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Haridwar in Blue hour

भोर का नीला उजाला,पूरब में सिंदूरी लालिमा, वायु में सुगन्धी अगरबत्तियों की महक, मंदिर की घंटियाँ, दूर से आती शंखनाद, हर हर गंगे की स्वर लहरी, कलकल बहता गंगाजल और घाटों पर जुटती श्रद्धालुओं की भीड़ जैसे मेला लगा हो. यह महान द्रश्य है हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी का जहाँ की सुबह रोज़ ही आध्यात्म की ऊर्जा से भरी होती है.सदियों से चलने वाली परम्परा जिसका निर्वाह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक विलम्ब किया जाता है।

 
Har Ki Paudi,Haridwar @ early in the morning
 
 लोग देश के कोनेकोने से हरिद्वार आते हैं.यह एक प्राचीन नगर है।यह वह पवित्र स्थान है जहाँ पर गंगा अपने स्त्रोत गौमुख- हिमनद से निकल कर लम्बी और पथरीली यात्रा पार कर समतल भूमि को स्पर्श करती है। यहीं से गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश कर समृद्धि और जीवन लाती है।
 
 हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मन्थन से निकले अमृत कलश को जब गरुण पक्षी ले जा रहे थे तब कलश से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर गिर गई थीं। अमृत की बूँदें क्रमशः उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग में गिरी थीं. 
 
Flowers for rituals @Har Ki Paudi,Haridwar
आज यही वह चार स्थान है जहाँ कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला हर 12 वर्षों में महाकुम्भ के रूप में प्रयाग में आयोजित किया जाता है। करोड़ों श्रद्धालु देश विदेश से इस मेले में माँ गंगा में स्नान करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं।  पूरी दुनिया से करोडों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।
 
Ganga Arti @Har Ki Paudi,Haridwar
Couple performing Puja@Har Ki Paudi,Haridwar
ऐसा कहा जाता है कि हर की पौड़ी के पवित्र घाटों का  निर्माण राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था। मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी। जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरी की पौड़ी कहलाया जाने लगा।
 
Har Ki Paudi,Haridwar
 हर की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है। संध्या समय गंगा देवी की हरी की पौड़ी पर की जाने वाली आरती किसी भी आगंतुक के लिए महत्वपूर्ण अनुभव है।
 
Gujrati Lady performing rituals @Har Ki Paudi,Haridwar
 स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए बहाते हैं।
 
 
 विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं। वर्तमान के अधिकांश घाट 1800 ईस्वीं के समय विकसित किये गए थे। हर की पौड़ी एक ऐसा स्थान है 
 
Ladies performing rituals @Har Ki Paudi,Haridwar
 
जहाँ सूरज की पहली किरण के आने से पहले से लेकर देर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है। चार धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालु अपनी यात्रा यहीं से आरम्भ करते हैं इसीलिए हरिद्वार को चार धाम का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
 
Pujari @Har Ki Paudi,Haridwar
हर की पौड़ी पर लोग भिन्न भिन्न प्रकार की पूजाएँ संपन्न करते हैं। जन्म और मृत्यु से जुड़े अनेक संस्कार यही आकर संपन्न किये जाते हैं।
 
Bathing Ghat @Har Ki Paudi,Haridwar
 
 कोई अपने बच्चे का मुण्डन करवाने आया है ,कोई विवाह के बाद परिवार में आए नए सदस्य को लेकर अपने खानदानी पण्डे द्वारा पूजा संपन्न करवाने आया है तो कोई किसी अपने की अस्थियाँ गंगा जी में विसर्जित करके उनके लिए मोक्ष की कामना कर रहा है। कोई हाथों में फूल और दीपक लिए अपने पुरखों की आत्मा की शान्ति के लिए पूजा में लीन है।
 
Sadhu
 
आपको यह जानकर हैरानी होगी की यहाँ देश के हर व्यक्ति की वंशावली किसी न किसी पण्डे के पास सुरक्षित है। भले ही कोई विदेश जा बसा हो या फिर पार्टीशन के समय उधर चला गया हो, उसका कुल, उसका वंश, उसके दादे परदादों का लेखा जोखा उसके कुल के पण्डे के पास तिथिवार सुरक्षित होता है।
 
हर की पौड़ी से लगा हुआ बाज़ार शुद्ध पारम्परिक भोजनालयों से भरा पड़ा है। सुबह का नाश्ता मदनजी पूड़ी वाले के यहाँ ज़रूर करें। 
 
yummy food
 
गर्म गर्म पूड़ी छोले और देसी घी में बना मूंग की दाल का हलवा आपको आत्मा तक तृप्त कर देगा। हरिद्वार में खाना खाने के लिए होशियारपुरी रेस्टोरेन्ट ज़रूर ट्राई  करें। 
 
All type of religious books available here
हरिद्वार के बाज़ार पूजा अर्चना से सम्बंधित वस्तुओं की दुकानों से सजे रहते हैं। अगर आपको धर्म और आध्यात्म पर लखी पुस्तकें खरीदनी हैं तो यहाँ कई दुकाने है जहाँ पुरानी से से पुरानी किताब मिल जाती है।
 
 
यहाँ सुन्दर सुन्दर धर्मशालाएं हैं जो कि सेठों द्वारा आम लोगों के लिए बनवाई गई थीं। हरिद्वार में हर की पौड़ी  के अलावा कई और स्थान हैं जिन्हें देखा जा एकता है।
चंडी देवी मन्दिर
यह मन्दिर जो कि गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर “नील पर्वत” के शिखर पर विराजमान हैं, चंडी देवी को समर्पित है। यह कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा 1929ई. में बनवाया गया। स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार, चंड- मुंड जोकि स्थानीय राक्षस राजाओं शुम्भ- निशुम्भ के सेनानायक थे को देवी चंडी ने यहीं मारा था जिसके बाद इस स्थान का नाम चंडी देवी पड़ गया। मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने की थी। मन्दिर चंडीघाट से 3 किमी दूरी पर स्थित है यहाँ पहुँचने के दो साधन हैं, एक आप पतली पगडण्डी  रास्ता चढ़ कर ऊपर पहुँच सकते हैं और अगर आप इतनी चढाई नहीं करना चाहते तो उड़नखटोले (रोपवे) द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। रोपवे से जाने के लिए लम्बी लाइन में लग कर इन्तिज़ार करना पड़ता है.यहाँ हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
मनसा देवी मन्दिर
बिलवा पर्वत के शिखर पर स्थित, मनसा देवी का मन्दिर, शाब्दिक अर्थों में वह देवी जो मन की इच्छा (मनसा) पूर्ण करतीं हैं, एक पर्यटकों का लोकप्रिय स्थान, विशेषकर केबल कारों के लिए, जिनसे नगर का मनोहर दृश्य दिखता है। मुख्य मन्दिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली तीन मुखों व पांच भुजाओं के साथ जबकि दूसरी आठ भुजाओं के साथ।
माया देवी मन्दिर
11वीं शताब्दी का माया देवी, हरिद्वार की अधिष्ठात्री ईश्वर का यह प्राचीन मन्दिर एक सिद्धपीठ माना जाता है व इसे देवी सटी की नाभि व हृदय के गिरने का स्थान कहा जाता है। यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है जो अब भी नारायणी शिला व भैरव मन्दिर के साथ खड़े हैं।
हरीद्वार के पास ही कनखल नाम की जगह भी है ऐसी मान्यता है कि यह भगवान शंकर  की सुसराल  है यही वो जगह है जहा मां सती अग्नी कुंड मे समा गयी थी.क्योकी राजा दक्ष ने यज्ञ मे सभी भगवानो को बुलाया पर सती के पति व भगवान शंकर को नही बुलाया.इसलिए सती ने यहां यज्ञ की अग्नी मे अपने आप को समर्पित कर दिया.यहा पर दक्षप्रजापती महादेव का मन्दिर भी है.यहाँ कई प्राचीन अखाड़े हैं.यह अखाड़े साधु सन्तों और छात्रों के अध्ययन का केन्द हैं। छात्र यहाँ वेदों की शिक्षा ग्रहण करते हैं.इन्ही अखाड़ों में अर्जुन पण्डित फिल्म की शूटिंग भी हुई थी।
 
Bhole Shankar
Mahant@Panchayti Akhada,Kankhal
Panchayti Akhada,Kankhal
 
नीलकण्ठ महादेव मन्दिर:
यहां से लगभग 25 किलोमीटर आगे नीलकण्ठ महादेव का मन्दिर है जिसकी बहुत मान्यता है,कहते है जब शंकर भगवान ने समुंद्र मंथन मे निकला विष का पान किया तब उनका कण्ठ नीला हो गया तब भोले शंकर इसी स्थान पर आकर रहे.इसलिए यह मन्दिर भगवान शंकर जी को समर्पित है.जब हम नीलकंठ मन्दिर की ओर जाते हैं तो कई जगह गंगा के किनारों पर कैम्प लगे होते।यहाँ सैलानी रिवर राफ्टिंग करने आते हैं. विदेशी सैलानी योग सिखने के लिए आते हैं
हरीद्वार से हर साल सावन मास मे दूर दूर से कावंडीये भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कावंड के रूप मे गंगा जल ले जाते है तब यहां एक उत्सव का माहौल रहता है.
Night view
फिर मिलेंगे दोस्तों, भारत दर्शन में किसी नए शहर की यात्रा पर,तब तक खुश रहिये,और घूमते रहिये,
 
आपकी हमसफ़र आपकी दोस्त
 
डा० कायनात क़ाज़ी

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