Heritage Haweli-Mandawa-Kaynat Kazi Photography-2014

रूट: दिल्ली-बहादुरगढ़-झज्जर-चरखी दादरी-लोहारू-जुनझुनु-मंडावा

233 किलोमीटर

5-6 घंटों की यात्रा बाई रोड

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Heritage Havelies in Mandawa, Rajasthan

मंडावा जाना एक लंबे समय से मेरी विश लिस्ट मे था।  इस जगह के बारे मे मैंने बहुत सुना था।  कहते हैं यह जगह बहुत अनोखी है। राजस्थान के झुनझुनु जिले मे पड़ने वाला एक छोटा सा टाउन पूरे विश्व मे बड़ी प्रसिद्धी रखता है। आख़िर क्यूँ? मेरे मन मे सवाल आया।

ऐसा क्या है इस टॉउन मे जिसे देखने विदेशों से सैलानी आते हैं?  मेरी जिज्ञासा बढ़ी तो थोड़ी जानकारी भी जुटाई।

मंडावा मशहूर है उन अनोखी हवेलियों के लिए जिनमे आज कोई नही रहता। यह खूबसूरत हवेलियां आज वीरान पड़ी हैं। कभी यहाँ चमन बरसता होगा लेकिन अब इन विशाल हवेलियों की रखवाली के लिए बस कुछ चौकीदार मौजूद हैं।

Wall Paintings- Heritage Havelies in Mandawa, Rajasthan
Radha Krishna is the main subject in the Wall Paintings- Heritage Havelies in Mandawa, Rajasthan

यह हवेलियां मशहूर हैं इनकी दीवारों पर बनी पैंटिंग के लिए। जिमनें कलाकारों ने यहाँ के लोक जीवन को बड़ी ही खूबसूरती से चित्रित किया था, और इन मे रंग भरने के लिए नॅचुरल कलर्स का उपयोग किया था। पूरी दुनियां में इस जगह को ओपन आर्ट गैलरी के रूप में जाना जाता है। विदेशों से आए सैलानी कई हज़ार डॉलर ख़र्च कर इस जगह का टूर करते हैं।

मैं इतना सुन कर जिज्ञासा से भर गई। मैं वैसे भी हेरिटेज के प्रति बहुत ज़्यादा आकर्षित होती हूँ। मुझे जितनी आधुनिक चीज़ें आकर्षित करती हैं उसे कहीं ज़्यादा अतीत के गौरवपूर्ण दिन लुभाते हैं। इसलिए मंडावा जाना तो तय था।

मैने रोड ट्रिप करने की सोची। दिल्ली से यह सफ़र 233 किलोमीटर की दूरी का था। मुझे राजस्थान जाना था और बीच मे हरयाणा भी पड़ने वाला था। रूट मैंने ऊपर दिया हुआ है। मेरा सफ़र रात को नौ बजे शुरू हुआ और हम सुबह सुबह मंडावा पहुँच गए। राष्ट्रीय राजमार्गों की यही ख़ासियत है की आप बड़ी आसानी से लंबी दूरी तय कर सकते हैं। इस मामले मे राजस्थान की सड़कें बहुत अच्छी हैं।  सुबह का नीला नीला उजाला और रेगिस्तान की ठंडी रेत को छूकर आती हवाओं ने हमारा स्वागत किया। यह सुबह बहुत खूबसूरत थी। यहाँ आस पास बहुत सारी हरयाली नही है। सिर्फ़ कुछ पेड़ नज़र आते हैं जोकि देखने मे थोड़े से अलग हैं। मैंने मालूम किया तो पता चला यह कैर सांगरी के पेड़ हैं। कैर और सांगरी दोनो जंगली वनस्पति हैं। लेकिन इस रेगिस्तान मे जीने का सहारा हैं।  कहते हैं कि अगर किसी के घर मे कैर का पेड़ है तो वह अकाल के दिनों मे भी जी सकता है। कैर की जड़ें बहुत गहरे तक ज़मीन मे जाकर अपने लायक़ पानी जुटा लेती हैं। और इस क्षेत्र मे रहने वाले ग्रामीणों के पास 1 अदद बकरी तो होती ही है। बकरी अकाल मे कैर की पत्तियां खा कर जी लेती है और उस घर के बच्चे बकरी का दूध पी कर गुज़ारा कर लेते हैं। इस पेड़ से निकालने वाली फली को इंसान सांगरी के साथ मिला कर सब्ज़ी के रूप मे खा लेते हैं।

इस तरह यहाँ के लोग एक पेड़ के सहारे अकाल जैसी महामारी पर भी जीत हांसिल कर लेते हैं। शायद यही वजह है कि इस क्षेत्र मे पाई जाने वाली जनजातियाँ पेड़ों को अपने जीवन से भी ज़्यादा मूल्यवान मानती हैं और उनकी पूजा करती हैं। जैसे बिश्नोई समाज। यह वो समाज है जिसने इसी कैर के पेड़ के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। और यह वाजिब भी है। जिस इलाक़े मे कुछ भी पैदा ना होता हो वहाँ पर ज़िंदा रहने की लड़ाई आसान नही होती।

मैं यह सोचते सोचते मंडावा मे दाखिल हो गई।  हम एक हेरिटेज हवेली मे रुकने वाले थे जिसे अब एक होटल की शक्ल दी जा चुकी है। मंडावा की गलियों से गुज़रते हुए मुझे अहसास हो गया था कि यह जगह बहुत अनोखी है।  लगता है जैसे किसी फिल्म का सेट लगा हो। पूरा नगर हवेलियों से भरा हुआ है। यहाँ आकर लगता है कि पिछले सौ साल से वक़्त जैसे ठहर सा गया है। दुनिया आगे निकल गई है लेकिन मंडावा वहीँ का वहीँ खड़ा है। शायद इसी लिए भी हाल ही में बनी फिल्में जैसे बजरंगी भाईजान, पीके की शूटिंग यहां हुई है।

हम होटल पहुँच कर फ्रेश हुए और निकल गए इस अनोखी जगह को देखने।

मंडावा मे घूमे के लिए सबसे अच्छा तरीक़ा है पैदल चलना। क्योंकि यहाँ हर गली मे एक हवेली है। और ये हवेलियां एक ओपन आर्ट गेलरी की तरह आने वालों के लिए खुली हुई हैं। आप बड़े आराम से यहाँ आ जा सकते हैं। कुछ हवेलियां बंद भी हैं, तो कुछ मे सिर्फ़ एक चौकीदार है इनकी रखवाली करने के लिए। यहाँ के लोगों की माने तो भारत की प्रगति में विशेष योगदान देने वाले मारवाड़ी व्यापारी घराने जैसे बिड़ला, मित्तल, बजाज, गोयनका, झुनझुनवाला, डालमिया, पोद्दार, चोखानी आदि के दादा परदादाओं ने इस नगर को बसाया था। और इन्हीं सेठों ने यहाँ खूबसूरत हवेलियां बनवाईं।

यहां की कुछ मशहूर हवेलियां हैं जैसे सेवाराम सराफ़ हवेली, राम परतब नेमानी हवेली, हनुमान प्रसाद गोयनका हवेली, गोयनका डबल हवेली, मुरमूरिया हवेली, बंसीधर नेवाटिया हवेली, लक्ष्मीनारायण लाड़िया हवेली और आखराम की हवेली

इन मे से कुछ हवेलियां 100 साल से भी ज़्यादा पुरानी हैं। इन हवेलियों को जाना जाता है इनके प्रभावशाली  अनोखे वास्तुकला और पेंटिंग्स के लिए। मैंने जैसे ही इन हवेलियों प्रवेश किया मुझे अनायास ही इन पर बने भित्ति-चित्रों ने बांध सा लिया। हर जगह पर कलाकारों ने अपनी कला के नमूने छोड़े हैं। इन हवेलियों को फ्रेस्को शैली में बनाया गया था।

इन हवेलियों की दीवारों, मेहराबों, खंभों पर बने करीब सौ-डेढ़ सौ साल पुराने इन भित्ति-चित्रों की खूबसूरती देखने लायक है।

इन चित्रों में राजस्थानी लोक कथाओं, पशु-पक्षी, मिथकों, धार्मिक रीति-रिवाजों, आधुनिक रेल, जहाज, मोटर, ईसा मसीह आदि का चित्रण रंगों के माध्यम से किया गया है.

हर हवेली कुछ कहती है।  ज़रूरत है तो तसल्ली से इन्हें देखने की। यह हवेलियां यहाँ पर रहने वाले सेठ लोगों द्वारा बनवाई गई थीं। और जिस दौर मे यह बनी यहाँ आपस मे बड़ी प्रतिस्पर्धा थी कि किसकी हवेली कितनी शानदार होगी।  इन सेठों के पास पैसे की कोई कमी नही थी साथ ही यह लोग कलाप्रेमी भी थे। इसलिए अपनी हवेलियों के सौंदर्यीकरण मे कोई कसर नही बाक़ी रखते थे। वास्तुकला से लेकर दीवारों पर उकेरी गई चित्रकला तक सब कुछ बहुत शानदारी से किया जाता था।

Heritage Haweli-Mandawa-Kaynat Kazi Photography-2014
Courtyard of Heritage Havelies in Mandawa, Rajasthan

ऐसा माना जाता है कि मंडावा पुराने सिल्क रूट पर पड़ने वाला मुख्य व्यापारिक केंद्र था।  इसी लिए यहाँ पर बड़े व्यापारी फले और फूले। कालांतर मे उनके पास इतना पैसा आ गया कि उनका इस छोटे से क़स्बे मे रहना अप्रासंगिक हो गया और वह मुंबई, दिल्ली, सूरत जैसे बड़े और व्यापारिक नगरों की ओर चले गए।  आज इन हवेलियों के मलिक चार पाँच साल मे किसी मांगलिक अवसर पर अपने कुलदेवता की पूजा अर्चना करने इन हवेलियों मे लौटे हैं। बाक़ी समय यह हवेलियां एकदम वीरान रहती हैं।

इन हवेलियों को देखते हुए मेरा मन थोड़ा भारी हो गया।  मुझे आतित की विरासत पसंद है लेकिन जर-जर होती यह हवेलियां और अपने अंत की ओर अग्रसर होते खंडहर उदास करते हैं। इन हवेलियों को देख कर ऐसा लगता है कि एक दिन यह भी रखरखाव के अभाव में खंडहरों मे बदल जाएँगी। जबकि इन्हें संरक्षित करने की बहुत ज़रूरत है। यहाँ बनी कुछ हवेलियां हेरिटेज होटलों मे परिवर्तित कर दी गई है लेकिन बाक़ी हवेलियों का क्या। इन हवेलियों की दीवारों पर उकेरी गई नायाब चित्रकला के रंग फीके हो चले हैं। कहीं कहीं से दीवारों की पपड़ियां भी उखड़ने लगी हैं। समय की मार झेलती यह हवेलियां खामोश गुमसूम खड़ी ऐसे दिन का इंतिज़ार कर रही हैं की शायद कभी किसी को इनकी सुध आएगी और कोई इनके संरक्षण के लिए ठोस आदम उठायेगा।

Jharokhas in Heritage Havelies in Mandawa, Rajasthan

इन वीरान हवेलियों को देखते हुए मुझे लग रहा है जैसे कोई जादूगर यहाँ की चहल पहल चुरा ले गया है। जैसे कोई चुटकी बजाते ही इस नगर की हलचल को वापस ले आएगा। बिलकुल वैसे ही जैसा कि सौ साल पहले होता होगा। सेठ जी की हवेली के बाहर लोगों का जमावड़ा और अंदर सेठजी की गद्दी पर यारों की बैठक। कोई तो इन वीरान झरोखों में से घूँघट की ओट से गली का हाल लेती होगी। कोई मनिहार रंग बिरंगी चूड़ियों की खनक से लड़कियों को रिझाता होगा। कोई तो होगी जो सुबह सुबह बेले में फूल सजाए अपने प्रिये शिव की आराधना करने मंदिर को जाती होगी।
कहाँ गए वो दिन? कहाँ गए वो लोग ?

Dr.Kaynat Kazi in Heritage Havelies in Mandawa, Rajasthan

मंडावा को इंतज़ार है अपने पुराने सुनहरे दिनों का।

आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ, भारत के कोने-कोने में छुपे अनमोल ख़ज़ानों में से किसी और दास्तान के साथ हम फिर रूबरू होंगे। तब तक खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
डा० कायनात क़ाज़ी

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