Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-19-of-83-960x636

रंण उत्सव-2016

रंण उत्सव तो सिर्फ़ एक बहाना है,  गुजरात मे बहुत कुछ दिखाना है….

यह लाइन किसी ने सही कही है, क्यूंकि रंण उत्सव के बहाने ही मैने बहुत कुछ ऐसा देख डाला जिसे देखने शायद अलग से मैं कभी आती ही नही गुजरात। इस बार मौक़ा था रंण उत्सव मे जाने का। चार दिन की मेरी यह तूफ़ानी यात्रा अपने मे समेटे थी बहुत कुछ अनोखा। अहमदाबाद से सुरेन्द्रनगर, सुरेन्द्रनगर से गाँधी धाम और गाँधी धाम से धोर्ड़ो गाँव जहाँ कि रंण उत्सव मनाया जाता है।  मैं पहले ही बता दूं कि इनमे से कोई भी जगह आस पास नही है लेकिन गुजरात के हाई वे बहुत अच्छे हैं कि आप बिना किसी तकलीफ़ के लंबी रोड यात्रा कर सकते हैं।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-76-of-83
wild ass sanctuary Gujarat

चलिए तो फिर यात्रा शुरू करते हैं। मैं अहमदाबाद पहुँच कर निकल पड़ी सुरेन्द्रनगर में वाइल्ड एस सेंचुरी  देखने।  क्या है खास इस सेंचुरी मे? यही सवाल मेरे मन मे भी उठा था।  पाँच हज़ार वर्ग किलोमीटर  मे फैला यह वेटलैंड किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।  इसे लिट्ल रंण ऑफ कच्छ कहते हैं।  यह जगह इसलिए मशहूर है कि पूरी दुनिया मे सिर्फ़ यहीं वाइल्ड एस पाए जाते आईं।  वाइल्ड एस यानि कि जंगली गधे। कहते हैं की यहाँ लगभग 3000 वाइल्ड एस हैं। इसके अलावा यहाँ कई अन्य जानवर भी पाए जाते हैं।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-79-of-83
Flamingos@wild ass sanctuary gujarat

मुझे इस जगह की सबसे अच्छी बात यह लगी कि यहां तक पहुँचना बहुत आसान है। मीलों तक फैला वेटलैंड जिसे बड़ी आसानी से जिप्सी मे बैठ कर देखा जा सकता है। सबसे अच्छी बात तो यह है कि यह सेंचुरी बर्ड वाचिंग के लिए बहुत अच्छी है।  मेरी पिछली गुजरात की यात्रा में हम फ्लैमिंगो ढूंढते हुए मांडवी मे कितनी दूर तक समुद्र तट पर चले थे और फिर भी हमे फ्लैमिंगो नही मिले थे लेकिन यहाँ इस सेंचुरी मे जगह जगह वॉटर बॉडी बनी हुई हैं जहां फ्लैमिंगो के झुंड के झुंड देखने को मिल जाते हैं वो भी बड़ी आसानी से। बस ज़रूरत है तो  एक अदद ज़ूम लेंस की, और वो भी कम से कम 400 या 600 mm का ज़ूम लेंस ।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-77-of-83
wild Ass@wild ass sanctuary gujarat

वाइल्ड एस  थोड़े शर्मीले होते हैं अपने नज़दीक गाड़ियों को देख कर झट से झाड़ियों मे घुस जाते हैं। हमे घूमते-घूमते शाम हो गई। सामने सूरज अस्त की ओर चल पड़ा था। यहाँ की दलदली मिट्टी नमक की अधिकता के कारंण बंजर है। लेकिन देखने मे सुंदर लगती है। दूर तक फैला मैदान और सुंदर सनसेट वहीं रुकने को मजबूर कर रहा था। यह दिसंबर का महीना है लेकिन यहाँ ठंड नही है। हवा अच्छी लग रही है। कुछ देर ठहर के सनसेट का मज़ा लिया और फिर चल पड़े अपने डेरे की ओर।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-60-of-83

यहीं पास ही एक रिज़ॉर्ट मे ठहरने की ववस्था की गई है। पहला दिन ख़त्म होने को आया। आज चौदहवीं की तो नही लेकिन 12ह्वीं की रात है इसलिए चाँद आसमान मे कुछ ज़्यादा ही चमक रहा है। अभी इसे और चमकना होगा। चाँदनी रात मे रंण के सफेद रेगिस्तान को देखने लोग खास तौर पर पूर्णिमा के दिन आते हैं। यही वहाँ का मुख्य आकर्षण है।

दूसरा दिन थोड़ा लंबा होने वाला था हमे सुरेन्द्र नगर से गाँधी धाम की यात्रा तय करनी है। यह यात्रा कुल 206 किलो मीटर की होने वाली है। रास्ते मे हम कई गाँव देखेंगे। ऐसे गाँव जिनमे छुपा है इतिहास। कच्छ की प्राचीन हस्त कला और वैभव का इतिहास। यहीं पास ही एक गाँव है जिसका नाम है खारा घोड़ा। कहते हैं इस गाँव मे 111 साल पुराना शॉपिंग माल है। जिसे अँग्रेज़ों ने 1905 मे बनवाया था। आज यहाँ कुछ दुकाने मौजूद हैं जोकि गाँव वालों की ज़रूरत का सामान एक ही छत के नीचे उपलब्ध करवाती है। इस गाँव से थोड़ा आगे बढ़ते ही हमे नमक की खेती होते दिखने लगती है। यह पूरा प्रोसेस देखना भी एक अनुभव है। नमक कैसे बनता है इसकी कहानी तफ्सील से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें:

गुजरात से लाइव: कहानी नमक की….

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-82-of-83-1

Salt factory @Khara Ghora Villege

अभी तक मुझे गुजरात मे आए हुए 2 दिन हो चुके हैं लेकिन मैने भूंगे नही देखे। भूंगे यानी के मिट्टी के बने गोल घर जोकि कच्छ के ग्रामीण जीवन की पहचान है। मेरी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य था कि मैं कच्छ मे रहने वाले जनजातीय जीवन को देख पाऊं।  इसीलिए मैने इस बार गाँवों की यात्रा का मन बनाया। मेरा अगला पड़ाव होगा ऐसे ही एक गांव। जहाँ मैं कच्छी कला से जुड़े समुदायों से मिल सकूँ। हम भुज के बहुत नज़दीक हैं और भुज के नज़दीक ही एक गाँव पड़ता है जिसका नाम है सुमरासार शैख़। इस गाँव की एक ख़ासियत है। यहाँ कच्छ मे किए जाने वाली कढ़ाई के काम की सबसे बेहतरीन क़िस्म यहीं देखने को मिलती है। इस गाँव  मे कई NGO और संगठन यहाँ की कला के संरक्षण के लिए काम करते हैं। मैं धूल उड़ाती कच्ची सड़कों को पार करते हुए ऐसी ही एक जगह पहुँच गई हूँ। यह कला रक्षा केंद्र है जहाँ सूफ कला के संरक्षण के लिए कार्य किया जाता है।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-47-of-83
Lady from Rabari Tribe outside of Bhunga

यहाँ मिट्टी के गोल घर मुझे आकर्षित करते हैं जिनके बीचों बीच मे एक छोटा-सा आँगन है जहाँ काले लिबास मे कुछ महिलाएँ कढ़ाई का काम कर रही हैं। यह महिलाएँ मारू मेघवाल और रबाड़ी जनजाति से संबंध रखती है और सिंगल धागे से कपड़े पर त्रिकोण आकर की ज्योमित्री डिज़ाइन की कढ़ाई करती हैं। यह बेहद नफीस और बारीक कढ़ाई है। जिसे बड़ी महारत से किया जाता है। कहते हैं इस कला को करने वाले की ऑंखें जल्द ही साथ छोड़ जाती हैं। यह कलाकार कपडे पर उलटी तरफ ताने बानों को उठा कर कढ़ाई करती हैं और सीधी तरफ डिज़ाइन बनती जाती है। इस जनजाति का संबंध पाकिस्तान से है। और यह विस्थापित होकर यहाँ कच्छ मे आ बसे। इनके काम मे महीनो का समय लगता है। लेकिन इनके द्वारा किए गए कढ़ाई के काम की फैशन डिज़ाइनरों मे बड़ी माँग है।

FullSizeRender_2-663x1024

मेरी इस यात्रा में ऐसे ही एक और गांव में मैंने बड़े ही खूबसूरत गोल घर देखे। इस गांव का नाम था – भरिन्डयारी,  कच्छ मे कई प्रकार की कढ़ाई के नमूने देखने को मिलते हैं।  कहते हैं यह कला पाकिस्तान के सिंध प्रांत से कच्छ मे आई और इस सफर में राजस्थानी कला और यहाँ की स्थानीय कला ने इसे और समृद्ध बनाया।  पहले महिलाएँ अपनी बेटियों के शादी के जोड़े खुद तैयार करती थीं। आज यहाँ भाँति-भाँति की कढ़ाइयाँ देखने को मिलती हैं। जैसे खारेक, पाको, राबरी, गारसिया जात और मुतवा।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-34-of-83
Banabai in the village Hodka

मुझे सुकून है कि मैं अपनी इस यात्रा मे असली गुजरात को देख पा रही हूँ।  मेरा अगला पड़ाव है होड़का गाँव जोकि धोर्ड़ो के रास्ते मे पड़ता है। इस गाँव की ख़ासियत है यहाँ के गोल घर। मिट्टी की दीवारें और अंदर से बड़े खूबसूरत होते हैं यह घर। आप भी देखिए। एक बार यहाँ आकर यहाँ से वापस जाने का मन नही करेगा। यह लोग अपने घरों को बहुत खूबसूरती से सजाते हैं। घर की दीवारों पर, छत को सब जगह कलाकारी देखने को मिलती है।

IMG_5745-1
Bhunga at Bhrindiyari village

क्यूंकि यहाँ की मिट्टी बंजर है इसीलिए शायद यहाँ के लोगों के जीवन मे रंगों का बड़ा महत्व है। इनके कपड़े बड़े कलरफुल होते हैं। रंगीन धागे, शीशा, रंगीन मोती और ऊन के बने यह वस्त्र बहुत आकर्षक हैं। भूंगों मे दिन गुज़ारने के बाद मेरी यात्रा का अंतिम पड़ाव भी आ पहुँचा है। और यह है धोर्ड़ो गाँव जोकि भुज से 80 किलोमीटेर दूर है। यहाँ से सफेद रंण शुरू होता है। यहीं पर हर साल रंण उत्सव मनाया जाता है। देखा जाए तो यहाँ कुछ भी नही है सिवाए मीलों तक फैले सफेद रंण के लेकिन यहाँ रंण उत्सव मानने के लिए पूरा का पूरा टेंट सिटी बसाया जाता है। जोकि किसी स्वप्न लोक जैसा है। ठहरने के लिए वर्ल्ड क्लास टेंट्स लगाए गए हैं और यहाँ शुद्ध गुजराती खाने का प्रबंध किया गया है।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-20-of-83
Gate of Tent City@RunnUtsav

हम दोपहर होते होते धोर्ड़ो पहुँचे। बहुत भूक लगी थी तो सीधे डाइनिंग हॉल मे पहुँच गए। यहाँ का इंतज़ाम बहुत अच्छा है।  सब कुछ पर्फेक्ट। चेक इन से लेकर खाने पीने और रंण मे जाने की व्यवस्था तक सब कुछ पर्फेक्ट।

शाम को रंण उत्सव का शुभारम्भ माननीय मुख्यमंत्री श्री विजय भाई रुपानी के हाथों एक रंगारंग कार्यक्रम के साथ हुआ। हम सब ऊंट गाड़ी पर बैठ कर रंण मे पहुँचे। दूर तक फैला रंण बहुत सुंदर दिखता है। रात मे जब पूर्णिमा का चाँद रोशनी से सारे रंण को जगमगा देगा तब सैलानी इस अद्भुत नज़ारे को देखने रंण मे आएँगे। जिसकी व्यवस्था पहले से ही की गई है।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-1-of-1-1
Creat white Runn in full Moon night

धवल चाँदनी मे रंण देखना एक अनोखा अनुभव है। मैं कहूँगी कि यह एक ऐसा अनुभव है जिसे सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है। इसलिए कैमरे मे क़ैद करने के चक्कर मे न पड़ें। बस रण  में जाकर इसका लुत्फ़ उठाएं। ठंडी हवाओं के बीच रंण मे दूर तक सफेद चाँदनी को निहारना बहुत खूबसूरत अनुभव है।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-15-of-83
Tent City in twellight @RunnUtsav

यहाँ टेंट सिटी के पास ही क्राफ्ट बाज़ार है जहाँ कच्छ के हैंडी क्रॅफ्ट आइटम खरीदे जा सकते है। मेरे इस चार दिन के प्रवास मे मैने कच्छी एंबरोएडरी की सैंकड़ों साल पुरानी विरासत को क़रीब से देखा। साथ ही भिन्न-भिन्न प्रकार की जनजातियों के लोगों के जीवन को क़रीब से देखा।

IMG_58671-1024x1024

Gujarati Thali

IMG_57101-1024x768
Khaman
IMG_57111-1024x768
Fafda

मेरी इस यात्रा का एक और हाईलाइट है और वो है यहाँ का खाना। कहते हैं गुजराती खाना मीठा होता है। पर यह पूरा सच नही है।  यहाँ मीठे के साथ कई अन्य स्वाद भी है, आप ट्राई तो कीजिए।  मैने अपनी पूरी यात्रा मे गुजरात के अलग अलग स्वादों को चखा।  खमंड, धोखला, फाफड, थेपला, गुजराती थाली और भी बहुत कुछ।

Runn-Utsav-2016-KaynatKazi-Photography-2016-www.rahagiri.com-5-of-83
KK outside the tent at Tent City@RunnUtsav

गुजरात घूमने कब जाएं?

वैसे तो वर्ष में कभी भी गुजरात घूमने जाया जा सकता है लेकिन रण उत्सव हर वर्ष दिसंबर माह में होता है जोकि फरवरी तक चलता है। अगर आप रंण उत्सव देखने जा रहे हैं तो उद्घाटन के आसपास ही जाएं। फरवरी तक मेले का उत्साह थोड़ा ठंडा हो जाता है।

कैसे पहुंचें?

रंण उत्सव धोरडो नमक गांव में किया जाता है जिसके सबसे नज़दीक भुज(71 किलोमीटर) है। रण उत्सव के लिए आप बाई एयर या ट्रैन से भी जा सकते हैं। नज़दीकी एयरपोर्ट अहमदाबाद है। भुज एयरपोर्ट सबसे नज़दीक है लेकिन फ्लाइट्स बहुत ज़्यादा नहीं हैं, जबकि अहमदाबाद एयरपोर्ट देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद से धोरडो की दूरी 370 किलोमीटर है। सड़कें अच्छी हैं लेकिन रास्ता थोड़ा लंबा है।

फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये,

आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त

डा० कायनात क़ाज़ी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here