केरल जाएं तो फोकलोर म्यूज़ियम देखना न भूलें….
Dedicated section for the masks in folklore-museum-Cochin-Kerala
जब केरल जाने की तैयारी कर रही थी तो आदत के अनुसार इन्टरनेट पर रिसर्च भी काफी की। केरल का नाम आते ही ज़ेहन में सबसे पहले क्या आता है? समुन्दर ,नारियल के पेड़, कथकली, बेक वाटर्स, टी-गार्डन, मंदिरों के ऊँचे-ऊँचे प्रसाद। सफ़ेद साड़ी और गोल्डन बॉर्डर में सजी महिलाऐं, जूड़े में चमेली का गजरा।
इस राज्य में इतना कुछ है देखने को कि जितने भी दिन हों कम हैं। मेरी विश लिस्ट में कथकली और मोहिनीअट्टम पारंपरिक नृत्य देखना तो था ही साथ ही यहाँ की प्राचीन धरोहरों को भी नज़दीक से देखना था। यह प्रदेश एक प्राचीन बंदरगाह रहा है और व्यापार का बड़ा केंद्र, इसने चीनी, डच, पुर्तुगाली, अँगरेज़ और मुसलमानों को खुले बाहें अपनाया है। व्यापारिक केंद्र होने के नाते जहाँ यह विदेशियों की आमद का राज्य बना वहीँ देश के अन्य नज़दीकी राज्यों के व्यापारियों के आकर्षण का केन्द्र भी रहा इसलिए यहाँ मालाबार, कोंकण, गुजरात और तमिलनाडु से लोग आए और फले फूले। जब इतनी विविध संस्कृतियों के लोग यहाँ आए तो साथ लाए अपनी परंपराएं, रीतियाँ और संस्कृतियां। और इस राज्य का दिल माना जाने वाला शहर बना कोचीन। कहते हैं कोचीन विदेशियों की पहली कॉलोनी बना।
कोचीन में बहुत कुछ है देखने के लिए, जैसे फोर्ट कोच्ची, मट्टनचेरी। यह तो वो जगह हैं जिनके बारे में हर टूरिस्ट जानता है पर कुछ ऐसे छुपे हीरे भी हैं जिनके बारे में ज़्यादातर लोग नहीं जानते। मुझे दक्षिण भारतीय मंदिर बहुत पसंद हैं। उनकी वास्तुकला मन मोह लेती है। द्रविड़ शैली में बने यह मंदिर जिनमें गर्भ गृह, गर्भ ग्रह के ऊपर शिखर और मंदिर की बाह्य दीवारों के पत्थरों पर उकेरे हुए मूर्तियां। केरल पहुँच कर इस कला में थोड़ा बदलाव देखने को मिलता है। केरल के रॉक-कट मंदिर सबसे पहले बने मंदिरों और करीब 800 ईसा पूर्व के समय में बने बताए जाते हैं. इन मंदिरों की वास्तुकला में लकड़ी का प्रयोग बहुतायत में देखने को मिलता है। और जितने इंटरेस्टिंग यह मंदिर बाहर से हैं उतने ही अंदर से भी। और फिर मंदिर ही क्यों यहाँ के पारंपरिक घर भी बहुत सूंदर हैं। एक एक चीज़ कलात्मकता लिए हुए है।
मैं ऐसे ही घर और और उनमें प्रयोग में लाई जाने वाली चीजें देखना चाहती थी इसलिए फोकलोर म्यूज़ियम ने मुझे बरबस ही अपनी और आकर्षित किया। मैंने भारत में और विदेश में भी कई बेहतरीन संग्रहालय देखे हैं जैसे एम्स्टर्डम में वेन गॉग म्यूज़ियम, मैडम तुसाद पर यह जगह उन सब से बहुत अलग थी। यह म्यूज़ियम बाहर से किसी राजा के महल-सा दिखाई देता है। पारंपरिक दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का नमूना। मैं इसे एक एंटीक हवेली समझ रही थी पर बाद में पता चला कि इसका डिज़ाइन खुद मिस्टर जॉर्ज ने बनाया और यह ईमारत खुद उनके द्वारा बनवाई गई है। जिसके दरवाजे से ही इस जगह की अहमियत दिखाई देने लगती है। केरल, मालाबार, कोंकण और त्रावणकोर तमिलनाडु के कोने-कोने से इकहट्टा की गई बेशक़ीमती कला यहाँ लाकर संजोई गई है।
अगर यह कहें कि यह ईमारत लगभग 25 पारंपरिक दक्षिण भारतीय भवनों से लिए गए नायाब हिस्सों को जोड़ कर बनाई गई है तो यह अतिशयोक्ति न होगा। इस ईमारत में हुआ लकड़ी का काम लकड़ी पर नक्कारशी करने वाले 62 पारंपरिक कारीगरों ने पूरे साढ़े सात साल लगा कर पूरा किया। मुख्य दरवाजे के बाद एक बड़े पत्थर का दीप दान ने मेरा स्वागत किया। यह सत्रहवीं शताब्दी का दीपदान था। उसके बाद सामने म्यूज़ियम का द्वार था जोकि दक्षिण भारतीय मंदिर के द्वार-सा था। जिस द्वार पर एक महिला केरला की पहचान सफ़ेद गोडेन साड़ी में मेरे स्वागत के लिए खड़ी थीं। मैं ऑंखें फाड़े एक एक चीज़ को गहराई से देखने में गुम थी। फ़र्श से लेकर छत तक हर चीज़ वास्तुकला का नमूना थी। यह तीन तलों में बनी ईमारत है जिसके हर तल पर अलग अलग जगहों से लाई गई एंटीक वस्तुओं का संग्रह है। पत्थर की मूर्तियां, वाद्य यंत्र, गहने , कपड़े, फर्नीचर, आभूषण, पेंटिंग, बर्तन, मुखोटे, धातु की मूर्तियां, सिक्के, ताम्रपत्र, मंदिरों के अलंकार की वस्तुएं, बड़े बड़े दीपदान और न जाने क्या क्या…
इस जगह में इतना कुछ है देखने को कि 2-3 घंटे भी कम हैं। यहाँ एक मंच भी है जहाँ शाम को केरल और दक्षिण भारत की पारंपरिक नृत्य शैलियों का मंचन भी किया जाता है। मैं लकी थी कि जिस समय मैं पलक झपकाए बिना एक एक चीज़ को निहार रही थी तभी मुझे म्यूज़ियम की एक कर्मचारी ने आकर बताया कि मिस्टर जॉर्ज उस समय वहां आए हुए हैं। मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
एक कला प्रेमी के लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या होगी की वह उस व्यक्ति से मिल सके जिसने यह शाहकार खड़ा किया है। मैंने उनसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की और इस तरह मुझे इस खूबसूरत और अपनी तरह के अकेले म्यूज़ियम के बनने की दास्तान पता चली। इस म्यूज़ियम के बनने की दास्तान ख़ुशी और ग़म दोनों को समेटे हुए है।
वो क्या था जिसके लिए इतने बड़े म्यूज़ियम के मालिक मिस्टर और मिसिज़ जॉर्ज को अपनी शादी की अंगूठी बेचनी पड़ी। मिस्टर जॉर्ज से हुई बातचीत आप इंटरव्यू सेक्शन में पढ़ सकते हैं। फ़िलहाल आप फोकलोर म्यूज़ियम का आनंद इन तस्वीरों से ले सकते हैं।
आप कहीं मत जाइयेगा ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से किसी और दास्तान के साथ हम फिर रूबरू होंगे।
तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा ० कायनात क़ाज़ी