Champaner the first UNESCO heritage site of Gujarat

Champaner

चम्पानेर

आज हम आपको लेकर चलेंगे एक ऐसी नगरी जिसका इतिहास दो हज़ार साल पुराना है। यह स्थान एक दस्तावेज़ है हमारी साझी ऐतिहासिक एवं जीवित सांस्कृतिक धरोहर सम्पत्ति का।

 गुजरात के पावागढ़ हिल्स के बीच बसा हुआ एतिहासिक नगर चम्पानेर। इस जगह को यूनेस्को ने वर्ष 2004 मे विश्व धरोहर के खिताब से नवाज़ा।  गुजरात के पाँचमहल जिले मे पड़ने वाला चम्पानेर 2,911। 74 हेक्टेयर्स मे फैला हुआ है। पुरातात्विक महत्व की यहां लगभग114 संरचनाएँ हैं।  जिनमें जैन मंदिर, मंदिर और मस्जिदें शामिल हैं।  इन संरचनाओं के बीच हमें देखने को मिलती हैं कुछ बेहद अनोखी संरचनाएँ, जैसे पानी के अनेक जलाशय। जोकि इस पूरे नगर को जीवित रखने के लिए बड़े आवश्यक थे। इन संरचनाओं को देख कर अहसास होता है कि 2000 साल पहले के लोग वास्तुकला और तकनीक मे कितने आगे थे।  यह पूरा नगर अर्बन प्लॅनिंग का बेजोड़ नमूना है।

वडोडरा से 45 किलोमीटर उत्तर पूर्व और गोधरा से 42 किलोलामीटर दक्षिण पश्चिम मे बसा यह नगर पावागढ़ पहाड़ियों पर फैला हुआ है। जिसकी ऊंचान लगभग 800 मीटर मानी जाती है।

इंडो सारसानिक वास्तुकला के अभूतपूर्व समागम का बेजोड़ नमूना है चम्पानेर पावागढ़ पुरातात्विक उद्यान। इंडो सरसानिक वास्तुकला आर्किटेक्चर की एक ऐसी कला है जिसमें भारतीय इस्लामिक आर्किटेक्चर और हिंदू आर्किटेक्चर को मिला कर कुछ नया ही तैयार किया जाता है।  इस वास्तुकला मे विक्टोरियन वास्तुकला की छाप भी देखने को मिलती है।

चम्पानेर के नाम के साथ भी यहाँ कई कहानियां सुनाई जाती हैं।  कुछ लोग मानते हैं कि पावागढ़ पहाड़ की मिट्टी का रंग पीला है।  जोकि चंपा के फूल से मिलता जुलता है इसलिए इस जगह का नाम चम्पानेर पड़ा तो कुछ लोग कहते हैं कि यहाँ एक राजा हुए थे जिनका नाम वनराज था उनके एक मंत्री का नाम चंपा था उन्ही के नाम पर इस जगह का नाम चम्पानेर पड़ा।

यहाँ के लोग एक और कहानी भी कहते हैं उनका मानना है कि माता सती के पाँव के अंगूठा यहाँ इस पहाड़ पर गिरा था इसलिए इसे पावागढ़ कहा गया।

इतिहास के झरोके से

चम्पानेर 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्यकलीन युग मे गुजरात की गौरवपूर्ण राजधानी हुआ करता था। जिसका एक स्वर्णिम इतिहास था। ऐसा कहा जाता है कि यह नगर राजपूत राजा वनराज चावडा ने आठवीं शताब्दी मे बसाया था। उनके बाद अनेक राजा रजवाड़ों ने इस नगर पर राज किया और समय समय पर इसको परिष्कृत किया।  फिर यह नगर महमूद बेगडा के पास आया। महमूद बेगडा को यह जगह इतनी पसंद आई की उसने अपनी राजधानी यहीं बसाने का फ़ैसला किया। और इस जगह का नाम बदल कर महमूदाबाद भी रखा लेकिन सन् 1553 मे हिमायूँ ने यहाँ हमला कर इस जगह को अपने क़ब्ज़े मे ले लिया। उस दिन से अगले 300 वर्षों तक यह जगह दिन बा दिन अपना गौरव खोती रही।

आज भले ही उस विराट नगर के निशान स्थान खंडहर मे तब्दील हो चुके हैं लेकिन इसकी वास्तुकला और अर्बन प्लॅनिंग किसी भी मॉडर्न शहर से कहीं ज़्यादा विकसित मानी जाती है।

कैसे मिला यह आर्किटेक्चरल वंडर?

इस जगह को खोज नकालने का श्रेय सबसे पहले दो शोधार्थी जे। डब्ल्यू।  वाट्सन और हरमन गेट्ज़ को जाता है।  उनके बाद सन् 1971 मे जेम्ज़ बर्जेस ने यहाँ कई और महत्वपूर्ण संरचनाओं को ढूंढ निकाला था जैसे जामी, केवड़ा और नगीना मस्जिद। फिर भी बहुत कुछ ऐसा बाक़ी था जिसकी खोज होना बाक़ी थी। लेकिन इन शोधकर्ताओं की मेहनत ने दुनिया भर के शोधकर्ताओं को इस जगह के प्रति आकर्षित किया।

1970 मे महाराजा सयाजिराव यूनिवर्सिटी ऑफ बरोडा के पुरातत्त्ववेत्ता प्रोफ.आर. एन. मेहता की अगुवाई मे इस क्षेत्र मे खोज का काम शुरू किया तो जैसे एक के बाद एक नायाब नमूने निकालने लगे। उसे पहले तक यह स्थान केवल एक गाँव जैसी थी। पुरातत्त्ववेत्ता का भी मानना है की यहाँ मानव सभ्यता के कुछ और महेत्वपूर्ण प्रमाण देखने को मिलना बाक़ी है।  कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस जगह का संबंध प्रैतिहासिक काल से भी रहा है।

जल प्रबंधन की मिसाल

इस नगर मे वैसे तो देखने को बहुत कुछ है लेकिन सबसे ज़्यादा प्रभाव करने वाली चीज़ है अर्बन प्लॅनिंग। जिसमे जल प्रबंधन के लिए पर्याप्त इंतज़ाम किए गए हैं। यहाँ तालाब हैं, पोखर हैं ,कुएं हैं, स्टेप वॉल्स हैं।  जोकि देखने से ताल्लुक़ रखती हैं। जैले हेलिकल वाव, गेबन शाह वाव,चंद्रकला और सूर्यकला वाव, सात कुवा आदि

यहाँ अनेक नेचुरल वाटर रिसोर्स मौजूद हैं जैसे अटक एरिया में मेडी तलाओ, तैलिया तलाओ, दूधिया, छासिया, नौलखी और मौलिया प्लॅटो पर तलाओ। चम्पानेर को इसकी जल संचरण की तकनीकों के लिए कभी कुँओं का शहर भी कहा जाता था।

इन संरचनाओं को देख कर बड़ी आसानी से अंदाज़ा लगाया जासकता है की इस नगर मे जो भी निर्माण कार्य हुए है वो लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के अनुसार अलग अलग किए गए हैं।

चम्पानेर-पावगाढ़ आर्कियोलॉजिकल पार्क

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इस जगह को मानव इतिहास की एक दस्तावेज़ के रूप मे माना जाता है।  जिसके महत्व को समझते हुए यूनेस्को ने इसे सन् 2004 मे विश्व धरोहर का दर्जा दिया। पुरातात्त्विक खुदाई मे जैसे मानो एक पूरा का पूरा नगर उभर कर सामने आ गया हो। क्या नही था इस नगर मे सड़कें, पार्क, शॉपिंग कॉंप्लेक्स, लोगों के रहने के घर उनका इस्तेमाल की वस्तुएँ। यहाँ कई ऐतिहासिक महत्व के स्थल मौजूद हैं। इस परिसर का रखरखाव बहुत बढ़िया तरीके से किया गया है।

सात कमान

सात कमान अपने आप मे एक बड़ी ही रोचक संरचना है। यह पावागढ़ हिल और सदन शाह और बुधिया दरवाजा के बीच स्थित है। देखने मे यह केवल एक साथ बनी सात मेहराबें नज़र आएँ लेकिन यह असल मे फौज के लिए एक ऐसे स्थान थीं जहाँ से पूरे क्षेत्र का जायज़ा लिया जा सकता था।

जामी मस्जिद

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इस पूरे इलाक़े की सबसे सुंदर संरचना है जामी मस्जिद। इस्लामिक और भारताय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना।  इस मस्जिद मे 172 खंबे है जोकि मुख्य गुंबद का आधार हैं। इस मस्जिद का निर्माण काल लगभग 15वीं शताब्दी माना जाता है। जहाँ मेहराबें, गुंबद और मीनारें इसे इस्लामिक आर्किटेक्चर से मिली हैं वहीं झरोखे इसे गुजराती वास्तुकला से मिले हैं।  इस मस्जिद में जैन मंदिर रणकपुर राजस्थान की वास्तुकला और कार्विंग वर्क के हूबहू नमूने देखने को मिलते हैं। इस मस्जिद के पास मे ही एक विशाल पौंड बना हुआ है जिसे हौज़-आ-वज़ू कहते हैं। यह मस्जिद पावागढ़ फोर्ट के रास्ते में आती है।

शहर की मस्जिद

 यहाँ के सुल्तान और उनके राज परिवार के व्यक्तिगत स्तेमाल के लिए बनवाई गई थी। इस मस्जिद मे अनेक दर, गुंबद और दो मिनरें हैं। इस मस्जिद मे जाली की नक्कार्षी का सुंदर काम देखने को मिलता है

केवड़ा मस्जिद

इस मस्जिद की दो मंज़िलें हैं। इस मस्जिद का मुख्य गुंबद अब बाक़ी नही है। इसके मुख्य आधार स्तंभ पर सुंदर कर्विंग वर्क देखने को मिलता है।

नगीना मस्जिद

नगीना का अर्थ होता है कुछ खास। और ऐसी ही खास है यह संरचना।  इस मस्जिद को बनाए मे बहुत कारीगरी दिखाई गई है।  इस मस्जिद मे 3 मुख्य गुंबद हैं, 80 खंबे हैं और अनेक झरोके हैं। इसके पास ही एक स्टेप वैल है।

लीला गुंबज-की-मस्जिद

यह भी एक खूबसूरत संरचना है। इस मस्जिद के तीन द्वार हैं जहाँ से प्रवेश किया जा सकता है। इस संरचना मे नक्कार्षी, कर्विंग वर्क देखने को मिलता है।

एक मीनार की मस्जिद

एक मीनार की मस्जिद का निर्माण बहादुर शाह ने सन 1526–35 के बीच करवाया था। इस मस्जिद मे केवल एक मीनार है जिसकी पाँच मंज़िल उँचान है।

आमिर मंज़िल

चम्पानेर की खुदाई मे एक कॉंप्लेक्स निकला था जिसको आमिर मंज़िल नाम से जाना जाता है। यह एक आवसीय परिसर था जिसका उपयोग राज घराने के लोग किया करते थे।

टकसाल

यहाँ कभी एक टकसाल भी हुआ करती थी इसके प्रमाण यहाँ पर बनी एक संरचना से मिलते हैं। गुजरात सुल्तानत के लिए चम्पानेर एक विशेष महत्व की जगह थी इसलिए यहां टकसाल बनाई गई।  यहाँ चाँदी और तांबे के सिक्के ढाले जाते थे। गुजरात की चार टकसालों अहमदाबाद,आहमदनगर और जूनागढ़ मे यह एक मुख्य टकसाल थी।

लाकुया माता का मंदिर

चम्पानेर-पवगाढ़ आर्कीयोलॉजिकल पार्क मे सबसे पुराना मंदिर लाकुया माता का मंदिर को माना जाता है। इसका समय 10-11 शताब्दी माना गया है यह मौलिया पठार पर स्थित है। लाकुसिया शिव भगवान की भक्त थीं।  जिनका यह मंदिर है।

पावागढ़ फ़ोर्ट

इस फ़ोर्ट का सामरिक महत्व रहा है। ऐसा माना जाता था कि गुजरात पर राज करने के लिए इस से बेहतर जगह कोई हो ही नही सकती थी।  इसी लिए इस फ़ोर्ट पर कई बड़े आक्रमण हुए। पहले यह जैन राजाओं के पास रहा फिर राजपूत राजाओं के अधीन रहा बाद मे महमूद शाह प्रथम जिसे , महमूद बेगाड़ा भी कहा जाता था के पास आया। उस समय के राजाओं गुर्जर प्रतिहार, राजपूत, परमर,चलूकई का मानना था कि मालवा पर सैन्य करवाई करने के लिए यह स्थान सबसे उचित है। महमूद बेगाड़ा इस शहर को एक स्मार्ट सिटी बनाना चाहता था इसलिए यहाँ बड़े निर्माण कार्य करवाए गए, जैसे सड़कें, ब्रिज, जलाशय और सैन्य उपयोग की इमारतें।  लेकिन यह समय ज़्यादा लंबा ना चल सका और जल्द ही इस आधुनिक शहर को गुमनामी के अंधेरों मे जाना पड़ा। महमूद बेगाड़ा के बाद यह शहर गुजरात सुल्तान के पास चला गया फिर यह मराठाओं के अधीन आया, कुछ समय तक सिंधियाओं ने इस पर राज किया और फिर ब्रिटिश हुकूमत के क़ब्ज़े मे पहुँच गया। इस पूरे फ़ोर्ट की बौंड्रीवाल अपने आप मे एक सुरक्षा कवच का काम करती है। जिसके नौ दरवाज़े हैं

मां महाकालिका मंदिर

मां महाकालिका खीची चौहान डाइनेस्टी की कुल देवी मानी जाती हैं।  चम्पानेर-पावागढ़ आर्कीयोलॉजिकल पार्क यह स्थान भी विशेष महत्व रखता है। ऐसी मान्यता है कि जहाँ यह मंदिर बना है वहाँ मां काली के पाँव का अंगूठा गिरा था। यहाँ के स्थानीए लोगों मे इस मंदिर की बड़ी महत्ता है।कहते हैं कि तानसेन के गुरु बैजू बावरा का जन्म यहां हुआ था और वह जन्म से ही गूंगे थे। यह मां काली का ही प्रताप था कि उनको यहाँ आकर अपनी आवाज़ मिली। यह मंदिर पावागढ़ हिल की चोटी पर 740 मीटर की ऊचांई पर बना हुआ है। यहाँ तक पहुँचने के लिए एक रोप वे भी मौजूद है। यह मंदिर भारत मे महाकाली के शक्ति पीठ स्थलों मे से एक है। इस मंदिर मे नव रात्रि के समय बहुत से श्रद्धालु आते हैं।

जैन मंदिर

पावागढ़ हिल्स पर जैन मंदिर भी बने हुए हैं कहते हैं यह मंदिर 13वीं–14वीं सेंचुरी के बने हुए हैं। यह मंदिर सपर्श्वनाथ, चंद्रप्रभा और पार्श्वनाथ को समर्पित हैं। किसी समय मे गुजरात मे जैन धर्म का बड़ा प्रभाव था।  लोगों मे इन मंदिरों की बड़ी मान्यता है।

गुजरात का चम्पानेर हमेशा से कई धर्मों के समागम स्थल रहा है।  इस छोटे से नगर मे हिंदू,जैन मुस्लिम धर्म स्थल पाए गए हैं और इतिहास मे भी इनके बीच कभी कोई संघर्ष नही हुआ। इसका प्रमाण यहाँ की सबसे प्राचीन स्टेप वॉल से मिलता है जिसका निर्माण गुजरात के सुल्तान ने 1498 मे करवाया था। इस स्टेप वॉल पर लगी स्मृति पटल पर गणेश और शारदा की स्तुति लिखवाई गई थी। इसीलिए शायद इस स्थान को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची मे रखा है। यह गुजरात की पहली यूनेस्को साइट है।

कुनिया महादेव वाटर फॉल

अगर आपको ट्रैकिंग पसंद है तो यहाँ नज़दीक ही एक खूबसूरत वाटर फॉल भी मौजूद है। जिसका नाम कुनिया महादेव वाटर फॉल है। यह वॉटरफॉल बरसात के मौसम में बहुत खूबसूरत नज़र आता है। जंगल के बीचों बीच ऊंचाई से गिरता पानी सभी को आकर्षित करता है। बस आपको लगभग 1 घंटे की ट्रैकिंग करके जंगल में अंदर जाना होगा।

जंबुघोड़ा वाइल्डलाइफ सॅंक्चुरी

जंबुघोड़ा वाइल्डलाइफ सॅंक्चुरी चम्पानेर से मात्र 20  दूरी पर स्थित है। अगर आप एक नेचर लवर हैं तो यह स्थान आपको बहुत पसंद आएगा। देश आज़ाद होने से पूर्व यह जंगल जंबुघोड़ा रियासत का निजी अभयारण हुआ करता था। सन 1990 में इस जंगल को वाइल्डलाइफ सॅंक्चुरी का दर्जा मिला। यह अभयारण 130 स्कवायर किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ का डेन्स फॉरेस्ट टीक, बांस और महुआ के पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों से भरा हुआ है। जहाँ एक ओर यह अभयारण विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों को अपने में समेटे हुए है वहीँ दूसरी तरफ इस जंगल में सरीसृप भी अनेक प्रकार के पाए जाते हैं। जैसे कोब्रा, रेट स्नेक, रसल’स वाइपर और पाइथन।

पैंथर और चार सींग वाले एंटीलोप,  ब्लू बैल, हाइना, जैकल्स और कभी-कभी स्लॉथ भालू आदि पाए जाते हैं।

इस सॅंक्चुरी में पंछियों की कमी नहीं है। पॅरडाइस फ्लाइ कॅचर, गोलडेन ओरिोले, टेलर बर्ड,एट्सेटरा। ड्यूरिंग विनटर्स,  लेक्स क्लोज़-बाइ, और कई अप्रवासी पक्षी जैसे , पिन-टाइल्स, तेआल्स,ब्राहमिनी डक्स और  कोंब डक्स।

इस अभयारण में कई महान पक्षीविज्ञानियों ने शोध के लिए समय गुज़ारा है और विस्तृत अध्ययन किया है जैसे डा० सलीम अली, डा० जी एम  ओज़ा, डा० ट्विशा पांड्या आदि।

अगर आप सही मायनों में इस सैंक्चुरी का लुत्फ़ उठाना चाहते हैं  तो इस के अंदर बने गेस्ट हाउस में ज़रूर रुकें। यहाँ  कड़ा रिज़र्वायर के अंदर गुजरात टूरिज्म ने बड़े ही अच्छे गेस्ट हाउस बनाए हैं। यहाँ रह कर आप जंगल की महकती सुबह का आनद ले सकते हैं। आपके प्रवास के दौरान आप इस सेंक्चुरी के भीतर रहने वाले आदिवासी समाज के जीवन से भी रूबरू हो सकते हैं। आप जब यहाँ आएं तो एक अदद दूरबीन ज़रूर साथ लाएं।

शॉपिंग

आप भारत के उस स्थान पर हैं जहाँ पर देश का सबसे अच्छा टीक वुड उगता है। इसलिए यहाँ के एंटीक फर्नीचर देखना तो बनता ही है। इसके लिए आप नज़दीक ही संखेड़ा जा सकते हैं। यहाँ के वुडेन झूले पूरी दुनिया में मशहूर हैं। संखेड़ा गांव बरोडा से 45 किलोमीटर दूर स्थित है।  यहाँ के एंटीक कलरफुल फर्नीचर अपने चटख रंग और चित्रकारी के लिए जाने जाते हैं। आप यहाँ से नवरात्री में खेले जाने वाले डांडिया रास के लिए डांडिया स्टिक खरीदना न भूलें। यहाँ का फर्नीचर देख कर आपका मन ललचा जाएगा। बच्चों के पालने से लेकर हाथ गाड़ी और सोफे से लेकर बेड तक आपको पसंद आजाएंगे। आप सोच रहे हैं कि इतना बड़ा बड़ा फर्नीचर आपके घर तक कैसे पहुंचेगा तो उसका भी पूरा इंतिज़ाम है आप बस पसंद कीजिए। यह लोग विदेश तक में डोर स्टैप डिलीवरी करते हैं।

कब जाएं ?

ऑक्टूबर से मार्च का समय यहाँ आने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। मानसून में यह जगह हरयाली से भर जाती है। जगह जगह बरसाती झरने देखने को मिल जाते हैं।

गुजरात के खाने

 और यहाँ के खट्टे मीठे खानों का ज़िक्र न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता है। यहाँ के खानो पर इस राज्य की भौगोलिक स्थिति का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। गुजरात के हिस्से में आया है समुद्री तट  और बहुत सारा खारा  भूभाग। जिसमे नमक की मात्रा अधिक होने के कारण सब्ज़ियां कम ही उगती हैं। सब्ज़ियों की इस कमी को यहाँ पर बेसन और अन्य दलहनों से भरा जाता है। बेसन यहाँ के खानों का मुख्य अंग है। यहाँ की खांडवी बेसन से बनाई जाती है। गुजराती कढ़ी भी बेसन से ही बनती है।

समुद्री किनारा होने के बावजूद यहाँ के भोजन में सी फ़ूड नहीं पाया जाता जिसका कारण है यहाँ पर जैन धर्म का प्रभाव इसलिए यहाँ शुद्ध शाकाहारी भोजन ही मुख्य रूप से खाया जाता है। गुजराती लोग खाने पीने के शौक़ीन होते हैं इसलिए इनके खानो में नाश्तों की भरमार है। जिसे दिन के किसी भी समय खाया जा सकता है.इसे फरसाण कहा जाता है, जिसमे परांठे, खाखरा फाफड़ा और थेपला बहुत पसंद किया जाता है। यहाँ खमन ढोकला मसूर की दाल और काबुली चने से बनाया जाता है। यह  डिश गुजरात की सबसे फेमस डिश में से एक है। जब आप गुजरात जाएं तो लिलवा कचौड़ी टेस्ट करना न भूलें।

यहाँ की गुजराती खिचड़ी की धूम देश विदेश तक फैली है. यहाँ एक और खिचड़ी बड़ी फेमस है। जिसका नाम उंधियो है। इसे गुजराती डिश का राजा कहा जाता है। उंधियो मकर संक्रांति पर हर गुजरती परिवार में बनाया जाता है। उंधियो डिश सीजन की सारी सब्जियों को मिलाकर बनायी गयी एक तरह की खिचड़ी होती है।

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 यहाँ की गुजराती थाली अगर आपने नहीं खाई तो कुछ नहीं खाया। गुजराती थाली में कढ़ी, खट्टी मीठी दाल, सब्ज़ी,अचार और चटनियाँ मुख्य रूप से पाई जाती हैं। इसमें गुजराती रोटला,गुजराती शाक, गट्टे सब्ज़ी, कढ़ी, दाल, पापड़, ढोकला, चटनी छाज और मिठाई गुजराती मोहनथाल, गुजराती बासुंदी मिठाई आदि मुख्य व्यंजन होते हैं।

यह यात्रा वृतांत दैनिक जागरण के नेशनल एडिशन में भी प्रकाशित हो चुका है।

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