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Haven in the jungle-Kanha earth lodge, Madhya Pradesh

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सतपुड़ा की पहाड़ियां जंगल से घिरी हुई हैं। इन्हीं रास्तों के बीच से होते हुए मैं कान्हा नेशनल पार्क की ओर बढ़ रही हूँ। रास्ते में छोटे-छोटे गांव पीछे छोड़ती हुई। मिट्टी के घरों को, उन पर पड़ी खपरैल की छतों को, मिट्टी की मोटी-मोटी दीवारों को। यह घर कुछ अलग हैं। इन्हें देख कर इनमें बस जाने को जी करता है। मिट्टी के सोंधे सौंधे घर। कहते हैं जब किसान जेठ माह की तपती धूप में खेतों में काम करके पसीने से लथपथ हो इन घरों में परवेश करता है तो थोड़ी ही देर में यह घर उसका पूरा पसीना सुखा देते हैं। बिना पंखे के। इन घरों के भीतर तापमान बाहर की अपेक्षा बहुत ठंडा रहता है। ऐसे ही नहीं यह घर जी को लुभाते हैं। इन्हें बनाने में सीमेंट और ईंटें नहीं लगती, लगती है तो सिर्फ मिट्टी जिसकी मध्य प्रदेश  में कोई कमी नहीं है।

एक एक कर गांव और घर पीछे छूट रहे हैं और मैं जंगल में और गहरे घुसती जा रही हूँ। मेरी मंज़िल कान्हा नेशनल पार्क के भीतर है कहीं। सड़क के दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे सागोन के पेड़ इस जंगल को सदाबहार बनाते हैं। कितनी भी भीषण गर्मी क्यों न हो यह जंगल इन्ही घने पेड़ों के कारण ठन्डे रहते हैं और वन्य जीवन के लिए बड़े अनुकूल होते हैं। जबलपुर एयरपोर्ट से कान्हा नेशनल पार्क का रास्ता वैसे तो मेहज़  कुछ घंटो का ही है लेकिन प्रकृति के इतने दिलकश नज़ारों से भरा हुआ है कि कब सफर पूरा हो जाता है पता ही नहीं चलता।

हम कंक्रीट के जंगलों में रहने वालों के लिए इतनी हरयाली देखना मेडिटेशन करने जैसा है। आपने शायद कभी ध्यान न दिया हो पर जंगल में एक ख़ास तरह की खुशबु होती है। एक ऐसी सुगंध जो अपनी ओर खींचती है। मैं जैसे-जैसे आगे बढ़ रही हूँ वो महक तेज़ होती जा रही है। हम कान्हा नेशनल पार्क के बफ़र  ज़ोन के गेट पर पहुँच गए हैं। भीतर जाने के लिए वन विभाग को शुल्क चुकाना होता है। मेरे सामने “सेव द टाइगर” का बोर्ड लगा है। जिसपर बाघ का पूरा परिवार छपा है। हमारा राष्ट्रीय पशु और इस जंगल की शान। हम बफ़र ज़ोन में दाख़िल होते हैं। यहाँ से जंगल की नीरवता भी शुरू होती है। कुछ दूर चलने पर हमें धान के खेत दिखाई देते हैं। बफ़र  ज़ोन में धान के खेत? मुझे आश्चर्य होता है। मालूम करने पर पता चलता है कि यह आदिवासियों के हैं। इन खेतों के बीच ऊँचे मचान बने हुए हैं। जोकि बाघ की उपस्थिति का प्रमाण हैं। सहसा हिरनों का एक झुण्ड हमारी गाड़ी के सामने से होकर जंगल में गुम हो जाता है। पास ही सड़क किनारे बाघ के चेहरे वाला बोर्ड लगा है और साथ ही लिखा है – I can see u before u see me.

जंगल के बीच जंगली जानवरों के इतना नज़दीक होना रोमांच पैदा करता है। मैं आदिवासियों के गांव पार करती हुई बफ़र ज़ोन में आगे बढ़ रही हूँ। मन में थोड़ा भय और ढ़ेर सारी जिज्ञासा है। पगडंडी सफारी के बुलावे पर चली तो आई पर आगे क्या होगा?  मेरा नेशनल पार्क देखने का यह मेरा पहला अनुभव नहीं है पर बफ़र  जोन के भीतर दो दिन बिताना थोड़ा सिहरन पैदा कर रहा है। थोड़ा आगे जा कर कंक्रीट की सड़क ने भी साथ छोड़ दिया। अब हम कच्चे रास्ते पर आ गए हैं। शुक्र है यह ऊबड़ खाबड़ रास्ता ज़्यादा लंबा नहीं था और सामने कान्हा अर्थ लॉज का गेट नज़र आने लगा।

मेरे स्वागत मे कान्हा अर्थ लॉज का पूरा स्टाफ मुस्कुराता हुआ खड़ा था। आरती टीके के साथ मेरा पारंपरिक स्वागत हुआ। यह एक चीज़ मुझे अंदर तक खुश कर जाती है। हम कितने भी मॉडर्न क्यूँ ना हो जाएँ लेकिन जो बात हमारे पारंपरिक स्वागत मे है वो कहीं और नही। ठंडी खुशबूदार तौलिए से हाथ मूंह साफ कर, नींबू पानी से अपना गला तार किया। इतने लंबे रास्ते के बात नींबू पानी पीना तो बनता ही है। मैने एक नज़र घुमा कर कान्हा अर्थ लॉज को देखा। 16 एकड़ मे फैला कान्हा अर्थ लॉज बेहद नफ़ासत से बनाया गया है। मुख्य बिल्डिंग मे स्वागत कक्ष, लॉबी और डाइनिंग हाल है। बाक़ी रहने के लिए कॉटेज थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बनी हुई हैं। एक छोटी-सी सोवेनियर शॉप भी है। यहाँ लॉबी मे एक छोटा-सा बार भी है जहाँ शाम को आप मज़े से अपने ड्रिंक्स का आनंद उठाते हुए टाइगर पर बनी डॉक्युमेंटरी देख सकते हैं।

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इसका नाम ही लॉज है वरना यह हैं तो बंगले। यहाँ टोटल 12 बंगले हैं। सोलह एकड़ मे फैला कान्हा अर्थ लॉज ऐसा लगता है जैसे यहाँ पाए जाने वाले आदिवासी गोंड लोगों का कोई गाँव हो। इसके आर्किटेक्चर मे गोंड आदिवासी घरों की झलक है। इन्हें बनाना मे यहाँ के लोकल समान का प्रयोग किया गया है, जैसे टैराकोटा, लकड़ी, मिट्टी, और पत्थर। बिल्कुल वैसे ही जैसे गोंड लोग अपने घर बनाते हैं बस फ़र्क़ इतना है की यह एक हाई एंड लग्ज़री प्रॉपर्टी है। यह प्रॉपर्टी कान्हा नेशनल पार्क के बफ़र ज़ोन से बिल्कुल सटी हुई होने के कारण ऐसी मालूम होती है की बफ़र ज़ोन के अंदर ही हो।

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यहाँ हर चीज़ चुन-चुन कर लगाई गई है। जंगल के बीच होने के कारण इसे इस माहौल के साथ अच्छे से ब्लेंड किया गया है। फर्नीचर से लेकर दीवारों पर लगे आर्ट पीसेज़, डाइनिंग हॉल मे आदिवासियों के घरों से लाए बर्तन सजाए गए हैं। कहीं मुखौटे तो कहीं उनके तीर कमान लगाए गए हैं।

यहाँ लंबी-सी डाइनिंग टेबल मेरा इंतिज़ार कर रही थी। शैफ ने बड़े प्यार से मुझे भोजन परोसा। भोजन ऐसा जैसा घर का खाना। इतने प्रेम से आदर सत्कार आपको किसी 5 स्टार प्रॉपर्टी मे नही मिलेगा। आपके 2 दिन के प्रवास मे यह लोग अपको ऐसा महसूस करवा देंगे जैसे आप ही इस खूबसूरत लॉज के मलिक हों। और यह सब 24 घंटे आपकी सेवा मे तत्पर। जंगल के बीचों बीच घर जैसा माहौल। है ना कमाल की बात।

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खाने से फारिग हो मैनें कॉटेज का रुख़ किया। वहाँ जाकर क्या देखती हूँ कि एक बड़ा सा बेडरूम,  उसके बाहर वरांडा जहाँ 2 आराम कुर्सिया पड़ी हैं, जैसे मेरा इंतिज़ार करती हों।  बेडरूम के साथ ही ड्रेसिंग, और बड़ा-सा बाथरूम। बेडरूम मे एक ओर स्टडी टेबल और दूसरी तरफ काउच। कुल मिला कर एक छोटा-सा हसीन बग्ला। ज़िंदगी जीने के लिए इस से ज़्यादा जगह की ज़रूरत नही है इंसान को।

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नर्म मुलायम बिस्तर देख रास्ते की थकान ने मुझे घेर लिया और मैं धीरे से नींद की आगोश मे चली गईं। जब आँख खुली तो शाम घिर आई थी। मन चाय पीने का हुआ तो लॉबी का रुख़ किया। लॉबी के बाहर खुले मे बैठ कर अदरक वाली चाय का आनंद ही कुछ और है। चाय ख़त्म कर मैने लॉज का एक चक्कर मारने की सोची।

 सच कहूँ यह लॉज जितना खूबसूरत दिन मे लगता है उसे कहीं ज़्यादा हसीन रात मे दिखाई देता है। बंगले तक जाने वाली पतली पगडंडियों को लालटेन की रोशनी से सजाया गया है। शाम होते ही एक कर्मचारी इन लालटेनों को रोशन करने मे लग जाता है।

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लॉज घूम कर दिल खुश हो गया, यहाँ एक स्विमिंग पूल भी है। अच्छा यह है कि उसको एकदम प्राइवेट मे बनाया गया है। यहाँ कुछ देर बैठ कर मैने आसमान के तारों को देखा। बिना पोल्यूशन वाला नीला आसमान। इतने सारे तारे झिलमिला रहे थे। एक आकाश गंगा भी नज़र आ रही थी। मुझे याद नही कि पिछली बार मैने कब इतने सारे तारे देखे थे। दिल्ली में तो शायद कभी नही।

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किचन पास ही है। जहाँ से बड़ी अच्छी खुश्बू आ रही है, शेफ़ हमारे लिए कुछ मज़ेदार स्नैक्स तैयार कर रहे हैं। यहाँ आकर वज़न बढ़ने का ख़तरा बना हुआ है, यह लोग खिलाते बहुत हैं।

स्नैक्स और डिनर से फ़ारिग हो मैं वापस अपनी कॉटेज का रुख़ करती हूँ। हमें वेलकम के समय एक स्टील की पानी की बॉटल दी गई है, यहाँ प्लास्टिक का उपयोग करना मना है, आप वॉटर डिसपेंसर से अपनी बॉटल भर कर ले जा सकते हैं, और क्यों ना हो नेचर कन्सर्वेशन के लिए इस लॉज को कई अवॉर्ड जो मिल चुके हैं।

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Magnificent swimming pool-Kanha earth lodge, Madhya Pradesh

मैं टॉर्च के साथ अपनी कॉटेज का रुख़ करती हूँ। झींगुरों की आवाज़ और ठंडी ठंडी हवा बड़ी सुहानी लग रही है। झाड़ियों मे जुगनुओं के झुंड अटखेलियां कर रहे हैं। मैने अपने पूरे जीवन मे जंगल को इतने नज़दीक से नही जिया कभी, यह अनुभव बड़ा ही अनोखा है। मुस्कुराएं कि आप कान्हा नेशनल पार्क के बफ़रज़ोन से लगे खड़े हैं। यहाँ का स्टाफ बहुत फ्रेंड्ली है। हरप्रीत जोकि एक नॅचुरलिस्ट हैं, पूरे समय हमारी देखभाल मे लगे रहते हैं, उन्होंने ही बताया कि-यहाँ रात के किसी पहर में आप कॉल भी सुन सकते हैं। कॉल मतलब हिरण और लंगूरों द्वारा एक विशेष परकार की ध्वनि निकलना। जब बाघ का मूवमेंट हो रहा हो। वो ऐसा अपने साथियों को सतर्क करने के लिए करते हैं।

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अगली सुबह तड़के चार बजे उठना होगा कान्हा में सफ़ारी के लिए जो जाना है। हमारी सफ़ारी का सारा इंतज़ाम कान्हा अर्थ लॉज ने पहले से ही किया हुआ है। हरदीप ओपन जीप मे हमें कान्हा मे सफ़ारी करने के लिए ले गए। सुबह-सुबह यहाँ थोड़ी ठन्ड होती है, इसलिए कुछ गर्म कपड़े साथ ज़रूर लाएँ। कान्हा नेशनल पार्क एक विशाल जंगल है जोकि 1,949 sq में फैला हुआ है, जिसमें 940  sq कोर एरिया और 1,009 sq का बफ़र ज़ोन है। यह सदाबहार वन है, जहाँ बाँस और सागोंन के पेड़ बहुतायत मे पाए जाते हैं, इस जंगल मे घने पेड़, उँची-उँची झाड़ियां और हरे भरे घाँस के मैदान है जोकि जंगली जानवरों के लिए सवर्ग के समान हैं। यह जगह मशहूर है बाघों, हिरण और बरहसिंघा के लिए।

यह जंगल इतना बड़ा है कि सुबह 6 बजे से 11 बजे तक की सफ़ारी मे केवल एक भाग ही देख पाते हैं। हमने जंगल मे बीच मे ही रुक कर ब्रेकफास्ट किया जिसका बंदोबस्त हरप्रीत जी पहले से ही करके चले थे। वापस आते आते दोपहर हो गई।

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Breakfast in the middle of the Jungle

शाम को पास ही एक नदी है जिसका नाम है बंजर नदी वहाँ पर सनसेट देखने का प्रोग्राम था। शाम की चाय अगर नदी किनारे सनसेट होते हुए पी जाए तो इसकी बात ही कुछ और है। हमे जीप से वहाँ पहुँचने मे 10 मिनिट लगे। यह एक शांत नदी थी, जिसमे ज़्यादा तेज़ बहाव नही था। मैं संभाल संभाल कर पानी के बिल्कुल नज़दीक जा बैठी। यहाँ बहुत शांति है। मैं पत्थर पर लेट गई, अब केवल दो ही आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।

नदी के धीरे-धीरे बहते पानी की कल कल और मेरी अपनी साँसों का शोर। मैने आँखें मूंद लीं। कितना सुहाना है, प्रकृति के इतने नज़दीक होना। दूर क्षितिज पर सूरज पीले से केसरिया रंग बदल रहा था, पास ही एक माछुवारा अपना जाल उठा रहा था। पंछी वापस अपने घोंसलों की ओर उड़ चले थे। हैपी जी मेरी चाय के इंतज़ाम मे लगे हुए थे और मैं इस लम्हे को घूँट दर घूँट जी रही थी। और मुस्कुरा रही थी। साथ ही सोच रही थी कि पगडंडी सफ़ारी का किन लफ़्ज़ों मे शुक्रिया अदा करूँगी इस हसीन शाम के लिए।

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सूरज छुपने को जैसे अड़ा बैठा है और मैं चाहती हूँ कि यह लम्हा यहीं थम जाए, ठहर जाए, कुछ देर को रुक जाए, मन कहता है कि रोक ले उसे, थोड़ी और देर के लिए, बाँह पकड़ बिठा ले यहीं अपने पास। पर दुनियाँ को चलाने वाला सूरज ज़िद पर अड़ा है मेरे कहने से कहाँ रुकेगा भला।

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An evening at Banjar river-Kanha earth lodge, Madhya Pradesh

जब तक हम लोग वापस पहुँचे शाम पूरी घिर आई थी, हमारे लिए लॉज के पीछे बॉन फायर का इंतज़ाम किया गया था। शायद इसी की कसर बाक़ी थी। बॉन फायर के नज़दीक बैठ कर हाथ सेंकना किसे अच्छा नही लगेगा। कान्हा अर्थ लॉज मे मेरा दो दिन का प्रवास अब ख़त्म होने को है, सुबह वापस जाना होगा। यह दो दिन मुझे नेचर के इतने नज़दीक ले गए कि अब अपनी आपाधापी भरी ज़िंदगी में वापस जाते हुए थोड़ी मुश्किल हो रही है। सतपुड़ा के इस हसीन जंगल से वापस जाने को जी नही चाह रहा है।

पर वापस तो जाना होगा। यही तो काम है एक यायावर का।

इसलिए यात्रा जारी है।

फिर मिलेंगे दोस्तों किसी और मोड़ पर

किसी और दिलकश नज़ारे के साथ। तब तक आप बने रहिये मेरे साथ

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा ० कायनात क़ाज़ी

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