Kashmir Day-3
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें : कश्मीर दूसरा दिन
कश्मीर तीसरा दिन
Shah-e-Hamdan |
दूसरा दिन डल लेक के आसपास बने मुग़ल गार्डन्स देखने में निकल गया। श्रीनगर इतना बड़ा है कि आप इसे एक दिन में नहीं देख सकते है। इसलिए मैंने पहले दिन सिर्फ गार्डन्स ही देखे। आज में आपको ले चलती हूं पुराने श्रीनगर में। जहां हम ढूंढेंगे मध्य एशिया से भारत में आए सूफ़ीज़्म की जड़ों को।
A lady praying @Shah-e-Hamdan |
wooden carving work@ Shah-e-Hamdan |
आज भी कश्मीर घाटी में कई सूफी संतों की मज़ारें हैं जहां सभी धर्मों के लोग जाते हैं। पुराने श्रीनगर में जाए के लिए सबसे अच्छा साधन है ऑटो रिक्शा, मैंने एक ऑटो वाले से बात की और वह मुझे पुराने श्रीनगर लेकर गया। मैं जानना चाहती थी कि इतने सैकड़ों सालों पुराना सूफिज़्म अब भी उसी स्वरुप में है या कि कुछ बदला है। मेरी यह जुस्तुजू मुझे शाह-ए-हमदान का मज़ार ले पहुंची। इसे ख़ानका-ए-मौला भी कहते हैं। यह झेलम नदी के तट पर बसा है। मुझे ऑटो वाले ने बताया कि अभी पिछली साल जब श्रीनगर में बाढ़ आई तो जहां लोगों के घर एक एक मंज़िल तक डूब चुके थे वहीं शाह-ए-हमदान जो कि झेलम के तट पर ही बसा है उसे कुछ नहीं हुआ, यह चमत्कार है।
KK@Shah-e-Hamdan |
मैंने महसूस किया कि कश्मीर के लोगों में यहां के सूफी संतों के लिए अपार श्रद्धा है। हम डाउन टाउन की तंग गलियों को पार कर शाह-ए-हमदान पहुंच गए थे। दरगाह के बाहर लोग कबूतरों का दाना बेच रहे थे। हमने भी दाना ख़रीदा। मज़ार के बाहर इंडियन आर्मी का बंकर बना हुआ था। हाथ में रायफल लिए मुस्तैदी से तैनात जवान किसी अनहोनी की आशंका में रात दिन यहां खड़े रहते हैं। मेरी नज़र उस जवान से मिली मैंने एक सम्मान भरी मुस्कान से उस जवान को अभिवादन किया और दरगाह में चली गई। दरगाह में चहल पहल थी। मैंने इधर उधर नज़र दौड़ा कर जायज़ा लिया। कश्मीर के अलावा भारत भर में पाए जाने वाली दरगाहों पर सप्ताह के किसी एक दिन लोग ज़्यादा दिखाई देते हैं। या फिर बाहर से आने वाले श्रद्धालु दिख जाते हैं लेकिन यहां का मंज़र थोड़ा अलग था। यहां बाहर से आने वाले सिर्फ हम थे बाक़ी जितने भी थे सब लोकल लोग थे और जिस तरह वह दरगाह में आ जा रहे थे उससे लग रहा था कि यहां यह लोग रोज़ ही आते होंगे। श्राईन में जाना इनके जीवन का हिस्सा है। मैं लगभग 10-15 सीढ़ियां उतर कर दरगाह के प्रांगण में पहुंच गई। महिलाओं का अंदर जाना माना है। मैंने बाहर से ही ज़्यारत की।शाह-ए-हमदान की चौखट पर ज़ंजीरों से एक पीतल का पेन्डेन्ट जैसा लटका हुआ था जिसे आने जाने वाले पकड़ कर अपनी मुरादें मांग रहे थे। मैंने भी ख़ुदा के दरबार में हाथ उठा कर इस हसीन वादी में अमन और चैन के लिए अपनी अर्ज़ी लगा दी। शाह-ए-हमदान लकड़ी की नक्कारशी से बानी हुई एक खूबसूरत ईमारत है। इसके बिलकुल पीछे झेलम नदी बह रही है। ईमारत के प्रांगण में एक ऊंचे चबूतरे पर कबूतरों को दाना खिलाने की जगह है। इस प्राचीन ईमारत को बेहतर रखरखाव की ज़रूरत है।
An old Man Praying |
आप ऐसे ही बने रहिये मेरे साथ.…
हिमालय के अनेक रूपों में से एक के साथ…
कल हम चलेंगे डाउन टाउन में बनी जामा मस्जिद देखने।
तब तक के लिए खुश रहिये और घूमते रहिये।
आपकी हमसफर आपकी दोस्त
डा ० कायनात क़ाज़ी
This comment has been removed by the author.
have been to Srinagar many time but never visit this part of Srinagar ……thanks for sharing.
प्रिये महेश जी,
जब मैं कश्मीर जाने के लिए प्लान कर रही थी तब मेरे फोटोग्राफी से जुड़े हुए मित्रों ने मुझे चेतावनी भी दी थी कि मैं वहां न जाऊं, और फिर डाउन टॉउन में तो भूल कर भी न जाऊं, लेकिन एक राष्ट्रवादी होने के नाते मुझे यह स्वीकार न था.मेरे पूरे देश में ऐसी भी कोई जगह हो सकती है जहां न जाया जाए। मैं यह देखना चाहती थी। और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब मैं वहां गई तो सब कुछ सामान्य था।
यह जो डर है यह सिर्फ हमारे भीतर होता है, ज़रूरत है तो इसपर विजय पाने की।
मैं देश भर में घूमती हूं और मुझे गर्व है कि भारत में अच्छे लोगों की कोई कमी नहीं है। लोग मददगार होते हैं। उनके घर और दिल हमेशा लोगों के स्वागत के लिए खुले होते हैं। जोकि धर्म ,नस्ल और भाषा की सरहदों के पार है। फिर चाहे वह कश्मीर की आदिवासी जनजाति बुग्गयाल हो, या फिर पॉन्डिचेरी के तमिल भाषी लोग हों।
जय हिन्द,जय भारत !!!