International Kite festival Ahmadabad

मकर संक्रांति

पतंग उड़ाना इंसान के पंछी बन दूर गगन में उड़ने की इच्छा का सजीला प्रतीक है। जोकि हमारे देश में अलग अलग मौक़ों पर देखा जाता है। पतंग उड़ाना वैसे तो व्यक्तिगत पसंद का विषय है लेकिन यह कहीं कहीं तो उत्सव के रूप में पूरा का पूरा समाज और राज्य मनाता है। इस दिन सभी लोग सारे भेद भाव भूल इस पर्व को पूरे हर्ष से मनाते हैं। पूरे गुजरात में मकर संक्रांति जिसे उत्तरायन भी कहा जाता है के अवसर पर पतंग उड़ाने का रिवाज है। जिसको बड़े उत्सव के रूप में अहमदाबाद में इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल के तौर पर मनाया जाता है।

इस उत्सव की तैयारी महीनों पहले से होने लगती है। ओल्ड अहमदाबाद की तंग गलियों में पतंग के बाजार सज जाते हैं। नारंगपुरा, अंकुर चौरास्ता रंग बिरंगी पतंगों से दमकने लगता है। यहाँ रॉकेट, चील, गरिया, चोकरी, चांदतारा और पुछड़ पतंगों के प्रकार हैं। यह बाजार हफ़्तों पहले से 24 घंटे खुले रहते हैं।

 यहां के लोग पतंग उड़ाने में बड़े ज़ोर शोर से भाग लेते हैं। कुछ लोग सूरत से मांझा मंगवाते हैं तो कुछ कांच को पीस कर अपना मांझा खुद तैयार करते हैं। पतंगबाज़ी में सामने वाले की पतंग काट कर ज़ोर से “काय  पोछे” का नारा लगाने के लिए तैयारी भी तो करनी पड़ेगी।“काय  पोछे” का अर्थ गुजराती भाषा में “मैंने तेरी पतंग काट दी” से जुड़ा हुआ है। इस वाक्य का सम्बन्ध जीत के उल्लास से ज़्यादा है।बदलते समय के साथ इस परम्परिक लोक उत्सव ने विश्व व्यापी स्तर पर पहचान बनाई है। अहमदाबाद में आजकल साबरमती फ्रंट पर बड़े विशाल स्तर पर इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। यहाँ दूर दूर से लोग इस फेस्टिवल में भाग लेने आते हैं। यहाँ एक से बढ़ कर एक पतंगे नज़र आती हैं। अलग अलग रंग,आकर की यह पतंगें पांच रूपए से हज़ारों रूपए की क़ीमत वाली होती हैं। लोगों में जोश ऐसा की देखते ही बनता है। अहमदाबाद के रसूल भाई एक डोर में 500 पतंगों को उड़ाने का कीर्तिमान क़ायम किये हुए हैं। पूरा दिन पतंग बाज़ी के हो हल्ले में निकलता है। मकान की छतें युवा लड़कों से भरी रहती हैं वहीं लड़कियां भी पेंच लड़ाने से पीछे नहीं रहती और जम के पतंगबाज़ी करती हैं। माहौल को रंगारंग बनाने के लिए लोग गीत संगीत भी शामिल करते हैं।  दिन भर की धूम भी इन पतंगबाजों के जोश को ठंडा नहीं कर पाती के शाम ढ़लते ही अहमदाबाद का आसमान पतंगों के साथ हज़ारों उड़ते दीयों से भर जाता है। पतंग में कंदील बांध कर सधे हाथों से उड़ाना भी एक महारत है। बस एक ही शर्त है ऊंचाई कितनी भी हो जाए लेकिन कंदील के अंदर रखी मोमबत्ती बुझनी नहीं चाहिए। अब तो एलईडी पतंग भी खूब नज़र आती हैं और अपनी रौशनी से आकाश में करतब दिखाती हैं।

अहमदाबाद में कई प्रोफेशनल काइट फ्लाइंग क्लब चलते हैं जोकि इस प्राचीन खेल को विश्व भर में पहचान दिला चुके हैं। इन क्लब ने इस प्राचीन खेल को एक इंटरनेशनल स्पोर्ट्स के रूप में स्थापित करने में बड़ी मेहनत की है।

जहां मकर संक्रांति पर पतंगोत्सव मनाना युवाओं को आकर्षित करता है वहीं इस त्यौहार का बहुत ही धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। मकर संक्रांति हिन्दू समाज में एक मात्र ऐसा त्योहार है जोकि सूर्य की गति पर केंद्रित होता है। इसीलिए इसकी एक निष्चित तिथि है। यह त्यौहार हर वर्ष चौदह जनवरी को मनाया जाता है जब पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और दक्षिण से उत्तरायन होता है। इस दिन खिचड़ी खाने का रिवाज बड़ा ही वैज्ञानिक है। बदलते मौसम में खिचड़ी खाना सेहत के लिए उत्तम है। इस दिन नदियों और पवित्र सरोवर में स्नान भी किया जाता है उसके पीछे भी बड़ा ही वैज्ञानिक पहलु है। कहते हैं सूर्य की स्थिति बदलने से नदियों में वाष्पन की क्रिया होती है। ऐसे समय में नदी के जल में स्नान करने से शरीर के रोग दूर होते हैं।

इस साल की मकर संक्रांति बड़ी खास है। प्रयाग में सदी का पहला महाकुम्भ मेला लग रहा है। जहाँ लाखों श्रद्धालु मकर संक्रांति के दिन पवित्र स्नान करने जुटेंगे। इसी दिन से पवन अपनी दिशा भी बदलता है। इसीलिए शायद इस दिन पतंग उड़ाने का चलन शुरू हुआ। इसी दिन से सर्दी भी घटने लगती है।

अहमदाबाद में इस उत्सव की बड़ी धूम देखी जाती है। गुजराती समाज बड़ा ही पारिवारिक मूल्यों को साथ लेकर चलने वाला समाज है। इस त्यौहार में भी पूरा परिवार एक जगह जमा होता है। सुबह से ही परिवार के बुज़ुर्ग दान कर्म में लग जाते हैं। खिचड़ी, गुड़, तिल और कपड़े दान में दिए जाते हैं। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा भी होती है। परिवार की महिलाऐं बेसन और मैथी से तैयार की जाने वाली डिश ऊंधिया पकाती हैं। इस दिन गरमा गरम जलेबी भी खाई जाती है।परिवार में टिल के लड्डू बनाए जाते हैं। दादी नानी बच्चों के लिए तिल के लड्डुओं में पैसा छुपा देती हैं। जिससे बच्चे चाव से लड्डू खाएं। पैसे के लालच में बच्चे लड्डू मज़े से खाते हैं।

यहां के लोग इस पर्व से जुड़ी कई पौराणिक कहानियां भी सुनाते हैं। राजा भगीरथ को गंगा माँ को धरती पर लाने के लिए बड़े प्रयत्न करने पड़े थे। उन्होंने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कड़ी तपस्या की थी। जिस से प्रसन्न होकर माँ गंगा धरती पर आईं और उन्होंने महाराज भगीरथ द्वारा दिया गया अपने पूर्वजों को तर्पण स्वीकार किया और इसी दिन गंगा मय्या समुद्र में जाकर मिल गईं।

इस साल यह फेस्टिवल 6 से 14 जनवरी के बीच पूरे गुजरात में मनाया जा रहा है। गुजरात टूरिज्म द्वारा जिसका आगाज़ अहमदाबाद स्थित साबरमती रिवर फ़्रंट से किया जाता है और हर दिन गुजरात के अलग अलग शहरों जैसे सूरत, वडोदरा, कच्छ, राजकोट, सापुतारा, द्वारका,अमरेली आदि में आयोजित किया जाता है।  इस फेस्टिवल में भाग लेने ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, ऑस्ट्रिया, नेपाल, जर्मनी, कनाडा और इज़राइल की टीमें आती हैं। यहाँ बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी पतंग देखने को मिलती है। भिन्न भिन्न आकर और प्रकार की यह पतंगे ड्रेगन से लेकर डोरेमोन और शक्तिमान से लेकर छोटा भीम तक सब हवा से बातें करती हैं।

कोई अपनी बड़ी सी पतंग से सब में धौंस जमाने में लगा होता है तो कोई अपनी पतंग के सहारे अवेर्नेस फ़ैलाने का काम करता है। इन पतंगों के सागर में राजनीति से लेकर स्वच्छता मिशन तक के मुद्दे आसमान में तैरते नज़र आते हैं। जोश और उमंग से भरे इस फेस्टिवल का इंतज़ार पूरे साल भर किया जाता है।

 

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