एनगोर मोनेस्ट्री, मांडूवाला, देहरादून
देहरादून उत्तराखंड के लोगों के लिए हिल स्टेशन नहीं है. यह वैली में बसा एक ऐसा शहर है जो दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रहा है. प्रदेश की राजधानी होने के नाते ऊर्जा का केंद्र है. इसलिए भीड़ बहुत है. ऐसे में पहाड़ों और वादियों का आनंद लेना है तो शहर से थोड़ा बाहर की राह लेनी होगी। इस बार मैं आपको लिए चलती हूँ मांडूवाला। यह स्थान प्रेम नगर के बाद भाऊवाला रोड पर झाझरा फारेस्ट के बीच पड़ता है. यहाँ क़तार से बौद्ध धर्म के मानने वालों के मठ यानि मोनेस्ट्री देखने को मिलती है.
इसका नाम एनगोर एवं छोदन मठ Ngor Ewam Choden Monastery (Ngor Monastery) है। पहले एनगोर मठ की स्थापना 1429 में महान गुरु न्गोरचेन कुंगा जांगपो (1382-1450) ने की थी। महामहिम लुडिंग खेनचेन रिनपोछे (खेनचेन रिनपोछे) न्गोर मठ के लगातार 75वें मठाधीश थे और उन्होंने 1978 में मांडूवाला में मौजूदा एनगोर मठ की स्थापना की। एनगोर मठ में चार एनगोर हाउस (लाद्रंग) शामिल हैं, जिनके नाम लुडिंग, खंगसर, थर्टसे और फेंडे हैं। चार लाद्रंग परंपरागत रूप से मठाधीश साझा करते हैं और सामूहिक रूप से मठ की आध्यात्मिक और प्रशासनिक गतिविधियों का नेतृत्व करते हैं।
नील आकाश तले, नैपथ्य में खूबसूरत जंगल और पहाड़ इस मोनेस्ट्री को और भी सुंदरता प्रदान करते हैं. इस मोनेस्ट्री के भीतर बहुत शांति है. इस मठ की स्वच्छता और रखरखाव देखते ही बनता है. यहाँ छोटे छोटे बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा की भी व्यवस्था है. एनगोर मठ में वर्तमान में लगभग 350 भिक्षु रहते हैं और शाक्य तिब्बती बौद्ध परंपरा में इसका महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। एनगोर मठ वार्षिक ड्रबचोट वज्रयान अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है और सच्चे और प्रामाणिक बुद्धधर्म के शिक्षण और अभ्यास को कायम रखता है।
मठ बौद्ध (वज्रयान)धर्म की गतिविधि का एक केंद्र है। सूत्रों और तंत्रों में भिक्षुओं के लिए दैनिक शिक्षाएं हैं और भिक्षु मुख्य मंदिर कक्ष (गोनपा) में दैनिक समारोहों और अनुष्ठानों का संचालन करते हैं।
मठ अनुभवी शोधार्थियों के लिए एक रिट्रीट सेंटर भी है और इसमें सूत्रों और तंत्रों से समृद्ध एक पुस्तकालय है। एनगोर मठ में भारत का एकमात्र शाक्य पंडित मंदिर भी है। यहाँ वज्रयान का शाक्य संस्थान (शाक्य संस्थान) प्रख्यात लुडिंग खेन रिनपोछे (लुडिंग खेनपो) ने स्वर्गीय और परम आदरणीय खेनचेन अप्पी रिनपोछे के मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के तहत उच्च वज्रयान बौद्ध धर्म की शिक्षा के लिए एक अनमोल उपहार के रूप में 2004 में शाक्य संस्थान के निर्माण की शुरुआत की।
खेन छेन अप्पे रिनपोछे ने लुडिंग खेनपो को शाक्य संस्थान की स्थापना, उसके पाठ्यक्रम और गतिविधियों में उनके परिनिर्वाण में प्रवेश तक प्रेरित और निर्देशित किया।
इस संस्थान उद्घाटन 2008 में परम पावन शाक्य त्रिज़िन द्वारा किया गया, जिससे यह भारत में सबसे प्रतिष्ठित और उच्चतम वज्रयान संस्थानों में से एक बन गया है ।
यहाँ आकर मन को बड़ी शांति मिलती है. इस मठ की दीवारें जातक कथाओं को सुनाने वाली सजीली चित्रकारी से भरी हुई हैं। मठ के आसपास तिब्बती लोगों की बस्ती है जहाँ कई छोटे छोटे कैफ़े मौजूद हैं. यहाँ बैठ कर आप तिब्बती खानों का स्वाद चख सकते हैं।
आज के लिए इतना ही, फिर मिलेंगे।
आपकी दोस्त
डा कायनात क़ाज़ी