सरदार पटेल की जयंती पर विशेष
दो दोस्त बैठ कर छुट्टियाँ प्लान कर रहे थे। एक बोला -यार मेरी बीवी की फरमाइश है की हम इन विंटर वेकेशन्स में राजिस्थान टूर पर जाएं। उसे जयपुर से ब्लॉक प्रिंट की चादरें और बन्धेज की चुनरी, जोधपुर से जूतियाँ,पुष्कर से कैमल लैदर के बैग खरीदनी है और जैसलमेर में सेन्ड डियून्स से सनसेट देखना है। दूसरा दोस्त बोला-तो इसमें परेशानी क्या है ? यार जयपुर तो जा सकता हूँ ,राजपूताने का वीसा तो आसानी से मिल जाता है पर मेवाड़ का नहीं मिलता। फिर सोचता हूँ कि भारतपुर बर्ड सेन्चुरी ही दिखा लाऊँ पर जयपुर एस्टेट का भरतपुर एस्टेट से पुराना झगड़ा है ,इसलिए इनके बॉर्डर बंद हैं आजकल।
सुनने में अजीब लग रहा है ना पर ऐसा ही सूरते हाल होता अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल 554 प्रिन्सी एस्टेट्स को एकजुट न करते। आज हम बड़े आराम से इस राज्य से उस राज्य में घूम आते हैं और पता भी नहीं चलता। पर उस दिन को सोचिए जब देश आज़ाद होने वाला था और हर प्रिन्सी एस्टेट के पास यह विकल्प था कि वह हमारे देश में रहे या पाकिस्तान के साथ जाए। अगर सभी एस्टेट्स की मर्ज़ी चल जाती तो आज दक्षिण भारत के बीचों बीच एक मिनी पाकिस्तान होता। जिसे आज हम हैदराबाद कहते हैं। कश्मीर तो सिरे से होता ही नहीं मानचित्र मे। इस देश को अखण्ड भारत का स्वरुप देने में सरदार पटेल का योगदान अमूल्य है।
विलायत से बेरिस्टर बन कर आए वल्लभ भाई की वकालत अपने पूरे शबाब पर चल रही थी। पर जब उन्होंने गाँधी जी के साथ सत्याग्रह आन्दोलन से जुड़ने का फैसला किया तो अपनी सूट बूट वाली विलायती जीवनशैली को तिलांजली दे दी और खादी को अपना लिया। बारदोली गुजरात में लगातार पड़ने वाले सूखे और अकाल से किसानो का बुरा हाल था। उसपर अंग्रेजी हुकूमत कमरतोड़ टैक्स वसूल करना चाहती थी। किसानों पर लगातार अत्याचार हो रहे थे। ऐसे में सन 1928 में सरदार पटेल ने बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली और आज़ादी की लड़ाई में कूद गए। उन्होंने बारदोली तालुका के 80 हज़ार किसानों को अंग्रेज़ों के खिलाफ एकजुट किया। अंग्रेज़ों के अत्याचारों का सामना करने का साहस पैदा किया। सरदार पटेल ने गाँव-गाँव जाकर लोगों में साहस पैदा किया। इतने बड़े किसान आन्दोलन के सामने अंग्रेजी हुकूमत को आखिरकार बातचीत के लिए झुकना पड़ा।
सवतन्त्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के अलावा सरदार पटेल ने सवतंत्र भारत के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील चरण में भी बड़ी ही अहम भूमिका निभाई। 1945 में शिमला में हुई विशेष बैठकों में लार्ड माउन्ट बेटन व भारतीय सवतन्त्रता सैनानियों के बीच सवतंत्र भारत का प्रारूप आकार ले रहा था। यह वह समय था जब अंग्रेज़ भारतीयों को सत्ता सौंप कर वापस जाना चाहते थे। पर देश इतनी आसानी से आज़ाद होने वाला नहीं था। इसमें कई पेंच फसे थे। एक ओर जिन्ना अलग पाकिस्तान की मांग कर रहा था तो दूसरी ओर अंग्रेज़ फूट डालो की नीति पर काम कर रहे थे। देश में554 राजा रजवाड़े थे। जिनके पास यह विकल्प मौजूद था कि वह अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान के साथ जा सकते हैं। ऐसे में देश को अखण्ड राष्ट्र बनाने की जिम्मेदारी केवल एक व्यक्ति ही निभा सकता था और वह थे लौह पुरुष -बल्लभ भाई पटेल।
यह एक कठिन कार्य था जिसके लिए असाधारण प्रतिभा की आवशयकता थी। द्रढ़ता,साहस ,चातुर्य,दूरदर्शिता और धैर्य की प्रतिमूर्ति सरदार पटेल के समक्ष कई बड़ी चुनोतियाँ थीं। जैसे 554राजे रजवाड़ों का विलय ,विभाजन के साथ ही देश भर में फैले साम्प्रदायिक दंगे, दस लाख हिन्दुओं को पाकिस्तान से सुरक्षित लाना और बारह लाख मुसलमानों को पाकिस्तान जाने का सुरक्षित मार्ग प्रशस्त करना,लाखों की संख्या में आरहे शरणार्थियों के रहने,खाने और सुरक्षा का इन्तिज़ाम करना, विस्थापितों को बसाना, पंजाब,दिल्ली और कलकत्ता में मची खूनी मारकाट को रोकना और शान्ति बहाल करना।
जब लोग नंगी तलवारें हाथों में लिए सड़कों पर एक दूसरे का खून बहाते घूम रहे हों ऐसे में शांति इस्थापित करना। सरदार पटेल के सामने चुनौतियां चौतरफा थीं और उनसे निपटने के लिए साधन सिमित थे। देश का गृह मंत्री होने के नाते उन्हें सभी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी थीं फिर चाहे पाकिस्तान के साथ संसाधनो का बटवारा हो या फिर अन्त तक विलय के लिए राज़ी न हुए राजाओं से सख्ती से निपटना हो।
देश का राजनैतिक व भौगोलिक एकीकरण सरदार पटेल की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। राजाओं से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाने के लिए साम ,दाम दण्ड और भेद का प्रयोग कर उन्होंने इस असंभव कार्य को संभव बनाया। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि 1947 में जब शताब्दियों की दासता के बाद देश ने आज़ादी का मंगल प्रभात देखा तब कश्मीर और हैदराबाद उसमे शामिल नहीं थे। इनके विलय के बिना ही देश स्वतंत्र हुआ था। जूनागढ़ को जिन्ना पाकिस्तान में मिलाना चाहता था पर उसकी भौगोलिक और सामाजिक स्थिति इसकी इजाज़त नहीं देती थी।
जूनागढ़ के तीन ओर भारत की सीमाएं और चौथ ओर समुद्र था। यहाँ की जनता का 80प्रतिशत भाग हिन्दू था और नवाब मुस्लिम। इसके अलावा जूनागढ़ से पाकिस्तान 300मील दूर था। जूनागढ़ के नवाब पर जिन्ना का हाथ था। तब सरदार पटेल ने जाकर वहां की जनता से उनकी राय पूछी। वहां की जनता भारत के साथ रहना चाहती थी। पटेल ने भारतीय फौजों को जूनागढ़ की सीमाओं पर तैनात किया और बात बन गई। इसी प्रकार कश्मीर का राजा हरिसिंह आज़ाद एस्टेट चाहता था जो कि किसी भी संभव न था। वह विलय के लिए राज़ी न था। पर जब पाकिस्तानी कबाइली सेनाओं ने श्रीनगर के बाहरी इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया तब हरी सिंह किसी तरह जान बचा कर जम्मू पहुंचा और भारत के साथ विलय को राज़ी हुआ। तब भारतीय सेना ने जाकर कबाइली सेना को भारत से खदेड़ा।हैदराबाद के साथ भी कई दौर की वार्ता बेकार हो चुकी थी।
हैदराबाद भी पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था पर उसे तो दिया ही नहीं जा सकता था। हैदराबाद दक्षिण में बिलकुल बीचों बीच स्थित होने के कारण ऐसा करना असम्भव था। अंत में सरदार पटेल को कड़ा फैसला लेना पड़ा और भारतीय सेना ने 5 दिन में ही निज़ाम की सेना से हथियार डलवा दिए।
इतना ही नहीं भारत विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र का रूप देने के लिए नए राज्यों का गठन करना भी पटेल की ही जिम्मेदारी थी। इस महान हस्ती ने देश के कोने कोने में जाकर देश को बांधा है। आपको जाकर आश्चर्य होगा कि जब उनकी मृत्यु हुई तब उनके बैंक खाते में केवल 226 रूपये थे। हमारे देश को विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र बनाने के लिए उस लौह पुरुष का अतुलनीय योगदान अविस्मरणीय है।