मैंएकफोटोग्राफरऔरसाहित्यकारहूं. घूमने–फिरनेकाशौकबचपनसेहै.हमनेबचपनमेंबहुतसारेशहरदेखेऔरआजभीमैंअपनेदेशकीविविधतापरमोहितहूं.आपकिसीभीदिशामेंनिकलजाएं,देश केकिसी कोने में चले जाएं, आपकोहमेशाकुछनया, कुछअनोखादेखनेकोमिलेगा.जबआधीआबादीटीमनेमुझेकुछलिखनेकोकहातोमेरेमनमेंआयाकिआपकेसाथअपनीयात्राओंकेअनुभवोंसाझाकरूं.मैं स्वभाव से घुमक्कडी हूंऔरनएलोगोंसेमिलनाऔरउनसेबातेंकरनामुझे बहदपसंदहै.उनकेजीवनको करीब सेदेखनाऔरहोसकेतोउनकेजीवनकाहिस्साबनना,मुझेखूबसुहाताहै.महिलाओंऔरबच्चोंकीनिर्मलहंसीमुझेआकर्षितकरतीहै.मैंशहर–दर–शहर भटकती रहती हूं…कभीपहाड़ोंपर, कभीबीचोंकेशहरगोवा, तोकभीराजस्थानकेरंगऔरसंस्कृतिकोसमेटनेजोधपुर, जयपुर,पुष्कर… पहाड़ों के झरने और उनमें बहती नदियां मुझे आमंत्रित करते रहते हैं. उनके किनारे घंटो गुजराना मानों स्वर्ग-सा लगता है. फोटोग्राफी के जुनून ने मुझे यायावर बना दिया है. मुझेअलग–अलगप्रदेशोंकेसंस्कृतिकउत्सवोंकीतस्वीरेंखींचना बेहदपसंदहै.
लोगोंसेमिलना, घूमनाहमसभीकोअच्छालगताहै. यह तो मनुष्य का स्वभाव है.परसबलोगोंको शायदयहअवसरनहींमिलपाता.खासकरमहिलाओंको.उनकेऊपर तोइतनीजिम्मेदारियांहोतीहैंकिबस वहसोचकरहीरहजातीहैं.यहस्तम्भमैंउन्हींमहिलाओंकोसमर्पितकरतीहूं,जोघरमेंरहतीहैं,ऑफिसजाती हैं, बच्चोंकोसंभालतीहैं, रिश्तोंकोसहेजतीहैं, पतिकाख्यालरखतीहैं. कुलमिलाकरएक“सुपरवोमन“. सुननेमेंभलालगताहैपरइनसारीजिम्मेदारियोंकोपूराकरनेमेंउनकीअपनीइच्छाएकहींपीछेछूटजातीहैं. मेरायेस्तम्भउनसभीकोपसंदआएगाजोयातोघरपरबैठकरदेशाटनकाआनंदउठानाचाहतीहैंया फिरथोड़ीहिम्मतजुटाकरअकेलेभारतदर्शनकरनाचाहतीहैं.मैंखुदएकमहिलाहूंऔरचीजोंकोदेखने–परखनेकानजरियाभीमहिलाओंवालाहीहै.मैंनेजबअकेलेयात्राकरनेकाफैसलाकियाथातोआपकीतरहमेरेमनमेंभीबहुतसारीशंकाएंथीं, कहांजाउंगी, कैसेजाउंगी, लोगकैसेहोंगे?वगैरह–वगैरह.परआपविश्वासकीजिये, यात्राओं मेंमुझेहमेशाअच्छेलोगमिलेहैं,जिन्होंनेखुलेदिलसेमेरास्वागतकिया.लोगोंकामैत्रीपूर्णव्यवहारदिलकोछूलेताहै.पिछलेदिनोंहुईकुछअप्रियघटनाओंकोछोड़देंतोभारतमेंमहिलापर्यटकऔसतनसुरक्षितहैं.फिरभीथोड़ीसावधानीऔरसतर्कताजरूरीहै.
हर वर्ष पूरी दुनिया में 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है. इस उपलक्ष्य में मैं आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त आपको इस स्तम्भ के माध्यम से आपको हर बार एक नए शहर लेकर जाऊंगी. उम्मीद करती हूं, मेरा प्रयास आपको पसंद आएगा. हमइसयात्रावृतांतकाशुभारंभकरेंगे, हिंदुस्तानकेदिल…यानिमध्यप्रदेश से.
मध्यप्रदेशकीराजधानी–भोपाल. झीलों और तालाबों का शहर.. नवाबों और मुस्लिम तहजीब का शहर. पहली बार भोपाल जा रही थी.. अपने मित्रों से इस शहर के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. हमारीयात्राशुरूहोतीहैनईदिल्लीरेलवेस्टेशनसे. सुबह 6 बजेभोपाल–दिल्लीशताब्दीसेहमभोपालकीऔररवानाहोतेहैं. विश्व प्रसिद्द शहर आगरा से होते हुए हम चंबल की खूबसूरत घाटियों और डाकुओं के लिए मशहूर यहां के बीहड़ों को पार कर दोपहर बाद भोपाल पहुंच जाते हैं. स्टेशन का नजारा देख हमें भोपाल की जिंदादिली का एहसास हो जाता है.
भोपालअपनीनवाबीतहज़ीब और मेहमान नवाजीकेलिएजानाजाताहै.यहशहरकभीपर्दा, ज़र्दाऔरगर्दाकेलिएमशहूरथा.पर्दायानिपर्दानशीनमहिलाएं, ज़र्दायानितंबाकू,जिसेयहांकेलोगपानमेंडालकरखानापसंदकरतेहैं.औरगर्दायानिधूल,जोकभीभोपालकीसड़कोंपरउड़ाकरतीरहीहोगी,परआजभोपालकीसड़केंसाफसुथरीऔरछायादारवृक्षोंसेसजीहुई दुल्हन सरीखी लगतीहैं. इतिहास की किताबों के पन्ने बताते हैं किवर्तमानभोपालकीस्थापनामुगलसल्तनतकेएकअफगानसरदारदोस्तमुहम्मदखाननेकीथी.मुगलसाम्राज्यकेविघटनकाफायदाउठातेहुएखाननेबेरासियातहसीलहड़पली थी.कुछसमयबादगोंडरानीकमलापतीकीमददकरनेकेलिएखानकोभोपालगांवभेंटकियागया.रानीकीमौतकेबादखाननेछोटेसेगोंडराज्यपरकब्ज़ाजमालिया. दोस्तमुहम्मदखाननेभोपालगांवकीकिलाबंदीकरइसेएकशहरमेंतब्दील कर दिया.शहरकीहदबंदीहोतेहीदोस्तमुहम्मदखाननेनवाबकीपदवीअपनालीऔरइसतरहसेभोपालराज्यकीस्थापनाहुई.मुगलदरबारकेसिद्दीकीबंधुओंसेदोस्तीकेनातेखाननेहैदराबादकेनिज़ाममीरक़मरउद्दीनसेदुश्मनीमोललेली.सिद्दीकीबंधुओंसेनिपटनेकेबाद1723 मेंनिज़ामनेभोपालपरहमलाबोलदियाऔरदोस्तमुहम्मदखानकोनिज़ामकाआधिपत्यस्वीकारकरनापड़ा. 1947 मेंजबभारतकोआज़ादीमिलीतबभोपालराज्यकीवारिसआबिदासुल्तानपाकिस्तानचलीगईं.उनकीछोटीबहनबेगमसाजिदासुल्तानकोउत्तराधिकारीघोषितकरदियागया. 1949 मेंभोपालराज्यकाभारतमेंविलयहोगया. भोपालपर लंबे समय तकमुगलोंऔरनवाबोंकाआधिपत्यरहाहै,इसलिएयहांइस्लामिकसंस्कृतिकीछापदेखनेकोमिलतीहै.यहशहरकला, साहित्यऔरसंस्कृतिकाकेंद्रहै. इसीलिए इसे भारत की सांस्कतिक राजधानी भी कहा जाता है.
भोपालमेंएककहावतहै “तालोंमेंतालभोपालकाताल,बाकीसबतलैया”. अर्थातयदिसहीअर्थोंमेंतालाबकोईहैतोवहहैभोपालकातालाब.भोपालकी इसविशालकायजलसंरचना कोब्रिटिश इतिहासकारों ने “अपरलेक” (Upper Lake) का नाम दियाहैं.लेकिन स्थानीय लोग भोपाली अंदाज में इसे “बड़ातालाब” कहते हैं. आप को सुन कर हौरानी होगी की, यहएशियाकीसबसेबड़ीकृत्रिमझीलहै. यह शहर के पूर्व से पश्चिम की और करीब 10 किमी तक फैला है.मध्य प्रदेशकीराजधानीभोपालकेपश्चिमीहिस्सेमेंस्थितयहतालाबभोपालकेनिवासियोंकेपीनेकेपानीकामुख्यस्रोत भीहै. भोपालतालकोभोजतालभीकहतेहैं, क्योंकिइसकानिर्माणपरमारनरेशराजाभोजने कराया था.इसतालाबमेंश्यामलापहाड़ीकेनीचेनवाबहमीदुल्लाखानद्वाराएकयाटक्लबकानिर्माणकरायागयाथा,जिसेआजबोटक्लबकेनामसेजानाजाताहै.
नवाबी शहर होने के नाते भोपालमेंमुसलमानोंकी काफीआबादीहै.औरतेंअक्सरबुर्केमेंहीनज़रआतीहैं.यहांबोटक्लबपरमैंनेदोसुंदरलड़कियोंकोदेखा.दोनोंबुर्कापहनेहुएथीं.उनकीकाजलसेकजरारीआंखेंबरबसहीअपनीओरआकर्षितकर रहीथीं.हमनेतालमेंनौकाविहारकामनबनाया.चप्पूसेचलनेवालीनाव में हम सवार हो गए. हमारामांझीएकनौजवानलड़काथाऔरखासभोपालीअंदाज़मेंबातकर रहाथा.उसनेबतायाकियेताल80 फिटगहराहै.तालकापानीसाफ़औरकईप्रकारकीमछलियोंकाघरहै.नौकाविहारकरतेहुएहमेंपतली–सीनावपरएकमछुवारादिखाजोजोसधेहाथोंसेजालसेमछलियांपकड़रहाथा. ताल केबीचोंबीचएकटापूहैजिसपरशाहअलीपीरबाबाकीदरगाहहै. ताल के बीच यह बड़ा सुंदर लगता है और रात में हरी और नीली रोशनियों से नहा कर कर तो यह बिलकुल गुलदस्ते जैसा नज़र आता है. मजार के एकमुजाविर(दरगाहकारखरखावकरनेवाला) ने बतायाकिमुम्बईकीप्रसिद्धहाजीअलीकीदरगाहइनकेभाईकीदरगाहहै.यहांलोगमन्नतमांगनेआतेहैं.बुर्केवाली उनदोनोंलड़कियोंकोमैंनेयहां नाव सेउतरतेदेखा. उनकी सुंदरता और नैनों की चंचलता मुझे आकर्षित कर रही थी.मैंनेहाथबढ़ाउसेनावसेउतरनेमेंसहारादिया. मेरादोस्तानारवैयादेखउन लोगोंनेमुझसेबातकरनीचाही. मैं भी तो यही चाहती थी.हमवहींमजार की सीडियोंपरबैठकरबातकरनेलगे.उनमेसेएकलड़कीविवाहिताथीऔरदूसरीमदरसेमेंधार्मिककिताबोंकाअध्यनकरती थी.बातों–बातों में पता चला कि बुर्काउन्होंनेअपनीमर्ज़ीसेपहनाहै.उनकेसाथकोईजबरदस्तीनहींकीगई.इसेवहअपनीतहज़ीबकाहिस्सामानतीहैं.
हमबातचीतखत्मकरसूर्यास्तदेखनेकाइंतजारकरनेलगे.मैंनेनावसेहीसूर्यकीपानीमेंआभाबिखेरतेहुए कुछतस्वीरेंखीचीं.ढलतासूरजभोपालतालमेंसिंदूरीरंगघोलरहाथा.धूपकीनर्मरोशनीश्यामलाहिल्सकोचम्पईबनारहीथी.भोपालमेंपर्दा–नशीनेस्कूटीचलातेहुएआरामसेदेखीजासकतीहैं.भोपालतालपरदिनभररौनकलगीरहतीहै.यहांकालेजकेलड़के–लड़कियांजगह–जगहबैठेदिखजाएंगे.बाहरसेपरंपरागतदिखनेवालायेशहरप्रेमकेप्रदर्शनमेंकतईआधुनिकहै.यहांप्रेमीजोड़ेबांहोंमेंबाहें डाल, दुनियासेबेपरवाहसड़ककिनारेबैठेपाएजातेहैं.प्रेमकाऐसाउन्मुक्तप्रदर्शनभोपालमेंदेखनामेरेलिएआश्चर्यकीबातहै.तालपरआधुनिकसाजसज्जासेसंपन्नएकबोटक्लब भीहै,जोमध्यप्रदेशटूरिज्मकीदेखरेखमेंचलताहै. तोयहांपालवालीनाववअन्यवाटरस्पोर्ट्सके गुर सिखानेकी भीव्यवस्थाहै.इसतालमेंएकक्रूज़भीहैजो लंबीयात्रा के जरिएपूरेतालकादर्शनकरवाताहै.बोटक्लबकेसामनेखानेपीनेकेछोटे–छोटेरेस्टोरेंटहैं. यहांयुवाओंकाजमावड़ालगारहताहै.शामहोते–होतेइनरेस्टोरेंटोमेंलोकलसिंगरपहलेसेरिकॉर्डम्यूजिकपररोमांटिकगानेगातेहैं. ताल की पूरी सड़क संगीतमय हो जाती है. मैंनेपूरबसेपश्चिमऔरउत्तरसे लेकरदक्षिण तक के कईशहरदेखेहैंपरसड़ककिनारेछोटेरेस्टोरेंटोमेंसंगीतकीस्वरलहरीकेवलभोपालमेंहीदिखीहै.इससेज़ाहिरहोताहैकिभोपालसंगीतप्रेमियोंकाभीशहरहै.
ताल कीसड़ककेउसपारछोटीसीपहाड़ी पर,जोश्यामलाहिल्सकाहीहिस्साहै, सुंदर साएकरेस्टोरेंटहै.जिसकानामहै– “विंडएंडवेब्स“.यहएकसरकारीरेस्टोरेंटहैइसलिएपरंपराऔरआधुनिकताकेबीचझूलरहाहै.अगरआपपरिवारकेसाथआएंगेतोआपकोशराबपरोसीजाएगीऔर अकले हैं तो आप के लिए यहां यह वर्जित है.यहशहरकाप्रतिष्ठितरेस्टोरेंटहै और लोगपरिवार के साथशामबितानेआतेहैं. यहांसेतालकानज़ाराबहुतसुंदर दिखता है. हमनेखुलेमेंपड़ी रॉट आयरनकीकुर्सियोंपरबैठनेकाफैसलाकिया. यहां सेतालकेबीचोंबीचटापूपरबसाजंगलदूरसेकिसीगुलदस्तेजैसादिखरहा था. हवामेंथोड़ी–थोड़ीठंडघुलनेलगीहै. येसर्दीकीआहटहै. यहवहीरेस्टोरेंटहैजहांप्रकाशझाकीफिल्म‘आरक्षण” केएकगानेकीशूटिंगहुईथी. हमनेखानाखाया.ठीकथापरजितनीसुंदरजगहहैउतनाबढ़ियानहींथा.यहजगहकिसीख़ासइंसानकेसाथवक़्तगुज़ारनेऔरकॉफ़ीपीनेकेलिएअच्छीहै.
मैं अपनी यात्राओं के दौरान अक्सर महिलाओं की आंखों में ऐसी लालसा और हसरते देखती हूं और फिर खुद से सवाल–जवाब करने लगती हूं. जबदेशआज़ादहैतोहमक्योंनहीं? जबहमारासंविधानहमेंहमाराप्रधान मंत्रीचुननेकाअधिकारदेताहैतोअपनाजीवनक्योंनहीं? आखिर कब तकदूसरे लोग हमारेजीवनकेफ़ैसलेकरतेरहेंगे? अपनेसपनोंको, अपनीइच्छाओंकोदिलमेंदफ़्नमतकरो. उन्हेंजियो, साकारकरो… लेकिन इसके लिए हमें यह संकल्प लेना होगा कि हमारीजिंदगीकैसीहोगी,इसकाफ़ैसला मेरेअलावाकोईऔरनहींकरेगा. हमजैसाचाहें,वैसीदुनियाबनासकतेहैंअपनेलिए. यकीन मानिए. यह मुमकिन है. बस इसका रास्ता स्कूल से हो कर जाता है. हमें पढ़ना होगा.. अपने सपनों के लिए.. अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए..
माफ कीजिएगा, मैं थोड़ा भावनाओं में बह गई थी. मैं भी एक आम लड़की थी. उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर में पली बढ़ी. जहां बेटी का मतलब शादी और पति की सेवा व बच्चे पालना है. नौकरी कर अपने पैरों पर खड़े होना, फिर घूमना, फोटोग्राफी करना बस खयालों में था. लेकिन अब्बू ने मेरे मन की बात पढ़ ली थी. परिवार और समाज के तमाम विरोधों के बाद उन्होंने मुझे उच्च शिक्षा के लिए न केवल प्रेरित किया, बल्कि जब तक वे जीवित रहे उसे अंजाम तक पहुंचाने की भरपूर कोशिश की. अल्लाह सबको ऐसे अब्बू दें.
भावनाओं के समुद्र से निकल कर अब हम फिर भोपाल यात्रा पर वापस लौटते हैं. भोपालपठारपरबसाशहरहैइसलिएसड़कें ढलान और चढ़ाई वाली हैं. हम ताल से होटल वापसी के लिए एक आटों में बैठते हैं. भोपाल में आटोरिक्शा वाले ज्यादातर मुसलमान हैं. आटो में बैठते ही पिता के उम्र के आटोरिक्शा चालक ने हमारे साथी से बड़े प्यार से कहा, “मियां जरा पान खा लें… फिर चलते हैं.” भोपाली अंदाज में बात करने वाला यह इंसान मुझे सुरमा भोपाली की याद दिला रहा था. भोपाल एक शांत शहर है. इसे “बाबुओं” का शहर भी कहा जाता है. राज्य की राजधानी और शिक्षा व संस्कृति का केंद्र होने के कारण यहां ढेर सारे सरकारी महकमें हैं. लिहाजा शहर में सरकारी नौकरी करने वाले बाबुओं की बहुतायत है. यहां की सड़के चौड़ी और साफ सुथरी हैं. जगह–जगह पर उंचाई और ढलाने हैं. ऐसी चढ़ाईयां बनारस और आगरा में भी हैं. हाथ से रिक्शा खींचने वालों को वहाँ काफी मशक्कत करनी पड़ती है, इसीलिए भोपाल में हाथ के रिक्शे नहीं चलते. इसलिए छोटी दूरी तो पैदल ही तय करनी पड़ती है. मुझे किसी ज्ञानी व्यक्ति ने बताया कि जब ऐसी चढ़ाई पर चढ़ना हो तो लंबे–लंबे डग नहीं भरने चाहिए. छोटे छोटे कदम बढ़ाने से पैर नहीं थकते. अगर रेत में चलना हो, जैसे कुंभ का मेला या फिर संगम तट, तो वहां भी यही तकनीक अपनानी चाहिए.
सड़क के दोनों ओर झुके हुए छायादार वृक्ष मानों आने वालो का सिर झुका कर स्वागत करते हैं. भोपाल शहर रूमानी जगह है. जहां आप को हर कोने में प्रकृति की इतनी सुंदर छटा के दर्शन होंगे कि आप को अपना साथी याद हो आएगा… तारकोल की लंबी और चिकनी सड़कें कहीं उंचाई की और जातीं, जैसे सीधे आसमान से जा मिली हों. डिम लाइटों से सड़क पर लंबी–लंबी आकृतियां उभरती हैं. दिन थोड़े गर्म हैं अभी, पर शाम होते होते मौसम खुशगवार हो जाता है. उतना अच्छा तो नहीं जितना राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) के शहरों में होता है. पर दिन के मुकाबले सुंदर हो उठता है. मैं आटो मैं बैठी ठंड़ी हवा का आनन्द ले रही थी. हवा के झोंके मेरे बालों को उड़ा रहे थे… हवा में थोड़ी–थोड़ी नमी है, क्योंकि आसपास कोलार डैम है.. इस शहर में घूमते हुए जगह–जगह खाने पीने के ढेरों ठिकाने दिख जाएंगे. यहां जूस व आसक्रीम पार्लर बहुत हैं.
भोपाल देश की सांस्कृतिक राजधानी भी है. यहां हमेशा कुछ न कुछ होता रहता है… गोष्ठी, नाटक, सभा, प्रदर्शनी आदि. यहां कई संस्कृतियों की छाप मिलती है. इसीलिए मध्य प्रदेश को हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है. महाराष्ट्र से सटे होने के कारण गणपति की स्थापना और विसर्जन भी दिखता है. यहां लोग गणपति के छोटे–छोटे पंडाल भी बनाते हैं. उतने बड़े नहीं जितना की महाराष्ट्र में होते हैं. भोपाल ताल के सामने एक सुंदर पहाड़ी है, उसका नाम श्यामला हिल्स है. यहां पर कई छोटे छोटे बंगले दिखाई देते हैं. अमिताभ बच्चन की ससुराल भी यहीं है. इसी पहाड़ी के एक छोर पर भारत भवन स्थित है. भारत भवन कला प्रेमियों के लिए मक्का के समान है. यहां आर्ट गैलरी, ललित कला संग्रहालय, इनडोर–आउटडोर आडीटोरियम, दर्शक दीर्घा व पुस्तकालय आदि हैं. इस भवन के सूत्रधार चार्ल्स कोरा के अनुसार, “यह कला केंद्र एक बहुत ही सुंदर स्थान पर केंद्रित है. पानी पर झुका हुआ एक ऐसा पठार, जहां से तालाब और ऐतिहासिक शहर बखूबी दिखाई देता है.” श्यामला हिल्स पर बसा यह भवन 1982 में वास्तुकार चार्ल्स कोरा ने डिजाइन किया था. भारत भवन की स्थापत्य कला और प्राकृतिक दृश्य बड़े मनोरम है.
घूमना मेरी जिंदगी का हिस्सा है और इसके लिए मेरा एक “सरवाइवल मंत्र” है जो शायद आप के भी काम आए. वह यह कि, ” जब तक जेब में पैसे हों और होश ठिकाने है, तब तक स्थिति काबू में है.” घूमक्कडी को भय से दूर होना चाहिए. भय तो मुझे कभी छूकर भी नहीं गया. न भूत.. न इंसान… मुझे देशाटन करते हुए ऐसा महसूस होता है कि अपना देश ऐसा है जहां भले लोगों की संख्या ज्यादा है. लोग मदद करने वाले होते हैं. फिर भी सतर्कता जरूरी है. एक यात्री होने के नाते जरूरी है कि आप अपने आस–पास घटने वाली चीजों पर नजर रखें और थोड़ा भा खटका होने पर उस स्थान को फौरन छोड़ दें. कभी–कभी ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि आप थोड़ा और रुकना चाहते हैं. बस जरा और… एक शॉट और… हम यह लोभ संवरण नहीं कर पाते… पर ऐसा करना आप को मुसीबत में डाल सकता है. अत: सावधानी जरूरी है. “जान है तो जहान है”. इस कहावत को गांठ बांध लीजिए. किसी नए स्थान पर जा रहे हों तो वहां की थोड़ी जानकारी पहले से इकठ्ठा कर लें. यदि रास्ता भटक गए हों तो पहले किसी पुलिस वाले से या फिर किसी स्थानीय दुकानदार से पता मालुम करें. वैसे मुझे पूरा भारत अपना घर सा जान पड़ता है. आप नए शहर में जाते हैं, जहां पहले कहीं नहीं गए हैं. वहां के सारे दृश्य आप पहली बार देख रहे हैं. पर उन दृश्यों में भी कुछ ऐसा छुपा होता है जो आप की पुरानी पहचान वाला है. सहसा मेरी नजर भारत पेट्रोलियम पर पड़ती है.. अरे वाह मेरा पेट्रोल पंप.. मैं अपने शहर में इसी से तो कार में पेट्राल डलवाती हूं. थोड़ा आगे चलें… तो स्टेट बैंक आफ इंडिया का नीला बोर्ड… पहचाना सा दिखेगा.. मेरा बैंक.. क्यूं हुई न पुरानी पहचान.???
भोपाल घूमना हो तो कम से कम दो दिन रखिए अपने पास… एक दिन भोपाल शहर के लिए और दूसरा दिन शहर से सटे ऐतिहासिक स्थलों के लिए.. दूसरे दिन हमने भोजपुर जाने का मन बनाया. यह प्राचीन शहर दक्षिण पूर्व भोपाल से 28 किमी की दूरी पर स्थित है. इस शहर की स्थापना परमार वंश के राजा भोज प्रथम (1010 – 1055 ई) ने की थी. यह शहर भगवान शिव को समर्पित भोजेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्द है. इस प्रचानी नगर को उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाता है. यह है स्थान साइक्लोपियन बांध के लिए भी जाना जाता है. यह मंदिर पहाड़ी पर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है. इसके गर्भ गृह में लगभग 2.3 मीटर लंबा शिव लिंग स्थापित है. इस शिव लिंग को भारत के सबसे विशाल शिव लिंगों में एक होने का गौरव प्राप्त है. भोजपुर शिव मंदिर 10वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर है. इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है. इसलिए इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग उठाता है.
भोजपुर मंदिर के पार्श्व में अविरल बहती नदी है बेतवा. यह यमुना की सहायक नदियों में से एक है. बेतवा भोजपुर मंदिर की पहाड़ी से काफी नीचे बहती है. लगता है जैसे मंदिर के चरणों में बहती बेतवा दर्शन करने वालों को शुद्ध होने का मौन निमंत्रण देती है. यह भोपाल से निकल कर उत्तर पूर्वी दिशा में शांत बहती है. इसके किनारे सांची व विदिशा जैसे प्राचीन सांस्कृतिक नगर स्थित हैं. बेतवा शांत विध्यांचल पर्वत मालाओं के बीच बहती जाती है. यह गोलाकार पर्वत श्रृखंला भारत को बीचों–बीच से दो भांगों में बांटती है. उत्तरी भारत और दक्षिणी भारत.. इस श्रृखंला का उच्चतम बिंदू अमरकंटक है जिसकी उंचाई समुद्रतल से 3438 फुट है. एक पौराणिक कथा के अनुसार – एक बार विध्याचल पर्वत अपने आप ही बढ़ने लगा और उसके बढ़ने के कारण इस क्षेत्र की सुंदरता भी बढ़ी. पर जब ये लगातार बढ़ते ही जा रहे थे तो इन्हें घमंड हो गया कि हम इतने विशाल हैं कि सूर्य को हमारा चक्कर लगाना चाहिए. तब विध्यांचल को रोकने के लिए अगस्थ्य मुनि ने एक रास्ता निकाला. उन्होंने दक्षिण की यात्रा का कार्यक्रम बनाया. रास्ते में विध्य पर्वत था. मुनि ने विध्य पर्वत से कहा कि दक्षिण की यात्रा के लिए उसे उनका सहयोग करना चाहिए. विध्य पर्वत ने श्रद्धापूर्वक मुनि और साथियों के लिए अपना शीश झुकाया और मुनि को दक्षिण में प्रवेश दिलाया. साथ ही यह वचन भी दिया कि जब तक मुनि वापस उत्तर में नहीं आएंगे, वह अपनी उंचाई और नहीं बढ़ाएंगे. पर अगस्थ्य मुनि हमेशा के लिए नासिक के पास गोदावरी नदी के तट पर बस गए. बाद में वह दूर दक्षिण में चले गए. पर विध्यांचल पर्वत आज भी अपना वचन निभा रहा है. विध्यांचल पर्वत शायद देखने में इसी लिए उंचे नीचे से हैं.
मैंने मंदिर की पहाड़ी से से झांक कर बेतवा नदी को देखा. बेतवा शांत भाव से बह रही थी. यह बरसात के बाद का मौसम है. प्रकृति ने स्वयं ही सारा कुछ धो पोछ कर साफ कर दिया है. पत्थर काले पर लालिमा लिए हुए दिखते हैं. हमें नदी तक जाने के लिए दूसरा रास्ता लेना होगा, क्योंकि एक दुर्घटना के बाद पहले वाले मंदिर से जाने वाले रास्ते पर पाबंदी लगा दी गई है. मैंने जल्दी–जल्दी मंदिर का चक्कर लगाया और कुछ तस्वीरें ली. तभी एक लोकधुन कानों में गूंजती है. पलट के देखती हूं तो पत्थर पर बैठा एक लोक गायक एकतारा लिए शिव–पार्वती के गौने के गीत गा रहा है.
एक स्त्री पिटारी में कोबारा सांप लिए मंदिर के द्वार पर बैठी थी. मैने सांप का फोटो खीचा. सांप बड़े ही शान से पिटारी में फन फैलाए फोटो खिचवा रहा था. मुझे ध्यान ही नहीं रहा की फन फैलाए सांप से मै केवल एक फुट की दूरी पर हूं. मेरे साथी नें सपेरन से पूछा, “यह निकल कर भागता तो नहीं?” उसने बड़े ही विश्वास से उत्तर दिया, “नहीं बाबू जी हमको महादेव का आशीष है. यह पिटारी में से कहीं नहीं भागेगा. हां, पिटारी से बाहर निकाल दिया जो जरूर भाग जाएगा” हमने नाग देवता को नमन किया और बेतवा की ओर चल पड़े. ढाल पर बनी सीढियां उतर कर हम बेतवा के तट पर आ गए, जहां हमें ढेर सारी बत्तखों ने घेर लिया. वह भूखी थीं और हमसे कुछ खिलाने के लिए मनुहार कर रही थीं. मैने पास के दुकान वाले को उनके लिए बिस्कुट लाने के लिए कहा. इसके बाद मैं बत्तखों की तरफ मुखातिब हुई और कहा, “ठहरो, भैया अभी बिस्कुट ला रहे हैं.” वह ठहर गईं, मानों वह मेरी बातें समझ रही हो…
नदी के कलरव के बीच एक शांति थी. खुले आसमान के बीच, अजीब सी शांति.. ऐसा लग रहा था मानों लाउडस्पीकर के शोर के बीच से किसी साउंडप्रूफ कमरे में आकर बैठ गए हों. वहां ज्यादा लोग नहीं थे. सामने पत्थर पर बैठा एक आदमी नदी में काटा डाले तन्मय होकर मछली के फंसने का इंतजार कर रहा था. हम नांव पर बैठ कर नदी के उस पार गए… नदी के तेज बहाव ने खुरदरे पत्थरों को भी चिकना कर दिया था. हम वहीं पत्थरों पर बैठ गए….पानी पत्थरों से टकराता हुआ बह रहा था.. अविरल… शांत… निश्छल … यह दोपहर का समय था सूरज सिर पर था. हम जहां बैठे थे, वहां पेड़ो की छाया पड़ रही थी. मैने अपने जूते उतारे, पैंट के पांचे उपर चढाए.. और पानी में पैर डाल कर बैठ गई.. निगाहें आसमान पर टिका दी… आमीन, यह जगह कितनी सुंदर है… पानी की कल–कल किसी सुरमई गीत सरीखी सुनाई दे रही थी.. पानी का स्पर्श तन से मन तक को भिगो रहा था.. अगर आप मन के कानों से इसे सुनोगो तो ये पानी, ये हवाए… ये प्रकृति का स्पर्श सब गीत गाते मिलेगे.. हर चीज में लय है.. सुर है.. ताल है.. रिद्म है. जरूरत है बस इसे महसूस करने की… सुनने की. जहां हम बैठे थे वह स्थान चौड़ा नही था.. पीछे छोटी सी रोक लगा कर अस्थाई रूप से पानी को निकाला गया था. इसलिए इस स्थान पर बेतवा किसी नव-यौवना सी सकुचाती सी बहती है.. मैने पानी की तस्वीरें ली.. पानी का वेग काफी सुंदर था.. और यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं की सुंदरता इतनी कि कैमरा इसे कैद न कर पाए..
दुधिया पानी छोटे–छोटे पत्थरों से घुमड़ कर बह रहा था… शायद इसे ही अंग्रेजी में कहते हैं मिल्की इफेक्ट…
सहसा मेरे शरीर में एक खुशनुमा सिहरन सी हुई,
एक नया अनुभव हुआ,
अरे यह क्या ?,
मेरे पैरों से कोई मछली सरसराती हुई निकल गई..
स्पर्श… बिलकुल नया, अनजाना सा,
विद्युत की तरह, तन को झनझना देने वाला
प्रीतम के पहले स्पर्श सा,
मादक, मोहक, स्मृति में सदा जीवित रहने वाला..
मुझे हंसी आ गई. ऊपर नीला आसमान, क्वार का साफ आसमान, यहां वहां तैरते बादलों के आवारा टुकडे अठखेंलिया करते हुए… हम पूरी दोपहर वहीं बैठे रहे.. लगता था ये वक्त यहीं ठहर जाए… साथियों ने चलने के लिए कहा तो बेमन से उठना पड़ा. ऐसी रमणीक जगह से भला कौन जाना चाहेगा. “….लेकिन आए हैं तो जाना ही पड़ेगा…” जीवन से संबंधित यह दार्शनिक वाक्य सहसा ओठों पर आ गया.
भूख भी लग आई थी. हम वापस भोपाल की तरफ रवाना हो गए. दोपहर के भोजन के लिए हमने “बापू की कुटिया” को चुना.. यह एक शुद्ध शाकाहारी भोजनालय है, जो काफी पुराना है. सोमवार को भोपाल का न्यू मार्केट बंद रहता है. भोपाल का न्यू मार्केट वही हैसियत रखता है जो दिल्ली में कनाट प्लेस. खाने से निवृत्त हो हम पांच बजे एक बार फिर भोपाल ताल पहुंचे.. सनसेट होने में अभी थोड़ी देर थी.. हमने बोटिंग करने का फैसला किया. नांव में बैठ कर एक बार फिर हम ताल के बीचों बीच टापू तक गए. मैने सूर्यास्त की कुछ तस्वीरें खीचीं. अब हमारी कॉफी पीने की इच्छा हो रही थी. इसलिए वापस हम ताल की पहाडी पर बने विंड्स एंड वेब्स रेस्टोरेंट में पहुंच गए. हमें मैनेजर ने पहचान लिया. उसने मुस्करा कर हमारा अभिवादन किया. मैं वहां बैठ कर काफी अच्छा महसूस कर रही थी. तालाब की सुंदरता यहां से बखूबी दिखाई दे रही थी. ठंडी हवाएं चल रही थी और आसमान पल–पल में रंग बदल रहा था. भाग दौड़ से भरा दिन, शाम होते–होते थक कर रात की बाहों में समा रहा था. दो वक्त ऐसे मिल रहे थे, जैसे मिल रहे हो बिछड़े प्रेमी. लग रहा था मानों दिन यहीं ठहर जाए… पर अभी भोज ताल के कुछ नाइट्स साट्स लेना बाकी है. मैं आज ट्राइपॉड लेकर पूरी तैयारी के साथ नाइट साट्स लेने आई हूं. रात में किसी शहर को कैमरे में कैद करना मेरे लिए रोमांचकारी होता है. मेरी नजर घड़ी पर थी.. मैं अंधेरा होने का इंतजार कर रही थी. अंधेरा घिर गया था… और शहर छोटी–छोटी हजारों रोशनियां से जगमगाने लगा… भोज ताल में रोशनियों के बिंब अटखेलियां कर रहे थे. दूर ताल के बीच बने टापू पर हरी जामुनी लाइटें फिर से ऱोशन हो गई थी.. मैने अलग–अलग जगह ट्राइपॉट लगा कर तस्वीरे लीं.. मन था की भर ही नहीं रहा था.. और शाट्स लेने के लिए बच्चे की तरह जिद कर रहा था. मेरा अंतिम पड़ाव था भोज ताल का वह हिस्सा जो रंजीत लेख व्यू होटल के सामने है. बहुत प्यारी लोकेशन है. ट्राइपॉट पैंक किया और होटल की तरफ प्रस्थान किया. होटल के रास्ते में कोलार डैम आता है.. ठंडी हवा इसका एहसास कराती है… भोपाल में कई डैम हैं.. कोलार डैम, केरबा डैम, भदभदा डैम.. वगैरह.
अभी तो भोपाल में बहुत कुछ देखना बाकी है. मैं भोपाल के ताल और बेतवा में इतना खो गई कि आप को और कुछ घुमा ही नहीं पाई. घूमने में आप स्वतंत्र होते हैं.. अपनी मर्जी के मालिक होते हैं. लेकिन किसी पत्रिका के लिए लिखने में आप को यह आजादी कहां.. यहां तो शब्दों की सीमा है. लिहाजा मैं अब भावनाओं के आगोश में जाए बिना जल्दी जल्दी आप को भोपाल के उन जगहों के बारे में बता दूं, जिन्हें जानना आप के लिए मजेदार रहेगा.
भोपाल जाएं तो इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय देखना कतई न भूंलें. ताल के ऊपर की पहाड़ी पर 200 एकड़ में फैला यह एक अनोखा संग्रहालय है. यहां 32 पारंपरिक एवं प्रागैतिहासिक चित्र शैलाश्रय हैं. इसमें भारतीय परिवेश में मानव जीवन के कालक्रम को दिखाया गया है. इस संग्राहालय में भारत की विभिन्न जनजातीय संस्कृतियों की झलक देखी जा सकती है. यह संग्रहालय जिस स्थान पर बना है, उसे प्रागैतिहासिक काल से संबंधित माना जाता है. यहां आकर मुझे ऐसा लगा कि यहां आदिवासी रहते हैं. कुछ देर के लिए वे कहीं चले गए हैं और अभी आते होंगे… दक्षिण भोपाल से 48 किलोमीटर दूर स्थित भीम बैठका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए प्रसिद्ध हैं. ये गुफाएं विध्यांचल पर्वतमालाओं से घिरी हैं. रायसेन जिले में स्थित यह एक पुरा–पाषाणिक आवासीय स्थल है. इन गुफाओं की दीवारों पर आदि मानवों द्वारा उकेरे गए चित्र हैं. इन चित्रों को पुरा–पाषाण से मध्य–पाषाण काल के बीच का माना जाता है. सन 1990 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे राष्ट्रीय महत्व का धरोहर घोषित किया. जिसे बाद में सन 2003 में युनेस्कों ने भी विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया. ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान का संबंध महाभारत के चरित्र भीम से है. इसीलिए इसका नाम भीम बैठका पड़ा. अगर आप पक्षी प्रेमी हैं तो भोपाल में घूमते हुए आप कई नए व अनोखे पक्षिय़ों को देख सकते हैं. वन्य जीव प्रेमियों के लिए यहां वन विहार राष्ट्रीय पार्क है. यह श्यामला हिल्स के पीछे पड़ता है. 445 हेक्टेयर में फैले इस वन बिहार में जीव प्राकृतिक परिवेश में निवास करते हैं. वन्य जीवों को बिना पिजरे के देखना एक सुखद अनुभव है.
जैसा की पहले मैने बताया कि भोपाल नवाबों का शहर रहा है. इसकी झलक देखने के लिए आप को पुराने शहर में जाना पड़ेगा. यहां के लोग दस्तकारी और मोती की कशीदाकारी का हुनर भी रखते हैं. पेपरमैशी भी यहां की एक कला है, जिसमें कागज को गला कर मिट्टी के साथ खिलोनै और हैंडीक्राफ्ट का सामान बनाया जाता है. ये कलाएं नवाबों के समय से चली आ रही हैं. यहां घूमते हुए मैं ताजुल मस्जिद में पहुंती हूं.ताजुल मस्जिद स्लामिक वास्तु कला का बेजोड़ नमूना है मुगलों द्वारा बनाई गई इस भव्य मस्जिद से सटा हुआ एक खूब सूरत तालाब भी है जिसका नाम मोतिया तालाब है. अगर आप पारंपरिक कपड़ों व अन्य चीजों के शौकीन हैं तो आप को पुराने भोपाल के बाजारों का चक्कर जरूर लगाना चाहिए. जैसे हमीदिया रोड़, घोड़ा नक्कास, हनुमान गंज, सुल्तानियां रोड़, सर्राफा चौक, इब्राहिम पुर आदि… सुल्तानिया रोड़ पर प्रसिद्ध चटोरी गली भी है जहां शाकाहारी व मांसाहारी व्यंजन देर रात तक मिलते हैं. लखेरापुरा मार्केट किसी जमाने में लाख से बनी चूडियों के लिए जाना जाता था.
मेरी यह छोटी परंतु सारगर्भित भोपाल यात्रा निसंदेह अविस्मरीण है. खासकर यहां की तहजीब, यहां के लोग और उनका मित्रवत व्यवहार, दिल को छू लेने वाला है. और हां, अविस्मर्णीय बेतवा नदी, जिसे मैं नहीं भुला पा रही हूं. बेतवा की मनोरम सुंदरता, उसकी शांति, उसका कल–कल निनाद और पत्थरों पर पानी के उसके छीटों के शोर अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे हैं.
भोपाल दर्शन पूरे होने आए थे. हम होटल की तरफ अग्रसर थे रास्ते में बांढ गंगा चौराहे पर मुल्ला रामू जी भवन देखा.. भोपाल के प्रसिद् साहित्यकार थे जिन्होंने उर्दू की एक अलग शैली विकसित की थी जिसका नाम था गुलाबी उर्दू…
दोस्तों भोपाल यात्रा यहीं समाप्त होती है . फिर मिलेंगे किसी नए शहर की यात्रा पर.