने के लिए पैलेस यहीं लेक पिछौला के किनारे बनवाया। इस पैलेस का आकर किसी बड़े शिप जैसा है।
दोस्तों अगर आप उदयपुर के चार्म को नज़दीक से जीना चाहते हैं तो ओल्ड सिटी मे लेक पिछौला के आस पास ही ठहरें। यहाँ आपको 5 सितारा होटल से लेकर हर बजट के होटल और होमस्टे मिल जाएँगे। मैंने भी ओल्ड सिटी का रुख़ किया।
हम अपनी यात्रा की शुरुवात जगदीश मंदिर से करेंगे। जगदीश मंदिर यहाँ का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण सन 1651 मे महाराणा जगत सिंह प्रथम ने करवाया था। जिसकी स्थापत्य कला देखने लायक़ है। मार्बल के पत्थरों पर उकेरी गई मूर्तियाँ एकदम सजीव जान पड़ती हैं। इस मंदिर मे भगवान जगन्नाथ की बड़ी-सी काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के प्रांगण मे ब्रास के गरुण देवता की मूर्ति भी है।
यहीं से थोड़ा आगे जाने पर सिटी पैलेस आ जाता है। सिटी पैलेस पिछली 23 पीढ़ियों से यहाँ के महाराजाओं का निवास स्थान है। जिसका कुछ हिस्सा पब्लिक के लिए खुला हुआ है, कुछ हिस्से मे होटल है और कुछ हिस्सा महाराजा का निवास स्थान है।
सिटी पैलेस मार्बल का बना हुआ एक शानदार पैलेस है जिसमे कई संग्रहालय हैं। जहाँ मेवाड राजवंश के जीवन की झलक प्रस्तुत की गई है। जो भाग पब्लिक के लिए खुला हुआ है उसके दो हिस्से हैं। मर्दाना महल और ज़नाना महल। मर्दाना महल मे कई संग्रहालय और दार्शनिक स्थल हैं जैसे, बड़ी पॉल, तोरण, त्रिपोलिया, मानक चौक, असलहखाना, गणेश देवडी, राई आँगन, प्रताप हल्दी घाटी कक्ष, बाड़ी महल, दिलखुश महल, काँच की बुरज, और मोर चौक।
जबकि ज़नाना महल मे है, सिल्वर गैलरी, आर्किटेक्चर और कन्सर्वेशन गैलरी, स्कल्प्चर गैलरी, म्यूज़िक, फोटोग्राफी, पैंटिंग और टेक्सटाइल व कॉस्ट्यूम गैलरी।
मेवाड के राज घराने के जीवन से रूबरू होने मे कम से कम दो घंटे का समय तो लगता ही है। यह एक प्राइवेट पैलेस है इसलिए इसके रख रखाव पर विशेष ध्यान दिया गया है। यहाँ अंदर जलपान की भी व्यवस्था है।
मैंने पैलेस मे घूमते हुए कई झरोखों से लेक पिछौला देखी। यह एक विशाल लेक है जिसके बीचों बीच सफेद मार्बल का एक खूबसूरत पैलेस नज़र आया मालूम करने पर पता चला कि यह जगनिवास पैलेस है जोकि अब एक 5 सितारा होटल मे तब्दील हो चुका है, ऐसा ही एक और लेकपैलेस है जिसका नाम जगमंदिर है मार्बल के बड़े बड़े हाथियों की क़तार से यह दूर से ही पहचान मे आ जाता है। अब यह भी एक 5 सितारा होटल है।
सिटी पैलेस को देखने के बाद मैं मिलने वाली हूँ सौरभ आर्या से जोकि टूरिज़्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। तय हुआ है कि हम लाल घाट पर बने किसी रूफटॉप रेस्टोरेंट मे मिलेंगे। मैं पतली पतली गलियों से गुज़रती हुई लाल घाट की ओर बढ़ती हूँ। मैं ढलान पर हूँ और मेरे दोनो ओर पूरा का पूरा बाज़ार सज़ा है इन गलियों मे, यहाँ से आप शॉपिंग भी कर सकते हैं। कुछ ही मिनट की वॉक के बाद मे लाल घाट पहुँच जाती हूँ। यह एक खूबसूरत घाट है और मेरे सामने खूबसूरत लेक पिछौला है।
मैं आसपास नज़र घुमा कर देखती हूँ। यहाँ सभी इमारतें एक जैसी हैं। और सफेद और बादामी रंगों वाली इमारतें जिनमे झरोखे बने हुए हैं। एक प्रकार की एकरूपता बनाती हैं। यह छोटे बड़े होटेल और रेस्टोरेंट हैं।
मैं सौरव से मिलती हूँ और उनसे अपना सवाल पूछती हूं-वो क्या है जो उदयपुर को और शहरों से अलग बनाता है?
सौरव कहते हैं- राजस्थान मे पैलेस और किलों की कोई कमी नही है। लेकिन लेक पिछौला सब के पास नही है। उदयपुर एक ऐसी जगह है जोकि अतीत के राजपूती वैभव के साथ नए ज़माने की आधुनिकता दोनो का सन्तुलित मिश्रण प्रस्तुत करता है। अभी आप सिटी पैलेस देख कर आई हैं जोकि राजस्थानी आन बान और शान का प्रतीक है। वहीं लेक पिछौला और उस से जुड़े घाटों पर बने रेस्टोरेंट और कैफ़े वर्ल्ड क्लास भोजन परोसते हैं। आप लेक पिछौला पर शाम को बोटिंग कीजिए और सनसेट का अद्भुत नज़ारा देखिए।
फिर किसी रूफ टॉप रेस्टौरेंट मे बैठ कर लेक पिछौला पर तैरती हुई झिलमिलाती रोशनियों को देखते हुए एक हसीन शाम का लुत्फ़ उठाइए। यह कहीं और नही हो सकता। उदयपुर आने वाले पर्यटक को हर स्वाद परोसता है, दाल बाटी चूरमा से लेकर चिकेन स्टीक और लज़ानिया तक। जहाँ कॅफे और रेस्टोरेंट मे वेस्टर्न म्यूज़िक पर्यटकों का मनोरंजन करता है वहीं नज़दीक ही बाघोर की हवेली मे हर शाम राजस्थान की लोक नृत्यों की प्रस्तुति देखने लायक़ होती है।
सौरव से मिली जानकारी से मेरी विश लिस्ट तो तैयार हो गई। मैंने शाम को लेक पिछौला मे नौका विहार किया और सनसेट पॉइंट से सनसेट देखा। वाक़ई यह एक अद्भुत नज़ारा था। वापसी मे थोड़ी रात घिर आई थी और लेक पिछौला के आसमान पर चाँद भी उतर आया था। सामने सिटी पैलेस पीली रोशनियों मे जगमगा रहा था। यह बहुत सुन्दर नज़ारा है। लगता है जैसे वक़्त यहीं ठहर जाए, थम जाए। लेक पिछोला बहुत बड़ी और बहुत साफ़ लेक है।
अभी थोड़ी शाम बाक़ी थी तो मैंने बाघोर की हवेली मे होने वाले सांस्कृतिक प्रोग्राम का लुत्फ़ उठाया। घूमर, चाकरी और भंवरी नृत्य की इतनी सुंदर प्रस्तुति मैंने पहले कभी नही देखी। सिर के ऊपर 9 मटके रख कर काँच पर नृत्य करना कोई आसान काम नही है।
अगले दिन की शुरुवात फ़तेह सागर लेक पर वॉटर स्पोर्ट्स के साथ हुई। यहाँ पैरा मोटर, स्पीड बोट आदि की व्यवस्था है।
बोटिंग करते हुए मैंने अपने बोट चलाने वाले से पूछा-लेक पिछोला सबसे सुन्दर कहाँ से दिखती है?
उसने बताया – अमराई घाट से।
और मैं पूछते पूछते पतली पतली गलियों को लांघती पहुँच गई अमराई घाट। वाक़ई उसने सही कहा था। यहाँ से नज़ारा अद्भुत था। मेरे आगे लेक पिछोला का नीला साफ़ पानी और सामने सफ़ेद मार्बल वाला सिटी पैलेस और उस के बराबर बराबर क़तार में लगे लाल घाट और गणगौर घाट। किसी चित्रकार की खूबसूरत पेंटिंग जैसे। यहाँ बैठ कर कोई घंटो बिता सकता है।
यहीं मेरी मुलाक़ात हितेश जी से हुई जोकि एक इवेंट मॅनेजर हैं उन्होने बताया कि आपने एतिहासिक इमारतों पर प्रेमी प्रेमिकाओं के प्रेम की निशानी दिल और तीर के रूप मे बहुत देखी होंगी। आज मैं आपको ऐसी ही कुछ निशानियाँ दिखाऊंगा जोकि इस बात का प्रमाण हैं कि यहाँ आने वाले सैलानियों को इस जगह से प्रेम हो जाता है। हम ओल्ड सिटी मे उन जगहों पर गए जहाँ पर बड़ी ही सुंदर ग्रेफ़िटी बनी हुई थी। यह यहाँ पर आने वाले सैलानियों द्वारा बनाई गई थीं। यह एक तरीका है जिसके द्वारा लोग इस जगह से अपने लगाव को रंगों के मध्यम से व्यक्त करते हैं। उदयपुर की ओल्ड सिटी की गलियों मे ऐसी कई सुन्दर ग्रेफ़िटी देखने को मिल जाती हैं।
कैंडल लाइट की रौशनी में लेक पिछोला के किनारे किसी रूफ टॉप रेस्टोरेन्ट में डिनर करना यहाँ आने वाले सैलानियों को बहुत भाता है। इसी लिए शायद इस जगह को राजस्थान का सबसे रोमांटिक शहर कहा जाता है। यहाँ इन गलियों में आप देर रात तक बड़े आराम से घूम सकते हैं। वाकई उदयपुर सच मे एक इंटरनेशनल सिटी है। तभी तो देशी के साथ विदेशी पर्यटकों की यह पहली पसंद है।
मेरे इस दो दिन के उदयपुर प्रवास ने मुझे ढ़ेर सारे सुन्दर अनुभव दिए। अच्छे लोग, अच्छा खाना और अच्छा संगीत, यह वो तीन कारण हैं जिनके चलते उदयपुर बना मेरा पसंदीदा शहर।
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने-कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से किसी और दास्तान के साथ हम फिर रूबरू होंगे। तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी