अगस्त का माह आते-आते मानसून लगभग सारे देश को भिगो चुका होता है। महीनों से तपती धरा भी मेघों की इनायत से शादाब हो चुकी होती है। ऐसे में पहाड़ भी गर्मियों की छुट्टियों पर आए सैलानियों के बोझ से मुक्त हो चुके होते हैं।
ऐसे में क्यूँ न किसी ऐसी जगह जाया जाए जहाँ हर तरफ बस हरयाली हो, सुकून हो। बरसात में हिमाचल की पहाड़ियां भी अपने पूरे शबाब पर होती हैं। महीने भर बरस चुका सावन सब को हरयाली से भर देता है। पहाड़ों पर बादलों की अटखेलियाँ देखने लायक़ होती हैं। चलो, इन बारिशों में बरखा का उत्सव मनाया जाए। थोड़ा भीग लिया जाए।
आज मैं आपको ऐसी ही कुछ चुनिन्दा वादियों में लेकर चलती हूँ जोकि शिमला से बस थोड़ी सी ही दूर है लेकिन शिमला की भीड़ से बिलकुल अनछुई। अगर आप प्रकृति के साथ एक लय होना चाहते हैं तो यह नज़ारे आपके लिए ही बनी है।
शिमला से मात्र 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह जगह। सतलुज नदी के किनारे बसा यह हिमाचली गाँव मशहूर हुआ है यहाँ पर निकलने वाली गर्म पानी की धारा के कारण। कहते हैं यहाँ नदी की रेत ज़रा सी खोदने पर गंधक मिश्रित गर्म पानी का स्त्रोत बड़े आराम से निकल आता है। आयुर्वेद में गंधक और अन्य लवण मिश्रित इस पानी की बड़ी मेहत्ता बताई गई है।
तत्तापनी का इतिहास
हिमाचल को देवभूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता। यह स्थान वास्तव में देवो का स्थान रहा है। यहाँ पांडवों ने वास किया, ऋषियों ने तपस्या की इसी लिए यहाँ क़दम क़दम पर चमत्कार देखने को मिलते हैं। तत्तापानी के स्थानीय लोग इस स्थान को महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि मानते हैं। महर्षि अपनी पत्नी रेणुका और पुत्र परशुराम के साथ यहाँ तत्तापानी के आसपास रहा करते थे। उस समय तत्तापानी के नजदीक ही सुन्नी नमक स्थान पर सहर्त्रबाहू नमक राजा का राज था। महर्षि जमदग्नि और सहस्त्रबाहु की पत्नी सगी बहने थीं। सहर्त्रबाहू एक दम्भी शासक था। उसे ऋषियों मुनियों पर भी अत्याचार करने में कोई संकोच न था। एक दिन उसने महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका को भोज पर आमंत्रित कर अपने वैभव का प्रभाव डाला और लौटते में रेणुका को भी भोज आयोजन करने के लिए उलाहना दे दी। रेणुका के मन में यह बात चुभ गई। एक ऋषि की पत्नी किस प्रकार से सहस्त्रबाहु जैसे राजा और उसके लाव लश्कर को बड़ा भोज दे पाएगी। रेणुका ने सारी बात महर्षि जमदग्नि को कह सुनाई। महर्षि ने रेणुका को भोज आयोजन करने के लिए कह दिया और व्यवस्था की सारी ज़िम्मेदारी अपने हाथ ले ली।उन्होंने इंद्र देव की उपासना कर कामधेनु गाय हांसिल कर ली। जब अहंकारी सहस्त्रबाहु आया तो तत्तापनी में हो रहे विशाल आयोजन को देख दंग रह गया। एक साधारण ऋषि के घर इतना बड़ा भोज कैसे आयोजित हुआ। सहस्त्रबाहु ने अपने गुप्तचर लगा राज़ पता किया तो उसे इस विशाल आयोजन के पीछे सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली कामधेनु गाय की बात पता चली। तो सहस्त्रबाहु ने छल से कामधेनु हांसिल करने की कोशिश की लेकिन ऋषि ने मना कर दिया। सहस्त्रबाहु ने ऋषि पर आक्रमण कर दिया और विशाल भोज संग्राम बन गया। इस बीच कामधेनु गाय वापस इंद्र के पास स्वर्ग लौट गई। तब रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम को याद किया और वह अपनी हिमालय की यात्रा बीच में ही छोड़ वापस आए और उन्होंने सहस्त्रबाहु का वध अपने फरसे से किया। कहते हैं जहाँ जहाँ सहस्त्रबाहु के रक्त के छींटे पड़े वहां वहां गर्म पानी के धारे फूट पड़े। तभी से इस जगह का धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बहुत महत्त्व है। यहाँ हर साल माघ मेला लगा करता है।
शिमला से तत्तापानी की अड्वेंचर ड्राइव
शिमला से तत्तापानी की दूरी लगभग दो घंटों में पूरी होती है। लेकिन इन रास्तों पर ड्राइव का मज़ा दूरी का अहसास नहीं होने देता। रास्ते में इतने सुहाने नज़ारे मिलते हैं की दूरी का अहसास नहीं होता। शिमला से यह पूरी रास्ता उतराई की तरफ है। इसलिए पहाड़ों का नज़ारा बहुत आकर्षक है। इन रास्तों में कई दार्शनिक स्थल पड़ते हैं जिन्हें देखते हुए आगे बढ़ने में आनंद आता है। देश और दुनिया से बहुत सारे बाइकर ग्रुप इस घाट पर ड्राइवकरने आते हैं। किन्नौर और काज़ा जाने वाले भी इसी रूट को पसंद करते हैं।
युवा बाइकर निखिल अग्निहोत्री जोकि कोर बीके ग्रुप के लीडर हैं बताते हैं – दिल्ली से वीकेंड पर यहाँ आना एनर्जी से भर देता है। बारिश की मद्धम मद्धम फुहारों के बीच पहाड़ों पर ड्राइव ज़िन्दगी को खुशनुमा बना देती है। और तत्तापानी पहुँच हम सब बाइकर गरम पानी के पूल में डुबकी लगा कर फिर ड्राइव करने को तरोताजा हो जाते हैं। मानसून में बादलों का पीछा करते हुए हम कर्सोंग वैली तक जाते हैं जिसमे तत्तापानी एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
हॉट वाटर स्प्रिंग
देश भर में बहुत सारी जगहों पर हमें कुदरत या यह करिश्मा देखने को मिलता है। जहाँ पहाड़ों के बीच या नदी की ठंडी धारा के बीच 70 डिग्री सेल्सियस के तापमान का गर्म पानी निरंतर बह रहा होता है। ऐसे अनोखे पानी के स्प्रिंग अपने में समेटे हुए हैं अनेक मैडीशिनल फ़ायदे। आयुर्वेद की दुनिया में इसे कुदरत का वरदान कहा गया है। लोग दूर दूर से इन गर्म पानी के स्त्रोतों से स्वस्थ लाभ लेने आते हैं। तत्तापानी भी एक ऐसी ही जगह है जिसे आज से बीस साल पहले यहाँ के स्थानीय लोगों के अलावा कोई जानता तक न था। ऐसे में यहाँ के निवासी श्री प्रेम कुमार रैना, जिनका घर नदी के बिलकुल पास हुआ करता था ने एक दिन ऐसे ही इस कीमती धरोहर को पहचाना। एक बार नदी में बाड़ आने पर प्रेम कुमार रैना का पूरा मकान पानी में डूब गया। वह पानी में तैरते हुए अपने सामानों को बचाने की कोशिश कर रहे थे कि तभी उनकी नज़र पानी की सतह से दस फिट ऊपर की ओर निकल रही एक धारा पर पड़ी। पास जाकर देखा तो वह खोलते गर्म पानी की धारा थी। प्रेम रैना को उसी समय इस गर्म धारा को बचाने का ख्याल मन में आया और उन्होंने इसे संरक्षित करने की ठान ली। आज प्रेम कुमार रैना हॉट वाटर स्प्रिंग नाम से एक नेचुरोपैथी वेलनेस सेंटर चलाते हैं जहाँ दूर दराज़ से लोग स्वस्थ लाभ लेने आते हैं। आयुर्वेद और नेचुरोपैथी द्वारा लोग अनेक रोगों से मुक्ति पाते हैं। हिमालय के ऊपरी इलाक़ों के निवासी जोड़ों के दर्द से राहत पाने हर साल यहाँ आते हैं।
तत्तापानी और नेचुरोपैथी
तत्तापानी स्थित संध्या हॉट स्प्रिंग हेल्थ सेंटर के वरिष्ट आयुर्वेद चिकित्सक डा ० युवराज कुमार त्यागी बताते हैं कि आजकल के समय में युवाओं में जो बीमारियाँ आ रही हैं उसका सम्बन्ध लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर से है। लम्बे समय तक कंप्यूटर पर काम करना, स्ट्रेस, और विशुद्ध खानपान इन रोगों को दावत देता है। लेकिन आज के युवा जागरूक हो रहे हैं और वह इलाज से ज्यादा वेलनेस की तरफ लौट रहे हैं। ऐसे में वेलनेस टूरिज्म देश में बढ़ रहा है। लोग हॉलिडे पर पंचकर्म, शिरोधारा आदि करवाने तत्तापानी आते हैं। हॉट स्प्रिंग्स में स्नान कर रेजुवनेट हो वापस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में लौट जाते हैं। वहीं त्वचा, जोड़ों के रोग आदि से पीड़ित लोग यहाँ आकार सुकून पाते हैं ।
तत्तापानी में बोटिंग
कुछ वर्ष पहले तत्तापानी में कोल्डेम बनाने से एक झील का निर्माण हुआ है, जिसमे बोटिंग की व्यवस्था है।आज यह झील लगभग 10 किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है। सैलानी यहाँ बड़े मज़े से बोटिंग का आनंद लेते हैं। आने वाले दिनों में इस जगह को जल परिवहन का बड़ा प्रोजेक्ट शुरू होगा जिस से तत्तापानी को कसोल से जोड़ा जाएगा। तत्तापानी से बिलासपुर कोल्डेम परियोजना 32 किलोमीटर के विशाल दायरे में फ़ैल चुकी है जिसमें जल परिवहन और वाटर स्पोर्ट्स की अपार संभावनाए हैं। जिसके चलते तत्तापानी एक वर्ल्ड क्लास एडवेंचर स्पोर्ट्स सेंटर बन जाएगा।
रिवर राफ्टिंग
सतलुज नदी में यहाँ रिवर राफ्टिंग करने लोग दूर दूर से आते हैं। यहाँ रिवर राफ्टिंग लोटी से शुरू होकर चाबा नमक स्थान तक लगभग 10 किलोमीटर के ट्रैक पर होती है जिसमे 3 बड़े रेपिड आते हैं। नीले रंग के चमचमाते पानी में राफ्टिंग करने का अलग ही रोमांच है।
मंडोर पीक – ट्रैकिंग
अगर आप ट्रैकिंग के शौक़ीन हैं तो यह जगह आपके लिए स्वर्ग के समान है। देवदार के जंगलों में ट्रैकिंग करने का अलग ही मज़ा है। तत्तापानी से मंडोर पीक तक की ट्रैकिंग लगभग सात किलोमीटर की है। जहाँ के रास्ते में अनेक वॉटरफॉल देखने को मिलते हैं।
काली घाट मंदिर, सुन्नी
सुन्नी कस्बा शिमला से लगभग 48 किलोमीटर दूर समुद्रतल से मात्र 500 मीटर की ऊंचाई पर सतलुज नदी के बाएँ छोर पर शिमला करसोग मार्ग पर पड़ता है। इस स्थान को भज्जी रियासत की राजधानी का गौरव भी प्राप्त है। काली घाट मंदिर नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है। सतलुज नदी के किनारे बना यह मंदिर भारत का पहला ऐसा मंदिर है जहाँ लोग बिटिया होने के लिए मन्नत मांगने आते हैं। माँ काली को चूड़िया चड़ावे में चड़ाई जाती हैं। इस मंदिर के प्रांगण में भैरव बाबा की विशाल मूर्ति है। यहाँ के स्थानीय लोगों में इस मंदिर की बड़ी मान्यता है। इस मंदिर के पीछे दशहरा ग्राउंड है जहाँ हर साल बड़ी धूम धाम से दशहरा मनाया जाता है जिसमे हिमाचल के विभिन्न देव हिस्सा लेते हैं।
संकटमोचन मंदिर
सुन्नी बाज़ार के नजदीक ही है संकटमोचन मंदिर। इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। यहाँ माँ काली की मूर्ति भी मौजूद है और इसके प्रांगण में नौग्रह भी मौजूद हैं। इस मंदिर के साथ एक कहानी जुड़ी है। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान भीम इस क्षेत्र में रहे थे, उन्हें अपनी भुजाओं पर बहुत अभिमान था। ऐसे में उनके अहंकार को नष्ट करने के लिए हनुमान जी ने एक उक्ति सोची। हनुमान जी एक बूढ़े बन्दर के रूप में सड़क पर लेट गए और अपनी पूंछ फैला ली। भीम आए और उन्होंने बूढ़े बन्दर से पूंछ हटाने को कहा। हनुमान जी ने वृद्ध होने का हवाला दे पूंछ मार्ग से हटाने में असमर्थता दिखाई और भीम से ही पूंछ हटाने का आग्रह किया। भीम ने हनुमानजी की पूंछ उठा कर सड़क के किनारे रखना चाही मगर वह पूंछ को हिला भी न सके। भीम को अपनी गलती का तुरंत अहसास हुआ और उन्होंने हनुमान जी से अपने असली रूप में आने की विनती कर क्षमा मांगी।
इसी लिए इस मंदिर में भगवान् राम सीता की मूर्ति के साथ विराजमान हनुमान जी की मूर्ति आकार में बड़ी है। यहाँ के स्थानीय लोगों की इस मंदिर पर अटूट श्रद्धा है।
रीजनल हॉर्टिकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट , मशोबरा
जिस क्षेत्र में हम घूम रहे हैं यहाँ से सेब के बगीचों की शुरुवात होती है। हिमाचल में सबसे पहले सेब यहीं से निकलता है। सेब की पैदावार को बढ़ाने, किसानों का मार्गदर्शन करने के लिए मशोबरा में इस इंस्टिट्यूट की स्थापना 1953 में हुई। यह समुद्रतल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कभी यह जगह कोटी रियासत के राजा साहब का निजी बगीचा होती थी। जिसे में सबसे पहले सन 1887 में ब्रिटिश विसरॉय लार्ड डफरिन के टेलर अलेग्ज़ेन्डर कोउत्ट्स ने 100 इंग्लिश एप्पल के पेड़ लगा कर शुरुवात की थी। हिमाचल में बागबानी के विकास में इस संस्था ने बहुत योगदान दिया है। इस संस्था के बगीचों में लगे 25 प्रजातियों के सेबों को देखने हजारों की संख्या में लोग आते हैं। यहाँ देश के तीन राष्ट्रपति, महामहिम डा राजेंद्र प्रसाद, श्री वी वी गिरी, श्रीआर वेंकटरमण और पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु भी आ चुके हैं। इस जगह से कोटी की वादियाँ बहुत सुन्दर नज़र आती हैं। यह जगह शिमला से मात्र 16 किलोमीटर दूर शिमला तत्तापानी रोड पर स्थित है।
एप्पल के लिए मशहूर – करसोग वैली
बात निकली है एप्पल की तो करसोग वैली जाए बिना यह यात्रा अधूरी मानी जाएगी। हिमाचल में सेब की पैदावार सबसे पहले इसी वैली में होती है। सीज़न का पहला सेब आपकी प्लेट में यहीं से पहुँचता है। इस वैली का अपना इतिहास है। यहाँ के निवासी श्री नरेन्द्र शर्मा जी बताते हैं – सरसोग का नाम कर +सोग इसलिए पड़ा था क्यूंकि करसोग जोकि चक्र नगरी के नाम से इतिहास में दर्ज है। यहाँ पर रोज़ाना एक बलि बकासुर नाम के राक्षस को दी जाती थी। बकासुर राक्षस का बड़ा आतंक था। उस स्थिति में गाँव में हर रोज़ एक घर में सोग रहता था। इसलिए इस जगह का नाम करसोग पड़ा। महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम द्वारा बकासुर वध किये जाने से इस क्षेत्र में शांति स्थापित हुई।
आज करसोग वैली एप्पल की पैदावार के लिए पूरे भारत में जानी जाती है। यहां का एप्पल बहुत लज़ीज़ होता है।
श्री सुरेश शर्मा जोकि करसोग में एप्पल के बागबान हैं बताते हैं—हमारी वैली ऊंचाई और शिमला से नजदीकी स्थित होने के कारण यहाँ पर सीज़न का एप्पल सबसे पहले पक कर तैयार होता है। हम जुलाई माह के आखिर से ही हार्वेस्ट लेने लग जाते हैं। हमारे एप्पल ऑर्चर्ड में एक एक पेड 100 सौ साल पुराना है। हमारे एप्पल की मांग दूर दक्षिण में भी बहुत है। हम पूरी तरह से ओर्गानिक फार्मिंग करते हैं। हमारे यहाँ कई वैराइटी जैसे जैरोमाइन,एडम, किंग रोअट, रेड वेलोक्स, हापके,ऐस और स्कारलेट आदि उगाई जाती हैं। हमारा एप्पल ३६०० रूपए की पैटी (25 किलो ) के हिसाब से जाता है।
शोपिंग:
आप हिमाचल की एप्पल बेल्ट में घूम रहे हैं तो यहाँ सबसे पहले तो लोग एप्पल की पेटियां खरीद कर ले जाते हैं। करसोग वैली एग्ज़ोटिक वेजिटेबल के लिए भी जानी जाती है, यहाँ से आप लेटुस, बेल पेपर, ज़ुकिनी, पार्सले, ब्रोकली आदि खरीद सकते हैं। करसोग में स्थानीय लोग बांस से बहुत सुन्दर सुन्दर सजावटी सामान बनाते हैं। आप शिमला के एतिहासिक चर्च का छोटा मॉडल यहाँ से ले सकते हैं।
नालदेहरा से आप हाथ के बने ऊनि वस्त्र खरीद सकते हैं। गोल्फ कोर्स से 50 मीटर पहले उलटे हाथ पर जय ज्वाला माँ स्वम सहायता समूह की महिलाऐं हाथ से बने कपड़ों की दुकान चलाती हैं। आप यहाँ से अन्कोरा खरगोश की ऊन से बने गर्म स्वेटर खरीद सकते हैं। यहाँ से हिमाचली ट्रेडिशनल टोपी और उन से बने हेंडीक्राफ्ट का सामान भी लिया जा सकता है।
इसी दूकान के बराबर में हिमाचली ट्रेडिशनल भोजन जैसे सिड्डू, चटनी, मक्के की रोटी, दाल आदि का रेस्टोरेंट भी इन्ही महिलाओं द्वारा चलाया जाता है।
आपके सड़क मार्ग पर एच पी एम् सी की दुकानों से आप जूस कंसंट्रेट, जेम जेली खरीद सकते हैं। यहाँ की फ्रूट बियर भी बहुत पसंद की जाती है।
हिमाचली स्वाद का जादू
हिमाचल के खानों पर मौसम का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सर्दियों में जहाँ शरीर को गर्म रखने वाले भोज्य पदार्थ खाए जाते हैं वहीँ गर्मियों में शीतलता देने वाले खानों पर जोर दिया जाता है। औसतम एक पहाड़ी व्यक्तिदिन भर में 10 से 20 किलोमीटर चल लेता है ऐसे में शरीर को उर्जा की बहुत ज़रूरत होती है। इसलिए यहाँ के खानों में पोष्टिकता का बड़ा महत्त्व है।
सर्दियों के व्यंजनों में कुल्थ की खिचड़ी , उरद की दाल की बड़ी, खट्टी बड़ी, सेपू बड़ी, बरेंदरी बड़ी और मक्की की रोटी खाई जाती है। यहाँ साल भर सिड्डू का भी चलन है। चावल के आंटे से मेवा या सब्जी भर कर भाप में पकाया गया सिड्डू चटनी के साथ गर्म गर्म परोसा जाता है। यह अपने आप में पूरा भोजन होता है।
तत्तापानी के नजदीक ही एक जगह है पांगणा यहाँ पर आजकल एक अनोखी पहल की गई है। यहाँ के स्थानीय लोग समुदाय आधारित फ़ूड पर्यटन योजना चला रहे हैं । इस योजना के अंतर्गत पाक कला कार्क्रयम के अंतर्गत महिलाओं द्वारा स्थानीय व्यंजन बना कर परोसे जाते हैं। इस योजना का उद्देश्य पर्यटकों में हिमाचली स्वाद परोसना है। यहाँ की ग्रामीण महिलाऐं तरह तरह की बड़ियाँ बनाने में पारंगत हैं।
इस क्षेत्र में राजमा का भी अपना स्वाद है। जैसे जैसे आप पहाड़ों की ऊंचाई की ओर बढ़ेंगे भोजन में मांसाहार की बहुलता देखने को मिलेगी। यहाँ बकरे का मांस तेज़ चटखदार मसलों के साथ पकाया जाता है।
विवाह या अन्य सहभोज में सुकेती धाम का आनंद ले सकता है। इसमें धूली दाल,सेपुबड़ी,बदाने का मीठा,आलू राजमा,कद्दू का खट्टा,कोहल का मदरा,उड़द की दाल, मक्के की रोटी और कढ़ी जैसे पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं। ये व्यंजन औषधीय गुणों से भरपूर हैं।