केरल के स्वाद में पाया मैंने #humanbynature
केरल घर है अनेक धर्मों के मनानेवाले लोगों का जो दूर देश से आ यहाँ ऐसे रच बस गए जैसे दूध में शक्कर. केरल की जलवायु ही ऐसी है कि यहाँ कोई किसी भी समाज, धर्म या जाति का क्यूँ न हो वो यहाँ आकार यहीं का हो जाता है. इसी लिए ये सब बड़े प्रेम से एक साथ रह प्रक्रति का उत्सव मनाते से दिख जाते हैं. इनके लिए एक शब्द बिलकुल सटीक बैठता है.-Human By Nature
प्रक्रति के साथ इनके इस मानवीय रिश्ते की जड़ों को मैंने तलाश किया इनके विविध स्वादों में. जिसके लिए मैंने यात्राएं की केरल के उत्तरी छोर से लेकर दक्षिण तक. मेरी केरल की इन अनेक यात्राओं में मैंने पाया कुछ ऐसा जो कि पूरे देश क्या दुनिया में अनोखा है.
केरल राज्य को ईश्वर का देश ऐसे ही नहीं कहा जाता जहां इस राज्य के पास अकूत प्राकृतिक संपदा है वहीं इस राज्य की विविधता भी देश के अन्य राज्यों से अलग है. यहां के मुजरिस पोर्ट को 2000 साल पुराने प्राचीन बंदरगाह होने का गौरव प्राप्त है. यह इस धरती का आकर्षण ही है कि न जाने कितने देशों की अलग अलग प्रजातियों को इसने अपनी ओर आकर्षित किया है. यहां समय समय पर ब्रिटिश, पुर्तुगाली, चायनीज़ और अरब व्यापारी आए. एक दूसरे से बिलकुल भिन्न सभ्यताओं के यह लोग अपनी परम्पराओं को भी साथ लाए और यहाँ आकर केरल की परम्पराओं, यहाँ के मसालों के साथ बड़ी आसानी से घुल मिल गए. इसीलिए यहाँ के स्वादों पर अनेक स्थानों का प्रभाव देखने को मिलता है. मैं इस बार केरल की इस यात्रा में इन्हीं स्वादों की महक को खोजने आई हूँ. इस हेरिटेज फ़ूड वॉक के लिए मैं केरल में दक्षिण से उत्तर की ओर सड़क मार्ग से यात्रा करुँगी और यहाँ अलग अलग जगहों पर परोसे जाने वाले स्वादों से आपको रूबरू करवाउंगी. केरल की साझी संस्कृति और परम्पराओं को करीब से महसूस करना हो तो यहाँ सड़क मार्ग से यात्रा कीजिए.
केरल राज्य को अरब सागर का सुन्दर तट रेखा मिली है, उत्तर से दक्षिण तक फैली इस 580 किलोमीटर की कोस्टल लाइन यहं के लोगों के लिए जीवनरेखा जैसी है. इस छोटे से राज्य के पास 44 नदियाँ हैं. इसीलिए यहाँ के खानों में सी फ़ूड की एक विशाल रेंज देखने को मिलती है. केरल का नाम भी यहाँ के खानों के फ्यूज़न से प्रभावित लगता है, केरल शब्द में एक हिस्सा “केरा” है और दूसरा हिस्सा “आलय” जोकि मलयालम से लिया गया है. मलयाली भाषा में केरा का अर्थ नारियल और आलय का अर्थ स्थान से हैं. यानि नारियल की धरती. जहाँ के नाम में ही नारियल हो वहां के भोजन में तो नारियल होगा ही.
केरल के लैंडस्केप पर खुबसूरत नारियल के ऊँचे पेड़ शान से लहराते हैं और केरल के भोजन में नारियल एक अनिवार्य अंग बनकर हर ग्रेवी को एक हलका मीठा गाढ़ापन प्रदान करते है. केरल के खानों में प्रयोग में लाई जाने वाली सभी सामग्री यहीं केरल की धरती पर ही उगती है, केरल के पास दूर तक फ़ैले मखमली सजीले धान के खेत हैं, यहाँ पहाड़ों की ढलानों पर मसालों की खेती होती है. ट्रोपिकल क्षेत्र होने के कारण इन पहाड़ी ढलानों पर कभी भी बारिश हो जाया करती है, ये मद्धम मद्धम रिमझिम रिमझिम फुहारें इलायची, कालीमिर्च, जायफल और जावित्री प्लांटेशन के लिए बड़ी मुफीद है.
पारम्परिक सदया
केरल वैसे तो मॉसाहारी लोगों के लिए किसी पेराडाइज़ जैसा है लेकिन यहाँ शाकाहारियों के लिए भी बहुत कुछ है खाने को. केरल के पारम्परिक भोजन में सबसे पहले नाम आता है सदया का. सदया यह यहाँ के शाकाहारी लोगों का मुख्य भोजन है. सदया केले के पत्ते पर परोसा जाता है, जिसमे मुख्य रूप से चावल, सांभर, रसीली सब्जी अवियल सूखी सब्जी, माँगा करी,नारांगा करी,पुलिशसेरी,कालन,ओलन,केले के चिप्स, पापड़, अचार, चटनी होता है. इस खाने की खासियत यह है की यह भोजन मिटटी के बर्तनों में पकाया जाता है. केरल के सबसे बड़े त्यौहार ओणम पर एक विशेष प्रकार का सदया परोसा जाता है जिसमे सौ से ऊपर शाकाहारी व्यंजन होते हैं.
यहाँ जो लोग सी फ़ूड के शौकीन हैं वह सांभर के स्थान पर फिश करी और फ्राई फिश सदया के साथ खाना पसंद करते हैं. आप को अगर पारम्परिक सदया का स्वाद चखना है तो किसी बड़े रेस्टोरेंट में न जाकर यहाँ के छोटे छोटे लोकल रेस्टोरेंट में जाएँ. यह एक दुकान के जैसा सेटअप होता है जिसे रेस्टोरेंट नहीं कहा जा सकता, इसे स्ट्रीट फ़ूड की श्रेणी में रखना ज्यादा उचित होगा. इसे यहाँ के स्थानीय लोग चलाते हैं, दुकान के पीछे घर होता है जिसमे घर की महिलाऐं ही कुकिंग कर रही होती हैं. इस स्थान पर लोकल लोग बड़े चाव से खाना खाने आते हैं. एक और बात सदया का मलयाली स्वाद दक्षिण केरल में अधिक पाया जाता है. आप जैसे जैसे उत्तरी केरल की ओर बढ़ेंगे तो वहां के खानों में मालाबार और अरब के खानों का प्रभाव देखने को मिलेगा. दक्षिणी केरल के खानों में यहाँ का पारंपरिक स्वाद बिना किसी अन्य प्रभाव के आज भी मौजूद है.
सी फ़ूड
अगर आप यहाँ सी फ़ूड इंजॉय करना चाहते हैं तो कोच्चि से दक्षिण का रुख करें, अलप्पी में सन् 1970 में स्थापित एक रेस्टोरेंट है कल्पगवाड़ी. यहाँ की केले के पत्ते में लपेट कर पारंपरिक मलयाली स्टाइल में पकी करी मीन आपको उँगलियाँ चाटने पर मजबूर कर देगी. यहाँ पर आप सीरियन क्रिश्चियन ब्रेकफास्ट का आनंद ले सकते हैं, यहाँ से आगे आप कोवलम और वरकला का रुख करेंगे तो आपको सी फ़ूड में क्रिश्चियन पाक कला के स्वाद चखने को मिलेगा.यहाँ सी फ़ूड की एक विशाल श्रंखला मिलती है. जैसे स्नैपर, रॉकफिश, केंकड़ा और झींगा मछली आदि.
यहाँ तलाशेरी पाक कला में सीरियन, अरब, और यूरोपियन पाक कला का मिश्रण देखने को मिलता है. यहाँ कालीकट में एक से एक अच्छी बेकरी मिलती हैं इनके बनाए केक और बेकरी आइटम यूरोपियन पाक कला की देन हैं.
मंदी बिरयानी
कोचि एअरपोर्ट के नजदीक एक रेस्टोरेंट है अल रीम रेस्टोरेंट यह रेस्टोरेंट केवल एक डिश परोसता है जिसे खाने लोग दूर दूर से आते हैं. यहाँ एक विशेष प्रकार की बिरयानी मिलती है जिसे मंदी बिरयानी कहा जाता है. यह डिश भी एक विदेशी डिश है, इसका घर दूर यमन में है, यह के व्यापारियों के साथ भारत आई. इसको पकाने का तरीका आज भी वही पुराना है. यह बिरयानी ज़मीन में गड्ढा खोद कर चावलों को घी और केरल के गरम मसलों के साथ मिक्स कर एक बर्तन में रखा जाता है जिसे ज़मीन में गहरे गड्ढे में रख कर उसके ऊपर मसालों से मेरिनेट किया चिकेन लटका कर उस गड्ढे को सील कर दिया जाता है. इस गड्ढे में धीमी आंच पर चावल पकता है और उस भाप में चिकेन पकता है. कैसे जैसे चिकेन पकता जाता है उसके अन्दर का फ्लेवर चावलों पर टपकता जाता है.
केरल के नाश्ते
केरल में एक विशाल रेंज नाश्तों की है जिसमे चावल के पेस्ट से तैयार अप्पम, इडली और तट डोसा प्रमुख हैं. जिन्हें नारियल और टमाटर की चटनी के साथ सर्व किया जाता है. यहाँ भाप में एक व्यंजन बनाया जाता है पुटट्. इस व्यंजन को यहाँ के स्थानीय चावल को दरदरा पिसे नारियल के बुरादे के साथ भाप में एक विशेष नालीदार बर्तन में भर कर बेलनाकार में पकाते हैं. इस व्यंजन को पके केले के साथ मैश करके खाया जाता है. इस व्यंजन को लोग बीफ स्टू के साथ खाना पसंद करते हैं.
पेय पदार्थ
यहाँ की जलवायु के हिसाब से शरीर को हाइड्रेटेड रखना ज़रूरी है इसलिए यहाँ लोग अलग अलग तरह के पेय पदार्थों का सेवन करते हैं जिसमे नारियल पानी सबसे पहले आता है. पूरे केरल में सबसे मीठा नारियल पानी अलप्पी में मिलता है. यहाँ के स्थानीय लोग तोड़ी भी पीना पसंद करते हैं इसमें कुछ मात्र में अल्कोहल होता है. यह पूरी तरह प्राक्रतिक होता है. यह पाम, नारियल और खजूर के पेड़ों से प्राप्त रस से स्थानीय लोगों द्वारा तैयार किया जाता है. इन स्थानीय तोडी शॉप्स में आपको कुछ चटपटे सी फ़ूड व्यंजन भी चखने को मिलेंगे. यहाँ का प्रोन फ्राई बहुत मशहूर है.
मैंने अपनी अनगिनत केरल की यात्राओं में यहाँ के लोगों की निर्मल मुस्कान में बहुत सुकून देखा है. उनकी सादगी उनके पहनावे और स्वाद में झलकती है. हर समाज एक अलग स्वाद की परंपरा को सहेजे हुए है और फिर भी एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है. उनको जोड़ती है प्रक्रति और मानवता. यह है केरल की आत्मा #humanbynature
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Footnote: The article is sponsored by Kerala Tourism